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ल्ली महिला आयोग की रपट में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में यौन उत्पीड़न के 51 मामले सामने आने से वहां एक बार फिर से हलचल तेज हो गई है। हालांकि संस्थान की व्यवस्थाओं को चुस्त-दुरुस्त बताने वाले पैरोकार ‘जेंडर सेंसटाइजेशन कमेटी अगेंस्ट सेक्सुअल हरेसमेंट’ (जीएसकैश) जैसी आंतरिक व्यवस्थाओं को पर्याप्त रूप से सक्षम बताते हैं, लेकिन तथ्य यह भी है कि ‘जीएसकैश’ से निराश होकर कई छात्राओं ने थानों का दरवाजा भी खटखटाया है। वैसे भी शिक्षा से इतर अन्य गतिविधियों के कारण चर्चा में रहना जेएनयू का स्वभाव है। जेएनयू में यौन उत्पीड़न की रपट को एक तरफ पारदर्शिता का संकेत माना जा रहा है, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि देश-विदेश से इस विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए आने वाले छात्रों को यहां किस तरह का वातावरण दिया जा रहा है। देश में जहां एक ओर महिला सशक्तिकरण की बात की जा रही है, वहीं राजधानी स्थित इस विश्वविद्यालय में अकेले पूरी दिल्ली के शैक्षणिक संस्थानों के मुकाबले आधे यौन उत्पीड़न के मामले सामने आए हैं।
अहम बात यह है कि जेएनयू इन मामलों को आतंरिक जांच समिति द्वारा निपटाने की कार्रवाई की जाती है और यदि छात्रा संतुष्ट नहीं होती तो फिर वह न्याय पाने के लिए पुलिस के पास शिकायत कर अदालत में जाने का रुख करती है।
दिल्ली महिला आयोग द्वारा हाल ही में जारी की गई रपट के अनुसार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय यौन उत्पीड़न के मामलों में दिल्ली में सबसे आगे है। 23 शिक्षण संस्थानों में से आयोग को प्राप्त हुई 16 संस्थानों की रपट में अकेले जेएनयू के 51 मामले मिले हैं। अहम बात यह है कि कुल 101 मामलों में अकेले जेएनयू के ही 50 फीसद मामले हैं। अगस्त माह में आयोग की ओर से पत्र लिखकर इन संस्थानों से उनके यहां छात्राओं महिला शिक्षकों व महिला कर्मचारियों के यौन उत्पीड़न के मामलों की रपट मांगी गई थी। दिल्ली में मौजूद विभिन्न विश्वविद्यालयों सहित 23 शिक्षण संस्थानों में मार्च, 2013 से सितम्बर, 2015 के अंतर्गत हुए यौन उत्पीड़न के मामलों की रपट दिल्ली महिला आयोग ने गत 25 नवम्बर को जारी की। रपट के अनुसार जेएनयू में यौन उत्पीड़न के सबसे अधिक 51 मामले सामने आए हैं जिनका निपटारा भी कर दिया गया। इस संबंध में जेएनयू के कुलपति एस. के. सोपोरी ने बताया कि ये आंकड़े पिछले दो वर्षों के हैं और यहां ‘जीएसकैश’ के प्रति छात्र-छात्राओं का विश्वास है। कुछ एक मामलों में यदि छात्राएं आतंरिक समिति की कार्रवाई से संतुष्ट नहीं होती वे पुलिस के पास जाकर शिकायत कराती हैं। जेएनयू में यौन उत्पीड़न और अन्य विषयों पर जागरूकता के लिए समय-समय पर कार्यक्रम आयोजित कराये जाते हैं। जहां तक 51 मामलों का सवाल है तो प्रशासन का पूरा प्रयास है कि भविष्य में ऐसे मामलों में कमी आए। जहां तक छात्राओं की सुरक्षा का सवाल है तो जेएनयू में देर रात तक छात्राएं पुस्तकालय में रहती हैं और यहां के वातावरण में वे स्वयं को असुरक्षित नहीं मानती हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर से रपट जवाब तलब करने पर एक सप्ताह की देरी से भेजी गई। दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा गत 3 दिसम्बर को यौन उत्पीड़न के कुछ आंकड़े आयोग को दे दिए गए, लेकिन समाचार लिखे जाने तक रपट तैयार न होने के कारण वह जानकारी उपलब्ध नहीं हो सकी। वहीं ‘नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी’, आईजीडीटीयूडब्ल्यू, आईआईएफटी, डीटीयू और स्कूल आॅफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर से 1-1 मामला प्रकाश में आया है, जबकि इसके अतिरिक्त नेशनल म्यूजियम इंस्टीट्यूट, लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ, नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी, नेशनल स्कूल आॅफ ड्रामा, इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट और एनएसआईटी संस्थानों द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार उनके यहां यौन उत्पीड़न संबंधी कोई शिकायत नहीं आई है। जिन संस्थानों ने अपने यहां यौन उत्पीड़न का कोई भी मामला न होने की बात कही है, उनसे भी महिला आयोग द्वारा जवाब तलब किया गया है। आयोग के अनुसार कुल 101 मामलों में से मात्र 6 मामलों की रपट लंबित है। रपट मिलने के बाद पाया गया कि 7-8 संस्थानों को छोड़कर कहीं भी सही तरीके से ‘कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम-2013’ का पालन नहीं किया जा रहा है। जिन संस्थानों द्वारा इसका पालन किया जा रहा है, वह भी व्यवस्थित तरीके से नहीं है। आयोग द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को पत्र लिखकर स्थिति से अवगत करवाया गया है। अधिनियम से जुड़े नियमों में सुधार कर मानव संसाधन विकास मंत्रालय को स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा। आयोग इस अधिनियम को सही रूप से लागू कराने और इसकी शर्तों का पालन करवाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार को अपनी सिफारिशें तैयार कर भेजेगा।
शैक्षणिक संस्थानों में यौन उत्पीड़न के मामले
विश्वविद्यालय/संस्थान शिकायतें स्थिति
1.जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय 51 सभी मामले सुलझे
2.एम्स 10 एक मामला लंबित
3.इग्नू 9 तीन मामले लंबित
4.जामिया मिलिया इस्लामिया 6 एक मामला लंबित
5.दिल्ली प्रौद्योगिकी संस्थान 4 एक मामला लंबित
6.जामिया हमदर्द 4 सभी मामले सुलझे
7.गुरु गोविंद सिंह इन्द्रप्रस्थ विश्वविद्यालय 3 सभी मामले सुलझे
8.अम्बेडकर विश्वविद्यालय 3 सभी मामले सुलझे
9.इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ मॉस कम्युनिकेशन 2 सभी मामले सुलझे
- दिल्ली विश्वविद्यालय – आंकड़े नहीं मिले
यौन उत्पीड़न की रोकथाम के लिए सख्त हो प्रशासन
जेएनयू में यौन उत्पीड़न के 51 मामलों की खबर सभी समाचार पत्रों में सुर्खियों में रही है। एक तरफ जेएनयू प्रशासन इसे अपनी पारदर्शिता बता रहा है कि सभी मामलों का समय रहते निपटारा कर दिया गया, लेकिन अहम बात यह है कि यौन उत्पीड़न के बढ़ते मामलों की खबर से देश ही नहीं, बल्कि विदेश में भी जेएनयू की साख पर बट्टा लगा है। यदि यौन उत्पीड़न की बात की जाए तो वर्ष 2013-14 में ‘जेंडर सेंसटाइजेशन कमेटी अगेंस्ट सेक्सुअल हरेसमेंट’ (जीएसकैश) द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण में जेएनयू की 53 फीसद छात्राओं ने स्वीकारा था कि यहां पढ़ाई के दौरान कम से कम एक बार उन्हें यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। यह सर्वेक्षण जेएनयू के झेलम हॉस्टल में पढ़ने वाले छात्र आकाश द्वारा 31 जुलाई, 2013 को साथी छात्रा पर कुल्हाड़ी से किए गए जानलेवा हमले के बाद कराया गया था। आकाश ने इस घटना के बाद स्वयं भी आत्महत्या कर ली थी।-सौरभ कुमार शर्मा संयुक्त सचिव, जेएनयू छात्रसंघ
प्रशासन की लापरवाही के कारण बढ़े मामले
जेएनयू में दूसरे विश्वविद्यालयों की तुलना में छात्राओं को न केवल अधिक स्वतंत्रता मिली हुई है, बल्कि अधिकार भी मिले हैं। लेकिन यौन उत्पीड़न के बढ़ते मामले इस बात का संकेत दे रहे हैं कि जेएनयू प्रशासन की लापरवाही से ऐसा हो रहा है। यहां पर ‘जीएसकैश’ है जिसमें छात्र-छात्राएं अपनी शिकायतें लेकर पहुंचते हैं, लेकिन सही निदान न होने पर ही वे आगे पुलिस के पास कार्रवाई के लिए बढ़ते हैं। यदि प्रशासन यौन उत्पीड़न करने वाले छात्रों पर सख्ती करे या झूठी शिकायत करने वालों पर कार्रवाई करे तो मेरा मानना है कि निश्चित ही ऐसे मामलों मेंकमी आएगी।-निधि छात्रा, जेएनयू
हवन नहीं सहन
मैं 21 नवम्बर की शाम करीब 4:30 बजे जन्मदिन के अवसर पर हर वर्ष की तरह अपने हॉस्टल के कमरे में हवन कर रहा था। वहां पर अन्य छात्र-छात्राएं भी उपस्थित थे। उस दिन हवन संपन्न होने ही वाला था कि तभी वॉर्डन बर्टन क्लेटस दूसरे छात्रों के साथ झेलम हॉस्टल के कमरा संख्या 130 में आ धमके। हवन की वजह से सभी छात्र-छात्राओं ने अपने जूते-चप्पल कमरे के बाहर निकाले हुए थे। लेकिन वॉर्डन और दूसरे छात्र बिना जूते उतारे ही मेरे कमरे में जा घुसे और तुरंत हवन को रोकने के लिए और दूसरे छात्रों को वहां से जाने को कहा गया। मैं गुरुकुल से पढ़ा हूं और हर वर्ष अपने जन्मदिन पर हवन करता हूं। यह पहली बार नहीं है कि जब मैंने जेएनयू में हवन किया हो क्योंकि मैं जुलाई, 2013 से जेएनयू में पढ़ रहा हूं। लेकिन वॉर्डन ने बेवजह इस मामले को तूल दे दिया, जो कि स्वयं ईसाई हैं। जेएनयू में जब दूसरे पंथ को मानने वाले छात्र-छात्राओं को उनकी पद्धति से पूजा करने का अधिकार है तो फिर हिन्दू संस्कृति की परम्परा निभाने वाले छात्रों को प्रशासन भला कैसे रोक सकता है, इस विश्वविद्यालय में पश्चिमी संस्कृति की तर्ज पर खुले वातावरण में हो रही गतिविधियों पर प्रशासन कभी शिकंजा नहीं कसता, लेकिन भारतीय संस्कृति से जुड़ी गतिविधियों पर सभी की पैनी निगाह रहती है। सहिष्णुता का ढोल पीटने वालों का यह कैसा चेहरा है?-जितेन्द्र धाकड़,
छात्र, एम. फिल. (संस्कृत), जेएनयू
स्वतंत्रता का हो रहा है दुरुपयोग
कुछ लोग जेएनयू में छात्र-छात्राओं को मिली स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर रहे हैं। दिल्ली महिला आयोग की रपट के अनुसार अकेले जेएनयू के 51 मामलों से स्पष्ट होता है कि यहां छात्रों की समस्या दूर करने के लिए समिति गठित होने के बावजूद भी कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आए हैं। कई बार यहां पर राजनीति से प्रेरित होकर छात्र-छात्राओं पर आरोप लगा दिए जाते हैं जिससे कि यौन उत्पीड़न के मामलों की संख्या बढ़ सकती है। जेएनयू में वर्ष 2013 में छात्रा को उसके साथी द्वारा कुल्हाड़ी मारकर घायल करने की घटना के बाद से प्रशासन थोड़ा सख्त तो हुआ था, लेकिन जागरूकता के नाम पर वर्ष में एक बार कोई कार्यक्रम करवा देने से समस्या हल नहीं हो सकती है।
-श्रुति, छात्रा, जेएनयू
विश्वविद्यालय की विफलता है
जेएनयू में यौन उत्पीड़न के बढ़ते मामलों के पीछे सीधे-सीधे प्रशासन दोषी है। यहां पर यदि समय रहते प्रशासन सख्त कार्रवाई करे तो शायद ही कोई इस तरह की दूसरी घटना को अंजाम देने की हिम्मत जुटा पाए। लेकिन छात्रों को साफतौर पर मालूम है कि शिकायत मिलने पर कार्रवाई में काफी समय लग जाता है और यदि आरोपी भी कुछ आरोप लगा दे तो आरोप-प्रत्यारोप की वजह से मामला स्वयं ही खत्म हो जाता है। जेएनयू में छात्रों के लिए बनी ‘जीएसकैश’ पर मंथन करने की आवश्यकता है कि क्या आखिर इसका लाभ छात्र-छात्राओं को मिल पा रहा है। इसे जिस उद्देश्य से तैयार किया गया था, क्या उससे शिकायतकर्ता छात्रा संतुष्ट हो पाती है या नहीं।- खुशबू, छात्रा, जेएनयू
राहुल शर्मा
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