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आयुर्वेद अब दैनिक जीवन का अंग बन गया है। पहले लोग इसे गोली-वटी और चूर्ण की विद्या मानते थे। लेकिन पंतजलि ने आयुर्वेद के बारे में फैले भ्रम को तोड़ा है।
—आचार्य बालकृष्ण, पतंजलि योगपीठ में आयुर्वेदाचार्य
350 ईएसआई अस्पतालों में खुलेंगी आयुर्वेद की अलग शाखाएं
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आखिरकार लगातार खांसने की बीमारी से मुक्ति मिली तो बेंगलुरू के जिंदल नेचर केयर में भारतीय चिकित्सा पद्धति अपनाने से। आज वे लगभग पूरी तरह स्वस्थ हैं। खैर यह एक उदाहरण है, लेकिन इससे एक बात यह जरूर स्पष्ट होती है कि समाज फिर से भारतीय चिकित्सा पद्धति की ओर लौट रहा है। पहले के समय में दादी-नानी की पिटारी और रसोई घर में साधारण बीमारियों से निपटने के नुस्खे मिलते ही छोटी-बड़ी बीमारियां सहज ठीक हो जाती थीं। लेकिन फिर भी इन नुस्खों को समाज ने भुलाने का काम किया है और हम अपनी घरेलू चिकित्सा पद्धति से दूर होते चले गए।
देश में आयुर्वेद को मजबूती देने की दिशा में सरकारी पहल शुरू हो चुकी है। केन्द्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय अपने करीब 350 ईएसआई अस्पतालों में आयुर्वेद की अलग शाखा शुरू करने की दिशा में काम कर रहा है। आज समाज, राष्ट्र और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले परिवर्तनों की झलक स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है। इस बदलाव से चिकित्सा जगत भी अछूता नहीं है। कुछ दशकों से चिकित्सा और चिकित्सकों का संसार एलोपैथी के आकर्षण में बुरी तरह फंस गया था। परन्तु आकर्षण का यह मोहजाल अब टूटता प्रतीत हो रहा है। इसके दुष्प्रभावों से छटपटाता इंसान पुन: प्रकृति की ओर वापस कदम बढ़ा रहा है। कैलीफोर्निया कॉलेज ऑफ आयुर्वेद में चिकित्सक डॉ. मार्क ह्लपेर्न कहते हैं,'आधुनिक चिकित्सा पद्धति की असफलता एवं असमर्थता से त्रस्त दुनिया ने चिकित्सा के प्रचलित मानदंडों को बदल डालने के लिए कमर कस ली है। उसके कदम प्राकृतिक जीवन की ओर मुड़ने लगे हैं।' यानी भारत ही नहीं समूचे विश्व में आयुर्वेद की प्राचीन परम्परा के प्रति आस्था और विश्वास बढ़ रहा है। आज शायद ही कोई ऐसा घर हो, जहां आयुर्वेद से जुड़ा कोई उत्पाद नजर न आता हो। भारतीय चिकित्सा पद्धति की ओर बढ़ते रुझान पर पतंजलि योगपीठ में आयुर्वेद इकाई के प्रमुख आचार्य बालकृष्ण कहते हैं,'आयुर्वेद अब दैनिक जीवन का अंग बन गया है। पहले लोग इसे गोली-वटी और चूर्ण की विद्या मानते थे। लेकिन पतंजलि ने आयुर्वेद के बारे में फैले भ्रम को तोड़ा है।' भारत में आयुर्वेद को एलोपैथी के मुकाबले सदैव जड़ी-बूटी या घास-फूस के रूप में ही दिखाया जाता रहा है। केन्द्र सरकार ने अपनी सरकार में 'आयुष' का अलग मंत्रालय बनाया। जिसमें योग सहित अन्य प्राचीन स्वास्थ्य पद्धतियां आती हैं। आयुष मंत्रालय में संयुक्त सचिव अनिल गनेरीवाला कहते हैं,'आयुर्वेद में कम दवाई और ज्यादा थेरेपी के जरिए कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का भी इलाज है। बचाव और प्रचार-प्रसार के मामले में हमारा आयुर्वेद दुनिया में दूसरे नंबर पर है।' आंकड़ों बताते हैं कि शहरों में लगभग एक तिहाई तथा गांवों में दो तिहाई लोग आयुर्वेद को ही अपना रहे हैं। प्रति 10000 की आबादी पर 6 आयुष चिकित्सक मौजूद हैं, जबकि एलोपैथी में प्रति 10000 पर 7 डॉक्टर उपलब्ध हैं। जहां वर्ष 1982 में देश में 3349 आयुर्वेद फार्मेसियां थीं,जो अब बढ़कर 7000 के आस-पास हो गई हैं। 50 से अधिक राष्ट्रीय स्तर के फार्मास्यूटिकल संस्थान करोड़ों रुपये की सालाना बिक्री करते हैं।
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