इस्लामिक स्टेटएक चुनौती, एक अवसर
July 12, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

इस्लामिक स्टेटएक चुनौती, एक अवसर

by
Dec 14, 2015, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 14 Dec 2015 11:54:38

अच्छे और महान नीतिज्ञ वही होते हैं जो हरेक चुनौती का धीरतापूर्वक सामना ही न करें, बल्कि किसी चुनौती को अवसर में बदल लें। आज इस्लामिक स्टेट की परिघटना ने विश्व के नीतिज्ञों को वही चुनौती और अवसर प्रदान किया है। गैर-मुसलमानों और उदार मुसलमानों, दोनों के लिए।
विशेषकर उन मुसलमानों के लिए जो विवेकशील हैं, जिन्होंने मजहबी सूत्रों के सामने अपनी बुद्धि और विचारशीलता को पूरी तरह बंद नहीं कर रखा है। वे इस्लामिक स्टेट के विचार, कार्य और योजनाओं का मूल्यांकन कर वह कार्य आरंभ कर सकते हैं, जिसकी लंबे समय से प्रतीक्षा हो रही है। जिसे, चाहे या अनचाहे, ईसाइयत ने चार सौ वर्ष पहले कर लिया। जिस कार्य और युग को 'रिफॉर्मेशन', 'रेनेसां' और 'एंलाइटनमेंट' की उदात्त संज्ञाएं मिलीं वह कार्य था-चर्च की रूढि़वादिता तथा उस पर आधारित राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था का आमूल सुधार।
ध्यान दें, उस सुधार के बाद ही यूरोप की सारी सामाजिक, शैक्षिक, वैज्ञानिक उन्नति हुई। उस से पहले, लगभग हजार वर्ष तक यूरोप उसी तरह अंधकार और ठहराव से ग्रस्त रहा, जैसे अभी सदियों से मुस्लिम विश्व है। इस्लामिक स्टेट ने उन मुसलमानों को आइना दिखाया है, जो इस्लाम, राजनीति और विचारधारा के प्रति गड्ड-मड्ड  दृष्टिकोण रखते रहे हैं। इस ने कठोरतापूर्वक सारे गड्ड-मड्डपन को खत्म करने का लक्ष्य या चुनौती रखी है। इस्लामी स्टेट का लक्ष्य है-पैगम्बर मुहम्मद के विचारों, निर्देशों को अक्षरश: और छोटी-से-छोटी तफसील में भी लागू करना। ऐसा करते हुए इस्लाम की उन परिकल्पनाओं को साकार करना जो खिलाफत, अखीरत और कयामत से संबंध रखती हैं। इस्लामिक स्टेट की संपूर्ण कार्य-नीति इसी उद्देश्य से संचालित है, इसे उन के सिद्धांत या व्यवहार, वचन और कर्म दोनों में लगातार देखा जा रहा है। यह लक्ष्य व उद्देश्य विवेकशील मुसलमानों के लिए ऐसी चुनौती है, जिस से वे आंखें नहीं चुरा सकते!
अब तक अनेक मुस्लिम विद्वान और नेता कहते रहे हैं कि अल कायदा, लश्करे-तोयबा, हिज्बुल मुजाहिदीन, हमास, तालिबान, इंडियन मुजाहिदीन जैसे अनगिनत जिहादी संगठन जो सब काम करते रहे हैं, वह 'सच्चा इस्लाम' नहीं है। यद्यपि वैसे नेता व विद्वान उन संगठनों का किसी न किसी तरह राजनीतिक बचाव भी करते रहे हैं। यह कहकर कि वे सब तो अमरीकी, इस्रायली या इस-उस की नीतियों, विचारों, कदमों आदि की प्रतिक्रियाएं हैं। यानी अल कायदा, लश्करे तोयबा या देवबंदी तालिबान आदि मूल दोषी नहीं हैं। इस आधे-अधूरे वाली चतुराई में वास्तविक इस्लाम वाली बात गड्ड-मड्ड हो जाती थी।
अब इस्लामिक स्टेट ने इस दोहरेपन को खत्म करने का नोटिस दे दिया है। उस ने सब से पहले, और सर्वाधिक उत्साह से, उन मुसलमानों को निर्ममतापूर्वक खत्म करना शुरू किया है, जिन्हें वह 'इस्लाम-विरुद्ध' (एपोस्टेट, काफिर) हो जाने वाला मानता है। यह 'तकफीर' का सिद्धांत है, जिसे वे अपने हर काम की तरह, अपनी घोषित 'प्रोफेटिक मेथोडोलॉजी' से कर रहे हैं। अर्थात् वह तरीका इस्लाम में अखीरत (दुनिया के खत्म होने) की भविष्यवाणी तथा साथ ही, हरेक काम करने में पैगम्बर मुहम्मद के निर्देशों, तरीकों के उदाहरण मात्र से प्रेरित है।
अब यह ऐसा ठोस लक्ष्य और आदर्श है, जिस में बीच-बीच, आधे-अधूरे वाली, कुछ इस्लामी सैद्धांतिक में कुछ आधुनिक 'व्यावहारिक' बुद्धि लगाकर चलने वाली मुस्लिम राजनीति बेपर्दा हो गई है। जो इस्लामी कटिबद्धता के साथ-साथ यूरोपीय, अमरीकी जीवन की सुविधाजनक चीजों, संस्थानों और विचारों का भी लाभ उठाती और उपयोग करती रही है। जैसे, लोकतंत्र, चुनाव, सह-अस्तित्व आदि। इस्लामिक स्टेट ने इन सब को स्पष्टत: 'गैर-इस्लामी' कहकर उन मुसलमानों को इस्लाम-विरुद्ध यानी इस्लाम का दुश्मन घोषित किया है जिसके लिए 'प्रोफेटिक मेथोडोलॉजी' में एक ही सजा है- सजाए-मौत।
उसी तरह, तकफीर का सिद्धांत भी पैगम्बर के तरीके से उतना ही सीधा, बेलाग और निर्मम भी है। पैगम्बर मुहम्मद ने कहा था, यदि कोई मुसलमान दूसरे मुसलमान से कहता है कि 'तुम काफिर हो' तो दोनों में से एक जरूर सही है। इस का अर्थ हुआ कि दो में से एक अवश्य इस्लाम-विरोधी है और इसलिए मृत्यु-दंड का भागी है। यदि आरोप लगाने वाले ने ही गलत आरोप लगाया, तो दंड उस को मिलेगा, क्योंकि किसी पर काफिर होने का झूठा आरोप उतना ही गंभीर अपराध है। नहीं तो दूसरे को, जिस पर आरोप लगा। इस्लाम में काफिरी का दंड मौत है। इस्लामिक स्टेट इसी तकफीरी सिद्धांत को जम कर लागू कर रहा है और उस के निशाने पर पूरे अरब के वे सभी शासक और सत्ताधारी हैं जो पैगम्बर के बताए तरीकों के अलावा नियम, तरीके, संस्थान आदि चला रहे हैं। इस तरह देशों की सीमाएं, देश का संविधान बनाना, विविध गैर-शरीयत कानून, चुनाव लड़ना, संसद जैसी संस्थाएं, दूसरे देशों के साथ कूटनीतिक संबंध रखना, संयुक्त राष्ट्र आदि में भागीदारी – ये सब गैर-इस्लामी काम हैं, क्योंकि पैगम्बर मुहम्मद ने यह सब नहीं किया था, न ऐसे कामों की अनुशंसा की थी।
इस प्रकार, इस्लामिक स्टेट की पैगम्बरी मेथोडोलॉजी, यानी पैगम्बर के उदाहरण के अनुसार, अरब के लाखों मुसलमान और उन के नेतागण काफिरी के दोषी हैं, इसलिए मौत के हकदार हैं। सारे शिया, यजीदी, अहमदिया, आदि तो हैं ही, जिन्होंने मुहम्मद की बताई बातों में कुछ भी जोड़ने-सुधारने या अपनी ओर से कुछ भी अलग, नया करने की कोशिश की है। सुन्नियों में भी वैसे जिन्होंने हू-ब-हू उस सातवीं सदी वाले इस्लामी आचरण के अलावा कुछ भी स्वीकार किया। इस्लामिक स्टेट गंभीरतापूर्वक मान कर चल रहा है कि वह सातवीं सदी के इस्लाम को हू-ब-हू जीवंत कर रहा है। सऊदी अरब समेत किसी भी मुस्लिम देश को वह इस्लाम पर चलता हुआ नहीं मानता, क्योंकि वे सब पैगम्बर के निर्देशों को आधे-अधूरे या मिलावट करके मानते रहे हैं, जो काफिरी और दंडनीय है।
अत: इस्लामिक स्टेट को गलत मानने वाले दुनिया के करोड़ों मुसलमानों के सामने भी चुनौती है, और अवसर भी, कि वे इस्लाम की सचाई बेबाकी से परखें और अपना कर्तव्य तय करें। उस में ऐसे काम भी हैं जो पैगम्बर ने तो किए थे, उस के नियम भी दिए थे,  मगर जिसे आज करना अधिकांश मुसलमान उचित नहीं समझते। जैसे, काफिरों को गुलाम बनाना, उन की स्त्रियों, लड़कियों को जबरन अपने पास रखना, गुलाम खरीदना-बेचना आदि। यदि ये सब काम उचित नहीं, तो इसे केवल 'जमाना बदलने' के तर्क से दरकिनार करने में यह भी मानना होगा कि वह बात इस्लाम पर भी लागू है। दूसरे शब्दों में, इस्लाम 'सार्वभौमिक, सार्वकालिक, संपूर्ण सत्य है'-ऐसे पारंपरिक दावे के साथ-साथ इस्लामिक स्टेट को खारिज करना संभव नहीं है।  

पिछले एक वर्ष में स्पष्ट हो चुका है कि इस्लामिक स्टेट की वैचारिकता को इस्लाम की 'गलत समझ' का कोई ठोस प्रमाण नहीं दिया जा सका। बराक ओबामा से लेकर उलेमा के बयान भी केवल सरसरी बयान भर ही रहे। किसी ने कोई सटीक, प्रामाणिक प्रस्तुति नहीं दी, जिस से दिखे कि इस्लामिक स्टेट का फलां कार्य 'गैर-इस्लामी' है। काफिरों का सिर काटना, गुलामों का बाजार बनाना, खिलाफत घोषित करना, कुरैश वंश का खलीफा नियुक्त करना, राज्य-विस्तार करना, हरेक गैर-इस्लामी सत्ता को खारिज करना, गैर-इस्लामी सामग्री, किताबों, चिन्हों और सारी मूर्तियों, संग्रहालयों को जलाकर नष्ट करना, जिहाद का कौल दे कर दुनिया के मुसलमानों को खलीफा के प्रति वफादारी शपथ (बयाया) लेने को कहना, अखीरत की लड़ाई की तैयारी करना और उस में लड़ कर, मर कर जन्नत जाने की उत्कंठा पैदा करना आदि किसी बात में पैगम्बर के वचन या कर्म से भिन्नता नहीं है। वस्तुत:, ये सब मुहम्मद की सब से पुरानी जीवनियों से लेकर हदीसों और इस्लामी इतिहास की प्रसिद्ध किताबों में हजारों बार दुहराई गई मौजूद हैं।
इसीलिए, इस्लामिक स्टेट की बातों तो 'गैर-इस्लामी' कहना भाषणबाजी भर है। प्रमाण को महत्व देने वाले वैसा नहीं कह सकते। दुनिया भर से हजारों भटके युवा मुसलमान इस्लामिक स्टेट के प्रति आकर्षित होकर वहां जा रहे हैं। बर्बरतर, कट्टरता और बेखौफ हिंसा मचाना ही इस्लामिक स्टेट का आकर्षण है। सातवीं सदी वाला, पैगम्बर के समय का हू-ब-हू इस्लाम लागू करने का आकर्षण है। इस्लामिक स्टेट का आकर्षण उन्हीं मुसलमानों में है जो अक्षरश: 'पैगम्बर के अनुयायी होना और जन्नत में हूरों का सुख-भोग करना' चाहते हैं।
ठीक इसीलिए, जो मुसलमान इस्लामिक स्टेट के कायोंर् को ठुकराना चाहते हैं, उन के लिए यह मजहबी सांसत बन गयी है। उन्हें दिख रहा है कि या तो इस्लाम की कई मूल मान्यताओं को 'अव्यावहारिक' या 'अनुपयुक्त' कहना होगा, जिस का अप्रत्यक्ष अर्थ होगा कि पैगम्बर की सभी बातें अब लागू नहीं की जानी चाहिए या नहीं की जा सकतीं। सातवीं सदी के इस्लामी व्यवहार यानी खुद मुहम्मद के व्यवहार को प्रमाण मानने के बाद ऐसा कहना निस्संदेह उस में 'सुधार' करना है। जिसका अर्थ हुआ कि इस्लाम वैसा मुकम्मल, स्थाई, हरेक देश-काल में लागू किया जा सकने वाला सिद्धांत नहीं है। जब तक इस सचाई को खुल कर न स्वीकारें, तब तक इस्लामिक स्टेट से असहमत मुसलमान बात आगे नहीं बढ़ा सकते।
मगर, इसी अर्थ में इस्लामिक स्टेट की चुनौती सुधारवादी मुसलमानों के लिए अवसर भी है जो लोकतंत्र, समानता, स्त्री-पुरुष स्वतंत्रता, सेक्युलर शिक्षा, बहुपांथिकता आदि को अच्छी चीज समझते हैं। ऐसे मुसलमान अच्छाइयों और पैगम्बर के आदेशों में सामंजस्य बैठाना चाहते हैं। वे मानना नहीं चाहते कि यह सदैव संभव नहीं है। लेकिन अभी इस्लामिक स्टेट की 'प्रोफेटिक मेथोडोलॉजी' के खूनी अभियान ने उन्हें अवसर दिया है कि वे इस्लाम में सुधार की जरूरत खुलकर सामने रखें। अनुभव, इतिहास, बुद्धि विज्ञान और व्यवहार-सभी आधारों पर मुसलमानों को तैयार करें कि जैसे उन के 'अहले-किताब' भाइयों, यानी जीसस के अनुयायियों ने 'सोलहवीं-सत्रहवीं सदी में अपने रिलीजियस विश्वासों में सुधार कर अपनी व दूसरों की सुख-शान्ति का मार्ग प्रशस्त किया', उसी तरह मुहम्मद साहब के अनुयायियों को भी ठंडे दिमाग और खुले हृदय से वही करना होगा। इस के सिवा कोई और उपाय नहीं है। जब तक वे मध्यकालीन व्यवहार को अटल कानून मानेंगे, वे इस्लामिक स्टेट का विश्वसनीय विरोध कर ही नहीं सकते।
वस्तुत: विगत चार दशकों से विविध जिहादी संगठनों के प्रति इसी ढुल-मुल रवैये ने उदारवादी मुसलमानों को असमंजस और अटपटी स्थिति में डाले रखा है। उन्हें मानना कठिन लगता था कि जिहादियों की बातें अधिक इस्लाम-प्रमाणित हैं, चाहे उन का व्यवहार कुरूप, क्रूर, असह्य लगता है। अब तक मुस्लिम विद्वानों ने हजारहा कोशिशें कर लीं कि जिहादियों की निंदा करते हुए इस्लाम की श्रेष्ठता को बचाए रखें। यह बिल्कुल संभव नहीं, इसे इस्लामिक स्टेट ने निर्ममता से साफ कर दिया है। उदारवादी मुसलमानों को चुनना ही होगा। 'प्रोफेट मेथोडोलॉजी' को अस्वीकार करने में पैगम्बर के कई कायोंर्, विचारों, आदेशों को खारिज करना लाजिमी है। उनके किताबी भाइयों, यानी ईसाइयों, ने चार सदी पहले जो किया उस दिशा में उदारवादी मुसलमानों का कदम बढ़ाना बाकी  हंै।
इस के सिवा कोई चारा नहीं। पहला तो इसलिए, क्योंकि अन्यथा उन्हें इस्लामिक स्टेट की सत्ता सिद्धांत और व्यवहार, दोनों में स्वीकारनी होगी। दूसरे, क्योंकि तभी अरब और सारी दुनिया के मुसलमानों द्वारा उस स्वतंत्र खुशहाली पर चलने का रास्ता खुलेगा जो यूरोप, अमरीका में है। वह मुसलमानों को भी पसंद है, तभी दुनिया भर के तरक्कीपसंद मुसलमान वहीं का रास्ता पकड़ते हैं। अरब वाले भी उन सभी सुख-सुविधाओं का उपयोग करते हैं जो यूरोपियनों, अमरीकियों, जापानियों, चीनियों और भारतीयों ने पैदा की हैं। यानी काफिरों, बुतपरस्तों ने बनाई हैं। तब बुतपरस्तों की बनाई सभ्यता की सुख-सुविधा का उपभोग करने और सातवीं सदी के अरब पैगम्बर की हर चीज, हर बात को आदर्श मानने में जो अंतर्विरोध है, उस का विज्ञान-सम्मत, विवेकपूर्ण सामना करना ही उचित है। तीसरे, क्योंकि तभी दुनिया में मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच सहज संबंध की नींव बनेगी।
अभी वह संबंध असहज इसीलिए है क्योंकि जब-तब मुसलमानों पर इस्लामी कायदों की सवार्ेच्चता का दबाव पड़ता है और वे छल, फरेब, बनावट, लफ्फाजी का सहारा लेने को बाध्य होते हैं। कभी अपने को छलते हैं, कभी दूसरों को, प्राय: दोनों को। मगर नतीजा होता है कि संबंध सहज नहीं रहते। भारत और पाकिस्तान का संबंध इसी का उदाहरण है। उसी का उदाहरण है भारत के अंदर मुस्लिम-हिन्दू संबंध भी। जिस सेक्युलरिज्म को मुस्लिम नेता यहां हिन्दुओं पर थोपते हैं, ठीक उसी से खुद दस हाथ दूर रहते हैं। इस से संबंध सहज कैसे होंगे? दूसरों को सेक्युलर बनाने के लिए खुद सेक्युलर होना जरूरी है, इस मोटी सी सचाई से भारतीय मुसलमान कितने दूर हैं! भारत में सारी सामुदायिक, सांप्रदायिक समस्या की जड़ बस इतनी सी है। इसी के दूसरे रूप यूरोप, अमरीका में मुस्लिम-गैरमुस्लिम संबंधों में दिखते हैं।
इसीलिए, सभी कारणों से यह दुनिया भर के विचारशील मुसलमानों का दायित्व बन गया है कि वे इस्लाम में सुधार के लटके हुए कार्य को यथाशीघ्र संपन्न करें। इस्लामिक स्टेट की यही चुनौती और अवसर उन के लिए है।
गैर-मुसलमानों के लिए वही अवसर इन्हीं बातों को और भी अधिकारपूर्वक कहने और मुसलमानों को उस सुधार के लिए प्रेरित करने के लिए है। यह मुसलमानों को विचार करने हेतु आग्रह करने का अवसर है कि यदि उन्हें अपनी संतान, अपने समाज के भविष्य की चिन्ता है, तो इस में आने वाली बाधाओं को प्रामाणिक रूप से देखना-समझना होगा। अभी तक, मुसलमानों को उन के रहनुमाओं ने राजनीतिक खेलों और अपने अज्ञान, दोनों का शिकार बनाया है। उन्हें बताया है कि उन की दुर्दशा का कारण हिन्दू, ईसाई या अमरीकी, इस्रायली या शिया हैं या वहाबी या ये अथवा  वे नेता हैं। इसलिए इसे या उसे रास्ते से हटाकर ही वे तरक्की कर सकते हैं।  
मुसलमानों को यह कहा जाना चाहिए कि ऐसी तंग वैचारिकता ने ही उन्हें पिछड़ा, अशान्त, तबाह और झगड़ों का शिकार बनाया है। उन की मजहबी शिक्षाओं ने उन्हें अज्ञानी, अयोग्य और बदहाल बनाया है। इसलिए, यदि वे सचमुच तरक्की चाहते हैं तो उन्हें दुनिया का वास्तविक ज्ञान प्राप्त करना होगा। वह इस्लामी किताबों में नहीं है। विज्ञान और तकनोलॉजी ही नहीं, मानव इतिहास, दर्शन, मनोविज्ञान और संस्कृति का ज्ञान भी इस्लाम से पहले और बाद में, अनेकानेक गैर-इस्लामी स्रोतों में ही उपलब्ध है। यदि वे उपनिषदों, महाभारत, बुद्ध दर्शन, ग्रीक चिंतन से लेकर वाल्टेयर, रूसो, टॉल्सटाय आदि को विशुद्ध ज्ञान-भंडार के रूप में देखना आरंभ नहीं करेंगे तो सदैव पिछड़े रहेंगे। यही कारण है कि पिछले पचास साल से खरबों पेट्रो-डालरों की मिल्कियत के बावजूद मुस्लिम जगत एक भी ज्ञान-विज्ञान की पुस्तक न दे सका है, न दे सकेगा। उस से पहले की हालत तो और बदतर है, क्योंकि ज्ञान-विज्ञान, प्रकृति और समाज की सचाइयां, जीवन-मृत्यु के रहस्य, तत्व-दर्शन, शब्द और स्वर की शक्तियां आदि किसी मजहब की सीमाओं में बंधे नहीं हैं। जिस तरह बंद कमरे में, खुली हवा और प्रकाश के बिना शरीर स्वस्थ नहीं रह सकता उसी तरह मन-मस्तिष्क को किसी बंधे मतवाद में रखकर ज्ञान-लाभ संभव नहीं है। यही मुस्लिम विश्व के पिछड़े होने का मूल कारण है।
इन बातों पर पुनर्विचार करने के लिए मुसलमानों को कहना ही चाहिए। अभी तक प्राय: इसे उन की मजहबी संवेदना का ध्यान रखकर नहीं कहा जाता। पर यह एक बड़ी भूल रही। विचार करना मनुष्य का स्वभाव है। किसी बंदिश के कारण उसे रोका जाए, तो यह अस्वाभाविक परिणाम ही देगा। देता रहा है। यदि इस्लामी विचारधारा उपयुक्त है, तो उसे आलोचनात्मक विमर्श से गुजरने में भय नहीं होना चाहिए था। लेकिन यदि उसे भय है, जो उस के जन्म से ही केवल हर तरह की हिंसा, धमकी और प्रतिबंध का दबाव बनाने से दिखता है, तो ऐसी दुर्बल विचारधारा से बंधे रहने में क्या लाभ है?
आखिर मनुष्यों के समर्थन बल पर किसी पैगम्बर की सत्ता टिकी रहे, तो वह कैसा पैगम्बर? जो अपनी परिभाषा से ही सर्व-शक्तिमान है, उसे ठोक-बजा कर देखने में कोई हर्ज होना ही नहीं चाहिए। निस्संदेह, सभी पैगम्बर और सभी मजहब, सभी विषयों में, सभी समय, एक जैसे समर्थ या दुर्बल नहीं साबित हुए। लेकिन सचाई की कसौटी सार्वभौमिक कसौटी है। उसी तरह मानवीय विवेक की कसौटी भी सार्वभौमिक है। इसे ठुकराना स्वभाविक, स्वस्थ प्रवृत्ति नहीं है।
यह गैर-मुस्लिम विश्व का कर्तव्य है कि इस्लामी स्टेट के संदर्भ में मुसलमानों को सुधार की जरूरत पर सोचने का आग्रह करें। ऐसी परिघटनाएं इसीलिए चुनौती के साथ-साथ अवसर भी बन जाती हैं कि हम सचाई की दुर्निवार शक्ति को पहचान सकते हैं। दूसरों को भी उसे पहचानने में सहयोग दें। अज्ञान या अंधविश्वास के प्रति संवेदना रखना कभी हितकर नहीं रहा है।
ईसाइयों, हिन्दुओं और बौद्धों द्वारा उपर्युक्त बातें मुसलमानों को इसलिए भी कहनी चाहिए, क्योंकि गैर-मुस्लिम होने के कारण वे इस्लामी अतिक्रमण के जग-जाहिर शिकार रहे हैं। अत: उन्हें यह सब अपने अस्तित्व के लिए, आत्म-रक्षा के लिए भी कहने का अधिकार है, कर्तव्य भी है। अन्यथा इस्लामिक स्टेट देशों की कोई सीमा नहीं मानता! इस ठोस सत्य का स्मरण रहे। ताकत से सभी लड़ाइयां नहीं जीती जा सकतीं, इस का एक प्रत्यक्ष उदाहरण अफगानिस्तान भी है। अत: किसी को केवल बलपूर्वक हराने पर भरोसा रखना उचित नहीं। स्थाई होने के लिए नैतिक और वैचारिक विजय भी आवश्यक है।             

शंकर शरण

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

मतदाता सूची पुनरीक्षण :  पारदर्शी पहचान का विधान

दिल्ली-एनसीआर में 3.7 तीव्रता का भूकंप, झज्जर था केंद्र

उत्तराखंड : डीजीपी सेठ ने गंगा पूजन कर की निर्विघ्न कांवड़ यात्रा की कामना, ‘ऑपरेशन कालनेमि’ के लिए दिए निर्देश

काशी में सावन माह की भव्य शुरुआत : मंगला आरती के हुए बाबा विश्वनाथ के दर्शन, पुष्प वर्षा से हुआ श्रद्धालुओं का स्वागत

वाराणसी में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय पर FIR, सड़क जाम के आरोप में 10 नामजद और 50 अज्ञात पर मुकदमा दर्ज

Udaipur Files की रोक पर बोला कन्हैयालाल का बेटा- ‘3 साल से नहीं मिला न्याय, 3 दिन में फिल्म पर लग गई रोक’

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

मतदाता सूची पुनरीक्षण :  पारदर्शी पहचान का विधान

दिल्ली-एनसीआर में 3.7 तीव्रता का भूकंप, झज्जर था केंद्र

उत्तराखंड : डीजीपी सेठ ने गंगा पूजन कर की निर्विघ्न कांवड़ यात्रा की कामना, ‘ऑपरेशन कालनेमि’ के लिए दिए निर्देश

काशी में सावन माह की भव्य शुरुआत : मंगला आरती के हुए बाबा विश्वनाथ के दर्शन, पुष्प वर्षा से हुआ श्रद्धालुओं का स्वागत

वाराणसी में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय पर FIR, सड़क जाम के आरोप में 10 नामजद और 50 अज्ञात पर मुकदमा दर्ज

Udaipur Files की रोक पर बोला कन्हैयालाल का बेटा- ‘3 साल से नहीं मिला न्याय, 3 दिन में फिल्म पर लग गई रोक’

कन्वर्जन की जड़ें गहरी, साजिश बड़ी : ये है छांगुर जलालुद्दीन का काला सच, पाञ्चजन्य ने 2022 में ही कर दिया था खुलासा

मतदाता सूची मामला: कुछ संगठन और याचिकाकर्ता कर रहे हैं भ्रमित और लोकतंत्र की जड़ों को खोखला

लव जिहाद : राजू नहीं था, निकला वसीम, सऊदी से बलरामपुर तक की कहानी

सऊदी में छांगुर ने खेला कन्वर्जन का खेल, बनवा दिया गंदा वीडियो : खुलासा करने पर हिन्दू युवती को दी जा रहीं धमकियां

स्वामी दीपांकर

भिक्षा यात्रा 1 करोड़ हिंदुओं को कर चुकी है एकजुट, अब कांवड़ यात्रा में लेंगे जातियों में न बंटने का संकल्प

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies