सामयिक- नगदी-मुक्त दुनिया की ओर बढ़ते कदम
May 11, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

सामयिक- नगदी-मुक्त दुनिया की ओर बढ़ते कदम

by
Dec 28, 2015, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 28 Dec 2015 14:13:53

उर्दू के एक महान लेखक ने अपनी पुस्तक 'ऊपर शेरवानी अंदर परेशानी' में लिखा है कि एक बार एक होटल के नाइट क्लब में एक बंदर और बंदरिया घुस गए। उन्हें वहां कुछ इंसानों के नग्न और अर्द्ध नग्न जोड़े दिखाई पड़े तो बंदरिया ने बंदर से पूछा, प्रियतम, हम उस दुनिया में तो नहीं आ गए जहां से यह दुनिया शुरू हुई थी? उसी प्रकार कुछ ही समय में विश्व बाजार में जहां अपनी-अपनी मुद्रा और अपने-अपने रुपए-पैसे के माध्यम से लेन-देन होता है वहां से यह सब गायब हो जाएंगे। तब स्वर्ग से आई कोई भी आत्मा यह सवाल कर सकती है कि हम उस दुनिया में तो नहीं आ गए जहां जो चीज चाहो 'ऑन लाइन' खरीद लो। इस खरीददारी में न तो डॉलर, न पौंड और न ही रुपया चाहिए। बस, जो कुछ खरीदना हो अपने कम्प्यूटर खोलो और 'ऑन लाइन' सामान की सूची बता दो और कुछ देर बाद सामान आपके घर तक पहुंच जाएगा। तब यही कहना होगा कि वह सतयुग होगा। इस सतयुग के बाजार में क्रय-विक्रय के लिए कुछ भी नहीं लेना-देना पड़ेगा। वहां कोई 'टके सेर भाजी, टके सेर खाजा', यह नारा लगाते हुए भी नहीं दिखाई पड़ेगा। लेकिन जब चलन में मुद्रा ही नहीं होगी तो फिर लेन-देन कैसे होगा? बिना पैसे तो कुछ मिलता ही नहीं? बार-बार हातिम ताई तो पैदा होने से रहा, जो अपनी जेब से सब दे दे और दूसरों के लिए खरीदने-बेचने की समस्या भी नहीं रहे! मुफ्त में कोई वस्तु मिल भी जाए तब भी कब तक? एक न एक दिन तो उसकी कीमत चुकानी ही पड़ेगी! हमारे मन में जितने सवाल उठते हैं वे सभी उचित और प्रासंगिक होंगे, लेकिन फिर भी मानकर चलिए कि अब आने वाले समय में आपको बाजार जाते समय किसी नगद रुपए, पैसे की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। सवाल बड़ा पेचीदा है, लेकिन इसका उत्तर सटीक भी है और व्यावहारिक भी। आने वाली दुनिया के बाजार में नोट का तो स्थान नहीं होगा, लेकिन ऐसी व्यवस्था अवश्य ही होगी, जिससे इस समस्या का समाधान निकल आएगा। कुछ स्तर पर और कुछ अर्थों में तो ऐसा हो ही रहा है। बड़े सौदे में तो अब कोई भी हाथ में नोट अथवा चिल्लर नहीं थमाता है। इस चलन का दायरा भी दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। जब से अपराध जगत की सीमाएं बढ़ी हैं तब से दुकानदार अथवा बाजार के व्यापारी के लिए अब यह कठिन हो गया है कि वह प्रतिदिन बाजार में जाकर वस्तुओं की खरीद-फरोख्त करे। जितनी मात्रा में चाहें 'ऑन लाइन' अपनी पसंद की वस्तुएं मंगवाइए। इतना ही नहीं, अपने माता-पिता और परिवार जन सभी मिलकर 'ऑन लाइन' खरीददारी करें और 'ऑन लाइन' ही उसके भुगतान की व्यवस्था करें।  तब आपको घर बैठे  मन-पसंद की सभी वस्तुएं भी मिल जाएंगी और आपके बैंक से उस दुकान के मालिक को घर बैठे ही अपने सामान की कीमत भी मिल जाएगी।
यानी आपके पास मुद्रा नहीं है तब भी इस प्रणाली से आप उसका हिसाब चुकता करने में सफल हो जाएंगे। कुल मिलाकर न तो नोट गिनने पड़े और न ही अठन्नी, चवन्नी का चक्कर रहा और खरीददारी हो गई!0
कुछ ही समय बाद स्वीडन दुनिया का ऐसा पहला देश बनने वाला है, जहां नगद भुगतान पूरी तरह चलन से बाहर होने जा रहा है। वहां की सरकार ने मोबाइल पेमेंट प्रणाली को लागू करने के लिए कमर कस ली है। लोग मोबाइल पेमेंट प्रणाली पर भरोसा भी करने लगे हैं। इसका अर्थ यह है कि स्वीडन की जनता पूरी तरह से सूचना प्रौद्योगिकी (आई.टी.) पर भरोसा करने लगी है। स्वीडन में यह सब इसलिए हुआ क्योंकि वहां आतंक और अपराध बहुत कम हैं। स्वडिश बैंक अब नवीनतम आई.टी. प्रणाली को अपना चुका है। स्वीडन ही क्या पिछले कुछ समय से ऐसी स्थिति डेनमार्क में भी देखी जा रही है। डेनमार्क की सरकार ने पिछले दिनों यह आदेश जारी कर दिया कि 2016 से वहां दुकानें, रेस्तरां और पेट्रोल पम्प आई.टी. प्रणाली अपनाएंगे। इसमें मोबाइल के द्वारा भुगतान होता है। इन सभी स्थानों पर कोई नगद व्यवहार नहीं होगा। डेनमार्क में एक सर्वेक्षण से पता चला है कि इससे वहां डेनिश व्यापार में 16 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि होगी। जो छोटे व्यापारी हैं उन्हें अपनी रक्षा पर कोई खर्च नहीं करना पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि लूट के भय से आज भी वहां अनेक दुकानदारों को अपनी निजी सुरक्षा पर भारी-भरकम खर्च करना पड़ता है। मोबाइल पेमेंट प्रणाली को अपनाने से छुट्टे पैसों के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा। हम भारतीयों को भी छुट्टे पैसों की समस्या का सामना आएदिन करना पड़ता है।
अब दस, बीस पैसे का युग तो रहा नहीं। चवन्नी और अठन्नी भी बाजार से गायब हैं या यह भी कह सकते हैं कि इनका चलन रहा ही नहीं। जब हमारे यहां चिल्लर की दिक्कत होती है तो उस पर भी लोग कमाई करने लगते हैं। लोग 50 पैसे की जगह एक रुपया ले लेते हैं या दे देते हैं। इससे लेने वाला तो फायदे में रहता है, लेकिन देने वाला पछताता रहता है।
टक्साल में चिल्लर बनाने पर भारी खर्च होता है। चवन्नी या अठन्नी को बनाने का मूल्य सरकार के लिए घाटे की व्यवस्था है। इसलिए आपको अनुभव होगा कि चिल्लर की कमी के समय पर व्यक्ति अपना-अपना बंदोबस्त करता है। कोई कूपन जारी करता है, तो कोई अपना स्वयं का तरीका खोज लेता है। दुकानों पर छुट्टे पैसे दिए जाने के बोर्ड लग जाते हैं। ऐसे समय में नकली चिल्लर का बाजार में आना बहुत बड़ी बात नहीं है। हम भारतीयों को मोहम्मद तुगलक का इतिहास याद है। पतरे और पुट्ठे के सिक्के चल पड़ते हैं। अधिकांश लोगों का विवाद झगड़े में बदल जाता है। सरकारी बसों में भी कूपन चल पड़ते हैं। जब बाजार में चिल्लर की कमी हो जाती है तब छोटे-बड़े सभी व्यापारी तनावग्रस्त हो जाते हैं। आपको स्मरण होगा एक समय सरकार ने पीली दुवन्नी बंद कर दी थी। उस समय हर व्यक्ति दुवन्नी जैसे छोटे सिक्के के लिए भी दु:खी होने लगा था। पर कुछ चालाक दिमागों ने ऐसा ऐसिड अथवा घोल खोज निकाला जिसमें कुछ देर के लिए उस पीली दुवन्नी को डालने से वह सफेद हो जाती थी। कुछ दिन तो यह मामला चलता रहा। लेकिन जब छोटे व्यापारियों के गल्लों में दुवन्नी के ढेर लग गए तो उन्होंने पीली दुवन्नी लेना बंद कर दिया। बस फिर क्या था झगड़ा, मारपीट में बदल गया। पुलिस को बीच बचाव करना पड़ा, लेकिन किसी के पास इसका इलाज नहीं था। हमारे यहां खुदरा व्यापारियों के यहां चिल्लर यानी छुट्टे पैसों का मसला अधिक होता है। इसलिए बेचारे छोटे व्यापारियों को अधिक भुगतना पड़ता है। इस प्रकार के अनेक सरदर्द समय-समय पर सामने आते रहते हैं। सरकार के पास इसका कोई स्थायी हल नहीं है।
लेकिन अब यदि स्वीडन और डेनमार्क वाला सूत्र भारत में भी लागू किया जाए तो काम करने में आसानी हो सकती है। एक न एक दिन तो धातु और कागज की मुद्रा से पीछा छुड़ाना ही पड़ेगा। इसलिए जो कुछ डेनमार्क और स्वीडन में हो रहा है उसका अनुसरण हम भारतीयों को भी करना ही पड़ेगा। लेकिन हमारे यहां इन दोनों देशों जैसे लोग नहीं हैं। उन दोनों देशों में पूर्ण साक्षरता है। सभी लोग पढ़े-लिखे हैं। यही नहीं वहां का हर नागरिक आई.टी. की भी अच्छी-खासी जानकारी रखता है। वहीं दूसरी ओर हमारे यहां अभी भी पूर्ण साक्षरता नहीं है। करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिनके लिए काला अक्षर भैस बराबर है। आज भी गांव और देहात में 'बारटर सिस्टम' चलता है। यानी एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु। फिर भी यह तो मानना पड़ेगा कि स्थितियां तेजी से बदल रही हैं। गांवों में भी आई.टी. क्रांति देखने को मिल रही है। मजदूर और गरीब किसान भी मोबाइल आसानी से चला रहे हैं। घूंघट में रहने वाली महिलाएं भी ए.टी.एम. का इस्तेमाल कर रही हैं। लेकिन यह भी हमें नहीं भूलना चाहिए कि भारत में आई.टी. हर स्थान पर नहीं है। इसलिए हम अभी नगदी-मुक्त होने का सपना भी नहीं देख सकते। छोटे और ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रकार की बातें करना अभी तो मूर्खता ही होगी। भारत में इस प्रकार के व्यवहार की बात करने का अभी तो कोई औचित्य ही नहीं है, लेकिन कागज-विहीन होने की शुरुआत कहीं न कहीं तो हो ही गई है! इसलिए आईटी के युग में यह सब होगा, इससे इनकार तो नहीं किया जा सकता है।          -मुजफ्फर हुसैन

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

Uttarakhand RSS

उत्तराखंड: संघ शताब्दी वर्ष की तैयारियां शुरू, 6000+ स्वयंसेवकों का एकत्रीकरण

Bhagwan Narsingh Jayanti

भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु बने नृसिंह

बौद्ध दर्शन

बौद्ध दर्शन: उत्पत्ति, सिद्धांत, विस्तार और विभाजन की कहानी

Free baloch movement

बलूचों ने भारत के प्रति दिखाई एकजुटता, कहा- आपके साथ 60 मिलियन बलूच लोगों का समर्थन

समाधान की राह दिखाती तथागत की विचार संजीवनी

प्रतीकात्मक तस्वीर

‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर भारतीय सेना पर टिप्पणी करना पड़ा भारी: चेन्नई की प्रोफेसर एस. लोरा सस्पेंड

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

Uttarakhand RSS

उत्तराखंड: संघ शताब्दी वर्ष की तैयारियां शुरू, 6000+ स्वयंसेवकों का एकत्रीकरण

Bhagwan Narsingh Jayanti

भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु बने नृसिंह

बौद्ध दर्शन

बौद्ध दर्शन: उत्पत्ति, सिद्धांत, विस्तार और विभाजन की कहानी

Free baloch movement

बलूचों ने भारत के प्रति दिखाई एकजुटता, कहा- आपके साथ 60 मिलियन बलूच लोगों का समर्थन

समाधान की राह दिखाती तथागत की विचार संजीवनी

प्रतीकात्मक तस्वीर

‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर भारतीय सेना पर टिप्पणी करना पड़ा भारी: चेन्नई की प्रोफेसर एस. लोरा सस्पेंड

British MP Adnan Hussain Blashphemy

यूके में मुस्लिम सांसद अदनान हुसैन को लेकर मचा है बवाल: बेअदबी के एकतरफा इस्तेमाल पर घिरे

पाकिस्तान के साथ युद्धविराम: भारत के लिए सैन्य और नैतिक जीत

Indian DRDO developing Brahmos NG

भारत का ब्रम्हास्त्र ‘Brahmos NG’ सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल अब नए अवतार में, पांच गुणा अधिक मारक क्षमता

Peaceful Enviornment after ceasfire between India Pakistan

भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर के बाद आज क्या हैं हालात, जानें ?

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies