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मालदा के कालियाचक में तीन जनवरी को हुई हिंसा अपने पीछे कई सवाल छोड़ गई। पश्चिम बंगाल सरकार के आंखें मंूदे रखने से जहां मजहबी उन्मादियों ने जमकर उत्पात मचाया, वहीं इस घटना के तार बंगलादेश में बैठे जाली भारतीय मुद्रा और अवैध हथियारों के धंधे से जुड़े साजिशकर्ताओं से जुड़ने के संकेत भी मिल रहे हैं
मालदा के कालियाचक में तीन जनवरी को हुई हिंसा अपने पीछे कई सवाल छोड़ गई। पश्चिम बंगाल सरकार के आंखें मंूदे रखने से जहां मजहबी उन्मादियों ने जमकर उत्पात मचाया, वहीं इस घटना के तार बंगलादेश में बैठे जाली भारतीय मुद्रा और अवैध हथियारों के धंधे से जुड़े साजिशकर्ताओं से जुड़ने के संकेत भी मिल रहे हैं
माना जाता है कि पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के कालियाचक प्रखंड में राष्ट्रीय राजमार्ग 34 और कलियाचक थाने पर 3 जनवरी को जो कुछ हुआ वह पैगम्बर के लिए कथित अपमानजनक टिप्पणी के विरोध में मुस्लिम समुदाय का सामूहिक विरोध प्रदर्शन था। अजीब बात यह है कि हिंदू महासभा के जिस तथाकथित नेता की टिप्पणी के विरोध में उन्माद भडका, वह पहले ही जेल में है। रैली के लिए बंटा पर्चा जिसमें दो मोबाइल नंबर भी थेे, एक मजहबी संगठन इदारा-ए-शरिया-कालियाचक की ओर से जारी हुआ था। दरअसल, उग्र भीड़ के जमा होने के बाद घटी घटनाओं पर नजर डालने से एक अलग ही कहानी उभरती है।
यह सब हुआ
राजमार्ग-34 पर स्थित कालियाचक के मुख्य चौराहे पर जमा करीब डेढ़ लाख लोगों की भीड़ मजहबी उन्माद से भरपूर थी। इनमें से कई के हाथों में पाकिस्तानी झंडे थे। शुरू में शांत दिखती भीड़ उग्र भाषणों और नारेबाजी, जिसमें कुछ नारे बडे़ पुलिस अधिकारियों के 'सिर काट लेने' जैसे भी थे, जल्द ही रंग बदलने लगी। उसने आननफानन राजमार्ग पर कब्जा जमा लिया, उस पर यातायात रोक दिया और हिंसाचार शुरू हो गया। राजमार्ग से गुजर रही एनटीबीसी बस पहला निशाना बनी। यात्री किसी तरह जान बचाकर भागे। इसके बाद भीड़ ने बीडीओ दफ्तर और आसपास के सरकारी कार्यालयों में जमकर तोड़फोड़ की। भीड के अचानक उन्मादी होने की कोई वजह नहीं थी। फिर जब पुलिस आयी तो भीड पुलिसवालों पर टूट पडी। पुलिस पर बम फेंके गए. फिर हजारों लोगों का एक जत्था जबरदस्ती कालियाचक थाने में घुस गया। प्रभारी इंस्पेक्टर सुब्रत घोष और दूसरे पुलिस वाले उन्मादियों की जबर मार से जख्मी हुए. देखते ही देखते सभी पुलिस वाले थाना छोड़कर भाग लिए। भीड़ ने थाने को आग लगा दी। उन्मादियों की मार से तीन सहायक इंस्पेक्टर राम सााहा, देवदुलाल सरकार, एस.भौमिक और चार होमगार्ड बुरी तरह जख्मी हुए। थाना परिसर में खडी गाडि़यां फूंक दी गयी। साथ ही परिसर में बना काली मंदिर ध्वस्त कर दिया गया। सबसे अहम यह कि थाने में जब्तशुदा हथियार, नकली करंसी नोट और अफीम लूट ली गयी। थाने का लॉकअप तोड दिया गया जिससे अपराधी भाग गये।
इसके बाद उन्मादियों ने पास की हिन्दू बस्ती का रुख किया। इससे पहले उन्होंने राजमार्ग-34 पर फंसी 20 गाडि़यों को जला दिया और 30 से ज्यादा लोगों को जमकर पीटा। थाने के पीछे बनी बलियाडांगा बस्ती में बने शनि मंदिर और दुर्गा मंदिर तथा दूसरे मंदिरों पर भी हमला हुआ। हिन्दू बस्ती के करीब 25 घरों और दुकानों में तोड़फोड़ की गई। निर्दोष नागरिकों और दुकानदारों को लूटा गया। थाना बचाने की कोशिश में राज्य में सक्रिय सगठन हिन्दू संहति के 22 वर्षीय कार्यकर्ता गोपाल तिवारी उर्फ तन्मय तिवारी को भीड़ में से चलाई गई गोली लगी जिससे उसका पैर जख्मी हो गया। उन्मादियों पर काबू करने के लिए पुलिस को पूरे छह घंटे लगे। रैपिएक्शन फोर्स इसके बाद पहुंची।
घटनाओं का यह क्रम दिखाता है कि पैगंबर पर अपमानजनक टिप्पणी के विरोध में आयोजित रैली के असली उद्देश्य कुछ और थे। जांचकर्ता एजेंसियों के सूत्रों से मिली जानकारी इस पर प्रकाश डालती है। माना जाता है कि इस हिंसाचार का खाका बंगलादेश में तैयार हुआ। वहां जमीनपुर के सद्दाम शेख नामक कट्टरपंथी की इस हिंसाचार में मुख्य भूमिका का अंदेशा है। खुफिया सूत्रों के अनुसार हिंसाचार में मालदा के महबूतपुर, गोपालगंज, बलियाडांगा, महदीपुर, शोभापुर, मोथाबाड़ी के लोगों के साथ सीमापार के चापाई नबाबगंज जिले के शिवगंज थाने के जमीनपुर, दादनचक, विश्वनाथपुर, मंडलपाड़ा और मनकशा से आये लोग भी शामिल थे। बंगलादेश से लगी करीब 19 किलोमीटर सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ नहीं है। उन्माद के चार स्पष्ट उद्देश्य थे-कालियाचक ब्लॉक में कालियाचक मोठाबाड़ी, बैनावनगर में मुस्लिम आबादी 90 प्रतिशत है। हिन्दू महज 10 प्रतिशत है। हिन्दू बस्तियों को निशाना बनाये जाने से लगता यही है कि उन्मादियों का पहला लक्ष्य बचे-खुचे हिन्दुओं में डर पैदा कर उन्हें यहां से भागने पर मजबूर करना था। स्थानीय सूत्र बताते हैं कि इलाके में पुलिस और प्रशासन की मिलीभगत से बडे पैमाने पर तीन अवैध गतिविधियां चलती है: पहली, बड़े पैमाने पर अफीम का अवैध उत्पादन, दूसरा, हथियारों और गोलाबारूद की फैक्ट्रियां, और तीसरा बंगलादेश से नकली भारतीय मुद्रा की बड़े पैमाने पर आवक जिसे बाद में भारतभर में भेजा जाता है।
सूत्रों की माने तो मालदा के वैष्णव नगर और कलयाचौक में नकली नोटों के करीब 15 बड़े डीलर हैं जिन्हें डी कंपनी की शह बतायी जाती है। करीब 400 एजेंटों और 2,000 कैरियरों के जरिए ये नकली नोट भारत भर में फैलाए जाते हैं। भारत में पहुंचने वाले करीब 80 फीसदी जाली नोट मालदा के कालियाचक और साथ लगी बंगलादेश सीमा से आते हैं। हालांकि पुलिस और एनआइए की मदद से जाली नोटों की तस्करी पर काफी हद तक रोक लगी है लेकिन यह पर्याप्त नहीं। 2014 में पश्चिम बंगाल में जाली नोटों की तस्करी के 82 मामले दर्ज किये गये और 120 लोगों को गिरफ्तार किया गया। 2015 में इन मामलों की संख्या बढ़कर 104 और गिरफ्तार लोगों की तादाद 127 पर पहुंच गयी और 2,78,56,000 रुपए के नोट जब्त किए गए। इस सुलग इलाके में मजहबी उन्मादियों, अपराधियों, पुलिस प्रशासन, मीडिया और के नेताओं की मिली भगत सहयोग का अजीब घालमेल खतरनाक नतीजे दे रहा है
यह सीमावर्ती इलाका जिस तेजी से राष्ट्रविरोधी गतिविधियों और मजहबी उन्माद का केन्द्र बन रहा है उसे देखते हुए स्पष्ट है कि अगर राज्य सरकार इसी तरह वोट बैंक की राजनीति के चलते आंखे मुंदे रही तो यह दावानल चहुं ओर फैल सकता है।
पश्चिम बंगाल में जब्त नकली मुद्रा के आंकड़े
वर्ष बरामद राशि कुल दर्ज मामले गिरफ्तार
2011 5, 83, 66, 611 199 44
2012 2, 93, 47, 910 122 35
2013 1, 79, 20, 440 – –
2014 1, 50, 56, 500 82 120
2015 2, 78, 56, 000 104 127
'तृणमूल कांग्रेस शासित राज्य सरकार देश विरोधी ताकत और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को बल प्रदान कर अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण में लगी है। मीडिया इस घटना को आम जनता को बेखबर और गुमराह कर रही है।'
-दिलीप घोष, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष
तब चुपी साधे रहे,अब सक्रिय हुए
मालदा हिंसा से पहले क्या खुफिया रपट गलत रही या फिर उसकी अनदेखी की गई। हिंसा के बाद वही पुलिस भाजपा कार्यकर्ताओं को रोकती रही, जो तीन जनवरी को कालिया में मजहबी चक चुप्पी साधे हुई थी। इससे साफ है कि पुलिस उस दिन दबाव में काम कर रही थी और तृणमूल कांग्रेस सिर्फ अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के जरिये वोटों के विभाजन के बल पर चुनाव जीत रही है। मालदा में धारा 144 लगाकर भाजपा के प्रतिनिधिमंडल को रोका गया। भाजपा को मालदा से 18 किलोमीटर दूर सभा करने की अनुमति तक नहीं दी गई। भाजपा कार्यकर्ता प्रशासन और सरकार पर दबाव बनाकर अपराधियों को गिरफ्तार करवाना चाहते थे, लेकिन राज्य सरकार ने ऐसा नहीं करने दिया।
बासुदेब पाल
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