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ऐसे समय जब पठानकोट हमले की कई तहें अभी खुलनी बाकी हंै, नर्णिायक रूप से कोई राय कायम करना जल्दबाजी हो सकती है। लेकिन एक सुनियोजित आतंकी मुहिम और उसे विफल करते लंबे सैन्य अभियान ने नश्चिति ही कुछ दावों पर सवाल लगा दिए हैं। भन्नि-भन्नि पक्षों द्वारा समय-समय पर किए जाते ये दावे ऐसे हैं जन्हिें बदली परस्थितिि में अलग कसौटी पर परखा जाना जरूरी है।
पहला दावा है अभेद्य सुरक्षा का। वायुसेना के पठानकोट ठिकाने की सुरक्षा को भेदने वाली यह आतंकी करतूत नश्चिति ही अब तक की सबसे दुस्साहसी आतंकी कार्रवाई थी। आत्मघाती जिहादी मोहरे पहले भी आजमाए गए लेकिन यह पहली बार था जब आतंकियों और उनके आकाओं ने सीधे-सीधे सेना के इतने बड़े गढ़ में सेंध लगाने का दांव चला। आतंकी मरने के लिए तैयार थे परंतु वे सीधे-सीधे जवानों से जाकर भिड़ तो नहीं गए! उनके पास सटीक सूचनाएं थीं, आने का तय रास्ता था और छिपने की सुरक्षित जगह भी थी। क्या यह सब केवल संयोग है!
सेना में भेदियों की एक के बाद एक खुलती पतार्ें, सीमा की बाड़ को बेमानी बनाते जंगल-पानी के खुले रास्तों और पाकस्तिान सीमा से पंजाब में जारी नशे के कारोबार की जीवंत कहानियों पर इस घटना के बाद क्या कहा जाए! जाहिर है, सैन्य परिसर की दीवारों से परे कहीं भारी सुरक्षा चूक रही जिसका सीधा लाभ आतंकियों को मिला। ऐसे में गृह मंत्रालय के समक्ष रखी गई रिपोर्ट में सीमा सुरक्षा बल के इस दावे का क्या मतलब कि घुसपैठ पाकस्तिान से लगती सीमा से नहीं हुई?
दूसरा दावा है खुद पाकस्तिान का। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर स्वयं को आतंकवाद से पीडि़त देश के रूप में पेश करने वाले पाकस्तिान के लिए आज यह साबित करना सबसे जरूरी है कि स्थितियां वास्तव में वैसी ही हैं जैसा कि वह दावा करता है। पठानकोट हमला भारत के साथ कूटनीतिक संबंध ठीक करने से पहले आया ऐसा मोड़ है जहां उसकी नीयत वश्वि बिरादरी के सामने परखी जानी है। यह मोड़, यह पूरा रक्तरंजित अध्याय अनायास आया है, इसे लिखने में कोई शासकीय षड्यंत्र शामिल नहीं है। इस बात को साबित करने का दारोमदार अब पाकस्तिान की नर्विाचित सरकार पर ही है। जैश या कोई और…भारत के विरुद्ध हमले को अंजाम देने वाले आतंकी गुटों पर यदि वहां की सरकार कार्रवाई नहीं करती तो पाकस्तिान में सरकार की कुर्सी का पाया बने कट्टरवाद, आईएसआई, सेना और आतंकवाद की कहानियों को झुठलाना नवाज शरीफ के लिए मुश्किल हो जाएगा। साख जमाना या अंतरराष्ट्रीय आतंक की विषबेल कहलाना…फैसला अब पाकस्तिान को करना है। भारत से आ रहीं पुष्ट सूचनाओं के बाद भी यदि आतंकियों पर तत्परता दिखाते हुए नर्णिायक कार्रवाई नहीं की जाती तो इस दावे का क्या मतलब कि पाकस्तिान में आतंकवाद को सरकारी-संस्थागत शह नहीं है?
तीसरा दावा है भारत-पाकस्तिान संबंधों के भवष्यि पर। इस दावे का खूंटा भवष्यि में गढ़ा है। इस पर पक्के तौर पर नश्चित ही कुछ भी नहीं कहा जा सकता। लेकिन कुछ पक्ष हैं जो 'पठानकोट' के बहाने अपने लिए नई प्रासंगिकता की खोज में हैं। ये ऐसे पक्ष हैं जो भवष्यि के संबंधों की 'पक्की भवष्यिवाणी' का दम भर रहे हैं। अतीत की बात हो चुके ऐसे स्वरों, जो अपने भवष्यि के बारे में स्वयं भी आश्वस्त नहीं हैं, बातों को सुनना ठीक है लेकिन उनके दावों के भ्रम में आना ठीक नहीं। भवष्यि में भारत-पाकस्तिान संबंध किस नई लीक पर चलेंगे, अभी कौन कह सकता है!
'पठानकोट' के बारूद ने कई दावों को लहूलुहान किया है…बदले हालात इन्हें फिर से परखेंगे। जल्दी ही हम सबको पता चल जाएगा कि किस दावे में कितनी जान है।
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