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विवेकशुक्ला
क्या देश के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (पीएसयू) अपने आप में सफेद हाथी साबित हो रहे हैं? क्या इनकी देश को जरूरत नहीं है? इन और इनसे जुड़े कई सवालों पर समय-समय पर विचार विमर्श होता रहता है। कहने वाले कहते रहते हैं कि इन्हें निजी हाथों में सौंप दिया जाना चाहिए, लेकिन इनकी निंदा करने वालों को ये नहीं भूलना चाहिए कि इनमें से कई पीएसयू ने अपनी स्थापना के बाद से ही बेहतरीन प्रदर्शन कर देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान की है। इनमें कोल इंडिया, एनटीपीसी, बीएचईएल, ओएनजीसी, इंडियन ऑयल आदि शामिल हैं।
सार्वजनिक उपक्रम
सार्वजनिक उपक्रमों को सबसे पहले 1948 की औद्योगिक नीति में विकसित किया गया था। 1956,1977 तथा 1980 की औद्योगिक नीति में सार्वजनिक उद्यमों की कार्य सीमाओं का और अधिक विस्तार किया गया। 1991 की नयी औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के क्षेत्र को सीमित किया गया है। देश के कुल उत्पादन में सार्वजनिक क्षेत्र का भाग वर्ष 2007-08 में 20.5 प्रतिशत था। दसवीं योजना में पूंजी निर्माण में सार्वजनिक क्षेत्र का भाग 24 प्रतिशत था। 11वीं योजना में सार्वजनिक उद्यमों का कुल पूंजी निर्माण में अनुमानित हिस्सा 21.9 प्रतिशत था।
दरअसल देश में पहली पंचवर्षीय योजना के साथ केन्द्र और राज्यों के पीएसयू स्थापित करने की आवश्यकता महसूस की गई थी। इनको स्थापित किया गया और उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को गति दी। केन्द्र सरकार के कई पीएसयू तो अपने-अपने क्षेत्रों में शानदार कार्य कर रहे हैं। देश के साथ-साथ विदेशों में भी वे अपनी पहचान बना चुके हैं। सरकार की तरफ से इन्हें महारत्न कंपनियों का दर्जा मिला
हुआ है।
भारत सरकार द्वारा नियंत्रित एवं संचालित उद्यमों एवं उपक्रमों को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम या पीएसयू कहा जाता है। केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार के नियंत्रण वाले सार्वजनिक उपक्रम में सरकारी पूंजी की हिस्सेदारी 51% या इससे अधिक होती है। यदि पीएसयू में एक अथवा एक से अधिक राज्यों एवं केंद्र सरकार की साझेदारी है तब भी पूंजी हिस्सेदारी का प्रतिशत इसी प्रकार रहेगा।
बीएचईएल से हाल ही में महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त हुए प्रेम भूटानी मानते हैं कि जब से सरकार ने पीएसयू बोर्ड को अपने फैसले खुद लेने के अधिकार दिए हैं तब से इनके मुनाफे और कामकाज के स्तर में गुणात्मक सुधार हो रहा है। केन्द्र में मोदी सरकार के सत्तासीन होने के बाद तो एक तरह से सभी पीएसयू बोर्ड अपनी योजनाओं को लेकर फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं। इसका ताजा उदाहरण है महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड( एमटीएनएल)। ये लंबे समय से घाटे में चल रहा था। लेकिन, अब एमटीएनएल ने कड़ी प्रतिस्पर्द्धा के दौर में एक बार फिर अपने लिए जगह बनानी शुरू कर दी है।
स्वतंत्र भारत में वर्ष 1951 में मात्र 5 पीएसयू थे। अब इनकी तादाद लगभग 250 हो चुकी है। पीएसयू की यात्रा को हम कम से कम तीन भागों में विभाजित करना चाहेंगे। पहला, स्वतंत्रता से पूर्व दूसरा स्वतंत्रता के बाद और तीसरा, आर्थिक उदारीकरण का दौर।
यह बताने की जरूरत नहीं है कि स्वतंत्रता के पहले देश आय में असमानता और रोजगार के निम्न स्तर, आर्थिक विकास और प्रशिक्षित जनशक्ति, कमजोर औद्योगिक आधार, अपर्याप्त निवेश और बुनियादी सुविधा आदि के अभाव में क्षेत्रीय असंतुलन जैसी गंभीर सामाजिक और आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा था। इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र का खाका आत्मनिर्भर आर्थिक विकास के लिए एक साधन के रूप में विकसित किया गया था।
अगर बात शुरुआती दौर की करें तो पीएसयू कुछ खास और सामरिक उद्योगों तक ही सीमित था। दूसरे चरण में उद्योगों का राष्ट्रीयकरण, बीमार इकाइयों के निजी क्षेत्र द्वारा अधिग्रहण और सार्वजनिक क्षेत्र का नए उपक्रमों में प्रवेश जैसे उपभोक्ता वस्तुओं का निर्माण, सहकारी संस्था, करार और परिवहन आदि देखा गया।
केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (सीपीएसई) भी 'सामरिक' और 'गैर रणनीतिक' श्रेणी में वगीकृत हैं। सामरिक सीपीएसई के क्षेत्र हैं-
हथियार और गोला बारूद और रक्षा उपकरणों व वस्तुओं और हवाई जहाज व युद्धपोतों से संबद्ध।
परमाणु ऊर्जा (विकिरण और रेडियो आइसोटोप के उपयोग से कृषि, चिकित्सा और गैर सामरिक उद्योगों के संचालन से संबंधित क्षेत्रों को छोड़कर)
रेल परिवहन
अन्य सभी सीपीएसई उद्यमों को गैर रणनीतिक माना जाता है। देश के एक प्रमुख पीएसयू बैंक के महाप्रबंधक बिमल प्रसाद जैन मानते हैं कि पीएसयू ने भारत के औद्योगिक विकास के लिए एक मजबूत नींव रखी है। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम सरकार को लाभ उठाने या प्रदान करने (उनके नियंत्रित अंशधारक) के लिए तथा अर्थव्यवस्था में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से वांछित सामाजिक आर्थिक उद्देश्यों और लंबी अवधि के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अहम भूमिका अदा करते हैं।
आधुनिक भारत के मंदिर
एक दौर में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को आधुनिक भारत का मंदिर भी कहा जाता था। पहली पंचवर्षीय योजना में 29 करोड़ रुपए के कुल निवेश से पांच केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम स्थापित किए जाने के बाद से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में अहम भूमिका निभाई है। इन उपक्रमों का कुल कारोबार देश के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का करीब 25 प्रतिशत और निर्यात आय में इनकी हिस्सेदारी 8 प्रतिशत है। इन इकाइयों में कुल मिलाकर 13.9 लाख लोग काम करते हैं। ये सभी आयकरदाता होंगे। अगर प्रत्येक कर्मी पर पांच लोग निर्भर हैं तो आप समझ सकते हैं कि ये उपक्रम 70 लाख लोगों को बेहतर जिंदगी दे रहे हैं। इनसे देश को हर साल हजारों करोड़ रुपये का कर भी मिलता है।
पीएसयू बैंकों में सुधार की जरूरत
एक तरफ कई पीएसयू देश और समाज के लिए बेहतर काम कर रहे हैं। वहीं सरकारी बैंकों को अपने कामकाज में तेजी से सुधार करने की जरूरत है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की बढ़ती गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) से सरकार भी चिंतित है। इनका हजारों करोड़ रुपये का ऋण डूब रहा है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बैंक प्रमुखों से एनपीए कम करने और कारोबार को गति देने के लिए कर्ज (क्रेडिट) का प्रवाह बढ़ाने को कहा है।
कुछ समय पहले सरकारी बैंकों और वित्तीय संस्थानों के प्रमुखों को संबोधित करते हुए जेटली ने कहा कि जिस तरह से इनका एनपीए बढ़ रहा है, वह खतरनाक है। बेशक इन बैंकों को सरकारी ढर्रे से काम करने के बजाय पेशेवर अंदाज में काम करना चाहिए।
सरकारी ढर्रा छोड़ बनना होगा पेशेवर
बेशक, पीएसयू को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। पेट्रोलियम, खनन, बिजली उत्पादन, बिजली संप्रेषण, परमाणु ऊर्जा, भारी इंजीनियरिंग और विमानन जैसे क्षेत्रों पर हावी रहे केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों को 1991 में आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू होने के साथ ही निजी कंपनियों से कड़ी टक्कर मिल रही है। केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्वयं 22 जुलाई को राज्यसभा में अपने बयान में यह बात स्वीकार की कि सरकारी कंपनियों को स्पर्द्धा के माहौल में किसी भी अन्य कारोबारी संगठन की तरह काम करना सीखना चाहिए। उन्हें सरकारी विभाग की तरह काम नहीं करना चाहिए। उन्होंने बताया कि घाटे में चल रहे 79 पीएसयू में से 49 बीमार हैं।
योगदान अविस्मरणीय
इसके बावजूद राष्ट्र निर्माण में सरकारी क्षेत्र के इन विशाल प्रतिष्ठानों के योगदान को मान्यता मिलनी चाहिए। इनमें शामिल हैं भारत में सबसे बड़े सकल कारोबार वाली इंडियन ऑयल कॉपोर्रेशन लिमिटेड, सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने वाली कंपनी तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी), सबसे बड़ी पब्लिक यूटिलिटी कंपनी राष्ट्रीय पन बिजली निगम और सबसे ज्यादा बाजार पूंजीकरण वाली कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड शामिल है। इनमें से कुछ कंपनियां विश्व की 500 सबसे बड़ी कपंनियों में शामिल हैं।
पीएसयू की कुल बाजार पूंजीकरण में हिस्सेदारी 21 प्रतिशत है। मुंबई शेयर बाजार में सूचीबद्ध 500 सबसे बड़ी कंपनियों में 60 से अधिक पीएसयू हैं। कुछ पीएसयू का तो अपने कारोबार के मूल क्षेत्रों में लगभग एकाधिकार है। मिसाल के तौर पर भारत के कुल कोयला उत्पादन का करीब 81.1 प्रतिशत कोल इंडिया के हाथों में है और 74 प्रतिशत कोयला बाजार उसकी मुट्ठी में है। इसी तरह भारत में लौह अयस्क का खनन करने वाली सबसे बड़ी कंपनी राष्ट्रीय खनिज विकास निगम है।
खेलों के विकास में योगदान
अनेक पीएसयू ने देश में खेलों के विकास के लिए खासा योगदान दिया है। कुछ समय पहले केंद्रीय खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा था कि सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ उपक्रमों ने खिलाडि़यों के लिये रोजगार के अवसर सृजित करने की केंद्र की अपील पर सकारात्मक रवैया दिखाया है। सरकार ने पिछले राष्ट्रीय खेलों के दौरान कंपनियों से खिलाडि़यों के लिए रोजगार के अवसर सृजित करने का आग्रह किया था। वहीं इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन लिमिटेड, तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी),इंडियन एयरलाइंस,स्टेट बैंक,वगैरह लंबे समय से खिलाडि़यों को रोजगार दे रहे हैं।
दक्षता पर जोर
विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ पीएसयू सफेद हाथी हो चुके हैं, लेकिन कई अन्य कंपनियां उम्मीदों पर खरी उतरी हैं और आर्थिक वृद्धि में उल्लेखनीय योगदान करती रही हैं। अच्छा प्रदर्शन करने वाली सभी पीएसयू में तीन प्रमुख पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है। ये पहलू हैं—दक्ष मानव संसाधन, ठोस प्रबंधन, और नित नई सोच। कुछ जानकार सफल पीएसयू की सफलता का श्रेय इनकी श्रेष्ठ कार्यशैली को देते हैं जिसमें सारा ध्यान परिणामों और दक्ष प्रक्रियाओं के विकास पर है।
कठोर फैसले
इस बीच,कुछ पीएसयू की हालत सुधारने के लिए मोदी सरकार ने विनिवेश का विकल्प चुना है। सत्ता में आने के पहले सप्ताह में मोदी मंत्रिमंडल ने हिंदुस्तान जिंक लिमिटिड और बाल्को में अपने बचे-खुचे शेयर बेचने की प्रक्रिया शुरू करने का फैसला किया।
केन्द्र सरकार ने गत मार्च 2015 को घोषणा की कि उसने सार्वजनिक क्षेत्र के सात ऐसे उपक्रमों को बंद करने का निर्णय लिया है जिन्हें पटरी पर लाने की कोई संभावना नहीं है। लगभग 3,139 करोड़ रुपए का संचित घाटा दिखाने वाले ये सात उपक्रम- एचएमटी बियरिंग्स, तुंगभद्रा स्टील प्रोडक्ट्स, हिन्दुस्तान फोटोफिल्म्स, एचएमटी वॉचेज, एचएमटी चिनार वॉचेज, हिन्दुस्तान केबल्स और स्पाइसेज ट्रेडिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड हैं।
भाजपा के वरिष्ठ नेता और सांसद श्री आर.के. सिन्हा कहते हैं कि निर्विवाद रूप से कुछ पीएसयू वक्त के साथ नहीं चल सके, पर कई शानदार काम कर रहे हैं। बेशक,ये देश की आर्थिक गतिविधियों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। 1947 के बाद बुनियादी वर्षों में हमारी अर्थव्यवस्था के औद्योगीकरण की जिम्मेदारी में उन्होंने बहुत बड़ा हिस्सा संभाला और वे आज भी राष्ट्र निर्माण की प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण बने हुए हैं।
अच्छी बात यह है कि सरकार देश में सार्वजनिक क्षेत्र को सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार का नजरिया स्पष्ट है कि हमारी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की मांग पूरी करने के लिए सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रों को मिलकर और एक दूसरे के पूरक के रूप में काम करने की जरूरत है। हमारे देश को सार्वजनिक एवं निजी खासतौर से ढांचागत क्षेत्र में भारी मात्रा में निवेश की जरूरत है। खासतौर पर ऐसे समय सार्वजनिक निवेश की जरूरत है जब देश मुश्किल वैश्विक माहौल का सामना कर रहा है तथा विविधतापूर्ण घरेलू वृद्धि की उम्मीद कर रहा है।
एक राय यह भी है कि सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में निवेश मुख्य रूप से विनिर्माण, खनन, बिजली एवं सेवाओं में केंद्रित है। इन्हें विनिर्माण क्षेत्र में भी ज्यादा बेहतर कार्य करने की जरूरत है। यही नहीं, इन्हें अपनी जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में विनिर्माण क्षेत्र के हिस्से को वर्तमान 15 प्रतिशत के असंतोषजनक स्तर से बढ़ाना चाहिए।
हुआ तगड़ा सुधार भी
सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम पुनर्संरचना कार्यालय वर्ष 2004 में बनाया गया था तथा तब से केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के 43 उपक्रमों के जीर्णोद्धार के प्रस्तावों का अनुमोदन किया गया है। बेहतर बात यह है कि उनमें से केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के 24 उपक्रम मुनाफा कमाने लगे हैं तथा 13 में क्रांतिकारी बदलाव हो चुका है और इसलिए वे तीन या अधिक वर्ष से निरंतर मुनाफा कमा रहे हैं। तेजी से बदलाव के इस दौर में प्रतिस्पर्द्धा में टिके रहने के लिए केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को कॉरपोरेट सुशासन, रणनीतिक नियोजन, अनुसंधान एवं विकास तथा गुणवत्ता नियंत्रण पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। सरकार को भी उन्हें अपेक्षित स्वायत्तता देनी होगी।
महारत्न
महारत्न का खिताब पाने की योग्यता के लिए एक कंपनी का वर्ष में औसत कारोबार 20,000 करोड़ रुपए होना चाहिए। महारत्न कंपनियां अब अपनी परियोजना के कुल मूल्य के 15 फीसद हिस्से तक निवेश करने के लिए मुक्त होंगी, परंतु यह निवेश 5,000 करोड़ रुपए की अधिकतम सीमा से अधिक नहीं होगा।
नवरत्न
नवरत्न का खिताब सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (पीएसयू) को 1,000 करोड़ या एक परियोजना में उसके कुल मूल्य का 15 फीसद तक बिना सरकारी मंजूरी के निवेश करने की क्षमता प्रदान करता है। एक साल में ऐसी कंपनियां कुल मूल्य का 30 फीसद तक खर्च कर सकती हैं परंतु यह 1,000 करोड़ रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिए। ये कंपनियां संयुक्त उद्यम, गठबंधन और विदेशी सहायक के रूप में प्रवेश का भी लाभ उठाती हैं।
मिनी रत्न
मिनीरत्न श्रेणी का खिताब पाने के कंपनी को पिछले तीन वर्षों में लगातार लाभ कमाना चाहिए, इन तीन वर्षों में से किसी एक में कम से कम 30 करोड़ रुपए या इससे अधिक का पूर्व कर लाभ प्राप्त होना चाहिए।
फौलादी लक्ष्य
सेल (स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया)
सेल भारत में सबसे बड़ी इस्पात निर्माता कंपनी है। इस कंपनी का कारोबार 50,627 करोड़ रुपए है और यह देश में लाभ कमाने वाली 7 शीर्ष कंपनियों में से एक है। देश के विभिन्न भागों में सेल के पांच एकीकृत इस्पात संयंत्र, तीन विशेष संयंत्र और एक सहायक इकाई हैं।
उपलब्धिां
यह कारोबार के हिसाब से देश में सार्वजनिक क्षेत्र की सबसे बड़ी 10 कम्पनियों में से एक है। सेल अनेक प्रकार के इस्पात के सामान का उत्पादन और उनकी बिक्री करती है। इनमें हॉट तथा कोल्ड रोल्ड शीटें और कॉयल, जस्ता चढ़ी शीट, वैद्युत शीट, संरचनाएं, रेलवे उत्पाद, प्लेट बार और रॉड, स्टेनलेस स्टील तथा अन्य मिश्र धातु इस्पात शामिल हैं।
सेल अपने पांच एकीकृत इस्पात कारखानों और तीन विशेष इस्पात कारखानों में लोहे और इस्पात का उत्पादन करती है।
कंपनी को भारत का दूसरा सबसे बड़ा लौह अयस्क उत्पादक होने का श्रेय भी प्राप्त है। इसके पास देश में दूसरा सबसे बड़ा खानों का जाल है।
सेल के व्यापक लम्बे तथा सपाट इस्पात उत्पादों की घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारी मांग है।
इस समय सेल के 2000 से अधिक डीलर हैं। इसका विशाल विपणन तंत्र देश के सभी जिलों में उच्च गुणवत्ता के इस्पात की उपलब्धता सुनिश्चित कर रहा है।
विकास और सेवा की लौ
वर्तमान में भारत दुनिया की तीन सबसे तेजी से बढ़ती हुई शीर्ष अर्थव्यवस्था वाले देशों में से एक है । भारत में विद्युत, इस्पात और सीमेंट जैसे प्रमुख बुनियादी उद्योगों के लिए कोयला महत्वपूर्ण निवेश है।
कोयला भारत की प्राथमिक वाणिज्यिक ऊर्जा जरूरतों का 52% पूरा करता है जो विश्व का 29% है, 66% के आसपास भारत में बिजली उत्पादन कोयले पर आधारित है।
चीन और संयुक्त राज्य अमरीका के बाद भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक देश हैं।
कोल इंडिया लिमिटेड व उसकी उपलब्धियां
सरकार द्वारा निजी कोयला खदानों को अधिगृहीत करने के साथ कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) एक संगठित सरकारी स्वामित्व वाले कोयला खनन कॉरपोरेट रूप में नवम्बर 1975 में अस्तित्व में आया था । पहले 79 मिलियन टन प्रतिवर्ष मामूली उत्पादन करने वाली सीआईएल आज दुनिया में अकेली सबसे बड़ी कोयला उत्पादक है ।
भारत के 8 राज्यों में फैले 81 खनन क्षेत्रों का संचालन करने वाला सीआईएल 7 पूर्ण स्वामित्व वाली कोयला उत्पादक सहयोगी कंपनियों का शीर्षस्थ निकाय है ।
मोजाम्बिक में 'कोल इंडिया अफ्रीकाना लिमिटाडा' नामक एक खनन कंपनी का स्वामित्व भी सीआईएल के पास है ।
कारखानों, अस्पताल इत्यादि जैसी 200 अन्य स्थापनाओं का प्रबंधन भी सीआईएल करती है। इसके 26 तकनीकी एवं प्रबंधन प्रशिक्षण संस्थानों और 102 प्राविधिक प्रशिक्षण संस्थान केन्द्र भी हैं ।
अप्रैल 2011 में सीआईएल को महारत्न कंपनी का दर्जा प्रदान किया गया ।
भारत के कुल कोयला उत्पादन का लगभग 81.1% उत्पादन सीआईएल करती है
भारत में जहां प्राथमिक वाणिज्यिक ऊर्जा का लगभग 52% कोयले पर निर्भर है, कोल इंडिया अकेले प्राथमिक वाणिज्यिक ऊर्जा आवश्यकता का 40 प्रतिशत तक पूरा
करता है।
सीआईएल का लगभग 74% भारतीय कोयला बाजार पर नियंत्रण है।
भारत में 86 कोयला आधारित तापीय विद्युत संयंत्रों में से 82 को आपूर्ति करता है ।
देश हित में योगदान
पूरी तरह से सुसज्जित 5835 बिस्तरों वाले 86 अस्पतालों के माध्यम से कर्मचारियों, उनके परिवारों और स्थानीय जनता को चिकित्सा सेवा प्रदान की जाती है ।
सीआईएल अपने कार्य क्षेत्र के दूरस्थ कोनों में लगभग 2.3 लाख आबादी के लिए पीने का पानी प्रदान करती है ।
विभिन्न श्रेणियों के 536 विद्यालयों को सहायता दी जाती है।
पर्यावरण की देखभाल
कोयला खनन के सहज दुष्प्रभावों में भूमि और पर्यावरण का पतन शामिल है । सीआईएल ने खनन गतिविधियों के प्रभाव के कारण होने वाले पर्यावरण के नुकसान को दूर करने के लिए लगभग 32,000 हेक्टेयर क्षेत्र में वनीकरण किया है।
'क्लीन एंड ग्रीन' कार्यक्रम के एक भाग के रूप में सीआईएल द्वारा, जहां भी भूमि उपलब्ध है वहां बड़े पैमाने पर पौधारोपण किया जाता है।
अभी तक सीआईएल 7 करोड़ से ज्यादा पेड़ लगा चुकी है।
ऊर्जा अपार
बीएचईएल आज भारत में ऊर्जा संबंधी मूलभूत संरचना क्षेत्र में विशालतम इंजीनियरिंग एवं विनिर्माण उद्यम है। बीएचईएल की स्थापना हुए 40 वर्ष से अधिक समय बीत चुका है, जिसने भारत में देशी भारी विद्युत उद्योग को जन्म दिया।
उपलब्धियां
कंपनी 1971-72 से निरन्तर लाभ अर्जित कर रही है और 1976-77 से लाभांश का भुगतान कर रही है।
बीएचईएल 30 प्रमुख उत्पाद समूहों के अंतर्गत 180 से अधिक उत्पादों का निर्माण करता है और विद्युत उत्पादन एवं ट्रांसमिशन उद्योग, परिवहन, दूरसंचार, अक्षय ऊर्जा जैसे भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों की आपूर्ति है।
बीएचईएल ने विश्व के छह महाद्वीपों के 76 देशों में अपनी पहचान बनाई है। इस पहचान में बीएचईएल के उत्पादों और सेवाओं की पूरी श्रृंखला
शामिल है।
बीएचईएल ने फास्ट-ट्रैक आधार पर परियोजनाओं को पूरा करने में अपनी क्षमता को सिद्ध किया है। बीएचईएल ने विभिन्न क्षेत्रों की अन्य भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं को सफलतापूर्वक पूरा करने में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है चाहे वह 'कैप्टिव पावर' हो, यूटिलिटी विद्युत उत्पादन हो या तेल क्षेत्र हो।
घर-घर उपलब्धता
गेल इंडिया लिमिटेड यानी गैस ऑथोरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (भारतीय गैस प्राधिकरण लिमिटेड) गेल का गठन अगस्त 1984 में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अधीन केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (पीएसयू) के रूप में हुआ था । यह विश्व की सबसे बड़ी अंतरराज्यीय प्राकृतिक गैस पाइपलाइनों में से एक है । मूल रूप से 1800 कि.मी. लंबी इस पाइपलाइन का निर्माण 1700 करोड़ रुपए की लागत से हुआ था और इसने भारत में प्राकृतिक गैस बाजार के विकास की नींव रखी थी।
उपलब्धियां
वैश्विक बनने तथा विश्व में अपनी उपस्थिति में विस्तार करने की नीति के तहत गेल ने अपने पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी, गेल ग्लोबल (सिंगापुर) पीटीई की सिंगापुर में स्थापना की है ताकि विदेशों में एलएनजी एवं पेट्रोरसायन सहित व्यापार के अवसरों का लाभ उठाया जा सके ।
गेल, मिस्र में फेयम गैस कंपनी (एफजीसी) एवं नेशनल गैस कंपनी (नेटगैस) नामक दो खुदरा गैस कंपनियों में भागीदार भी है।
गेल ने चीन में शहर गैस एवं सीएनजी कारोबार में काम कर रही चायना गैस होल्डिंग लिमिटेड (चायना) गैस के साथ मिलकर समान भागीदारी में एक संयुक्त उद्यम कंपनी-गेल चायना गैस ग्लोबल इनर्जी होल्डिंग्स लिमिटेड गठित की है जो मुख्य रूप से चीन में गैस क्षेत्र में अवसरों पर काम करेगी।
गेल का गठन
1984 में गेल का गठन हुआ। वर्ष 1987 में एचवीजे (हजीरा-विजयपुर-जगदीशपुर) प्राकृतिक गैस पाइपलाइन प्रारंभ की गई। वर्ष 1997 में भारत सरकार ने गेल को नवरत्न का दर्जा दिया। वर्ष 1998 में दिल्ली में आवास, परिवहन क्षेत्र एवं व्यावसायिक उपभोक्ताओं को गैस की आपूर्ति हेतु इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड (आईजीएल) का गठन किया गया।
वर्ष 2001 में विश्व की सबसे लंबी और भारत की प्रथम अंतरराज्यीय 1269 किलोमीटर लंबी जामनगर-लोनी एलपीजी पाइपलाइन प्रारंभ की गई। वर्ष 2010 मिस्र में प्रतिनिधि कार्यालय खोला गया।
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