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जम्मू-कश्मीर में सूचनाओं, जानकारियों का विकृतीकरण हुआ है और देश में जम्मू-कश्मीर के बारे में जानकारियों का अभाव है। जम्मू-कश्मीर को लेकर कुछ ठीक करना है तो सबसे पहले जम्मू-कश्मीर को लेकर शैक्षणिक काम करने की आवश्यकता है। दीनदयाल शोध संस्थान में डॉ. ऋतु कोहली द्वारा लिखित पुस्तक ‘डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी और कश्मीर समस्या’ के लोकार्पण के अवसर पर ये विचार राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के सह सम्पर्क प्रमुख श्री अरुण कुमार ने प्रकट किये।
श्री अरुण कुमार ने स्पष्ट किया कि महाराजा हरि सिंह ने एक दिन भी कश्मीर को स्वतंत्र देश के रूप में नहीं रखना चाहते थे। विलय के लिए वे देश की आजादी से कई महीने पहले से तैयार थे।
डॉ. मुखर्जी ने कश्मीर पर जिम्मेदार भूमिका निभाते हुए पत्र व्यवहार किए, बार-बार बातचीत का प्रयास किया। उन्होंने सर्वदलीय बैठक, शेख अब्दुल्ला को बुलाने, प्रजा परिषद् को बुलाने के आठ महीने तक प्रयास किए आखिर में डॉ. मुखर्जी को आंदोलन के मार्ग पर जाना पड़ा।
गुजरात के राज्यपाल डॉ. ओम प्रकाश कोहली ने कहा कि व्यक्तियों के आग्रह और दुराग्रहों के कई दूरगामी परिणाम होते हैं। जवाहरलाल नेहरू का दुराग्रह तो था महाराजा हरिसिंह के साथ और आग्रह था शेख अब्दुल्ला के साथ। शेख के साथ उनके अति आग्रह और महाराजा के साथ उनकी दुराग्रह की गांठ ने जम्मू-कश्मीर के प्रकरण को उलझाने में बड़ी भूमिका निभाई।
जम्मू-कश्मीर के उपमुख्यमंत्री डॉ़ निर्मल सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि इतिहास लगातार निर्मित होने वाली प्रक्रिया है, तथा अपना रास्ता स्वयं लेता है। लेकिन जिस प्रकार से भारत का इतिहास लिखा गया विशेषकर जम्मू-कश्मीर का उसमें खास तरह की सोच लोगों में डालने की कोशिश की गई कि जम्मू-कश्मीर पूर्णत: भारत का अंग नहीं है।
पुस्तक की लेखिका डॉ. ऋतु कोहली ने कहा कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पहचान एक बहुआयामी व्यक्तित्व के रूप में है। वे शिक्षाविद् थे, व्यावहारिक राजनीतिज्ञ थे, प्रखर राष्टÑवादी थे, राष्टÑीय एकता के प्रति समर्पित थे, कुशल सांसद थे और साम्प्रदायिक राजनीति से लोहा लेने वाले वीर थे।
लोकार्पण कार्यक्रम का संचालन श्री प्रभात कुमार ने किया। दीनदयाल शोध संस्थान के प्रधान सचिव श्री अतुल जैन, श्री भोलानाथ व श्री विष्णु गुप्त ने मंचासीन अतिथियों का स्वागत किया। प्रतिनिधि
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