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अंतत: पंजाबी कनाडा की संवैधानिक तौर पर मान्य भाषा बन ही गई। पाठक भली-भांति जानते हैं कि कनाडा में यह गौरव अब तक केवल अंग्रेजी और फ्रेंच भाषा को ही मिला था। अब अंग्रेजी कनाडा की पहली, फ्रेंच दूसरी और पंजाबी तीसरी संवैधानिक भाषा होगी। कनाडा में पंजाबी भाषा इतनी लोकप्रिय है कि वहां की सरकार को उसे यह स्वीकृति देनी पड़ी। कनाडा में रहने वाला कोई भी विदेशी हो उसे प्रतिदिन पंजाबी में कुछ न कुछ कहने और बोलने की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए कनाडा के अधिकांश नागरिक इस बात का आग्रह कर रहे थे कि पंजाबी को राजकीय भाषा के रूप में मान्यता मिलनी ही चाहिए। कनाडा स्थित पंजाबी बोलने वाला वर्ग केवल सरकार द्वारा स्थापित किए जाने वाले पंजाबी भाषा के विद्यालय और महाविद्यालयों से ही संतुष्ट नहीं था। उसका कहना था कि सरकारी प्रतिष्ठानों में पंजाबी सबसे अधिक लोकप्रिय है।
कनाडा की सामान्य जनता और साथ ही सरकारी प्रशासन में भी पंजाबी का उपयोग बहुत बड़े पैमाने पर होता है। इसलिए पंजाबी को संवैधानिक भाषा का रूप दे दिया जाए तो दिनचर्या के हर कामकाज में आसानी हो जाएगी। कनाडा सरकार ने इस मांग को स्वीकार कर लिया है। इसलिए वहां के समस्त भारतीय समाज को इस बारे में गर्व है। वहां रह रहे भारतीयों का कहना है कि कनाडा के विकास और प्रगति में पंजाबी भाषियों का जो योगदान है उसे सरकार ने भी मान लिया है।
भाषा और बोली मनुष्य को एक-दूसरे से जोड़ने का सशक्त माध्यम है। आज भी मानव सभ्यता के सामने यह सबसे बड़ा सवाल है कि इंसान ने इस धरती पर आकर सबसे पहला शब्द कौन-सा बोला होगा? इस सम्बंध में ऐसे ढेरों सवाल हैं जिनका जवाब आज तक नहीं मिला है। लेकिन इस बात को तो स्वीकार करना ही पड़ता है कि अपने जैसे इंसानों के बीच उसकी अभिव्यक्ति का माध्यम प्रथम तो सांकेतिक भाषा में ही हुआ होगा? लेकिन वह ज्यों-ज्यों सभ्य बनता गया होगा पहले उसने अक्षरों का उच्चारण किया होगा। जब लेखन प्रारम्भ किया होगा तो अक्षरमाला बनाई होगी और अगली कड़ी में उसने भाषा को जन्म दिया होगा। आज भी दो व्यक्ति जब एक जैसी बोली बोलने लगते हैं तो उनमें निकटता पैदा हो जाती है। बोली का प्रारम्भ तो पशुओं की बोली अथवा उनकी आवाज जैसा ही हुआ होगा, लेकिन उसका लेखन जिस अक्षरमाला से प्रारम्भ हुआ होगा वही सबसे पहले उसकी भाषा की नींव का पत्थर बना होगा।
कहा जाता है कि मनुष्य जब धरती पर आया उससे पहले अनेक पशु-पक्षी जन्म ले चुके होंगे। बोली के मसले पर तो हम कुछ न कुछ अनुमान लगा सकते हैं, लेकिन उसके लेखन की शुरुआत पर आज भी मानव इतिहास मौन है। बोली और भाषा नहीं होती तो मनुष्य सामाजिक प्राणी किस प्रकार बनता? इसलिए आज भी हर देश में उसकी भाषा को मातृभाषा कह कर ही पुकारा जाता है। बोली और भाषा का जन्म किस प्रकार हुआ उस पर सभी ग्रंथ मौन हैं। लेकिन इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हैं कि भारत की धरती पर जो प्रथम भाषा विकसित हुई थी वह केवल संस्कृत ही थी। इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि भारत की लगभग सभी भाषाएं अपनी मां के रूप में संस्कृत को ही मान्यता देती हैं। आज भी हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी और प्रादेशिक भाषाओं में संस्कृत का ही बोलबाला है। लेखन में भी लिपि के अस्तित्व पर संस्कृत का ही प्रभाव दिखाई पड़ता है।
भारतीय जहां भी गए अपनी बोली और अपनी भाषा लेकर गए। इसलिए विश्व में जहां कहीं कोई भारतीय बसता है वह अपने भूभाग यानी प्रदेश की भाषा को महत्व देता है। सूरीनाम, फिजी, बाली, मॉरीशस जैसे अनेक देश हैं, जहां हिन्दी को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। इन देशों में हिंदी ने अपनी जडें़ जमा ली हैं। वहीं इन देशों के जिन भागों में दक्षिण भारतीयों का प्रभाव है, वहां तमिल, तेलगू और मलयालम ने भी अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया है। उत्तर की भाषाओं में हिन्दी के पश्चात् सबसे अधिक प्रभाव पंजाबी ने जमाया है। पंजाबी समाज जहां गया अपने साथ अपनी पंजाबी भाषा भी ले गया।
उत्तरी अमरीका में इस समाज ने इतना वर्चस्व जमाया कि वहां भारतीयों की अच्छी-खासी संख्या है। मेहनती और समर्पित व्यक्तित्व के धनी होने के कारण पंजाबी बड़ी संख्या में कनाडा पहुंचे। वहां कौन-सा नगर अथवा खेत, खलिहान या कारखाना होगा, जहां पंजाबी न पहुंचे हों। सिखों ने वहां ऐसा वर्चस्व जमाया है कि वे वहां के धरती पुत्र बन गए हैं, लेकिन इन पुत्रों नेअपने भारतीय वंशजों को कभी नहीं भुलाया। भारतीय सिख बड़ी संख्या में वहां देखे जा सकते हैं। उनकी मांग थी कि हमारी संस्कृति ने इस देश को दूसरा पंजाब बना दिया है तो फिर हमारी पंजाबी भाषा को यहां की दूसरी भाषा के रूप में स्वीकार क्यों नहीं किया जाता है? पंजाबी अपने इरादों में कितना अटल होता है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए उसकी पंजाबी भाषा को कनाडा की भाषा के साथ स्थान मिल गया। लम्बे संघर्ष के बाद उन्हें सफलता मिली।
ल्ल प्रतिनिधि
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