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मीडिया को सरकार का आलोचक होना चाहिए। स्वतंत्र मीडिया से कतई उम्मीद नहीं होती कि वह सत्ता का गुणगान ही करता रहे। आलोचना का जरूरी पहलू होता है उसकी तार्किकता। अगर आलोचना अतार्किक और तथ्यहीन हो तो वह कुछ और ही हो जाती है। पिछले दिनों कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिनकी मीडिया कवरेज मन में यही प्रश्न पैदा करती है।
पेट्रोलियम मंत्रालय ने फैसला किया कि जिन लोगों की कर-योग्य आय 10 लाख रुपये से ज्यादा है, उन्हें रसोई गैस पर सब्सिडी नहीं मिलेगी। यह कदम स्वागत योग्य है, लेकिन लगभग सभी न्यूज चैनलों ने इसे ऐसे दिखाया जैसे आम जनता की जेब पर डाका पड़ गया हो। 10 लाख कर-योग्य आय वाले व्यक्ति का महीने का वेतन एक-डेढ़ लाख रुपये से ऊपर होता है। इस खबर के साथ मीडिया ने बड़ी चालाकी से यह बात भी छिपा ली कि बिना सब्सिडी वाला सिलेंडर भाजपा की सरकार बनने के बाद से 900 रुपये से घटकर 600 रुपये का हो चुका है।
मीडिया का एक तबका विवाद गढ़ने में माहिर है। इस बार इनका शिकार बने भाजपा महासचिव राम माधव। ‘अल जजीरा’ चैनल पर भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश के संबंधों के संदर्भ में अखंड भारत का जिक्र करने भर से जमकर हंगामा मचा। यह कार्यक्रम प्रधानमंत्री की पाकिस्तान यात्रा से पहले ही रिकार्ड किया जा चुका था, लेकिन इस बुनियादी तथ्य को बड़ी सफाई से नजरअंदाज कर दिया गया। पहले भी अलग-अलग पार्टियों के नेता यूरोपीय संघ की तरह भारत, पाकिस्तान और बंगलादेश को मिलाकर महासंघ बनाने की बात कहते रहे हैं।
बीते कुछ समय से प्रधानमंत्री की विदेश यात्राओं को लेकर तरह-तरह के विवाद पैदा करने की मीडिया में कोशिश हो रही है। रूस यात्रा के दौरान राष्टगान के तथाकथित अपमान की अफवाह सोशल मीडिया पर उड़ाने की कोशिश की गई। हैरत की बात यह रही कि एबीपी न्यूज ने इस अफवाह को भी अपने बुलेटिन में जगह दी।
इसे अपरिपक्वता कहें या मीडिया में कुछ लोगों की झुंझलाहट, लेकिन कहीं न कहीं ऐसी खबरों से मीडिया प्रधानमंत्री की संवैधानिक गरिमा की अनदेखी करता रहता है। बिना वजह विवाद पैदा करने के क्रम में ही एक और कड़ी बना प्रधानमंत्री का पाकिस्तान दौरा। कांग्रेस के दौर में सत्ता की सबसे करीबी माने जाने वाली एक पत्रकार ने खबर उड़ाई कि यह दौरा पहले से ‘फिक्स’ था। इतना ही नहीं उन्होंने यह कहानी भी गढ़ दी कि एक बड़े उद्योगपति ने मुलाकात के लिए मध्यस्थता की। विदेश नीति से जुड़े इस अति संवेदनशील विषय पर न सिर्फ मुख्य विपक्षी कांग्रेस, बल्कि उसके पोषित पत्रकार भी बचकानी बातें करते नजर आए।
वैसे जरूरी नहीं कि विवाद सिर्फ बड़ी-बड़ी बातों पर ही पैदा किया जाए। मीडिया अब हवाई जहाज यात्रियों के खाने के ‘मीनू’ पर भी विवाद पैदा कर सकता है। एक अखबार ने बिना पुष्टि के खबर छापी कि यात्रियों को मांसाहारी खाना नहीं परोसा जाएगा। जिसके बाद सारे टीवी चैनलों ने सुबह से हल्ला मचाना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में जानकारी आ गई कि छोटी उड़ानों में पहले से ही मांसाहारी खाना नहीं परोसा जाता।
सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार में मीडिया कैसे भागीदार बन रहा है, इसका एक उदाहरण अरुण जेटली पर लगाए जा रहे आरोप हैं। आम आदमी पार्टी के कुछ नेता रोज बैठकर जेटली पर ढेर सारे आरोप मढ़ देते हैं। न्यूज चैनल इसे भरपूर कवरेज भी देते हैं। अगर थोड़ी सी सहजबुद्घि से इन आरोपों की पड़ताल की जाए तो सच्चाई सामने आ जाएगी। जो मीडिया नेशनल हेराल्ड को आज तक ‘घोटाला’ नहीं लिख पाया, उसने डीडीसीए में तथाकथित धांधली को ‘घोटाला’ लिखना भी शुरू कर दिया। वह भी तब जब हर जांच में आरोप झूठे पाए गए हैं।
दुनिया भारत को उम्मीद से देख रही है। देश में भी हर व्यक्ति यह महसूस कर रहा है कि सरकार की कोशिशों के नतीजे धीरे-धीरे मिलने लगे हैं। अंतरराष्टÑीय वित्तीय संस्था मॉर्गन स्टेनली ने पिछले हफ्ते बताया कि भारत की अर्थव्यवस्था सही दिशा में है और आने वाले दिनों में रोजगार और समृद्धि के नए अवसर पैदा होंगे। कुछ छिटपुट खबरों को छोड़ दें तो मुख्यधारा मीडिया से यह खबर गायब दिखी। हर नकारात्मक समाचार को तूल देने वाले मीडिया को लगता है शायद इससे बहुत निराशा हुई है।
जिन लोगों को देश में असहिष्णुता और वैचारिक आजादी छिनने का भय सता रहा था, उन लोगों की बीते हफ्ते ‘जीत’ हो गई। दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्वामी रामदेव के एक कार्यक्रम को वामपंथी संगठनों ने नहीं होने दिया और तथाकथित प्रगतिशील मीडिया मौन साधे रहा। नारद
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