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नए वर्ष की पूर्व संध्या पर, जर्मनी के कोलोन शहर में लगभग 1000 पुरुष मानों महिलाओं को निशाना बनाकर बड़े पैमाने पर यौन हमले करने और डकैतियां डालने के लिए ही इक्ट़्ठा थे! पुलिस ने बताया कि उसे 500 से अधिक महिलाओं से रिपोर्ट मिली है, जिन्होंने बताया है कि कैसे अरब / उत्तरी अफ्रीकी मूल के पुरुषों के समूहों ने उनको जबरदस्ती स्पर्श किया, उन पर यौन हमला किया और कुछ मामलों में, उनके साथ बलात्कार किया। जब उन्होंने खुद का बचाव करने की कोशिश की, तो उनका सामान लूट लिया गया। ये हमले रात 10:15 बजे से लेकर सुबह 4:15 तक किए गए।
कोलोन के अलावा, यौन हमलों और डकैतियों का ऐसा ही सिलसिला जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में चला, जहां से पुलिस को 50 शिकायतें मिली। जर्मनी के डजलडॉर्फ, फ्रैंकफर्ट, स्टटगार्ट, बर्लिन शहरों और स्विट्जरलैंड के ज्युरिख शहर से भी इसी तरह के यौन हमलों की खबरें मिली हैं। यह स्पष्ट है कि ये हमले एक समन्वित योजना का हिस्सा थे। जर्मन न्याय मंत्री हाइको मास ने कहा है, ''अगर इस तरह के गिरोह अपराध करने के उद्देश्य से एकजुट होते हैं, तो यह जाहिर होता है कि यह किसी न किसी रूप में योजनाबद्ध था ़.. कोई भी मुझसे यह नहीं कह सकता कि यह समन्वित या सोचा-समझा नहीं था।''
कई लोग इस बात पर नाराज हैं कि कोलोन में इन हमलों की खबर सामने आने में कई दिन लग गए। अधिकारियों पर आरोप है कि उन्होंने इस आशंका में इन अत्याचारों को छिपाया कि इन यौन हमलों को शरणार्थी संकट से जोड़ा जाएगा, क्योंकि सभी पीडि़तों ने पुरुषों के अरबी / उत्तर अफ्रीकी मूल का होने की बात बताई है। हमलों में शरणार्थियों की भागीदारी को पुलिस द्वारा छिपाने के कारण कोलोन के पुलिस प्रमुख को उसके पद से हटा दिया गया। अपराध छिपाने की यह घटना ब्रिटेन में रॉदरहैम बच्चों के यौन शोषण मामले के समान है, जिसमें पाकिस्तानी मूल के पुरुषों ने 1,400 लड़कियों के साथ 16 वर्ष तक यौन दुर्व्यवहार किया और फिर भी बचे रहे।
अधिकारी भयभीत थे कि उन्हें नस्लवादी के तौर पर दर्शाया जाएगा और उन्होंने तथाकथित सामुदायिक सामंजस्य की खातिर अपराधियों की जातीय पहचान छिपा दी। जर्मन न्याय मंत्री मास ने हमलों पर एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि इन घटनाओं को अति सरलीकरण का एक मुद्दा बनाना, और इससे शरणार्थी मुद्दे को जोड़ना घटना का दुरुपयोग करने के अलावा कुछ भी नहीं है। यदि ऐसा है तो हमें अपने आप से यह प्रश्न पूछने की आवश्यकता है कि इस प्रकृति और इस पैमाने के हमले पहले कभी क्यों नहीं हुए हैं? ऐसा क्यों है कि ये हमले केवल पिछले वर्ष के अंत में तब हुए, जब जर्मनी में प्रवेश करने वाले शरणार्थियों का आंकड़ा 11 लाख था? पिछले वर्ष जर्मनी को नए शरणार्थी आवेदनों की सबसे अधिक संख्या तब प्राप्त हुई, जब जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल ने शरणार्थियों की एक सीमा तय करने से इनकार कर दिया और खुले द्वार की नीति अपना ली।
नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया राज्य के गृह मंत्री राल्फ जैगर ने कोलोन हिंसा पर एक विशेष आयोग को बताया, ''गवाहों की गवाही, कोलोन पुलिस की रिपोर्ट और संघीय पुलिस के विवरण के आधार पर, ऐसा लगता है जैसे शरणार्थी पृष्ठभूमि के लोग लगभग पूरी तरह से आपराधिक कृत्य के लिए जिम्मेदार थे। सभी लक्षण उत्तरी अफ्रीका और अरब दुनिया के लोगों की ओर इंगित करते हैं। अब हम जांच से जो जानते हैं, उसके आधार पर, पिछले एक वर्ष में आए शरणार्थी संदिग्धों में शामिल हैं।'' जर्मन समाचार पत्र वेल्ट एम सोन्टैग से एक साक्षात्कार में जर्मनी के मुख्य अन्वेषण प्राधिकरण – संघीय अपराध पुलिस कार्यालय (बीकेए) ने कहा है कि बड़े पैमाने पर सेक्स हमले अरबी संस्कृति की एक सुपरिचित घटना है, जहां इसका एक विशिष्ट नाम भी है – तहार्रुश गमिया। इसका अनुवाद होता है- सामूहिक उत्पीड़न, जिसमें पुरुषों का एक बड़ा समूह अपने शिकारों को चारों ओर से घेर लेता है और उनके साथ यौन उत्पीड़न या बलात्कार करता है। तहार्रुश गमिया बड़े समारोहों में होता है, जहां भारी भीड़ और अव्यवस्था के कारण अपराधियों को पकड़ना ज्यादा मुश्किल हो जाता है। यह बात कोलोन में सच साबित होती है, जहां पुलिस के पास की गई 500 से अधिक रिपोटोंर् के बावजूद केवल 21 गिरफ्तारियां की जा सकी हैं।
विकृत तहार्रुश गमिया 'अरब वसंत' के दौरान भारी संख्या में देखने को मिला था, जहां ह्यूमन राइट्स वॉच ने रिपोर्ट दी थी कि जून 2013 में तहरीर चौक में, जब अरब वसंत चरम पर था, 91 महिलाओं के साथ सार्वजनिक रूप से बलात्कार या उनका यौन शोषण किया गया।
कड़वा सच यह है कि पश्चिम की संस्कृति और नैतिक मूल्यों का सम्मान करने के बजाए, अरब/उत्तरी अफ्रीकी देशों से आए लोगों में से कुछ अपने साथ महिलाओं से घृणा करने वाली अपनी मानसिकता और लैंगिक समानता के प्रति अपनी घृणा भी ले आए हैं। जो लोग न केवल जर्मन कानून का, बल्कि मूलभूत मानव अधिकारों का भी उल्लंघन करते हैं, उनको सख्त सजा या निर्वासन का एक मजबूत संदेश देने के बजाए, ऐसा लगता है कि सत्ता में बैठे राजनेता शरणार्थी समुदायों के परेशान होने से डर रहे हैं। बावेरियाई शहर पोकिंग में, एक व्याकरण विद्यालय के प्रधानाध्यापक ने पिछली गर्मियों में अभिभावकों को पत्र लिखकर बताया था कि चूंकि 200 शरणार्थियों को स्कूल के जिम में रखा जा रहा है, इस वजह से असंगतियों से बचने के लिए शालीनतापूर्ण वेषभूषा का पालन किया जाना चाहिए। शरणार्थी जर्मन जीवन शैली अपनाएं, इसके बजाए लगता है शरणार्थियों की संस्कृति उनके आसपास के लोगों पर लागू की जा रही है। कोलोन की मेयर, हेनरिटेकर भी हाल ही में महिलाओं को यह सलाह देकर जबर्दस्त उपहास और आलोचना की पात्र बनीं कि यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए वे अजनबियों से एक हाथ की दूरी पर रहें।
चांसलर मार्केल ने कहा कि शरणार्थियों द्वारा जर्मन कानून के उल्लंघन पर उनका तुरंत निर्वासन होना चाहिए, लेकिन आशंका यह है कि मानवाधिकार कानून इसे कमजोर कर देंगे। जिन यूरोपीय देशों ने पहले शरणार्थियों का स्वागत किया, वे अब और अधिक सावधानी से व्यवहार करने लगे हैं। जर्मनी अपनी दक्षिणी सीमा पर अधिक शरणार्थियों के प्रवेश से मना कर रहा है और स्वीडन और डेनमार्क ने अपनी सीमाओं पर चौकसी कड़ी कर दी है।
शरणार्थियों को सामूहिक रूप से लेने में असफल रहने के लिए जनता ने जहां पहले डेविड कैमरून की भारी आलोचना की थी, वहीं ब्रिटेन के लोग अब कैमरून के आभारी हैं कि वे यूरोपीय संघ के दबाव और और डूबते शरणार्थियों की व्यापक तौर पर प्रसारित तस्वीरों से भावनात्मक ब्लैकमेल में नहीं आए। युवा पुरुषों के लिए सीमाओं को खोलने के बजाए, कैमरून ने एक पंचवर्षीय कार्यक्रम की घोषणा की जिसमें सीरिया की सीमाओं पर शिविरों में से 20,000 शरणार्थियों को ले लिया जाया जाएगा। ये शणार्थी बच्चों और महिलाओं की तरह सबसे कमजोर वर्ग के होंगे, और संयुक्त राष्ट्र उच्चायोग द्वारा इनकी पुष्टि शरणार्थियों के तौर पर की जाएगी।
नए वर्ष की पूर्व संध्या पर यूरोप में हुए बड़े पैमाने के यौन हमले चेतावनी देते हैं कि कुछ संस्कृतियां और पिछड़ी मानसिकताएं आधुनिक सभ्य समाजों में एकीकृत नहीं होती हैं। जहां यूरोप में नागरिक महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं, वहीं यह स्वयंसिद्ध है कि ऐसे भी लोग हैं, जो अपने मेजबान देश के मूल्यों की अवहेलना करने के लिए बेताब हैं। युद्धग्रस्त देशों से अपने लिए सुरक्षित क्षेत्र की मांग करने की बजाय कुछ शरणार्थी अपनी स्थिति का दुरुपयोग कर रहे हैं और मेजबान क्षेत्रों में कमजोर महिलाओं पर हमला कर रहे हैं। महिलाओं पर ही दोष और जिम्मेदारी डालने वाली टिप्पणियां, जैसे 'पुरुषों को एक हाथ की दूरी पर रखने में नाकाम रहना' और 'कम उत्तेजक कपड़े पहनना,' इन अपराधियों के कृत्यों को बल देती हैं। महिलाओं से घृणा करने वाले इन लोगों को अपने घरेलू देशों का चाल-चलन यूरोप लाने में सफल होने से रोकने के लिए, हमें इन घृणित कृत्यों को ढांपना बंद करने और पीडि़तों को ही दोष देने से रोकने की आवश्यकता है। -प्रेरणा लाउ सियान,लंदन
( लेखिका बैरिस्टर, न्यूसाउंड रेडियो 92 एफएम पर ब्राडकास्टर, हिंदू वकील संघ की समिति की सदस्य और निवेश बैंकिंग में काम कर रही हैं)
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