त्याग-तपस्या की प्रतिमूर्ति
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त्याग-तपस्या की प्रतिमूर्ति

by
Dec 21, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 21 Dec 2015 10:55:30

अंक संदर्भ- 29, नवम्बर, 2015
आवरण कथा 'पुनर्जागरण के पुरोधा' से स्पष्ट होता है कि हिन्दूधर्म के अग्रदूत स्व. अशोक सिंहल आज हम सभी के बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कर्मशीलता, ध्येयनिष्ठा और अपने धर्म के प्रति संवेदनशीलता का उदात्त उदाहरण देश को सदा प्रेरणा देता रहेगा। देश के हिन्दुओं में अपने धर्म के प्रति सम्मान भाव जगाने का जो काम अशोक जी ने किया उस कार्य के लिए यह समाज हमेशा उनका ऋणी रहेगा। उन्होंने देश ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में हिन्दुत्व को प्रतिस्थापित करने का अभूतपूर्व काम किया। नमन-वंदन ऐसे कर्मशील और अनुशासनप्रिय योद्धा को।
—पवन जैन, जयपुर (राज.)
ङ्म     हिन्दू समाज को नई दिशा देने का कार्य स्व. अशोक सिंहल ने किया। विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठन को देश ही नहीं विश्व के हिन्दुओं के दिलों में बसाने काम भी अशोक जी ने किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जो आज वटवृक्ष बन चुका है की छांव में इस महामानव ने समाज के लिए अपना संपूर्ण जीवन न्योछावर कर दिया। आज हिन्दू समाज के लिए वह किसी देवतुल्य संज्ञा से कम नहीं हैं। हिन्दू समाज के इस नायक के जाने के बाद भी वे सदैव हिन्दुओं के हृदयों में बसे रहेंगे और पीढ़ी दर पीढ़ी लक्षित जीवन पथ पर चलने की प्रेरणा देते रहंेगे।   
—उमेदुलाल 'उमंग', पटूड़ी, टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड)
ङ्म     राम नाम का दीपक लेकर जो महामानव करोड़ों हृदय में वास करते रहे वह आज हम सभी के बीच नहीं हैं। लेकिन उनके द्वारा किए गए दिव्य कार्य हिन्दुओं के लिए सदा मार्गदर्शन का कार्य करते रहेंगे।  उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम सभी उनके चिंतन, संवाद और आचरण को आत्मसात कर भव्य राममंदिर के निर्माण के उनके संकल्प को पूरा करें। अशोक जी ने अपने संपूर्ण जीवन को हिन्दू समाज की नींव को मजबूत करने और  हिन्दू समाज को कैसे उच्च कोटि का बनाया जाए। इसके लिए विभिन्न प्रकल्पों के माध्यम से अनवरत कार्य किया।
—हरिहर सिंह चौहान, जंबरी बाग नसिया, इन्दौर (म.प्र.)
ङ्म     दिवंगत अशोक जी ने ही हिन्दुओं को सर उठाकर जीना सिखाया। हर मौके पर उन्होंने हिन्दुओं का सम्मान देश ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में बढ़ाया। उनके जाने से हिन्दू समाज को गहरी क्षति पहुंची है। उनके राम मंदिर के निर्माण के संकल्प को वर्तमान केन्द्र सरकार को पूरा करना चाहिए।
—रामदास गुप्ता, जनता मिल (जम्मू-कश्मीर)
ङ्म      हिन्दू समाज को एक सूत्र में बांधकर अशोक जी ने देश की एकता और अखंडता को बल प्रदान किया। कार्यकर्त्ताओं के प्रति उनका लगाव देखते ही बनता था। पूरे जीवनभर उन्होंने मां भारती के चरणों की सेवा की।
—डॉ. जसवंत सिंह, कटवारिया सराय (नई दिल्ली)
ङ्म     संपादकीय में ठीक ही लिखा गया है कि 'ऐसे विराट महामना के बारे में लिखने को शब्दसागर भी थोड़ा पड़ जायेगा।'  यह बिलकुल सत्य बात है। अशोक जी के सादगीपूर्ण जीवन से हम सभी को सीख लेनी होगी।     
    —बी.बी.तायल, विकासपुरी (नई दिल्ली)
सहिष्णुता का ढोंग
हाल ही में आमिर खान ने अपनी पत्नी की आड़ में असहिष्णुता पर आपत्तिजनक बयान देकर यह जता दिया कि वह भी उन चंद लोगों में शामिल हैं, जो मौजूदा केन्द्र सरकार के घोर विरोधी हैं। आमिर को यह दर्द आज ही क्यों सताने लग गया? 18 महीने पहले की घटनाओं पर उनका दर्द क्यों नहीं छलका? असल में एक साजिश के तहत कुछ लोगों द्वारा मौजूदा केन्द्र सरकार का विरोध किया जा रहा है, ताकि मोदी सरकार की छवि जो निरंतर विश्व में निखरकर आ रही है वह धूमिल हो जाये। उन्होंने भारतीय समाज की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है।
                   —डॉ. टी.एस.पाल, चंदौसी, संभल (उ.प्र.)

ङ्म     कथित साहित्यकारों द्वारा सम्मान वापसी की घटना एक षड्यंत्रपूर्ण कार्य है। जिन वामपंथियों द्वारा आज यह किया जा रहा है इससे पहले की घटना पर उनका मंुह क्यों सिला रहा?  
—गोकुल चन्द्र गोयल, सवाई माधोपुर (राज.)
ङ्म     बुद्धिजीवी कहलाने वाले लेखक जब अपना पुरस्कार लौटा रहें हैं तो उन्होंने अपनी अंतरात्मा से एक बार पूछा कि उन्हें यह पुरस्कार उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए दिया गया था या फिर किसी और कारण से? जिन साहित्यकारों से उम्मीद होती है कि वे सच को लिखेंगे और समाज के सामने लाएंगे लेकिन उन्होंने भी तुच्छ स्वार्थ के लिए सियासत में रोटियां सेंकना ठीक समझा। क्या असहिष्णुता की आड़ में केन्द्र सरकार को घेरना इन कथित मुट्ठीभर बुद्धिजीवियों को शोभा दे रहा है? इन्होंने किसी और का असम्मान किया हो या नहीं लेकिन साहित्य का जरूर असम्मान  किया है।
—राममोहन चन्द्रवंशी, विट्ठल नगर, हरदा (म.प्र.)  
ङ्म     असहिष्णुता व विचाराभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन का सहारा लेकर जिस प्रकार देश की संस्कृति के विरुद्ध षड्यंत्र रचा जा रहा है वह बिलकुल उचित नहीं है। कुछ लेखकों, कलाकरों एवं कथित बुद्धिजीवियों का एक वर्ग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता को सहन नहीं कर पा रहा है और केन्द्र सरकार को घेरने में जुटा हुआ है। असल में कांग्रेस को मिली राजनीतिक हार से खीझ खाए हुए उनके नेताओं ने साहित्य जगत में अपने द्वारा तैयार किए गए लोगों को इस मौके के लिए           इस्तेमाल किया।     —रमेश कुमार मिश्र, कान्दीपुर (उ.प्र.)
ङ्म     हताश विपक्ष को जब कोई मुददा नहीं मिला तो वह असहिष्णुता का मुद्दा छेड़कर देश में अशान्ति का वातावरण बना रहा है। कांग्रेस राज मंे जिन लेखकों, साहित्यकारांे को साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कार मिले थे, अब वे उन्हीं के कहने पर लौटा रहे हैं। विपक्षी दल नहीं चाहते कि केन्द्र सरकार अपने कार्यकाल में सही ढंग से कार्य करे। लेकिन क्या इन साहित्यकारांे व लेखकों की आत्मा उस समय पूरी तरह से सोयी हुई थी, जब कश्मीर से हिन्दुआंे को खदेड़ा गया और उनकी हत्या की गई? असल में सरकार को बदनाम करने के लिये सुनियोजित ढंग से यह अभियान चल रहा है। देश की जागरूक जनता इनकी चालों को समझे और इनके बहकावे में न आए।
 — दिनेश गुप्ता, ़पिलखुवा (उत्तर प्रदेश)
अतुलनीय संस्कृति
आज कुछ लोग भारतीय संस्कृति और परंपरा को रूढि़वादी बताकर उन्हें समाप्त करने की वकालत करते हैं। जबकि वे नहीं जानते कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति में वे सभी सूत्र विद्यमान हैं, जो जीवन के लिए अतिउपयोगी हैं। उत्कृष्ट खान-पान, वेशभूषा और रीति-रिवाजों से अलंकृत, सहिष्णुता, आचरण तथा बंधुभाव जैसे उच्च मानवीय गुणों से पगी हुई हमारी संस्कृति आज भी देश के लिए ही नहीं बल्कि विश्व के लिए प्रेरणास्रोत है।     
    —मधुसूदन अग्रवाल, गोंदिया (महा.)
झूठा इतिहास
लेख 'तथ्यों पर कहीं नहीं टिकता टीपू' ऐसे क्रूर शासक की कहानी है, जिसे इतिहास भुला नहीं सकता। इस्लाम ने अपने शासनकाल में हिन्दुओं का सदैव दमन ही किया। मठ-मंदिरों के ध्वंस से लेकर कन्वर्जन तक किया। लेकिन वहीं सनातन धर्म ने सदा दुनिया को दया, करुणा और मानवता का पाठ पढ़ाया। सबके सुख की कामना करते हुए चलना और सबको उस परमपिता परमात्मा का ही अंश मानना इसका स्वाभाविक गुण है। लेकिन फिर कुछ तथाकथित इतिहासकारों द्वारा टीपू जैसे क्रूर मुगल शासकों का महिमामंडन किया गया। आज भी इतिहास इन्हीं कुचक्रों से भरा पड़ा है।
    —मनोहर मंजुल, पिपल्या-बुजुर्ग (म.प्र.)
 पुरस्कृत पत्र
मानवता के दुश्मन
ये विडम्बना ही है कि जिहादी आतंकवाद से पीडि़त होते हुए भी आज विश्व का एक बहुत बड़ा गैर इस्लामी वर्ग, इस्लाम के प्रति सहानुभूति रखता है। लेकिन जिस मजहब की नींव ही अविद्या, हिंसा पर रखी हो वह मानवता को कष्ट के और दे ही क्या सकता है! विश्व को इस्लाम की विचारधारा से अवगत कराने की आज अत्यंत आवश्यकता है, ताकि इस्लाम से सहानुभूति रखने वाले भोलेभाले लोग सजग हो जाएं। ये भोलेभाले लोग नहीं जानते कि इनकी अनभिज्ञता और तटस्थता अप्रत्यक्ष रूप से जिहादियों को बल प्रदान करती है। आज विश्व को सर्वप्रथम इस मानवता विरोधी मानसिकता के नैतिक आधार को ध्वस्त करने के लिए एकजुट होना चाहिए। यूरोप तो सिर्फ कुछ दशकों से ही इस्लामी आतंक से परिचित हुआ है, लेकिन भारतवासी तो हजारों वषोंर् से इस आतंक से जूझते आ रहे हैं। लेकिन अब समय की यही मांग है कि हम पक्षपाती इतिहास को तिलांजलि देकर मानवता विरोधी फिरकों से लड़े और समाज को इनके कुकृत्यों से परिचित करायें। इस्लाम ने जो 'शान्ति का मजहब' का छद्म आवरण ओढ़ रखा उसे आज संपूर्ण दुनिया देख रही है। समाज को यह भी पता होना चाहिए कि हमारे पूर्वजों ने किन प्रलयंकारी यातनाओं से पीडि़त होकर इस्लाम ग्रहण किया था। मोहम्मद बिन कासिम से लेकर बहादुरशाह जफर तक और वर्तमान में मोहम्मद अली जिन्ना से लेकर अब तक के ओवैसी बंधुओं तक का मुस्लिम नेतृत्व इस्लामिक मान्यताओं और अपने कट्टरपंथी होने का प्रमाण दे रहा है। निकट भूतकाल में विभाजन के दौरान और ढाई दशक पूर्व कश्मीर का नरंसहार हमें याद रखना चाहिए और इसके प्रामाणिक तथ्य खुलेरूप में समाज के सामने रखने चाहिए ताकि मानवता की दुहाई देने वाले हमारे समाज का नवपठित वर्ग इस्लाम का असली चेहरा देख और जान सके। वे समझ सकें कि वह चाहे कितना ही मानवतावादी बनने की कोशिश क्यों न करें पर इस्लाम की दृष्टि में वह काफिर ही हैं और जिहादियों के लिए एक शिकार हैं।
—अंकुर अरोड़ा
1591/21, आदर्श नगर
रोहतक (हरियाणा)   
झंुझलाहट
कांग्रेस के कोष से, कर्जा दिया अपार
सम्मन आये कोर्ट से, तो करते तकरार।
तो करते तकरार, हाजिरी वहां लगाओ
अपनी सारी बात, वहां जाकर बतलाओ।
कह 'प्रशांत' जो हंगामा करते सड़कों पर
उनके मन में बैठा है न्यायालय का डर॥   
                                             -प्रशांत

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