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भारतीय शास्त्रीय संगीत में जुगलबंदी का विशिष्ट स्थान है। वाद्य संगीत में पंडित हरिप्रसाद चौरसिया और शिवकुमार शर्मा ने बांसुरी और संतूर के युगलवादन से श्रोताओं को रिझाया है। शास्त्रीय गायन में सिंह बंधुओं, गुनेचा बंधुओं और पंडित राजन-साजन मिश्र ने अपने युगल गायन से संगीतप्रेमियों का मन मोह रखा है। लेकिन इधर एक बेसुरी जोड़ी की बेवक्त की शहनाई ने पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। उन्होंने एक बेहद लोकप्रिय राग के सुरों और बोल में फेर बदल करके एक नए राग की रचना की है। इस नए राग की बंदिश के अजीबो-गरीब बोल सुनकर श्रोता क्षोभ से पागल हो जाते हैं।
इस अद्भुत जोड़ी के गायक-युगल हैं उत्तर प्रदेश के स्वनामधन्य मंत्री आफताबे मौसूकी आजम खानऔर कभी केंद्र में मंत्री रहे और अब- ‘कहीं के कुछ भी न रहे’ संगीत मार्तंड पंडित मणिशंकर अय्यर। इन कलाकारों ने जिस नए राग की संरचना की है, उसके गाने का समय कुछ भी हो सकता है,अर्थात दिन हो या रात, सुबह हो या शाम, वह हर समय ही बेवक्त का लगेगा। असल में उसका सच्चा आनंद उठाने के लिए एक विशेष माहौल चाहिए। आकाश में बादल गरज रहे हों, काली घटा उमड़ रही हो तो राग मेघमल्हार का और भौंरे की गुनगुन और कोयल की कुहू-कुहू के साथ राग वसंत का आनंद आता है। बस वैसे ही इस नए राग की पृष्ठभूमि में ए.के. फोर्टी सेवेन, ए.के. फिफ्टी सिक्स आदि स्वचालित हथियार चल रहे हों, हथगोलों का मंजीरा और आरडीएक्स के धमाकों का मृदंग बज रहा हो, तो राग परवान चढ़ता है।
यह नया राग शास्त्रीय संगीत और राजस्थानी लोकसंगीत दोनों में लोकप्रिय राग मांड पर आधारित है। अत: इसका मिलता जुलता सा संक्षिप्त नाम है राग ‘भाड़’। असल में इसका पूरा नाम है राग भाड़ में जाए देश। शास्त्रीय संगीत में कुछ स्वर किसी राग विशेष में विवादी अर्थात बेजगह माने जाते हैं। उसी तरह इस राग में देश की चिंता बेकार मानी जाती है। केवल भाड़ ही इसका वादी अर्थात मुख्य स्वर है। जिस किसी की अभिलाषा हो कि अपना देश भाड़ में जाए, वह यह राग अलाप सकता है।
मौलिक राग मांड की सबसे प्रसिद्ध बंदिश के बोल हैं ‘केसरिया बालम आवो सा पधारो म्हारे देश’। विरहिन नायिका अपने परदेसी प्रियतम को याद करती हुई राग मांड के करुण रस में भीगी तान खींचती है तो एक से एक रणबांकुरे रणक्षेत्र छोड़ कर अपनी प्रियतमा के पास आने के लिए उद्विग्न हो उठते हैं। वैसे ही पंडित मणिशंकर अय्यर और उस्ताद आजम खान द्वारा रचित राग भाड़ के बोल हैं ‘आतंकी बालम आवो सा पधारो म्हारे देश।’ राग मांड का जो असर केसरिया बालम पर होता है वैसा ही असर राग ‘भाड़’ का किसी क्रूर आतंकी पर होता है। उसके मन में टीस उठती है कि वह व्यर्थ ही न्यूयार्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर ढहाने के चक्कर में पड़ा। पेरिस की रंगीन गलियों में बेकार निहत्थों का खून बहाया। वहां उसके नेक कामों की तारीफ करने वाला, उसके ऊ पर हुए जुल्म समझने वाला कौन था। वही आतंकी बालम इन दो युगल गायकों की बंदिश सुन कर भारत आता, कश्मीर की मोहक वादियों में हमारे जवान और निर्दोष नागरिकों का खून बहाता या मुम्बई की भीड़-भाड़ में सैकड़ों निर्दोष लोगों की अचानक हत्या कर डालता तो कम से कम उसके दिलका दर्द समझने वाले ये दो संगीतज्ञ तो यहां मौजूद थे। वे अपने भजन के जरिये आतंकियों की मजबूरी सारी दुनिया को समझाने का प्रयत्न करते हुए गाते ‘मेरे तो तुम ही कसाब, दूसरा न कोई।’
इन महान संगीतकारों की राग ‘भाड़’ के अतिरिक्त आतंकियों के प्रति प्रेम और सहानुभूति से ओतप्रोत और भी कई रचनाएं हैं। मीरा के प्रसिद्द गीत ‘एरी मैं तो प्रेम दीवानी, मेरा दर्द न जाने कोय’ को इन्होंने नए सुरों से सजाकर आतंकियों का राष्टÑगान बना दिया। यह गीत पेशावर के स्कूली बच्चों के कत्लेआम के बाद रचा गया। उधर मासूम बच्चों के रक्त से स्कूल की दीवारें रंगी गयीं, इधर आचार्य मणिशंकर और उस्ताद आजम खान ने उनके दिल का दर्द समझा और उसे अपने संगीत में ढाल लिया।
दुर्भाग्य से हमारे देश में शास्त्रीय संगीत में लोगों की रुचि कम होती जा रही है। दूसरों की कौन कहे खुद अपने परिवार वाले भी संगीतकारों की रचनाएं ठीक से नहीं समझ पाते है। संगीताचार्य मणिशंकर अय्यर और आफताबे मौसूकी आजम खान का भी यही दुर्भाग्य है। औरों की कौन कहे, खुद कांग्रेस पार्टी ने मणिशंकर के आलाप को बेवक्त की शहनाई कह कर खारिज कर दिया। उधर उस्ताद आजम खान ने अपना राग सुनाया तो अखिलेश यादव स्वयं एक दादरा गाने लगे ‘दुल्हनिया जरा धीरे से बोल, तेरी बोली पिया तक जाए रे।’ कहने वाले तो अब यहां तक कह रहे हैं कि हो न हो उनकी भैंसे भी चोरी नहीं हुई थीं बल्कि जब उनके सामने उस्ताद आजम खान ने अपनी बीन बजाने की कोशिश की तो उन्होंने भी वाकआउट कर दिया था। अरुणेन्द्र नाथ वर्मा
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