कब बनेगी समान नागरिक संहिता?
July 9, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

कब बनेगी समान नागरिक संहिता?

by
Jan 4, 2016, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 04 Jan 2016 14:40:39

राष्ट का संविधान देश की संस्कृति एवं राष्टीय जीवन की मूल ऊर्जा होता है। संविधान उसकी जनभावना की अभिव्यक्ति तथा दृढ़-संकल्प का परिचायक है। संविधान की जड़ें देश के साहित्य, दर्शन, अध्यात्म, संस्कृति तथा उसके इतिहास में होती हैं। औपचारिक रूप से भारतीय संविधान सभा का निर्माण ब्रिटिश कैबिनेट मिशन योजना के अन्तर्गत 16 मई, 1946 को हुआ था। संविधान सभा के सदस्य वे भी थे, जो पहले मुस्लिम लीग के द्विराष्टÑवाद से पूर्ण सहानुभूति रखते थे। इसके लिए न कोई चुनाव हुआ था और न नेहरू यह चाहते थे। 40 करोड़ की जनसंख्या में से केवल13 प्रतिशत मतदाता संविधान सभा का प्रतिनिधित्व करते थे। इस संदर्भ में संविधान एसेंबली डिबेट (सी.ए.डी.) में ऐसे कई प्रश्न भी पूछे गए थे।

समान नागरिक संहिता के सन्दर्भ में राज्य के नीति निदेशक तत्व के अनुच्छेद 44 में कहा गया है, ‘भारत समस्त राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता प्राप्त करने का प्रयास करेगा।’

परंतु व्यावहारिक रूप से कांग्रेस के लंबे शासनकाल में, ब्रिटिश शासकों की ‘बांटो और राज करो’ की नीति का अनुसरण किया गया। वोट की राजनीति तथा अपने घटते जनाधार को देखते हुए उन्होंने मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति अपनाई तथा समान नागरिक संहिता के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि देश के मुसलमानों के एक वर्ग में भारतीय संविधान के प्रति श्रद्धा तथा आस्था कम ही नहीं हुई, बल्कि उसमें विशेष सुविधाएं प्राप्त करने की लालसा भी बढ़ गई।

भारत की संविधान सभा में समान नागरिक संहिता के प्रश्न पर 23 नवम्बर,1948 को बहस हुई। संविधान सभा के एक सदस्य मोहम्मद इस्माइल ने समान नागरिक संहिता का विरोध करते हुए कहा, ‘इसमें निम्नलिखित प्रावधान जोड़ा जाए, पर किसी वर्ग, सम्प्रदाय, जाति का कोई निजी कानून हो तो उसे वह कानून छोड़ने के लिए बाध्य न किया जाए।’ (सी.ए.डी., भाग सात, पृ. 542)। उन्होंने पुन: कहा, ‘देश में समन्वय उत्पन्न करने तथा बढ़ाने के लिए यह अपेक्षित नहीं है कि लोगों को निजी कानून छोड़ने के लिए बाध्य किया जाए। (वही भाग सात, पृ. 729-73)’। नजीरुद्दीन अहमद ने कहा, ‘किसी जाति का निजी कानून, उस जाति की पूर्व सहमति के बिना परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिए।’ इसके विपरीत बिहार के एक नेता हुसैन इमाम ने अपेक्षाकृत सरल भाव से कहा, ‘श्रीमान् जी, मेरे विचार से एक विधि कानून बनाना सर्वथा उपयुक्त तथा वांछनीय है, किन्तु कुछ समय पश्चात् ही ऐसा करना चाहिए। (सी.ए.डी., भाग सात, पृ. 740)’

के.एम. मुंशी ने इसका उत्तर देते हुए कहा, ‘किसी भी उन्नत देश में प्रत्येक अल्पसंख्यक जाति के निजी कानून को इतना अटल नहीं माना गया है कि व्यवहार संहिता बनाने का निषेध हो।’ (सी.ए.डी., भाग सात, पृ. 547-48)। उन्होंने यह भी कहा कि उदारवादी टर्की या मिस्र में किसी अल्पसंख्यक को ऐसे अधिकार नहीं दिए गए हैं। डॉ. आम्बेडकर ने संशोधनों को स्वीकार नहीं किया, बल्कि कहा, ‘मेरे विचार में मेरे अधिकांश मित्र, जो कि इस संशोधन पर बोल चुके हैं, वे यह सर्वथा भूल गए कि सन् 1935 तक पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में शरियत कानून नहीं था। उत्तराधिकार तथा अन्य विषयों में वहां हिन्दू कानून का अनुसरण किया जाता था। सीमा प्रांत के अतिरिक्त शेष भारत को विभिन्न भागों में यथा संयुक्त प्रांत, मध्य प्रांत तथा बम्बई के उत्तराधिकार के विषय आदि में काफी हद तक मुसलमानों पर हिन्दू कानून लागू था।’ (सी.ए.डी., भाग सात, पृ. 550-51)।

बहुमत की राय से अनुच्छेद 44 भारत के भावी संविधान का भाग बना। नि:संदेह डॉ. बी.आर. आम्बेडकर समान नागरिक संहिता के महान समर्थक थे।

विघटनकारी मार्ग

दुर्भाग्य से समान नागरिक संहिता पर कट्टरवादी तत्व सदैव हंगामा करते रहे हैं। उनके मत में शरियत के अलावा कोई अन्य समान नागरिक संहिता नहीं हो सकती। इस सन्दर्भ में वे देश के संविधान को भी नहीं मानते। अरब के शहंशाह फैजल ने 1966 में कहा था, ‘संविधान? किसलिए? संसार का प्राचीनतम और सर्वश्रेष्ठ संविधान तो कुरान है।’ (एडवर्ड मार्टिमर, फेथ एण्ड पावर, पृ. 56)। विधि आयोग ने विवाह और तलाक के सम्बंध में सभी नागरिकों के लिए समान संहिता बनाने का प्रयास किया, परन्तु कांग्रेसी सरकारों ने मुसलमानों और ईसाइयों के विरोध के सामने हथियार डाल दिए। आश्चर्य है कि इस सन्दर्भ में बंगलादेश, यहां तक कि पाकिस्तान ने भी अनेक नियमों को बनाया है। परन्तु मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, भारत में जिसका जन्म 1972 ई. में हुआ, ने अपना उद्देश्य ही समान नागरिक संहिता को न मानना ही बना लिया है। देश के मुसलमानों का एक कट्टरवादी वर्ग किसी भी तरह भारत में मुसलमान महिलाओं को आगे नहीं बढ़ने देना चाहता तथा संविधान, राष्ट्र, राष्ट्रीयता के एक तत्व के भाव में बाधा बना रहना चाहता है।

कांग्रेस की नीति सदैव मुस्लिम तुष्टीकरण की रही। नेहरू से सोनिया गांधी तक यह नीति जारी है। डॉ. आम्बेडकर ने इसी कारण 11 अक्तूबर, 1951 को नेहरू मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया था। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा था, ‘उनके कठिन प्रयासों के बावजूद वंचित वर्ग पीड़ित हो रहा है और इसके विपरीत मुसलमानों की देखभाल पर जरूरत से ज्यादा ही ध्यान दिया जा रहा है और प्रधानमंत्री (पं. नेहरू) अपना सारा समय और ध्यान मुसलमानों की सुरक्षा में ही व्यतीत करते हैं। उपरोक्त परिस्थिति में उनके मंत्रिमंडल में बने रहने का कोई औचित्य नहीं है।’

1969 ई. के पश्चात् इंदिरा गांधी ने वोट बैंक की अदूरदर्शितापूर्ण राजनीति का जो मार्ग अपनाया, उससे अलगाव तीव्रता से बढ़ा। वोट बैंक की राजनीति के कारण कांग्रेस पार्टी तथा अन्य छद्मवेशी सेकुलर पार्टियां मुस्लिम तुष्टीकरण में लग गर्इं। कांग्रेस पार्टी (इंदिरा-आई) को यह विश्वास था कि इस तरह की नीति अपनाने से वह अल्पसंख्यकों के वोटों को हमेशा के लिए अपने पक्ष में कर लेगी। जहां कांग्रेस ने मुस्लिम वोटों की खातिर भारतीय संविधान की मूल स्वतंत्रता तथा समानता की भावना से विश्वासघात किया, वहीं डॉ. आम्बेडकर के नाम से वोट बटोरने वाली तथा लोहिया का गीत गाने वाली पार्टियां भी स्वार्थवश अपने पथ से विचलित हो गर्इं। वे भी आम्बेडकर तथा लोहिया के प्रेरणा मार्ग से भटक गर्इं। समय-समय पर भारत का सर्वोच्च न्यायालय इस सन्दर्भ में चेतावनी देता रहा। 1985 ई. में सर्वोच्च न्यायालय ने शाहबानो के मामले में मुसलमान महिलाओं के उचित भरण-पोषण का अधिकार सुनिश्चित किया, तो राजीय गांधी की सरकार ने संविधान में संशोधन करके सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को उलट दिया। इससे अलगाववादी तथा महिला स्वतंत्रता के विरोधियों को बल मिला।

सर्वोच्च न्यायालय ने 12 अक्तूबर, 2015 ई. को पुन: समान नागरिक संहिता बनाने पर जोर दिया। उसने केन्द्र सरकार से इस सम्बंध मेें पूछा कि वह इस दिशा में क्या कर रही है? सर्वोच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी उस याचिका की सुनवाई करते हुए की है, जिसमें ईसाई समुदाय के दंपतियों को आपसी सहमति से तलाक के लिए अन्य समुदायों के मुकाबले एक वर्ष अधिक प्रतीक्षा करने वाले प्रावधान को चुनौती दी गई थी। भारत के कानून मंत्री डी.वी. सदानन्द गौड़ा ने समान नागरिक संहिता के प्रति सहमति जताते हुए इसके लिए उचित माहौल बनाने के लिए समय मांगा है।

इस सन्दर्भ में भारत का मुसलमान समाज सामान्यत: दो धाराओं में बंटा है। एक है रूढ़िवादी समाज तथा दूसरा है आधुनिक पढ़ा-लिखा प्रगतिशील समाज। पहले समाज का नेतृत्व दकियानूसी सोच के मुल्ला-मौलवी, मुफ्ती तथा तथाकथित उलेमा करते हैं। ये वे लोग हैं, जो मुसलमान महिलाओं को समान अधिकार नहीं देते तथा उन पर अपना वर्चस्व जबरदस्ती लादना चाहते हैं। वे ‘शरियत’ को संविधान से ऊपर मानते हैं। वे शरियत के अलावा राष्ट्र, राष्ट्रीयता, देशभक्ति को मान्यता नहीं देते। इनके विचारों में वे पहले मुसलमान हैं, बाद में भारतीय। ये लोग बहु-विवाह के सन्दर्भ में अमरीका, इंग्लैंड, चीन, रूस, जापान, फ्रांस इटली, जर्मनी आदि देशों में प्रचलित कानूनों को भी नहीं मानते हैं। वे तुर्की, बंगलादेश यहां तक कि पाकिस्तान में प्रचलित स्वतंत्रता तथा समानता के अधिकारों को भी स्वीकार नहीं करते हैं। मौलवी अब्दुल हमीद नोमानी भारत में समान नागरिक संहिता को अव्यावहारिक मानते हैं तथा समस्त मुस्लिम समुदाय को इसके विरुद्ध मानते हैं। मौलाना अब्दुल रहीम मुजादी का कहना है कि यदि मुसलमानों को मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा करनी है तो उन्हें अपने मामलों को देश की अदालतों में नहीं ले जाना चाहिए। जयपुर के जामिया हदिया के प्रमुख मौलाना मजदी भी अदालतों के बहिष्कार की रट लगाते हैं। दारूल उलूम, देवबन्द के मुफ्तियों के अनुसार नौकरी-पेशा महिला की कमाई शरियत की नजर में हराम है। उनका तो यह भी कहना है कि महिला और पुरुष का एक साथ काम करना भी गैर-इस्लामी है। दूसरी ओर इन कट्टरवादियों के विपरीत प्रगतिशील तथा सृजनात्मक विचारों वाले मुसलमानों का एक वर्ग है। इसमें भारत के अनेक प्रसिद्ध न्यायाधीश, विचारक, अध्यापक तथा दूसरे विद्वान हैं। इनमें उल्लेखनीय हैं न्यायमूर्ति मुहम्मद करीम छागला, न्यायमूर्ति एम.यू. बेग आदि।

ये लोग संविधान के अनुच्छेद 44 को शीघ्र लागू करना चाहते हैं। आरिफ मोहम्मद खान जैसे राष्टÑवादी नेता तो राजीव गांधी के काल से ही शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को सही ठहरा रहे थे। प्रो. ताहिर महमूद ने इसे सही माना है। अल्पसंख्यक मामलों की केन्द्रीय मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने ‘सबका साथ, सबका हाथ’ कहते हुए मुसलमान महिलाओं की इज्जत तथा सम्मान की बात कही है। पत्रकार शेखर गुप्ता ने समान नागरिक संहिता के विरोध को निरर्थक कहा है।

निष्पक्ष रूप से देखें तो यह ज्वलंत प्रश्न है कि संविधान का प्रमुख अनुच्छेद 44 कब तक मृतप्राय: पड़ा रहेगा? कब देश में सभी को लिंग, जाति, मजहब के आधार पर समान नागरिकता का अधिकार मिलेगा? आखिर कब तक समान नागरिक संहिता का विरोध कर असहिष्णुता का कलंक भारत का नागरिक सहता रहेगा? आवश्यकता है देश के मुसलमानों का प्रगतिशील वर्ग इस दिशा में आगे आए। डॉ. सतीश चन्द्र मित्तल

 

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Representational Image

महिलाओं पर Taliban के अत्याचार अब बर्दाश्त से बाहर, ICC ने जारी किए वारंट, शीर्ष कमांडर अखुंदजदा पर भी शिकंजा

एबीवीपी का 77वां स्थापना दिवस: पूर्वोत्तर भारत में ABVP

प्रतीकात्मक तस्वीर

रामनगर में दोबारा सर्वे में 17 अवैध मदरसे मिले, धामी सरकार के आदेश पर सभी सील

प्रतीकात्मक तस्वीर

मुस्लिम युवक ने हनुमान चालीसा पढ़कर हिंदू लड़की को फंसाया, फिर बनाने लगा इस्लाम कबूलने का दबाव

प्रतीकात्मक तस्वीर

उत्तराखंड में भारी बारिश का आसार, 124 सड़कें बंद, येलो अलर्ट जारी

हिंदू ट्रस्ट में काम, चर्च में प्रार्थना, TTD अधिकारी निलंबित

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Representational Image

महिलाओं पर Taliban के अत्याचार अब बर्दाश्त से बाहर, ICC ने जारी किए वारंट, शीर्ष कमांडर अखुंदजदा पर भी शिकंजा

एबीवीपी का 77वां स्थापना दिवस: पूर्वोत्तर भारत में ABVP

प्रतीकात्मक तस्वीर

रामनगर में दोबारा सर्वे में 17 अवैध मदरसे मिले, धामी सरकार के आदेश पर सभी सील

प्रतीकात्मक तस्वीर

मुस्लिम युवक ने हनुमान चालीसा पढ़कर हिंदू लड़की को फंसाया, फिर बनाने लगा इस्लाम कबूलने का दबाव

प्रतीकात्मक तस्वीर

उत्तराखंड में भारी बारिश का आसार, 124 सड़कें बंद, येलो अलर्ट जारी

हिंदू ट्रस्ट में काम, चर्च में प्रार्थना, TTD अधिकारी निलंबित

प्रतीकात्मक तस्वीर

12 साल बाद आ रही है हिमालय सनातन की नंदा देवी राजजात यात्रा

पंजाब: अंतरराष्ट्रीय ड्रग तस्कर गिरोह का पर्दाफाश, पाकिस्तानी कनेक्शन, 280 करोड़ की हेरोइन बरामद

एबीवीपी की राष्ट्र आराधना का मौलिक चिंतन : ‘हर जीव में शिव के दर्शन करो’

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

राष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस: छात्र निर्माण से राष्ट्र निर्माण का ध्येय यात्री अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies