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बात बहुत गंभीर है। जिस पार्टी ने देश पर छह दशक राज किया उसका ‘जन्मसिद्ध’ वारिस देश और दुनिया के सामने बार-बार झूठ बोलते पकड़ा जा रहा है। सयाने होते जाते मतदाता और राजनीति के मैदान में पटखनी खाए जाने का भय ऐसा कि इस बात का ख्याल भी मीलों पीछे छूट चुका है कि सार्वजनिक जीवन में कही गई बातें बार-बार पीछा करती हैं, और आज दिया गया झांसा कल खुद के लिए भी फंदा बन सकता है। देश की राजनीति के रंग-ढंग बदल चुके हैं। इसलिए टीवी धारावाहिकों सी नाटकीयता और मुंबईया फिल्मों सरीखे सितारेपन के भरोसे सत्ता के सपने संजोने वाले अब फरेब से भरी, लेकिन लचर पटकथाओं के सहारे टिके रहने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी पार्टी भले ही उन्हें अपना और देश का भविष्य बताती आई है, लेकिन वास्तविकता में हर पल उनके आगामी बयान को लेकर सांसत में रहती है। आप समझ ही गए होंगे कि बात राहुल गांधी की हो रही है।
गत 14 दिसंबर को राहुल ने एक नया झूठ बोला कि उन्हें असम के बरपेटा सत्र मंदिर में जाने से रोका गया। रोकने वाली ‘संघ के लोगों द्वारा खड़ी की गर्इं महिलाएं’ थीं। फिर राहुल ने दहाड़ने की कोशिश की कि ‘वो कौन होते हैं मुझे मंदिर जाने से रोकने वाले।’ सनसनी मचाने की इस कोशिश की हवा तुरंत ही निकल गई जब असम प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का उसी दिन का वीडियो सामने आ गया जिसमें वे राहुल के बारपेट सत्र पहुंचकर पूजा करने के तयशुदा कार्यक्रम में बदलाव पर सफाई दे रहे थे। दरअसल, राहुल का यह कार्यक्रम प्रदेश कांग्रेस ने तय किया था। इसके बाद रैली थी। विलम्ब हो गया तो रैली को प्राथमिकता देते हुए मंदिर और पूजा को टाल दिया गया। इससे मंदिर पर इकट्ठा हुए स्थानीय लोग मीडिया के कैमरों के सामने इसे सत्र का अपमान बताते हुए नाराजगी जताने लगे। उस दिन लोगों का गुस्सा शांत करने के लिए स्थानीय कांग्रेस नेतृत्व द्वारा कैमरों के सामने दिए गए बयान आज राहुल के झूठ का सबूत बन गए।
जिस व्यक्ति को कांग्रेस पिछले बारह-पंद्रह वर्ष से अपने प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से प्रस्तुत करती आई है उसके चरित्र का यह पहलू बेहद शोचनीय है। राहुल के झूठों की लम्बी श्रृंखला है। और अब तो इसमें जालसाजी का आयाम भी जुड़ गया है। नेशनल हेराल्ड मामले पर देश हैरान है कि कैसे राहुल और सोनिया के स्वामित्व वाली और मात्र कुछ लाख की पूंजी वाली कंपनी ‘यंग इंडिया’ को हिसाब- किताब के हेरफेर से हजारों करोड़ की संपत्ति सौंप दी गयी। इतना बड़ा मामला सामने आने और न्यायालय द्वारा हाजिर होने का आदेश देने के बाद भी राहुल को शर्मिंन्दगी नहीं हुई, बल्कि न्यायालय की कार्यवाही को सरकार द्वारा लिया जा रहा राजनीतिक प्रतिशोध बताकर राहुल और सोनिया के इशारों पर संसद का कीमती समय कांग्रेस के सांसदों द्वारा बर्बाद किया गया। वास्तव में प्रतिशोध तो देश की जनता का बनता है जिसका हक एक परिवार विशेष के स्वार्थ के पीछे मारा जा रहा है। संसद को न चलने देने के लिए परिवार के संकेत पर नित नए बहाने गढ़े जा रहे हैं। फिर चाहे वह ‘असहिष्णुता’ की बहस हो या शैलजा कुमारी द्वारा रचा गया प्रहसन। (इन्होंने पिछले दिनों संसद में कहा था कि जब वह केन्द्र में मंत्री थीं तो द्वारका मंदिर गई थीं। वहां उनसे जाति पूछी गई थी। मंदिर के पुजारी ने इसका खंडन किया है।)
अक्तूबर, 2013 में राहुल गांधी ने मुजफ्फरनगर दंगों पर भड़काऊ बयानबाजी करते हुए फिर एक झूठ बोला कि दंगों की जिम्मेदारी भारतीय जनता पार्टी की है और खुफिया सूत्रों का कहना है कि मुजफ्फरनगर के मुसलमान युवक पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के संपर्क में हैं। राहुल का बयान तूल पकड़ गया। भाजपा नेतृत्व ने सवाल उठाए कि राहुल, जो किसी सरकारी पद पर नहीं हैं, को किस खुफिया एजेंसी ने जानकारी दी और किस आधार पर दी? और यदि राहुल स्वज्ञान के आधार पर ऐसे युवकों को जानते हैं जो आतंकवादी बनने की राह पर हैं, तो उन्हें वे नाम तत्काल सुरक्षा एजेंसियों को बता देने चाहिए। हमेशा की तरह राहुल चुप्पी मार गए। लेकिन तत्कालीन संप्रग सरकार की फजीहत हो गयी। तब के गृह राज्यमंत्री आऱ पी़ एऩ सिंह को संसद में सफाई देनी पड़ी कि जहां तक केंद्रीय खुफिया एजेंसियों द्वारा जानकारी उपलब्ध करवाई गयी है, हमारे पास पाकिस्तान की आईएसआई द्वारा मुजफ्फरनगर के अल्पसंख्यक दंगा पीड़ितों से संपर्क किए जाने संबंधी कोई सूचना उपलब्ध नहीं है।
मई, 2015 में राहुल अपने निर्वाचन क्षेत्र अमेठी के दौरे पर गए। वहां पर उन्होंने कहा कि वे मोदी सरकार के ‘ब्लफ’ का पर्दाफाश करने आए हैं। उनका कहना था कि उन्होंने अमेठी के विकास के लिए वहां पर एक विशाल खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (फूड पार्क) स्थापित करने की योजना बनाई थी। संप्रग शासन के दौरान ही इसके लिए भूमि आवंटित कर दी गयी थी। काम बड़ी तेजी से चल रहा था। फिर केंद्र में मोदी सरकार आ गई और ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ के चलते केंद्र सरकार ने अमेठी के लोगों से इस योजना को छीन लिया और काम करने वाली कंपनी से समझौते को रद्द कर दिया गया। राहुल ने आगे जोड़ा कि भाजपा उनसे बदला लेने के लिए अमेठी और आसपास के किसानों का हक मार रही है। मामले की छानबीन हुई तो पता चला कि फूड पार्क के काम को रोकने वाली और सम्बंधित कंपनी के साथ किए गए करार को रद्द करने वाली उनकी अपनी ही संप्रग सरकार थी। केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री हरसिमरत कौर ने ये भी खुलासा किया कि सम्बंधित कंपनी सरकार से प्राय: सब कुछ कौड़ियों के दाम लेने के बाद, यहां तक कि सस्ती गैस लेने के बाद भी इसे फूड पार्क के स्थान पर ऊर्जा परियोजना के रूप में प्रचारित कर रही थी। इस खुलासे का परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस के ‘युवराज’ एक बार फिर कुछ दिनों के लिए मीडिया के परदे से अदृश्य हो गए।
इसी वर्ष अगस्त में राहुल गांधी जम्मू-कश्मीर के उन सीमावर्ती इलाकों के प्रवास पर गए जो पाकिस्तान द्वारा की जा रही गोलीबारी से प्रभावित हैं। पाकिस्तान की गोलीबारी से छह स्थानीय नागरिक मारे गए थे। संवेदना प्रकट करने के नाम पर वहां पहुंचे राहुल भड़काऊ बयानबाजी करने लगे। उन्होंने कहा कि ये सरकार की ज्यादती है कि आतंकी घटनाओं में मरने वालों को ज्यादा मुआवजा मिलता है, लेकिन पाकिस्तान की गोलीबारी में मारे गए लोगों को कम मुआवजा मिलता है। सचाई ये है कि दोनों ही परिस्थितियों में सरकार द्वारा समान मुआवजा दिया जाता है। परिवार के सदस्य को नौकरी भी दी जाती है। सच सामने आया लेकिन राहुल ने कोई सफाई नहीं दी।
राहुल और उनकी मां सोनिया गांधी ने अपने आस-पास ऐसे झूठ गढ़ने वाले एक समूह को पनपाया है, जो समय-समय पर उनकी ढाल बन सके। बहुत पुरानी बात नहीं जब लाखों करोड़ के घोटालों को राहुल और सोनिया के सिपहसालारों ने शून्य हानि (जीरो लॉस) घोषित कर दिया था। 2 जी घोटाला, कोयला घोटाला, दामादगेट और अब नेशनल हेराल्ड पर कपिल सिब्बल और पी चिदंबरम कोई घोटाला न होने की दुहाई देते मीडिया से मुखातिब होते रहे हैं। एक नया सिद्धांत गढ़ डाला गया कि यदि घोटाले की शिकायत नहीं हुई तो घोटाला हुआ ही नहीं, और अगर शिकायत हुई तो वह ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ है।
राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ पर अनर्गल आरोप लगाना भी राहुल का पसंदीदा शगल है। 6 मार्च, 2015 को सोनाले में एक सभा में बोलते हुए राहुल गांधी ने एक बार फिर संघ पर महात्मा गांधी की हत्या का आरोप लगाया। इस पर भिवंडी के एक संघ कार्यकर्ता ने राहुल गांधी पर मुकदमा दायर कर दिया है। लेकिन राहुल बाज आते नहीं दिखते। राहुल की आंखें तब भी नहीं खुलतीं जब अपनी ऊलजलूल बातों के कारण उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर जनसामान्य के सामने असहज स्थितियों का सामना करना पड़ता है। जैसा कि नवम्बर के अंतिम सप्ताह में बेंगलुरू की छात्राओं के बीच हुआ। छात्राओं ने ऐसे तीखे सवाल पूछे कि राहुल बगलें झांकते नजर आए। पिछले दो सत्रों से केंद्र सरकार जीएसटी बिल को पारित कराने की कोशिश कर रही है, लेकिन राहुल के हुड़दंगी सांसद ऐसा नहीं होने दे रहे। बेंगलुरू की छात्राओं के सामने अचकचाए राहुल को स्वीकार करना पड़ा कि जीएसटी एक अच्छा विधेयक है और सरकार ‘यदि उनसे बात करेगी’ (ध्यान रहे कि सरकार ने उनसे इस सम्बन्ध में बात की है) तो वे इसे पारित करवाने में मदद करेंगे। फिर बात बदलने के लिए उन्होंने छात्राओं से पूछा कि क्या उन्हें लगता है कि ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्वच्छ भारत अभियान’ कारगर हैं? और जब छात्राओं ने जवाब हां में दिया तो हारे हुए खिलाड़ी की तरह राहुल बुदबुदाए कि ‘उन्हें ऐसा नहीं लगता।’
इन प्रश्न तीरों को देखिए और युवा भारत के तेवरों और कांग्रेस के ‘युवराज’ की हालत का अंदाजा लगाइए। जैसे कि वे मोदी सरकार को सूट-बूट की सरकार कहते हैं। सूट-बूट में क्या गलत है, यदि सरकार आर्थिक विकास कर रही है और विकास को आगे बढ़ाती है? कभी जीएसटी का समर्थन करने वाली कांग्रेस, सरकार बदलते ही जीएसटी के खिलाफ क्यों बोलने लगी? युवा कांग्रेस से क्यों छिटक रहे हैं? आजादी के बाद से ही पूर्वोत्तर के राज्यों और केंद्र में कांग्रेस की सरकारें रही हैं, तब भी पूर्वोत्तर के राज्यों का विकास क्यों नहीं हुआ? राहुल के पास जवाब नहीं थे। जाहिर है, कांग्रेस का ‘युवा नेता’ देश के युवाओं से काफी पिछड़ चुका है। राहुल जब अपने हाल ही के लम्बे अज्ञातवास से लौटे थे तो राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा था कि वे काफी कुछ सीखकर आए हैं, लेकिन बाद में देश ने जाना कि वे और भी गैर-जिम्मेदार ढंग से झूठ बोलना सीखकर आए हैं। आते ही उन्होंने संसद और बाहर बार-बार दुहराया कि ‘प्रधानमंत्री ने कुछ उद्योगपतियों से पैसे उधार लिए हैं। अब वे उनका अहसान चुका रहे हैं।’ ये नहीं बताया कि कब, किससे कितने पैसे लिए हैं। सोने का चम्मच लेकर पैदा हुए राहुल सत्ता से विपक्ष में आ गए। यही ढर्रा रहा तो कल विपक्ष में भी नहीं बचेंगे। फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि बस करो बाबा! बहुत हुआ अब। प्रशांत बाजपेयी
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