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नाम : नतालिया दिमित्री वालकोवा
मास्को, रूस
क्या हैं : बैंक में खजांची
संस्कृति सूत्र : यज्ञ-अनुष्ठान
परिवर्तनकारी क्षण : भारत आगमन
मास्को में स्बेर बैंक ऑफ रशिया में 'खजांची' के पद पर कार्य कर रही नतालिया के लिए जीवन नुक्सान और मुनाफे के उतार-चढ़ाव भरे ग्राफ की तरह था जिसमें अनेक अड़चनों से पार पाते हुए खुद के लिए सुरक्षित राह बनाने की भागदौड़ और चुनौती थी। काम के दौरान अनेक भारतीय उनके सम्पर्क में आते ही रहते थे। तीन वर्ष पहले ऐसे ही एक 'भारतीय सूत्र' ने जीवन के प्रति उनकी सोच बदल दी। नुक्सान-मुनाफे से परे, अपने और समाज के जीवन में शुभ-लाभ लाने वाली इस सोच की पहली सीढ़ी बनी थी 'थियोसाफिकल सोसायटी। संस्था से जुड़ाव के बाद नतालिया को इसके कार्य से अनेक स्थानों पर जाना होता था। इसी क्रम में कुछ वर्ष पहले नोवोरसिक के प्रवास के दौरान भारतीय संस्कृति के जानकार डॉ. ज्ञानेश्वर मिश्र से उनकी भेंट हुई और आध्यात्मिक रुझान व्यक्तिगत हित से ऊपर उठकर सामाजिक-वैश्विक कल्याण के भाव से प्रेरित हो गया। नतालिया कहती हैं, 'भारतीय जीवन दृष्टि को गहराई से समझने का यह अनुभव अनूठा था। उन्होंने मुझे सनातन धर्म के कुछ मूलभूत सिद्धान्तों के बारे में बताया। इसके बाद मैं भारत आई और सनातन धर्म के अनेक प्रसिद्ध सन्तों और कथाकारों से मिली। उन्होंने मेरे प्रश्नों के उत्तर इतने ही वैज्ञानिक तरीके से दिए कि मैं उनके विचारों से प्रभावित हो गई। पहली दृष्टि में मैं सनातन धर्म के बहुआयामी स्वरूप एवं उसमें निहित चयन की स्वतंत्रता से प्रभावित हुई।'
भारतीयता से जुड़ाव के बाद नतालिया का जीवन दर्शन स्पष्ट है। उनका मानना है कि वही व्यक्ति सही मार्ग पर चल सकता है जिसके जीवन में धर्म का कुछ भी अंश हो। क्योंकि धर्म किसी व्यक्ति को राह से भटकने नहीं देता है। वे कहती हैं, 'आज जो लोग मजहब के नाम पर मार-काट कर रहे हैं वे राह से भटके हुए लोग हैं।' नतालिया आज सनातन धर्म के लिए जी रही हैं। वे अब स्वयं यज्ञ एवं संस्कार कराती हैं। तमाम कामकाजी व्यस्तताओं के बावजूद रूस में वैदिक संस्कृति के विकास और विस्तार कार्य के लिए समय देती हैं। भागदौड़ भरे जीवन में शांति की यह खोज उनके प्रशंसक बढ़ाने वाली है। लोग उनसे ध्यान,साधना और शांति से जुड़े सवाल पूछते हैं। अपनी परेशानियों का अंत चाहते हैं। नतालिया के उत्तर उन्हें भौतिकतावादी दृष्टि से परे अपने अंतर्मन में झाकने की प्रेरणा देते हैं। वे कहती हैं, 'अंत:प्रेरणा से प्रेरित होकर मैं नित्य सनातन संस्कृति की साधना करती हूं। इससे मेरा जीवन सुखमय हो गया है। परिवार से मेरे संबंध बेहतर हो गए हैं। सनातन संस्कृति मुझे कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति देती है एवं वांछित सफलता प्राप्त करने में सहयोग करती है।'
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