चिंता किसान के स्वाभिमान की
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चिंता किसान के स्वाभिमान की

by
Jan 25, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 25 Jan 2016 15:39:12

अभी पिछली गर्मियों में दिल्ली से मुजफ्फरनगर जाते हुए रास्ते में सड़क के एक ओर खेत में डंठल साफ करते एक किसान दिखाई दिया। खरीफ के उस मौसम में जहां खेत में बाजरे की फसल लहलहाती दिखनी चाहिए थी वहां सूखे पत्तों के ढेर देखकर जाहिर है, बड़ा खराब लगा। गाड़ी बाजू में रोककर हम उस किसान से बतियाने पहंुच गए। 'रामआसरे', उन्होंने पूछने पर अपना यही नाम बताया था। खेत बहुत बड़ा नहीं तो उतना छोटा भी नहीं था। पता चला, रामआसरे बटाई पर खेती करते हैं वहां। हमने सूखी फसल की ओर इशारा करते हुए पूछा, 'ये क्या, फसल हुई नहीं इस बार?' वे बोले, 'कैसे होती, पानी पड़ा ही नहीं। सूखी जा रही है, सारी की सारी। अब क्या तो खेत मालिक को चुकाएंगे, क्या बेचेंगे और क्या खाएंगे। यही होता है हर बार, फसल कई बेमौसम बारिश खा लेती है, कभी सूखा निगल जाता है। सरकार से कुछ मिलता नहीं, बड़े बाबुओं के चक्कर काट-काटके थक जाते हैं।'
लौटकर गाड़ी में बैठते हुए मन में बार-बार मजबूर रामआसरे और उनकी दयनीयता पर कोफ्त हो रही थी।  इसीलिए अभी 13 जनवरी को जब केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को हरी झंडी दी तो बरबस ही रामआसरे का मायूस चेहरा ध्यान आया और लगा कि अब इस योजना से उनकी और उन जैसे मौसमी मार से बेहाल देश के करोड़ों किसानों को सीधे फायदा पहंुचेगा जो फसल और आमदनी दोनों से हाथ धो बैठते थे। नई योजना 43 साल से अलग-अलग रूपों में जारी होती रहीं ऐसी योजनाओं  से हर नजर से बेहतर और किसान हितकारी है, चाहे वह किसान छोटी जोत का हो या फिर बटाईदार। उल्लेखनीय है कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान राजग ने घोषणा की थी कि वह किसान और उसकी फसल की सुरक्षा की गारंटी लेगी। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने साफ कहा था कि किसानों की मेहनत से उगाई फसलों को भगवान के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता, कुदरती कहर से फसल को होने वाले नुकसान की भरपाई जरूर की जाएगी।
 पहले योजना के खास बिन्दुओं को समझ लेना बेहतर होगा। मंत्रिमंडल द्वारा पारित योजना के तहत अब किसानों को खरीफ की फसलों के लिए दो प्रतिशत और रबी के लिए 1.5 प्रतिशत प्रीमियम ही देना होगा। नगदी और फल, सब्जियों जैसी बागवानी फसलों के लिए 5 प्रतिशत प्रीमियम ही देय होगा। सरकार किसान के खाते में प्रीमियम का 5 गुना (आधा केन्द्र का, आधा राज्य सरकार का) पैसा जमा कराएगी। मिसाल के लिए अगर किसान 100 रु. जमा कराता है तो उसके खाते में सरकार के 500 रु. मिलकर कुल 600 रु. होंगे। यानी फसल बिगड़ने की सूरत में उसे 100 रु. के बदले 600 रु. की भरपाई होगी। प्रीमियम एकमुश्त भी दिया जा सकता है। फसल बिगड़ने पर पूरे मुआवजे का प्रावधान फिर से लागू किया गया है। 25 फीसदी मुआवजा तो नुकसान के पूर्वाकलन पर पहले ही जमा करा दिया जाएगा। और दिलचस्प बात यह है कि नुकसान का जायजा लेने के लिए पहली बार अत्याधुनिक तकनॉलोजी का सहारा लेते हुए ड्रोन, जीपीएस और रिमोट सेंसिंग तकनीक इस्तेमाल की जाएगी। इससे समय कम लगेगा और मुआवजा मिलने में देरी नहीं होगी।  एक और बात। मान लीजिए फसल कटने के बाद 14 दिन तक वह खेत में पड़ी रहे और इस बीच भारी बारिश से खराब हो जाए तो किसान बीमा के तहत मुआवजे का हकदार होगा। फिलहाल इस मद में 8,800 करोड़ रु. निर्धारित करके देश के 14 करोड़ किसानों के लिए आने वाली खरीफ की फसल से यह व्यवस्था लागू करने के इंतजाम किए गए हैं। इसमें शक नहीं कि यह योजना पहले की सभी योजनाओं से हर नजरिए से बेहतर है जिसमें पहले की सभी शंकाओं और खामियों को दूर करने की कोशिश की गई है। कृषि बीमा निगम के साथ सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियां फसल बीमा योजना का काम देखेंगी।
इस नई बीमा योजना के लिए खेती-किसानी से जुड़े विभिन्न संगठनों ने प्रीमियम घटाने पर प्रधानमंत्री को धन्यवाद देते हुए इसके अनेक पक्षों को किसान हित का बताया। भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय संगठन मंत्री दिनेश कुलकर्णी इस योजना की तारीफ में कहते हैं, 'पहले की बीमा योजनाओं में गांव को इकाई माना जाता था जिससे किसान को व्यक्तिगत नुकसान होने पर मुआवजा नहीं मिलता था, अब अगर ओलावृष्टि, बारिश या अन्य कोई प्राकृतिक  आपदा आने पर किसान का व्यक्तिगत नुकसान होगा तो उसे पूरी भरपाई की जाएगी। सरकार देश के 50 प्रतिशत किसानों को अपनी इस महत्वाकांक्षी योजना के दायरे में लाने का मन बना रही है।'
भारतीय किसान संघ के महामंत्री प्रभाकर केलकर का कहना है कि आजादी के बाद इस योजना के तहत पहली बार समग्रता से किसान की चिंता की गई है। पहले की योजनाओं में एक अधूरापन था और किसानों से ज्यादा बीमा कंपनियों का ही भला होता था। इस योजना में कम से कम नुकसान की भी भरपाई हो सकेगी। प्रीमियम कम होने से किसान को अब प्रति एकड़ 600 रु. ही देने होंगे। दूसरा, बीमे के तहत हर फसल लाई गई है। साथ ही पहले बीमे का लाभ नुकसान के पूरे आकलन के बाद ही मिलता था, पर अब पटवारी द्वारा शुरुआती आकलन के आधार पर ही भरपाई संभव होगी, विस्तृत आकलन बाद में आता रहेगा। इसमें ध्यान रखना होगा कि पटवारी या अधिकारी भाई-भतीजावाद न करे, पक्षपात न हो। भारतीय किसान संघ की ओर से कुछ सुझाव भी हैं, जैसे पूरी प्रक्रिया का डिजिटलीकरण हो, जिससे पूरी पारदर्शिता हो। एक हेल्पलाइन नंबर जारी किया जाए जिस पर किसान सीधे अपने नुकसान की जानकारी अधिकारी को दे सके, और योजना की समय-समय पर समीक्षा हो जिससे उसमें निरंतर सुधार किए जाते रहें।
महाराष्ट्र के किसानों के बीच काम करने वाली स्वाभिमानी शेतकारी संघटना के प्रमुख, सांसद राजू शेट्टी कहते हैं कि प्रीमियम राशि कम होने से ज्यादा से ज्यादा किसाान कम प्र्रीमियम देकर इस योजना का लाभ उठाने की स्थिति में होंगे। अमेरिका में इस तरह की योजना बहुत पहले से लागू है। वहां फसल और उसकी कीमत, दोनों को बीमा के तहत रखा गया है, इसी तरह का प्रावधान भारत में भी होना चाहिए। यानी अगर किसान की फसल का दाम औसत से नीचे गिरे तो भी सरकार उसे पैसे का नुकसान न होने दे। इससे किसान को आय की गारंटी और निश्चिंतता रहेगी। दूसरे, एक तय वक्त के बाद उपग्रह पद्धति से सर्वे हो ताकि पता चले कि किस इलाके में किस फसल का कैसा उत्पादन हुआ है, इस अनुमान का लाभ उठाकर किसान वही फसल लगाने की स्थिति में होगा जिससे ज्यादा मुनाफे की उम्मीद हो। 
नीतियों की समीक्षा करते रहने से योजनाओं में सकारात्मक बदलाव/सुधार किए जा सकते हैं। सरकार को भी चाहिए कि नीतियों की जानकारी सबको पहंुचे ताकि उसका सब पूरा लाभ ले सकें। इस ओर इशारा करते हुए शेट्टी कहते हैं कि सरकार को हर दो साल की अपनी कृषि संबंधी आयात/निर्यात नीति घोषित करनी चाहिए जिससे किसान को पता रहे कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में किस फसल का निर्यात हो सकता है, तो वह उसी फसल को उगा सकेगा, इससे उसे आर्थिक नुकसान नहीं होगा। ऐसे तमाम रास्तों को बंद किया जाए जो किसानों को मिलने वाला लाभ बीमा कंपनियों को पहंुचा देते हैं। 
उत्तर प्रदेश के किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत की बनाई भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता धर्मेन्द्र मलिक कहते हैं कि किसान को इकाई मानते हुए योजना का लाभ सीधे उसे मिलना चाहिए। पहले अटलबिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में जो योजना लागू की गई थी वह अच्छी तो थी पर मौसम आधारित थी, इस नई योजना में ऐसी कोई बाध्यता न होना अच्छा है। दूसरे, जिस किसान ने कर्ज लिया हुआ है वही इस योजना से जुड़ने को उत्सुक होगा, छोटी जोत के अकेले किसान को भी लाभ पहंुचाया जाए। नीति तो अच्छी है पर उसका व्याप तय होना चाहिए। पट्टे को भी कानूनी जामा पहनाया जाए जिससे पट्टाधारक को पूरा लाभ मिले। जो किसान बटाई पर खेती करते हैं उनको इससे फायदा मिलना चाहिए।
मलिक ने एक उदाहरण दिया धुर दक्षिण के राज्य तमिलनाडु का। उनका कहना है कि तमिलनाडु में एक अच्छी बात यह की गई है कि बटाई पर खेती करने वालों को राज्य सरकार ने कार्ड बनाकर दिए हैं जिन पर उनको कर्जा भी दिया जाता है। कार्डधारक को बीमे का लाभ भी मिलता है। केन्द्र सरकार के स्तर पर कुछ इस तरह की पहल के बारे में सोचा जा सकता है।    

आलोक गोस्वामी

कड़ी मशक्कत से निखरेगी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
सुरेंद्र प्रसाद सिंह

गंभीर संकट के दौर से गुजर रहे भारत के किसानों के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना वरदान साबित हो सकती है। नई फसल बीमा योजना में उन खामियों को दूर करने की कोशिश की गई है, जिसकी वजह से पिछली बीमा योजनाएं 30 साल में एक चौथाई किसानों को भी लुभाने में विफल रही हंै। पिछली योजनाओं में किसान विरोधी कुछ ऐसे प्रावधान थे, जिनसे किसानों का भला होना तो दूर, मुश्किल समय में सरकारी तौर पर उनके साथ गंभीर विश्वासघात होता था।
न्यूनतम बीमा प्रीमियम के साथ अधिकाधिक लाभ की गारंटी देने वाली प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में उस विश्वासघाती प्रावधान 'कैप' को हटा दिया गया है। पूर्व की योजना की प्रीमियम दरों के साथ सरकारी 'कैप' लगाने के बेहद घटिया प्रावधान से प्रधानमंत्री मोदी हतप्रभ थे। सिर्फ व सिर्फ बीमा कंपनियों को फायदा पहुंचाने वाली पुरानी संशोधित राष्ट्रीय फसल बीमा योजना में प्रीमियम की दर बढ़ जाने की स्थिति में सरकार ने अपनी हिस्सेदारी कम करने के लिए बीमा राशि में ही कटौती करने का प्रावधान कर रखा था। इससे किसान नुकसान का मुआवजा मिलने के समय ठगा महसूस करता था। इस तरह के कई अदूरदर्शी प्रावधानों को नई बीमा योजना से प्रधानमंत्री मोदी के निर्देश पर तत्काल हटा दिया गया है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं हैं, जिन्हें सुलझाने के बाद ही इसका पूरा लाभ किसानों को मिल सकेगा। देश के 85 फीसद से अधिक किसान छोटे व मझोली जोत वाले हैं। खेती फायदे का सौदा न होने की वजह से ज्यादा भूस्वामियों ने अपनी खेती बटाई पर दे रखी है। नई फसल बीमा योजना में बटाईदारों के लिए प्रावधान तो किया गया है, लेकिन राज्यों के कानूनी संशोधन के बगैर उन्हें इसका लाभ मिलना संभव नहीं होगा। ऐसे बटाईदार किसानों को बैैंक से कृषि ऋण तक नहीं मिलता है। वास्तविक भूमि का मालिक कानूनी वजह से अपने ही बटाईदार को इस आशय का प्रमाण पत्र नहीं देता।
केंद्र सरकार ने योजना की 'लांचिंग' के साथ ही राज्यों को बटाईदारों के हित में संशोधित कानून लाने का सुझाव भेजा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं इस दिशा में गंभीरता दिखाते हुए सिक्किम की राजधानी गंगतोक में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में हिस्सा लिया। इस दौरान खेती के विभिन्न पक्षों पर चर्चा के साथ बटाईदारों के मसले पर गंभीर सिफारिशें आई हैं, जिनसे लगभग सभी राज्य सरकारें सहमत हैं। बीमा योजना के क्रियान्वयन का दायित्व राज्य सरकारों का है।
नई फसल बीमा योजना में कुछ अन्य चुनौतियां भी गिनाई जा रही हैैं, जिनमें हैं केंद्र व राज्य की आधी-आधी भागीदारी वाली केंद्रीय योजनाओं का खराब प्रदर्शन है। यह योजना भी उसी तर्ज की है, जिसमें अगले तीन सालों में केंद्र सरकार को 8,800 करोड़ रु. खर्च करने होंगे। इतनी ही राशि राज्य सरकारों को मिलकर देनी होगी, जो बीमा कराने वाले राज्यों के किसानों की संख्या और रकबा पर निर्भर करेगी। इस नई योजना की तैयारी में गृहमंत्री श्री राजनाथ सिंह की अहम भूमिका रही है।
(लेखक ग्रामीण, कृषि व खाद्य क्षेत्र के विशेषज्ञ और वरिष्ठ पत्रकार हैं)

विभिन्न फसलों के लिए प्रीमियम (प्रति एकड़)
फसल             प्रीमियम      
खरीफ फसलें     2%
रबी फसलें     1. 5%
सालाना नकदी फसलें    5%
बागवानी फसलें    5%
        1 लाख रु. के बीमा के लिए प्रीमियम
फसल    प्रीमियम
खरीफ फसलें    2,000 रु.
रबी फसलें    1,500 रु.
सालाना नकदी फसलें    5,000 रु.
बागवानी फसलें     5,000 रु.

'पहले की योजनाओं में एक अधूरापन था और किसानों से ज्यादा बीमा कंपनियों का भला होता था। इस योजना में कम से कम नुकसान की भी भरपाई हो सकेगी।'
-प्रभाकर केलकर, महामंत्री, भारतीय किसान  संघ
'छोटी जोत के अकेले किसान को भी लाभ पहंुचाया जाए। नीति तो अच्छी है पर उसका दायरा तय होना चाहिए। पट्टे को भी कानूनी जामा पहनाया जाए जिससे पट्टाधारक को पूरा लाभ मिले। जो किसान बटाई पर खेती करते हैं उनको इससे फायदा मिलना चाहिए। '
-धर्मेन्द्र मलिक, प्रवक्ता, भारतीय किसान यूनियन
'अमेरिका में ऐसी योजना पहले से है। फसल और उसकी कीमत, दोनों को बीमा के तहत रखा गया है, ऐसा ही प्रावधान भारत में भी होना चाहिए।'
-राजू शेट्टी, सांसद, स्वाभिमानी शेतकारी संघटना

 

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