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जनवरी, 2016 की सुबह 4़ 37 बजे मणिपुर की राजधानी इम्फाल से 33 कि.मी. दूर तामेंगलोंग जिला इस बार भूकंप का केंद्र था और धरती के 17 किलोमीटर की गहराई में भूकंप का पैमाना 6़ 8 था। 9 27 बजे 3़ 6 स्केल का दूसरा झटका भी पूवार्ेत्तर में महसूस हुआ।
तामेंगलोंग जिले में नोनी नाम का एक स्थान है। यह स्थान इसलिए अधिक उल्लेखनीय है क्योंकि इस बार यह भूकंप का केंद्र था और दूसरा इसलिए भी क्योंकि यहां विश्व का सबसे बड़ा रेल पुल बनने जा रहा है। मणिपुर में रेल मार्ग यहीं से प्रवेश करेगा, जो जिरिबाम-टुबुल-इम्फाल को जोड़ेगा। यह 111 कि.मी. लम्बा रेल मार्ग है, लेकिन इस प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले विनाश और इससे निपटने की हमारी अधूरी तैयारियों ने इन निर्माण कायार्ें पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। भूकंप के प्रभाव से तामेंगलोंग शहर का खेल मैदान दो भागों में विभाजित हो गया है। भूकंप कितना घातक था इसका अंदाजा हम भूकंप के मापों को पढ़कर लगा सकते हैं।
पूवार्ेत्तर के आठों राज्यों-मणिपुर, असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा, सिक्किम सहित झारखण्ड, बिहार और पश्चिम बंगाल में भूकंप का असर पड़ा है। मणिपुर भूकंप के केंद्र में था तो जाहिर है सर्वाधिक तबाही भी वहीं हुई है। मणिपुर के पूर्वी-पश्चिमी इम्फाल, सेनापति और तामेंगलोंग जिले में 200 से अधिक घर बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुए हैं। इम्फाल में थांगल बाजार और पाओना बाजार सबसे बड़े और व्यस्त बाजार हैं, जहां कई इमारतों में दरार देखी गयी है। कमजोर और झुकी इमारतों के डर से लोगों ने दुकानें नहीं खोलीं। जब सरकारी इंजीनियर लोगों को आश्वस्त करके गए तब जाकर दोपहर बाद बाजारों को खोला गया।
मणिपुर की विशेष पहचान, इम्फाल में इमा बाजार की इमारत भी क्षतिग्रस्त हुई है। मणिपुर के मुख्यमंत्री ने कहा है कि आई़ आई़ टी खड़गपुर, कानपुर या रुड़की से विशेषज्ञों को बुलाकर इमा बाजार इमारत की जांच करवाई जाएगी और तय किया जाएगा कि इमारत की मरम्मत होनी है या नई इमारत का निर्माण होगा। साथ ही मणिपुर सचिवालय और प्रेस क्लब की इमारत, इम्फाल पूर्व और इम्फाल पश्चिम को जोड़ने वाले मिनुथोंग पुल के अलावा विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में कई मुख्य सड़कें और पुल क्षतिग्रस्त हुए हैं। असमय आपदा के चलते मणिपुर सरकार ने 11 जनवरी तक सभी शिक्षा संस्थानों को बंद रखने का निर्देश जारी किया है।
भूकम्प के कारण और वर्तमान स्थिति
हिमालय दुनिया के सर्वाधिक भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में छठे स्थान पर है और पूवार्ेत्तर क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से अतिसंवेदनशील क्षेत्र है। भारतीय उपमहाद्वीप को भूकंप के खतरे के लिहाज से सेस्मिक जोन 2, 3, 4 और 5 में बांटा गया है। पांचवां जोन सबसे ज्यादा खतरे वाला माना जाता है। कश्मीर, कच्छ का रण और पूवार्ेत्तर भारत इसी क्षेत्र का हिस्सा हैं।
'अर्थक्वेक ट्रैक एजेंसी' के अनुसार हिमालयी क्षेत्र की 'फॉल्ट लाइन' के कारण एशियाई क्षेत्रों में अधिक भूकंप आते हैं। इसी क्षेत्र में हिन्दुकुश क्षेत्र भी आता है।
हिमालय 'फॉल्ट लाइन' पर भारत सरकार की मदद से अमरीकी वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन किया था। इस शोध-अध्ययन का नेतृत्व कर रहे जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस साइंटिफिक रिसर्च के सी़ पी़ राजेंद्रन के अनुसार हिमालय 700 वर्ष पुरानी 'फॉल्ट लाइन' पर है। इस कारण ऐसे भूकंप की भी आशंका है जो पिछले 500 वर्ष के इतिहास में सबसे भयावह होगा। अर्थात् 2015 के अप्रैल-मई माह में नेपाल में आए भूकम्प से भी भयावह स्थिति बन सकती है।
भारत का पूवार्ेत्तर हिस्सा नियमित भूकंपीय गतिविधियों वाला इलाका है। उल्लेखनीय है कि 1950 में 8़ 5 की तीव्रता से तिब्बत (अरुणाचल प्रदेश-चीन सीमा पर) में आए भूकंप के बाद भूस्खलन और बाढ़ के कारण असम के कई गांव जलविलीन हो, ध्वस्त हो गए थे और 1500 से अधिक लोग मारे गए थे। पूवार्ेत्तर के पिछले 65 वर्ष के इतिहास में यह सबसे तेज भूकंप था। जो लोग मणिपुर, विशेषकर राजधानी इम्फाल की बसावट को जानते हैं वे समझ पाएंगे कि इतनी अधिक संख्या में इमारतों को नुकसान क्यों पहुंचा है। इम्फाल की वर्तमान आबादी ढाई लाख से भी अधिक है और छोटे से इम्फाल शहर में तीन-तीन मंजिला बेतरतीब और गैर-भूकंपरोधी इमारतें खड़ी कर दी गई हैं। अधिकतर बड़ी इमारतों को नुकसान हुआ है।
पूवार्ेत्तर के सम्बंध में सतर्क केंद्र
केन्द्रीय गृहमंत्री एक कार्यक्रम में भाग लेने चंूकि असम में थे, अत: भूकंप की जानकारी मिलते ही वे सक्रिय हो गए। प्रधानमंत्री कार्यालय (पी.एम.ओ.) के निर्देश पर भूकंप के बाद 'राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण' यानी एन.डी.एम.ए. ने तुरंत कदम उठाए। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल (एन.डी. आर.एफ.) के साथ सेना भी युद्ध स्तर पर राहत कायार्ें में जुट गई। भूकंप के कारण बिजली और मोबाइल सेवाएं ठप हो गई थीं, लेकिन कुछ समय के बाद ही उन्हें तुरंत दुरुस्त कर लिया गया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं हर घड़ी की जानकारी ले रहे थे। लोगों का कहना है कि पूवार्ेत्तर के संबन्ध में किसी भी आपदा पर अब से पहले इतनी त्वरित कार्रवाई किसी भी सरकार में नहीं देखी गयी थी। इस प्रकार की त्वरित कार्रवाई पूवार्ेत्तर को और अधिक नजदीक लाने में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।
सेवा कार्य
पूवार्ेत्तर में भूकंप पीडि़तों की मदद के लिए अनेक संगठन आए हैं। इनमें एक है सेवा भारती। इसके कार्यकर्ता उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं। जो लोग बेघर हो गए हैं उन्हें नए घर के निर्माण में सहयोग देना सेवा कार्य में शामिल किया गया है।
हम कितने तैयार
भारत में भूकंप को मापने की शुरुआत जब से हुई है, तब से अब तक पूवार्ेत्तर के क्षेत्रों में 6 से अधिक परिमाप के 25 से अधिक भूकंप आ चुके हैं। इनमें 1897 में शिलांग में आया भूकंप और 1950 में असम के भूकंप की तीव्रता 8़ 5 से ऊपर थी। वैज्ञानिकों का अध्ययन कहता है कि पूवार्ेत्तर क्षेत्र 8 या उससे अधिक तीव्रता वाले भूकंप के दृष्टिकोण से अधिक संवेदनशील हैं। इसलिए मणिपुर केन्द्रित इस भूकंप को हमें एक चेतावनी के रूप में लेना चाहिए। अनुभव कहता है कि जब भौगोलिक परिस्थितियों के कारण भूकंप आना निश्चित हो, तब हमें हर प्रकार की तैयारी से मजबूत रहना चाहिए।
भूकंप से लड़ने के लिए ठोस निगरानी तंत्र विकसित करना सबसे आवश्यक है। भूकंप आने से पहले हमें यह पता होना चाहिए कि भूकंप का केंद्र कहां है, ताकि राहत कार्य सही समय और सही स्थान पर शुरू किया जा सके। इस दिशा में भारत अभी काफी पीछे है। कागजों में तो काम दिखता है, लेकिन जमीन पर नहीं। मसलन, ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैण्डर्ड (बी़ आई़ एस) ने भूकंप क्षेत्र के हिसाब से 'बिल्डिंग कोड' बनाया है। इमारतें उसी नियम के अनुसार बनाई जानी चाहिए। मगर हम यह सुनिश्चित नहीं कर पाते हैं कि इमारतों का निर्माण नियमानुसार हो रहा है या नहीं।
भारत में भूकंप के सूक्ष्म वर्गीकरण की भी जरूरत है, क्योंकि धरती की परत और मिट्टी की संरचना के मुताबिक भूकंप का असर हर जगह अलग-अलग होता है। अगर 'बिल्डिंग कोड' फॉर्मूले को इस सूक्ष्म वर्गीकरण के साथ जोड़ दिया जाए तो भूकंप से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
समुद्र में भूकंप आने से सुनामी आती है। जापान समुद्र के निकट है और उसने इन आपदाओं से निपटने में काफी कामयाबी हासिल की है। 7़ 5 स्केल की तीव्रता वाले कई सुनामी और भूकंपों को जापान का आपदा प्रबंधन विभाग पहले ही भांप लेता है।
इस प्रकार अब तक जापान कई सुनामियों से होने वाले भारी नुकसान से स्वयं को बचा चुका है। इससे हम भूकंप से होने वाली क्षति को 90 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं। केवल नियमों को बनाने से ज्यादा लागू करने और पालन करने की बात है। पहला यह कि इमारतों को निश्चित 'बिल्डिंग कोड' (डिजाइन) के हिसाब से बनाया जाए और दूसरा, बस्तियों या शहरों को आदर्श रूप में बसाया जाए।
(लेखक पूवार्ेत्तर भारत में पिछले 5 वर्ष से शोधरत हैं)
रिक्टर पर स्केल असर
0 से 1.9 इतने कम कम्पन का असर सीस्मोग्राफ से ही पता चलता है।
2 से 2.9 बहुत हल्का कंपन महसूस होता है।
से 3.9 कोई ट्रक आपके नजदीक से गुजर जाए, और धरती हिले, ऐसा असर।
4 से 4.9 खिड़कियां टूट सकती हैं। दीवारों पर टंगी चीजें गिर सकती हैं।
5 से 5.9 फर्नीचर हिल सकता है।
6 से 6.9 इमारतों की नींव दरक सकती है। ऊपरी मंजिलों को नुकसान हो सकता है।
7 से 7.9 इमारतें गिर जाती हैं। जमीन के अंदर पाइप फट जाते हैं।
8 से 8.9 इमारतों सहित बड़े पुल भी गिर जाते हैं।
9 और उससे ज्यादा पूरी तबाही। कोई मैदान में खड़ा हो तो उसे धरती लहराते हुए दिखेगी। समंदर नजदीक हो तो सुनामी।
मणिपुर में भूकंप
गुलशन गुप्ता
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