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हैदराबाद विश्वविद्यालय में हाल ही में आत्महत्या करने वाले रोहित वेमुला के उस पत्र (देखें, बॉक्स, पृ. 60) पर नजर डालें जो उन्होंने मरने से पहले लिखा था। पत्र आत्महत्या से पूर्व रोहित की समझ की एक झलक दिखाता है। सामाजिक विज्ञान विद्यालय के सेंटर फॉर नॉलेज एंड इनोवेशन स्टडी में पीएच़डी. कर रहे वेमुला उन पांच छात्रों में से थे जिन्हें 3-4 अगस्त के बीच की रात को हुई एक घटना के आधार पर होस्टल छोड़ने के लिए कहा गया था। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) की कैम्पस इकाई के तत्कालीन अध्यक्ष नंदनम सुशील कुमार पर आम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एएसए) के सदस्यों ने कथित हमला किया था, जिसकी अगुआई रोहित कर रहे थे। एबीवीपी उस समय याकूब मेमन की फांसी के बाद रखे गए नमाज-ए-जनाजा का विरोध कर रही थी, जिसकी तस्वीरें फेसबुक पर भी पोस्ट की गई थीं। विश्वविद्यालय के प्रोक्टोरियल बोर्ड ने इस मामले की छानबीन की और पीडि़त से बात करने के बाद अपनी अंतिम रिपोर्ट जारी कर दी। इसके बाद कार्यकारी परिषद (ईसी) ने पांच विद्यार्थियों को सजा के तौर पर विश्वविद्यालय से निलंबित करने का फैसला किया था, जिनमें वेमुला भी थे, जिन्होंने आत्महत्या की।
इस बीच सुशील कुमार (पीडि़त) की मां ने उच्च न्यायालय में मामला दायर किया और न्यायालय ने बार-बार विश्वविद्यालय के वकील से प्रोक्टोरियल बोर्ड की सिफारिशों पर की गई कार्रवाई से उसे अवगत कराने को कहा। ईसी की उप-समिति ने विश्वविद्यालय के सुरक्षा विभाग एवं स्थानीय पुलिस अधिकारियों से लंबी बातचीत और सलाह के बाद प्रोक्टोरियल बोर्ड की सिफारिशों को उचित ठहराया और ईसी को सलाह दी कि पहले की सिफारिशों के आधार पर पांचों विद्यार्थियों की सजा को कायम रखा जाए। लेकिन बाद उसने ईसी को इस मामले में नरमी बरतने की भी सलाह दी क्योंकि प्रोक्टोरियल बोर्ड द्वारा सजा की सिफारिश के आधार पर एक सेमेस्टर के निष्कासन के बाद छात्रों को पीएच़डी. के लिए मिलने वाली छात्रवृत्ति रुक जाती। ईसी उप-कुलपति के प्रस्ताव पर सजा में ढील बरतने को राजी हो गयी, लेकिन कई वर्ष से जारी विश्वविद्यालय के चलन के आधार पर यह फैसला लिया गया कि इन विद्यार्थियों को उनके संबंधित विभागों, पुस्तकालयों एवं अकादमिक सभाओं में जाने दिया जाए, परंतु उन्हें होस्टल, प्रशासन एवं कैम्पस के अन्य सार्वजनिक स्थानों में जाने की अनुमति नहीं होगी। इस फैसले को लिखित तौर पर विश्वविद्यालय के वकीलों ने उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया। सदस्यों द्वारा पारित किए जाने के बाद ईसी के फैसले से छात्रों को भी अवगत करा दिया गया। पहले यह निर्णय विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर पोस्ट किया गया और बाद में औपचारिक तौर पर छात्रों को बता दिया गया।
आम्बेडकर स्टूडेंट्स यूनियन की ओर से छात्रों का एक समूह उप-कुलपति से मिला और हॉस्टल निष्कासन आदेश को वापस लिए जाने की मांग की। उसने इस आदेश को 'सामाजिक बहिष्कार' करार दिया। ये छात्र इस सजा को केन्द्रीय श्रम एवं रोजगार राज्यमंत्री श्री बंडारू दत्तात्रेय के पत्र से जोड़ रहे थे (जिसमें उन्होंने 3-4 अगस्त की घटना पर जानकारी चाही थी), जिसे मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने भेजा था। छात्रों के समूह को स्पष्ट तौर पर बता दिया गया था कि मंत्रालय या मंत्री के पत्र का ईसी के निर्णय पर कोई असर नहीं था। परंतु छात्रों का समूह, जो अधिकांशत: दलित वर्ग और वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआइ) से संबंध रखता था, इस निर्णय में भाजपा सरकार और अभाविप की संलिप्तता साबित करने में लगा हुआ था। इस बीच एसएफआई के प्रतिनिधित्व में कुछ फेकल्टी सदस्यों के साथ छात्रों के एक समूह ने विश्वविद्यालय को दबाव में लेने के प्रयास शुरू किए। 13 जनवरी को उप-कुलपति की अनुपस्थिति में, उन्होंने प्रशासनिक इमारत को बंद कर कर्मचारियों को वहां आने से रोक दिया। उनकी मांग थी कि उप-कुलपति वहां आए, निलंबन को हटाएं और इसके बाद ही वे यह घेराबंदी हटाएंगे। तब पुलिस को बुलाया गया और बाद में खबर आई कि एक शोधार्थी ने होस्टल के कमरे में आत्महत्या कर ली है। इसके बाद छात्रों ने तोड़-फोड़ शुरू कर दी और शव को होस्टल के कमरे निकालने के दौरान भी उन्होंने लोगों पर हमला किया।
भाजपा के महासचिव श्री मुरलीधर राव कहते हैं, ''सच यह है कि रोहित दलित समुदाय से संबद्ध तो थे, परंतु उनकी आत्महत्या का दलित मुद्दे या अधिकारों से कोई कोई लेना-देना नहीं। अदालत की सलाह पर रोहित के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई थी और विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने उन्हें होस्टल के अलावा कैम्पस, कक्षाओंं, संबंधित विभागों और लाइब्रेरी में जाने की अनुमति दे दी थी।' राव कहते हैं, ''रोहित पर उच्च न्यायालय की सलाह के आधार पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई। लेकिन विश्वविद्यालय अधिकारियों ने उनके प्रति उदार रवैया अपनाया और उन्हें हॉस्टल के अलावा कैम्पस में प्रवेश की इजाजत दे दी गई थी।''
ऐसा लगता है कि इन घटनाओं से प्रत्येक समूह राजनीतिक लाभ उठाना चाहता है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी एवं मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एमआईएम) के अध्यक्ष असदुदीन ओवैसी ने एक ही दिन कैम्पस में पहुंचकर भाजपा की जमकर आलोचना की। वहीं घटनास्थल पर देर रात को पहुंचने वाले तृणमूल कांग्रेस पार्टी (टीएमसी) के राष्ट्रीय प्रवक्ता डेरेक ओ'ब्रायन ने भी बहती गंगा में हाथ धोने के प्रयास किए। फेसबुक पर हालांकि राहुल के 'दलित प्रेम' पर सवाल उठाने वाले भी कई थे। इन लोगों का सवाल था कि खुद राहुल की पार्टी के वारंगल से सांसद रहे श्री राजय्या, जो स्वयं दलित हैं कुछ महीने पहले आत्महत्या मामले में अपनी पुत्रवधु एवं प्रपौत्रों को खो चुके हैं, राहुल तब चुप्पी क्यों साधे रहे थे? और ऐसे नेता जिन्हें पठानकोट के शहीदों को श्रद्धांजलि देने का समय नहीं मिला, हैदराबाद में क्यों जा पहुंचे? वे मालदा को क्यों भूल गए जहां 1़ 5 लाख मजहबी उन्मादी दंगे पर उतारू थे।
वेमुला की आत्महत्या के मामले में मानव संसाधन विकास मंत्रालय को भी निशाना बनाया गया। उसकी ओर से हैदराबाद विश्वविद्यालय को भेजे गए चार पत्रों में केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय द्वारा अभाविप कार्यकताओं पर हमला करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग पर कदम उठाने के बारे में पूछा गया था।
मंत्रालय ने विश्वविद्यालय प्रशासन दबाव डालने के आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि नियमों के तहत सरकार के लिए सांसदों और केन्द्रीय मंत्रियों से प्राप्त प्रतिवेदनों के बारे में की गई अद्यतन कार्रवाई जानना अनिवार्य है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से सच जानने के लिए भेजे गए दल के एक सदस्य ने बताया, 'हमने सितंबर में इस बारे में लिखा था, परंतु हमें जवाब जनवरी में प्राप्त हुआ।'
पीडि़त की मां द्वारा मदद की गुहार के बाद दी गई दरख्वास्त को मंत्रालय को अग्रेषित करने के आधार पर किसी केंद्रीय मंत्री को कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? अंतिम रिपोर्ट मिलने तक, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने हैदराबाद विश्वविद्यालय के इस विवाद से जुड़ी दो परस्पर विरोधी जनहित याचिकाओं को जोड़ दिया है और उन पर एक साथ 25 जनवरी को सुनवाई करने घोषणा की है। न्यायाधीश संजय कुमार दोनों याचिकाओं पर सुनवाई करेंगे। एक याचिका अभाविप नेता सुशील कुमार की मां एऩ विनया ने अगस्त 2015 को दायर की थी, जिसमें उनके बेटे की कैम्पस में सुरक्षा के लिए गुहार लगाई गई है और दूसरी याचिका डी़ प्रशांत एवं चार अन्य शोधार्थियों ने दिसंबर 2015 में निलंबन के खिलाफ दायर की है।
विश्वविद्यालय के निष्कासित शोध छात्र प्रशांत की शिकायत के आधार पर, गचीबावली पुलिस ने केंद्रीय राज्य मंत्री (श्रम एवं रोजगार) बंडारू दत्तात्रेय सहित विश्वविद्यालय के उप-कुलपति पी़ अप्पा राव, भाजपा के विधान परिषद् सदस्य रामचंद्र राव एवं अभाविप कार्यकताओं सुशील कुमार एवं कृष्ण चैतन्य के खिलाफ भारतीय दंड विधान (आइपीसी) की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाने) एवं अजा एवं अजजा (अत्याचार विरोध) के अनुच्छेद 3 (1-9 और 10 तथा 2-7) के अंतर्गत मामला दायर किया है। स्थानीय चैनलों पर इस मामले से संबंधित एक वीडियो वायरल हो गया, जिसमें वेमुला अभाविप के बैनर फाड़ते हुए दिखाई देते हैं। उन्हें यह कहते सुना गया कि 'चूंकि उन्हें भगवा रंग से नफरत है' इसलिए वे बैनर फाड़ रहे हैं। गुस्से से भरे वेमुला का 'परवाह नहीं' वाला रवैया और हिन्दू धर्म के प्रति उनकी 'घृणा' उनकी कथित बातचीत से झलकती है। यही रवैया अन्य विचारधाराओं के प्रति 'सहिष्णुता' का दावा करने वालों का था।
मुख्यधारा मीडिया ने इस सच को कभी प्रसारित नहीं किया कि आम्बेडकर छात्र संघ कॉलेज कैम्पस में याकूब मेमन के पक्ष में प्रदर्शन और अभाविप के छात्रों पर हमले कर रहा था, वहीं उनके खिलाफ निलंबन की कार्रवाई को उच्च वर्ग की हठधर्मिता और बेमुला की दुखद आत्महत्या को दलित विरोधी 'असहिष्णु' भाजपा की नीतियों के रूप में दिखाया गया। इस बीच, पूर्व साहित्य अकादमी अध्यक्ष अशोक वाजपेयी ने हैदराबाद विश्वविद्यालय की ओर से उन्हें दी गई डी.लिट. उपाधि वहां के अधिकारियों की कथित 'दलित विरोधी' नीतियों के विरोध में लौटा दी।
राहुल गांधी से लेकर अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी के खोखले बयानों से साफ है कि रोहित मुद्दे पर भाजपा को घेरना ही उनकी मंशा है। -हैदराबाद से एऩ नागराज राव
घटनाक्रम कुछ इस तरह चला
– कई सुनवाइयों के बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने याकूब मेमन को आरोपी करार दिया और उसे मौत की सजा सुनाई
– हैदराबाद केन्द्रीय विवि (एचसीयू) में आम्बेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एएसए) ने विरोध मार्च निकाला और प्रार्थना का आयोजन किया और ये नारे लिखे पोस्टर लगाए-'तुम कितने याकूब मारोगे, हर घर से याकूब निकलेगा'।
– एएसए के 30 से ज्यादा छात्र सुशील के कमरे में आ धमके और एएसए छात्रों की करतूतों पर फेसबुक पर एक पोस्ट डालने पर उनसे मारपीट की।
– विश्वविद्यालय के सुरक्षाकर्मी सुशील को घेरकर मुख्य गेट तक ले गए जहां उनसे जबरन माफीनामा लिखवाया गया। एक सुरक्षा अधिकारी ने ही गवाह के तौर पर उस माफीनामे पर हस्ताक्षर किए।
– सुशील की शिकायत पर विश्वविद्यालय प्रोक्टोरियल बोर्ड ने मामले में पूछताछ के बाद 6 छात्रों को निलंबित करने की सिफारिश की।
– एएसए छात्रों ने प्रशासनिक भवन का घेराव किया और किसी को काम नहीं करने दिया। विश्वविद्यालय प्रशासन निलंबन आदेश को विलंबित करने को तैयार हो गया।
– विश्वविद्यालय कार्यकारी परिषद ने सजा में ढील देते हुए निलंबन की बजाय सिर्फ होस्टल से बाहर निकालने के आदेश दिए। छात्रों की फेलोशिप और पढ़ाई बाधित नहीं की गई। अभाविप ने इसका विरोध नहीं किया।
– पहले के ऐसे कुछ मामलों में विश्वविद्यालय ने छात्रों को निलंबित किया था (अभाविप के कई छात्र इसके शिकार हुए थे) और उनकी फेलोशिप खत्म कर दी गई थी।
– कई छात्र गुट साथी छात्रों को बर्खास्त करने के विश्वविद्यालय के निर्णय का विरोध कर रहे थे और इस पर वे भूख हड़ताल कर रहे थे, टेंटों में ही सो रहे थे, प्रशासनिक भवन को बाधित किए हुए थे।
– ये छात्र उच्च न्यायालय में भी गए और विश्वविद्यालय के निर्णय पर केस दर्ज किया।
– अचानक रोहित वेमुला ने वह दुर्भाग्यपूर्ण कदम उठाया। आत्महत्या से पहले लिखे अपने पत्र में उन्होंने किसी को दोष नहीं दिया।
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