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अनुराग पुनेठा
छले कुछ वर्षों से बंगलादेश में जिहादी तत्व लगातार अपने पैर फैला रहे हैं, हत्याओं का दौर चला रहे हैं। 2013 से ही लेखकों, ब्लॉगरों और विदेशी नागरिकों की नृशंस हत्याओं ने इस मुल्क को खतरनाक देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया है। इन हत्याओं की जिम्मेदारी आतंकी संगठन आईएसआईएस ने ली है। यह बंगलादेश के लिए तो चिंता का कारण है ही, साथ ही पड़ोसी देश भारत के लिए भी बहुत बड़ी चुनौती है। हालांकि बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना और उनकी सरकार बंगलादेश में आईएसआईएस की उपस्थिति को नकार रही है, लेकिन जानकार चिंतित हैं। अमरीका के इलिनायस विश्वविद्यालय में दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ अली रियाज बंगलादेश के हालात पर चिंता जताते हुए कहते हैं, 'बंगलादेश में दशकों से पैर पसार रहे जिहादी गुट संगठित हो रहे हैं और वे आईएसआईएस या अल कायदा जैसे आतंकी संगठनों के लिए काम करने के लिए बेताब हैं।' बंगलादेश, सऊदी अरब, पाकिस्तान या मालदीव, एशिया में कहीं भी जिहादी तत्वों का मजबूत होना भारत को सीधे प्रभावित करता है।
बंगलादेश में युद्ध अपराध के गुनहगारों को फांसी दिए जाने के बाद से जमात-ए-इस्लामी हो या हिफाजत-ए-इस्लाम, दोनांे संगठन मजहबी भावनाओं को भड़काने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। आईएसआईएस के समर्थकों की संख्या भारत के साथ बंगलादेश और मालदीव में भी बढ़ी है।
आईएसआईएस की विचारधारा और वीभत्स हिंसा ने कुछ युवाओं को आश्चर्यजनक तरीके से अपना मुरीद बनाया है। बंगलादेश की सीमा सबसे ज्यादा भारत से ही लगती है। असम और पश्चिम बंगाल में बंगलादेशियों की घुसपैठ और आबादी ने तो भारत की चिंताएं पहले ही बढ़ाई हुई हैं। दशकों से दोनों देशों की सीमा पर हो रही घुसपैठ की अनदेखी ने आतंकवादियों को फलने-फूलने की बेहतर जगह दी है। 2004 में हुए सर्वेक्षण में यह बात सरकार के संज्ञान में आई थी कि पश्चिम बंगाल और बंगलादेश के सीमावर्ती इलाकों में मदरसों की संख्या में 34 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। उधर असम में एक बेहद चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। असम के पुलिस महानिदेशक ने बीते दिनों सनसनीखेज खुलासा किया था कि असम में जम्मू-कश्मीर से भी ज्यादा लोग आईएसआईएस के बारे में इंटरनेट पर जानकारियां खोज रहे हैं। पिछले साल वर्धमान में हुए धमाके के तार बंगलादेश से जुड़े हुए थे। वोट बैंक की खातिर पश्चिम बंगाल सरकार ने जिहादी तत्वों को फलने-फूलने का मौका भी दिया। वर्द्धमान धमाका जिस इमारत में हुआ उसका मालिक तृणमूल कांग्रेस का नेता था। इस धमाके के तार एनआईए ने अल जिहाद संगठन से जोड़े थे, जो अल कायदा और सिमी से मिला हुआ संगठन है। उधर आईएसआईएस और आईएसआई, सिमी, आईएम जैसे संगठनों का जाल बंगलादेश में तैयार है। यानी जमीन तैयार है। आईएसआईएस ने अपने जिहादी नफरती साम्राज्य के विस्तार के लिए जो खाका खींचा है उसमें बंगलादेश को खास तवज्जो दी गई है। जमीयतुल मुजाहिदीन बंगलादेश (जेएमबी) जैसे संगठन भारत में अपना नेटवर्क बढ़ाने में लगे हैं।
शेख हसीना की सरकार को मजबूती मिलती रहे, यह भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए हितकर होगा। याद कीजिए 2010 में सत्ता में आने के बाद ही अवामी लीग ने 1971 के मुक्ति आंदोलन के दौरान सामूहिक हत्याओं की साजिश रचने वालों के लिए एक युद्ध अपराध न्यायाधिकरण शुरू किया था। विरोधियों और आलोचकों ने इसे प्रधानमंत्री शेख हसीना के राजनीतिक फायदे और व्यक्तिगत दुश्मनी के रूप में देखा। बंगलादेश का प्रगतिशील वर्ग, जिसमें कई ब्लॉगर्स, लेखक और पत्रकार मौजूद हैं, युद्ध अपराध न्यायाधिकरण का मुखर समर्थक रहा है। पत्रकारों की रक्षा करने के लिए बनी 'एशिया शोधकर्ता समिति' के शोधकर्ता सुमित कहते हैं कि युद्ध अपराध के मुकदमे 2012-2013 में शुरू किए गए और यही वह समय था, जब जिहादी तत्वों ने सेकुलर लेखकों पर टेढ़ी नजर डाली। जनवरी, 2013 में मोहिउद्दीन की हत्या कर दी गई और फरवरी में हैदर को मौत के घाट उतार दिया गया। दोनों शाहबाग आंदोलन में सक्रिय थे।
इससे पहले भी 1990 के दशक और 2000 की शुरुआत के दौरान कई लेखकों को देश छोड़कर भागना पड़ा। जिहादियों ने 80 ब्लॉगरों की एक सूची जारी की। समाचार पत्रों में प्रगतिशील वर्ग के बारे में भड़काऊ लेख छपवाए गए। कई लेखक तो हमलों के डर से छुप गए। हिफाजत-ए-इस्लाम ने जवाबी प्रदर्शन करते हुए तेरह मांगों की एक सूची जारी की। ये मांगें तालिबान से प्रेरित थीं। इसमें शाहबाग आंदोलन के नेताओं के लिए सजा का फतवा दिया गया था। नि:संदेह तब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को बचाने में नाकाम प्रधानमंत्री शेख हसीना झुक गईं। ब्लॉगर मोहिउद्दीन जेल में डाल दिए गए। वे इस्लाम और पैगंबर की आलोचना करने के आरोप में तीन महीने तक जेल में बंद रहे। जब जमानत पर बाहर आए तो जर्मनी चले गए, तब से वे वहीं हैं। वे बताते हैं कि उन्हें वहां भी धमकियां मिलती रहती हैं। इन सबका निष्कर्ष है कि बंगलादेश में जिहादी तत्वों ने जड़ें जमा ली हैं। इन्हें खत्म करने के लिए भारत को भी तैयार रहना होगा। ल्ल
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