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संक्रांति को परिवर्तन का काल माना जाता है, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की पत्रिका का यह विशेषांक स्वामी विवेकानन्द को केद्र में रखकर इस शुभ अवसर पर लोकार्पित हुआ है। छात्र शक्ति को एक परिवर्तनकारी समूह बनाकर, अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने की प्रेरणा यह विशेषांक देता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबले ने ये विचार अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् की मासिक पत्रिका राष्ट्रीय छात्र शक्ति के विशेषांक 'युवा भारत समर्थ भारत' के लोकार्पण के अवसर पर व्यक्त किये।
नई दिल्ली स्थित दीनदयाल शोध संस्थान में छात्रों को संबोधित करते हुए श्री होसबले ने कहा कि अनुशासन के बंधन कई बार परिवर्तन लाने में बाधक होते हैं। छात्र संगठन परिवर्तनशील होते हैं और समयानुसार परिवर्तन चाहते हैं। युवाओं के अन्दर परिवर्तन का भाव स्वाभाविक है, जो नहीं चाहते उनके अन्दर तरुणाई नहीं है। निर्भीक होकर परिवर्तन लाने के लिए आत्मविश्वास के साथ ''हम ऐसी अव्यावहारिक व्यवस्था नहीं मानते'', यह कहने की ताकत छात्र संघ में होनी चाहिए। स्वतन्त्रता आंदोलन में भी कई स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों के विचार समाज तक पहुंचाने के लिए ऐसी पत्रिकाएं सशक्त माध्यम बनीं। आज विद्यार्थी परिषद् द्वारा भारत के भिन्न-भिन्न भागों में विभिन्न भाषाओं में छात्र पत्रिका निकालना परिवर्तन लाने के लिए वैचारिक आंदोलन का हिस्सा है। सीमित संसाधनों के कारण ऐसी पत्रिकाएं चलाते रहने में कई समस्याएं आती हैं, किन्तु इन समस्याओं से हार नहीं मानें जिम्मेदारी लेने का निर्णय लेकर उस पर अपनी प्रतिबद्घता दिखाएं़ राष्ट्रीय छात्र शक्ति का यह प्रयास सराहनीय है। आज इस पत्रिका से जुड़े 50 प्रतिशत कार्यकर्ता कहीं न कहीं पत्रकारिता के क्षेत्र में हैं यह भी एक बड़ी सफलता है।
श्री होसबले ने कहा कि आज विद्यार्थी परिषद के इस कार्यक्रम में पुरानी और नई पीढ़ी मिली है, नए कार्यकर्ता वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के अनुभव से सीखें। आज 1975 के पहले का युग नहीं है, इसलिए तकनीक को आत्मसात करना चाहिए, लेकिन अपनी परम्परा से जुड़े रहकर, उसमें जो कुरीतियां हैं उन्हें दूर करते हुए जिम्मेदारी का अहसास, सीमित संख्या-संसाधनों को ध्यान में रखते हुए अपनी भूमिका बनानी होगी। छात्र संगठन राष्ट्रहित के लिए सत्ता की दीवारों को हिलाने का अपने में सामर्थ्य बनाएं और जनजातीय क्षेत्रों में हो रहे कार्य को भी अपने आन्दोलन में सम्मिलित करें।
श्री होसबले ने आगे कहा कि छात्र शक्ति को वेबसाईट भी शुरू करनी चाहिए। यह पत्रिका केवल अपने रंगीन पृष्ठ, डिजाइन के लिए ही न जानी जाए अपितु अपनी सामग्री के द्वारा पहचानी जानी चाहिए। लोकार्पित विशेषांक में स्वामी विवेकानन्द को लेकर समर्थ भारत की कल्पना की गई है, जो सराहनीय है।
पत्रिका के संपादक श्री आशुतोष भटनागर ने कहा कि अभाविप आंदोलनकारी जुझारु संगठन है, विश्वविद्यालय परिसर में अक्सर संवाद की जरूरत रहती है इसके लिए परिसर में वर्तमान कार्यकर्ताओं को राष्ट्रीय दृष्टि देने, उपयोगी साहित्य-सामग्री देने के लिए पत्रिका के माध्यम से कार्य किया जा रहा है। स्वामी विवेकानन्द की जयंती से इस विशेषांक को जोड़कर 'युवा भारत समर्थ भारत' नाम से इस बार का विशेषांक तैयार किया गया है।
वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि आज प्रदर्शित वृत्तचित्र जो राष्ट्रीय छात्र शक्ति पत्रिका के विकास पर आधारित है, वह हमें विद्यार्थी परिषद् के इतिहास में ले जाता है कि अभाविप की छात्र शक्ति 1978 में निकली, उस समय परिषद को अपने विचार रखने के लिए एक मंच की जरूरत थी, जो इस पत्रिका से मिला। आने वाले वषोंर् में विद्यार्थी परिषद के लिए छात्र शक्ति क्या करे, इस पर विचार की आवश्यकता है।
इससे पूर्व कार्यक्रम के आरम्भ में अभाविप की पत्रिका 'राष्ट्रीय छात्र शक्ति' की विकास यात्रा पर केन्द्रित एक वृत्तचित्र प्रदर्शित किया गया। परिषद के इतिहास, छात्र आंदोलनों के विवरण, छात्रसंघ के प्रवाहमय कायोंर् का पत्रिका में उल्लेख है।
कार्यक्रम के समापन पर श्री संजीव सिन्हा ने श्री दत्तात्रेय होसबले का स्मृति चिन्ह से अभिनन्दन किया, श्री अवनीश सिंह ने श्री रामबहादुर राय का अभिनन्दन किया, श्री अजीत सिंह ने विद्यार्थी परिषद् के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री श्री श्रीनिवास का अभिनन्दन किया़ अमेरिका जोन के संघचालक डॉ. वेद प्रकाश नंदा तथा विद्यार्थी परिषद् दिल्ली प्रान्त की अध्यक्ष श्रीमती मनु कटारिया ने भी पत्रिका के विषय में अपने विचार रखे। अंत में श्रीमती मनु कटारिया ने बड़ी संख्या में पहुंचे कार्यकर्ताओं व छात्रों का धन्यवाद किया। (इंविसंके)
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