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नैरोबी में संपन्न हुई विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की मंत्री स्तरीय वार्ता में भारत की कुछ उपलब्धियां रही हैं। फूड कॉरपोरेशन द्वारा देश की खाद्य सुरक्षा के लिये खाद्यान्न के भंडारण की छूट मिली है। खाद्यान्न के आयातों में भारी वृद्धि की स्थिति में अल्प समय के लिये आयात कर बढ़ाने की अनुमति मिली है। विकसित देशों ने कृषि उत्पादों पर निर्यात ‘सब्सिडी’ पूरी तरह हटाना स्वीकार किया है। कपास के व्यापार को सभी तरह के कोटे से मुक्त कर दिया गया है। ये उपलब्धियां महत्वपूर्ण हैं लेकिन इनका सही आकलन करने के लिये विश्व व्यापार की संपूर्ण स्थिति को समझना होगा।
विश्व व्यापार का पहला बिंदु व्यापार यानी माल तथा सेवाओं की खरीद-बेच है। फैक्ट्रियों में उत्पादित माल के व्यापार-में डब्ल्यूटीओ की स्थापना के बाद सरलता आई है जो स्वागत योग्य है। लेकिन कृषि उत्पादों के व्यापार में गतिरोध बना हुआ है। विकसित देशों ने कथित रूप से इन उत्पादों पर निर्यात ‘सब्सिडी’ को समाप्त कर दिया है परन्तु वस्तुस्थिति इसके विपरीत है। दूसरे माध्यमों से विकसित देशों द्वारा अपने किसानों को कृषि उत्पादन ‘सब्सिडी’दी जा रही है। जैसे अमरीका में किसानों को भूमि को पकती छोड़ने के लिये ‘सब्सिडी’ दी जाती है। ऐसी ‘सब्सिडी’ से अंतत: अमरीकी किसानों के लिये उत्पादित माल को सस्ता बेचना संभव हो जाता है।
इस प्रकार के तमाम उपायों से विकसित देशों में कृषि उत्पादों की वास्तविक उत्पादन लागत ज्यादा है लेकिन विश्व बाजार में वे अपने माल को सस्ता बेच रहे हैं। विकसित देशों द्वारा बेचे जा रहे इस सस्ते माल से हमारे किसान पस्त हैंं। इस कठिनाई से कुछ राहत दिलाने के लिये नैरोबी में तय हुआ है कि विकासशील देश खाद्यान्न का भंडारण कर सकेंगे तथा कम समय के लिये आयात कर लगा सकेंगे। इनके लागू होने के बावजूद डब्ल्यूटीओ की मूल व्यवस्था के कारण हमारे किसानों पर पड़ने वाला दुष्प्रभाव बना रहेगा।
विकसित देशों द्वारा दी जा रही इन अनैतिक ‘सब्सिडी’ को हटाने पर नैरोबी समझौता मौन है। नैरोबी समझौते में विकसित देशों द्वारा दी जा रही कृषि उत्पादन ‘सब्सिडी’ हटाने के पक्ष को कोई स्थान नहीं मिला है। विश्व व्यापार का दूसरा बिंदु ‘पेटेंट कानून’ का है। 1995 में डब्ल्यूटीओ संधि लागू होने के पूर्व हर देश की अपनी ‘पेटेंट’ व्यवस्था थी। डब्ल्यूटीओ संधि में सभी देशों के ‘पेटेंट’ कानूनों को समान बना दिया गया है। इनके उल्लंघन की स्थिति में दूसरे देशों को प्रतिबंध अथवा आयात कर लगाने की छूट दे दी गयी है। वर्तमान में विकसित देशों को ‘रॉयल्टी’ से भारी आय हो रही है इसलिये उनके लिये निर्यात करके विदेशी मुद्रा अर्जित करना आवश्यक नहीं रह गया है। डब्ल्यूटीओ की दोहा वार्ता में तय किया गया था कि ‘पेटेंट’ कानून को नरम बनाया जायेगा। जनस्वास्थ्य प्रभावित होने की स्थिति में ‘पेटेंट’ कानून को निरस्त करने की व्यवस्था की गई थी। दोहा की मूल दिशा ‘पेटेंट’ कानून को नरम बनाने की ओर थी। नैरोबी में इसे पलट दिया गया है। नैरोबी समझौते में कहा गया है कि दोहा समझौते पर सब देश सहमत नहीं हैं। पूर्व में सर्वसहमति से तय हुआ था कि ‘पेटेंट’ कानून को नरम बनाया जायेगा। लेकिन नैरोबी में इस सहमति को निरस्त कर दिया गया है। तदनुसार विकसित देशों द्वारा पेटेंट पर रॉयल्टी के माध्यम से विकासशील देशों की आय चूसने का रास्ता प्रशस्त हो गया है।
डब्ल्यूटीओ की सिंगापुर वार्ता में विकसित देशों ने पुरजोर प्रयास किया था कि निवेश, सरकारी खरीद तथा प्रतिस्पर्द्धा नीति को भी डब्ल्यूटीओ में शामिल किया जाये। विकासशील देशों द्वारा कड़ा विरोध किये जाने के कारण इन सबको डब्ल्यूटीओ के एजेंडे से बाहर कर दिया गया था। नैरोबी में इन्हें पुन: डब्ल्यूटीओ के एजेंडे में शामिल कर दिया गया है। इतना जरूर कहा गया है कि इन विषयों पर सर्व सहमति से ही निर्णय लिया जायेगा। विश्व व्यापार का चौथा बिंदु श्रमिकों के पलायन का है। विश्व व्यापार की वर्तमान व्यवस्था में श्रम शक्ति के माध्यम से माल का निर्यात किया जाता है।
विश्व व्यापार को बढ़ाने के लिये जरूरी है कि भारतीय श्रमिक की श्रम शक्ति को अप्रत्यक्ष रूप से निर्यात करने के स्थान पर श्रम शक्ति का सीधे निर्यात किया जाये। श्रमिक के पलायन का रास्ता खोल दिया जाये। भारतीय श्रमिक यूरोप में जाकर कार का निर्माण करें तो कार की ढुलाई बच जायेगी। श्रमिकों के मुक्त पलायन का यह गम्भीर विषय डब्ल्यूटीओ की संधि में नहीं था। इसे डब्ल्यूटीओ में जोड़ा जाना चाहिये था। नैरोबी में ऐसा नहीं हुआ।
नैरोबी का अंतिम आकलन इस प्रकार है। कृषि व्यापार के दुष्प्रभावों से हमें कुछ राहत मिली है परन्तु कृषि व्यापार में विकसित देशों द्वारा दी जा रही अप्रत्यक्ष ‘सब्सिडी’ को निरस्त करने पर प्रगति नहीं हुई है। निवेश तथा सरकारी खरीद के हानिप्रद विषय जो डब्ल्यूटीओे के बाहर थे वे वापस एजेंडे में लाये गये हैं। श्रमिकों के मुक्त पलायन का विषय खोला ही नहीं गया है। अत: नैरोबी समझौता नकारात्मक रहा है। डॉ.भरत झुनझुनवाला
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