सच को सहिष्णुता से स्वीकारिए जनाब
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सच को सहिष्णुता से स्वीकारिए जनाब

by
Nov 30, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 30 Nov 2015 13:02:41

बात पांच साल पुरानी है। सहिष्णुता और असहिष्णुता की इन दिनों चल रही बहस में टी.जे. जोसेफ के साथ हुई 4, जुलाई 2010 की घटना को याद करते हुए कोई भी संवेदनशील व्यक्ति पीड़ा से भर उठेगा क्योंकि न्यूमैन कॉलेज (केरल) के मलयालम के प्रोफेसर टी.जे. जोसफ के हाथ को इसी दिन कलाई से काट दिया गया था। उन पर आरोप लगा कि मार्च 2010 में उन्होंने बी.कॉम. के बच्चों के लिए जो प्रश्न पत्र तैयार किया, उसमें ‘अल्लाह की मोहम्मद से बातचीत’ होती है। प्रश्न पत्र में एक पात्र का नाम मोहम्मद था। इस पात्रों के मुंह से कुछ ऐसे शब्द कहलवाए गए थे,जो एक मुस्लिम संगठन को इतने अधिक नागवार गुजरे कि उसने प्रो. टी.जे. जोसफ का हाथ काट दिया। इस पूरे मामले को बड़े गुपचुप तरीके से सेकुलर सरकार ने सेकुलर लोगों की मदद से निपटा दिया।

यह अपने तरह की अकेली घटना नहीं है। लम्बी श्रृंखला है कथित प्रगतिशील शासन में हुए ऐसे घटनाक्रमों की। साहित्य अकादमी सम्मान वापसी के संकट को थोड़ा समझने का यत्न करते हैं। साहित्य अकादमी पुुरस्कार अब तक एक हजार एक सौ दस लोगों को दिया गया है, जिसमें 536 लोग जीवित हैं। इनमें 26 साहित्यकारों ने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाया है। बाल साहित्य की श्रेणी में 144 लेखकों को पुरस्कृत किया गया, जिनमें 128 लेखक जीवित हैं। इसमें सिर्फ एक लेखक ने अपना पुरस्कार लौटाया है। अनुवाद में 500 लेखकों को सम्मानित किया गया है। सभी अनुवादक जीवित हैं। तीन लेखकों ने पुरस्कार लौटाया है। युवा पुरस्कार 111 लेखकों को दिया गया है। उनमें सिर्फ एक लेखक ने पुरस्कार लौटाने की सूचना ईमेल के माध्यम से अकादमी को दी है। वैसे अकादमी ने सम्मान लौटाने वाले लेखकों को एक पत्र लिखा है जिसमें उनसे यह आग्रह किया     गया है कि वे अपने सम्मान वापसी पर पुनर्विचार करें।

जब अकादमी पुरस्कार वापस करने की खबर मीडिया में आ रही थी तो ऐसा माहौल बनाने का प्रयास किया गया कि सभी साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त लेखक इस अभियान के साथ हैं, जबकि किसी पत्रकार ने गोविन्द मिश्र, शिव के कुमार, प्रोफेसर नामदेव ताराचंदानी जैसे लेखकों से बात करने की जरूरत नहीं समझी। गोविन्द मिश्र ने साफ साफ लिखा है- ‘अब कहा जा रहा है कि केन्द्रीय सरकार लेखकीय स्वतंत्रता को कुचल रही है। अव्वल तो उपर्युक्त दोनों घटनाएं (कुलबुर्गी और दादरी हत्याकांड) उन प्रान्तों में हुर्इं जहां दूसरी पार्टियों की सरकारें हैं। दूसरा कानून व्यवस्था राज्य सरकारों के कार्यक्षेत्र में आती है। तीसरी बात दोनों ही मामलों में जांच जारी है। फिर मेरा सवाल है इसमें साहित्य अकादमी कहां से आ गई? उसने तो हत्याएं कराई नहीं, लेखकों को सुरक्षा प्रदान करना भी उसके हाथ में नहीं है।’

उसी समय पद्म पुरस्कार लौटाने की खबर आई, लेकिन आगरा में 21 अक्तूबर को पद्मश्री गोपालदास नीरज ने जब पुरस्कार लौटाने वालों पर सवाल उठाया तो उसे दिखाने में मीडिया की अधिक रुचि नहीं थी। जबकि गोपालदास नीरज ने कहा था कि ‘कांग्रेस राज में पुरस्कार पाने वाले साहित्यकार प्रधानमंत्री के खिलाफ राजनीति कर रहे हैं। अब कांग्रेस साहित्यकारों से पुरस्कार वापस कराने का काम कर रही है। इस पुरस्कार लौटाने के प्रकरण से कांग्रेस की बदनामी हो रही है।’

गीतकार प्रसून जोशी का यह बयान भी कहीं दबा दिया गया कि- ‘साहित्यकारों को भी अपनी साहित्यिक पहचान के ऊपर राजनीति का हिस्सा नहीं बनना चाहिए।’ साहित्यकार उदय प्रकाश ने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाया। उदय प्रकाश के अनुसार- मल्लेशप्पा मादीवलप्पा कलबुर्गी की 30 अगस्त, 2015 को हुई हत्या से आहत होकर उन्होंने पुरस्कार लौटाया है। इस हत्या की आशंका क्या उदय प्रकाश को 26 मार्च 2015 को थी, उदय प्रकाश ने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा था-

‘दोस्तो, क्या मुझे हिन्दी साहित्य के लिए मिले समस्त पुरस्कारों को लौटा देना चाहिए? मुझे लगता है अवश्य। ये जीवन के माथे पर दाग हंै।’ वास्तव में उदय प्रकाश ने किसी कन्नड़ लेखक कलबुर्गी की हत्या से आहत होकर पुरस्कार लौटाने का कदम नहीं उठाया बल्कि खुद उदय प्रकाश के अनुसार वे अपने माथे पर लगे पुरस्कार के दाग को साफ करना चाहते थे। संभव है कि जब वे साहित्य अकादमी पुरस्कार ले रहे थे, उस वक्त यही दाग उन्हें अच्छे लगे हों!

यह सच है कि साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घटना पहली बार नहीं घट रही। देशबंधु डोगरा नूतन, सुरेश जोशी, जीए कुलकर्णी, स्वामी आनंद, जयंत कोठारी, जगन्नाथ प्रसाद दास, टी. पद्मनाभन जैसे साहित्यकारों ने भी इससे पहले पुरस्कार साहित्य अकादमी को लौटाया है, लेकिन उनका एजेन्डा एक राजनीतिक पार्टी से मिलकर दूसरे राजनीतिक पार्टी के खिलाफ कोई मुहिम चलाना नहीं था। पुरस्कार वापसी को लेकर यह सच जानना पाठकों के लिए जरूरी है कि अकादमी द्वारा दिए गए पुरस्कार को वापस लेने का कोई प्रावधान अकादमी के पास नहीं है। इस तरह लेखकों का पुरस्कार सुरक्षित रहेगा और उनके द्वारा धन भेजा गया है, उसे भी किसी मद में अकादमी खर्च नहीं कर सकती। इस तरह पुरस्कार लौटाने वाले लेखकों का पैसा भी सुरक्षित रहेगा। पुरस्कार वापसी का ऐसा ही एक उदाहरण अस्सी के दशक में अम्बेडकरवादी लेखक वी.आर. नार्ला का है। उन्होंने अपना अकादमी पुरस्कार वापस करने की घोषणा की थी लेकिन आज भी वी.आर. नार्ला का नाम अकादमी के पुरस्कार प्राप्त लेखकों में शामिल है। इसकी वजह साहित्य अकादमी की यह मजबूरी ही है कि एक बार दिया हुआ पुरस्कार वापस लेने का कोई प्रावधान अकादमी के पास नहीं है। साहित्य अकादमी से साहित्यकारों की यह शिकायत थी कि वह कलबुर्गी की हत्या पर अपना पक्ष क्यों नहीं रख रही? यह बात उन साहित्यकारों ने सुन कर भी अनसुनी क्यों किया कि बीते 30 सितम्बर को अकादमी ने बेंगलुरू के अपने कार्यालय में एक शोक सभा का आयोजन किया था, जहां एम.एम.कलबुर्गी को याद किया गया। अकादमी के उपाध्यक्ष कन्नड़ भाषा के कवि डा़ चन्द्रशेखर कम्बार वहां उपस्थित थे। डॉ. एम.एस. आशादेवी, एस.आर विजयशंकर, डॉ. एस.जी. सीतारमैया, डॉ. हम्पा नागराजा और डॉ. नरहल्ली बाला सुब्रमण्यन जैसे कन्नड़ के बड़े साहित्यकारों के साथ बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी और साहित्यकार इस शोकसभा में शामिल हुए। शोकसभा में कलबुर्गी की हत्या की निन्दा हुई।

सम्मान वापसी में किसने क्या और कितना लौटाया

क्रम सं.  नाम        वर्ष         प्रतिक्रिया/ टिप्पणी/ वापसी

                                      हिन्दी

1              उदय प्रकाश          2010       पत्र, एक लाख रुपए का चेक

2              अशोक वाजपेयी  1994       पत्र, एक लाख रुपए का चेक

3              कृष्णा सोबती       1980       पत्र, दस हजार रुपए का चेक

4              मंगलेश डबराल    2000       पत्र, 25000 का चेक, सम्मान पट्टिका

                                       अंग्रेजी

5              जी.एन. देवी         1993       पत्र, एक लाख रु. का चेक, सम्मान पट्टिका

6              नयनतारा सहगल               1986       पत्र एवं एक लाख रु. का चेक

7              केकी दारुवाला     1984       पत्र एवं एक लाख रु. का चेक

                                     गुजराती

8              अनिल जोशी        1990       एक ई मेल

                                     पंजाबी

9              वरियाम सिंह संधु               2000       पत्र एवं 25000 रु. का चेक

10           सुरजीत पातर      1993       पत्र एवं 25000 रु. का चेक

11           जसविन्दर            2014       पत्र एवं एक लाख रु. का चेक

12           गुरबचन भुल्लर   2005       पत्र एवं 50,000 रु. का चेक

13           आत्मजीत            2009       पत्र, एक लाख रु. का चेक, सम्मान पट्टिका

14           बलदेव सिंह          2011       पत्र एवं एक लाख रु. का चेक

15           दर्शन बत्तर          2012       पत्र एवं एक लाख रु. का चेक

16           अजमेर सिंह औलख           2006       पत्र एवं चेक 5000 रु. का

17           मोहन भंडारी         1998       पत्र एवं 25,000 रु. का चेक

18           प्रगट सिंह सतौज                2012       पत्र एवं 50,000 रु. का चेक

                                     राजस्थानी

19           नंद भारद्वाज      2004       पत्र एवं 50,000 रुपए का चेक

                                       कन्नड़

20           कुम वीरभद्रप्पा   2007       पत्र एवं 50,000 रुपए का चेक, सम्मान पट्टिका

21           रहमत तारिकी     2010       पत्र एवं 50,000 रुपए का चेक, सम्मान पट्टिका

                                           कश्मीरी

22           गुलाम नबी ख्याल               1976       पत्र एवं 5000 रु का चेक

   मलयालम

23           सारा जोसेफ         2003       पत्र, 50,000 रुपए का चेक, सम्मान पट्टिका

असमी

24           होमेन बरगोहाईं   1978       पत्र एवं 5000 रुपए का चेक

मराठी

25           कात्यानी विदमहे                2013       पत्र, एक लाख रुपए का चेक, सम्मान पट्टिका

                                   अनुवाद

                                     हिन्दी

26           चमन लाल            2001       पत्र एवं 15,000 रुपए का चेक

                                  कन्नड़

27           जीएन रंगनाथ राव              2014       पत्र एवं 50,000 रुपए का चेक, सम्मान पट्टिका

                                   मराठी

28           इब्राहिम अफगान                2002       ई मेल प्राप्त हुआ

                               युवा पुरस्कार

                               अंग्रेजी

29           अमन सेठी            2012       ई मेल प्राप्त हुआ

                               बाल साहित्य

30           एम. भूपाल रेड्डी 2011         पत्र एवं 50,000 रुपए का चेक, सम्मान पट्टिका

                       स्वर्ण जयंती सम्मान

                                     बंगाली

31           मदनक्रांता सेन    2004     पत्र प्राप्त हुआ

कुछ अकादमी सम्मान लौटाने वाले ऐसे नाम भी हैं, जिन्होंने अपना अकादमी सम्मान सिर्फ मीडिया में लौटाया है। उनके सम्मान लौटाने की खबर मीडिया में आई। उनका बयान छपा, लेकिन उन्होंने अपने सम्मान वापसी के संबंध में अकादमी से कोई पत्र/ईमेल व्यवहार नहीं किया।

ऐसे लेखकों के नाम इस प्रकार हैं-

क्रम सं नाम   वर्ष   

01    राजेश जोशी   2002

02    नीरुपमा बोरगोहेन     1996

03    डीएन श्रीनाथ  2009

04    काशीनाथ सिंह 2011

05    खलील मामून  2011

06    मारगूब बनहाली      1979

 

आशीष कुमार ‘अंशु’

 

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