उन्माद और आतंक की राह
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उन्माद और आतंक की राह

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Jan 4, 2016, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Jan 2016 14:27:59

 

इराक और सीरिया के आतंकवादी संगठन आईएसआईएस में भर्ती के लिए इन दिनों दक्षिण भारत में अनेक कट्टरवादी गुट सक्रिय हैं। उनके फतवों में आकर कई बहके मुस्लिम युवाओं ने सीरिया और इराक जाने के प्रयास शुरू किए हैं। इस तरह की जानकारी पिछले सप्ताह सामने आई है। आमतौर पर ऐसे षड्यंत्रों से जुड़े समाचार बार-बार सामने आते रहे हैं। ताजा जानकारी के अनुसार भारत-बंगलादेश सीमा पर कुछ लोगों को पुलिस ने पकड़ा है। एक ही सप्ताह में तीन-चार स्थानों पर इस तरह के कट्टर तत्वों को पकड़ने के लिए छापे मारे गए।  दो दिनों के अंतराल में पुणे, मुंबई और नागपुर से करीब सात-आठ लोगों की गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। हवाई अड्डे पर पूरी मुस्तैदी से नजर रखी जा रही है और विशेष प्रयत्न किए जा रहे हैं।  इसी कारण कुछ दिन पहले पता चला था कि एक 16 वर्षीय लड़की इस मुहिम के लिए करीब 125 युवाओं के संपर्क में थी। महाराष्टÑ एटीएस एवं अन्य पुलिस तंत्र तो हरकत में आये ही, अन्य राज्यों यानी तेलंगाना, आंध्र और तमिलनाडु में भी आतंक निरोधी दस्ता अधिक सचेत हुआ है। पता चला है कि आतंकवादी गतिविधियों का हिस्सा बनने के लिए 20-25 साल के मतांध लड़के-लड़कियां कम्प्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से देश-विदेश में संपर्क कर रहे हैं। करीब 15 दिन पहले जिस लड़की को पुणे में गिरफ्तार किया गया उससे जानकारी लेकर उन युवाओं तक पहुंचने का प्रयास पुलिस ने शुरू किया है। मोबाइल, व्हाट्स एप अथवा कूट भाषा में संदेश भेजकर उनसे संपर्क की स्वतंत्र प्रणाली खड़ी की गई थी, यह शुरुआती जांच से स्पष्ट हो रहा है।

जिस तरह पुणे की लड़की ने कई युवाओं के नाम भर्ती के लिए एकत्र किए थे उसी तरह दक्षिण भारत में भी वैसी ही भर्ती के कुछ गुट होने का मामला उजागर हुआ है। शक है कि उस लड़की के पीछे कोई और आतंकी सरगना काम कर रहा है। सवाल है कि उन युवाओं की मदद से आईएसआईएस कहीं पेरिस हमले जैसी बड़ी कार्रवाई की योजना तो नहीं     बना रहा?

अफगानिस्तान में डेरा जमाए अल-कायदा के आतंकवादियों की तुलना में आईएसआईएस के आतंकवादी कहीं ज्यादा क्रूर हैं। उन्होंने सीरिया और इराक जैसे देशों तथा आस-पास के कुछ अन्य देशों के कुल तीन करोड़ से अधिक लोगों को शरणार्थी बनने पर मजबूर किया है। वे जो हत्याएं करते हैं, उनके वीडियो इंटरनेट पर डाल देते हैं जिससे आम लोगों में दहशत फैले। ऐसे आतंकवादियों के प्रत्यक्ष हमले अथवा आतंक का सामना करने के लिए सैन्य और पुलिस प्रणालियों के साथ-साथ जनता को भी भरोसा दिलाना होगा। पेरिस पर हुए दो हमलों ने वहां आतंक के विरुद्ध युद्ध जैसी परिस्थिति तैयार कर दी है। हमें इस बात का संज्ञान लेना चाहिए। 

पुणे में गिरफ्तार की गई आतंकियों की भर्ती करने वाली लड़की देखने में वास्तव में अत्यंत भोली है। आईएसआईएस से जुड़ने का उसमें उन्माद साफ झलकता है। उसे संदेश दिया गया था कि वह इस तरह घर छोड़े ताकि वह आईएसआईएस के काम के साथ-साथ अगले शैक्षिक वर्ष से वहां मेडिकल कालेज में भर्ती भी हो सके। जयपुर स्थित एक तेल कंपनी का सिराजुद्दीन नामक वरिष्ठ अधिकारी उसके संपर्क में था। कान्वेंट संस्कृति में शिक्षित और उसी माहौल में पली-बढ़ी वह लड़की अचानक बुर्के और हिजाब का प्रयोग करने लगी।

उस लड़की की गिरफ्तारी के पांच दिन बाद ही मुंबई शहर के मालवणी इलाके से जिन तीन युवकों को पुलिस ने गिरफ्तार किया था उनमें से हर एक को गिरफ्तार करने के लिए अलग पद्धति अपनानी पड़ी थी। उनसे पूछताछ में पता चला कि पिछले छह महीनों के दौरान उन्होंने अपने स्थानीय काम निबटाने शुरू कर दिए थे। हर एक ने एक-डेढ़ लाख रुपए का इंतजाम कर रखा था। साथ ही, उन्होंने घर वालों के साथ-साथ कई लोगों से संपर्क भी कम किया था। अड़ोस-पड़ोस के लोगों से भी उन्होंने बात करना कम कर दिया था। उनके परिजनों से जो बात हुई, उसके अनुसार वे बार-बार यह कहते थे कि ‘इस्लाम के लिए कुछ करना है’। उनके भेजे हुए और उनको आए अलग-अलग संदेशों का पुलिस अध्ययन कर रही है। उन्हें हिरासत में तो लिया गया है लेकिन पुलिस इस बात पर चुप्पी साधे हुए है कि क्या वे सच में इराक और सीरिया जा रहे थे। इन तीन के नाम हैं-ऐयाज सुल्तान (23), मोहसिन शेख (26) और वाजिद शेख (25)।

मालवणी के पुलिस निरीक्षक मिलिंद खेत्ले का कहना है कि इन तीनों के अभिभावकों ने ही दो सप्ताह पूर्व उनके लापता होने की शिकायत पुलिस थाने में दी थी। सुल्तान ने घर में बताया था कि उसे कुवैत में एक नौकरी मिलने वाली है जिसके लिए वह पुणे जा रहा है। उसके अन्य दो दोस्तों ने विवाह और आधार कार्ड लेने जैसे कारण बताए थे। लेकिन इन तीनों के अभिभावकों को अधिक संभावना इसी बात की लग रही थी कि वे आतंकवादी संगठन के संपर्क में थे।

उधर नागपुर में 27 दिसम्बर को गिरफ्तार किए गए युवकों में से दो पिछले वर्ष बंगलादेश के रास्ते अफगानिस्तान जाने के लिए कोलकाता जाकर चीजों की जानकारी लेकर लौटे थे। अंतरराष्टÑीय सीमा पार होते समय कहीं उन्हें गिरफ्तार न कर लिया जाए, इस भय से वे लौट आए। सिर्फ 20-22 साल के ये तीनों युवा-अब्दुल वसीम, उमर हसन फारुकी और माज हसन फारुकी-आपस में चचेरे भाई हैं। उनका झुकाव आईएसआईएस की ओर है या अल-कायदा की ओर, इस बारे में पुलिस किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है। पिछले वर्ष ही तेलंगाना पुलिस की उन पर नजर गई थी। वे कहां जाते हैं, क्या करते हैं, इस पर नजर रखी जा रही थी। वे तेलंगाना के इंडियन मुजाहिद्दीन के कुछ आतंकियों के संपर्क में भी थे। इनमें से माज बायोटेक का छात्र है, उमर माइक्रो बायोलॉजी का छात्र है। फिलहाल उन्होंने कोई अपराध नहीं किया, इसलिए उन्हें समझा-बुझाकर घर भेजा गया है। जाहिर है, तेलंगाना पुलिस उन पर नजर रखेगी।  आज उपलब्ध जानकारी के अनुसार भारत के करीब 20 युवक आईएसआईएस के चंगुल में फंस चुके हैं। मजहबी उन्माद में आकर मुस्लिम युवा उस रास्ते पर न बढ़ें इसके लिए राज्यों के एटीएस तंत्र आपस में समन्वय से काम कर रहे हैं। इनमें हर राज्य के एटीएस के रडार पर 20-22 साल के लड़के-लड़कियां है। पुलिस यह जांच रही है कि क्या उनको बरगलाने वाला कोई आतंकी अड्डा भी भारत में सक्रिय है। पिछले वर्ष दिसंबर में ही बेंगलूरु में मेहंदी मसरूर विश्वास को भारत में आईएसआईएस का नियंत्रण केंद्र चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उनके सभी आपसी संदेश अरबी भाषा में होते हैं। इसलिए वे जल्दी नजर नहीं आते। पुणे से जो संदिग्ध लड़की पकड़ी गई है, उसके जयपुर के सिराजुद्दीन नामक सरकारी अधिकारी से संपर्क होने के कारण उससे मिलने वाले सभी लोगों पर कड़ी नजर रखी गई। इससे भी कई चीजेंं सामने आर्इं। अलग अलग स्थानों से एकत्र हुई जानकारी के आधार पर मुंबई के नजदीक कल्याण, तेलंगाना, कर्नाटक के कुछ लड़कों को राह पर लाने में सफलता मिली है। इससे और एक बात स्पष्ट हुई है कि सिंगापुर, ओमान, संयुक्त अरब अमीरात में रहने वाले कई भारतीय मूल के मुस्लिम उन्मादी सोच के युवा आईएसआईएस की ओर आकर्षित हुए हैं। उन्हें रोकने के लिए वहां की पुलिस मशीनरी सतर्क है और वे भारतीय पुलिस का सहयोग भी कर रही है। दो महीने पूर्व अफशा जमीर उर्फ मिकी जोसफ नामक 37 वर्षीय भारतीय महिला के संयुक्त अरब अमीरात से आईएसआईएस की ओर जाने की सूचना मिली थी। उसे रोकने में ये मशीनरी सफल भी रही है।

पुणे काफी समय तक सिमी और इंडियन मुजाहिद्दीन की गतिविधियों का केंद्र रहा था। वहीं पर अब्दुल करीम तेलगी ने नकली स्टाम्प पेपर बेचने का बड़ा केंद्र स्थापित किया था। वहीं के अली हसन नामक एक व्यवसायी, जो घोड़ों की रेस के बहाने कई गैर कानूनी काम करता था, पर 96 हजार करोड़ रुपयों की कर चोरी का आरोप है। ये दोनों फिलहाल जेल में हैं। आतंकवादियों से उनके संबंध उस समय चर्चा के विषय बने थे।

इन सभी आतंकवादी कार्रवाइयों पर नियंत्रण रखने के लिए तीन वर्ष पूर्व मुम्बई के तत्कालीन पुलिस आयुक्त डॉ. सत्यपाल सिंह द्वारा महाराष्टÑ में किया गया प्रयोग काफी उपयोगी रहा था। उन्होंने तमाम निजी सुरक्षा एजेंसियों को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया था। छोटी-छोटी सहकारी हाऊसिंग सोसायटियों से लेकर मॉल, थिएटर, रेलवे स्टेशन जैसे स्थानों पर काफी बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मी तैनात होते हैं। वे निजी अथवा ठेकेदारी पद्धति के तहत काम करते हैं। हर राज्य में उनकी संख्या लाखों में होती है। उन्हें भी सुरक्षा को लेकर उचित प्रशिक्षण दिया जाए तो आतंकवादी कार्रवाइयों और अपराध की जांच में उनका उपयोग हो सकता है।  इराक और सीरिया में सक्रिय आईएसआईएस का असर दूसरे कई देशों में भी दिखाई देने लगा है, इसलिए आज पूरी दुनिया को इस ओर सतर्क होने की जरूरत है। मोरेश्वर जोशी

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