मजहबी उत्पात और लाचार प्रशासन
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मजहबी उत्पात और लाचार प्रशासन

by
Nov 9, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Nov 2015 12:40:52

 

हरिमंगल
भी शांति और साम्प्रदायिक सौहार्द का संदेश देने वाला उत्तर प्रदेश हिंसा और अराजकता के आगोश में सिमटकर रह गया है। राज्य को 'उत्तम प्रदेश' बनाने का स्वप्न दिखाकर सत्ता में आयी 'समाजवादी पार्टी' की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के चलते प्रदेश में हिन्दुओं की स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ रही है। धार्मिक आयोजनोंे, जुलूस-प्रदर्शन, पूजा स्थलों पर आए दिन हो रहे हमले और हमलावरों पर कार्रवाई न होना, सत्तारूढ़ दल के अधिकांश जनप्रतिनिधियों का अराजक तत्वों के साथ खड़ा होना यह साबित करने लगा है कि दंगों की आग भड़काने में कहीं न कहीं सत्ता और सियासत शामिल है। उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक दंगों पर तनाव की पृष्ठभूमि को देखा जाए तो साफ प्रतीत होता है कि ये सब पूर्व नियोजित होते हैं और मुस्लिम अराजक तत्वों को इसके लिए तैयार किया जाता है। उन्हें आश्वस्त किया जाता है कि प्रशासन उनके साथ है और कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। राज्य में नवरात्र के अंतिम दिनों और मोहर्रम के जुलूस के दिन जिस तरह से प्रदेश के 20 जिलों में छोटी-छोटी घटनाओं पर अफवाह फैलाकर साम्प्रदायिक बवाल किए गए, हिन्दुओं पर हमले किए गए, पुलिस प्रशासन पर हमले हुए, राज्य की सम्पत्तियों को तोड़-फोड़ कर आग के हवाले किया गया। यह तक कहा जा रहा है कि यह तो मात्र अभी 'प्रयोग' है आने वाले समय में इसका वृहद् रूप दिखलायी पड़ेगा। उ. प्र. में दंगों के लिए सामान्यत: हिन्दुओं के त्योहारों को चुना जाता है। दुर्गा पूजा, दशहरा और इसके आस-पास पड़ने वाला मोहर्रम अराजक तत्वों को अच्छा अवसर उपलब्ध करवाता है।  
इस वर्ष विजयादशमी से पहले जिस तरह कन्नौज-फतेहपुर में साम्प्रदायिक बवाल हुआ, वह सरकार के लिए चेतावनी थी  कि आने वाले दिनों में इस प्रकार की घटनाएं बढ़ेंगी, लेकिन न सरकार गम्भीर हुई और न प्रशासन। एक के बाद एक जिले में जिस प्रकार की घटनाएं घटी हैं उनमें से तो कुछ में काफी समानताएं हैं। इससे स्पष्ट है कि राज्य का खुफिया विभाग इन दंगों का आकलन करने में पूरी तरह से विफल रहा है। इस बार कन्नौज में सबसे पहले दंगा हुआ जिसमें महेश गुप्ता नामक युवक की हत्या कर दी गई। घटना का कारण मात्र यह था कि नगर में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन यात्रा निकाली जा रही थी। विसर्जन यात्रा लखन चौराहे पर पहुंची तो उधर से निकल रहे एक मुसलमान युवक पर गुलाल पड़ गया। उससे नाराज होकर मुसलमान युवकों ने हाथापाई शुरू कर दी। यही नहीं जुलूस में शामिल महिलाओं से छेड़खानी व अभद्रता की गई। पुलिस ने मामला शांत करवाकर जुलूस को जैसे-तैसे आगे बढ़वाया तो 'चूड़ी वाली गली' में मकानों पर खड़े मुसलमानों ने गोली चलानी शुरू कर दी। अचानक हुई गोलीबारी से भीड़ में भगदड़ मच गई।
इसी दौरान गोली लगने से महेश गुप्ता और अपूर्ण गुप्ता घायल हो गए। अस्पताल में उपचार के दौरान महेश गुप्ता ने दम तोड़ दिया। इस पूरे घटनाक्रम में पुलिस मूकदर्शक बनी रही। महेश के भाई की शिकायत पर सपा के कोषाध्यक्ष कैश खां, अतहर वारसी, हासमी वारसी, सोनू वारसी सभासद नफीस व शम्शुल कमर समेत 9 लोगों के विरुद्ध हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया। इस घटना में पुलिस यदि पहले ही सतर्क हो जाती तो अराजक तत्व शायद गोलीबारी करने की हिम्मत नहीं                  जुटा पाते। फतेहपुर जिले के मंडवा गांव में गंगा घाट पर दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन की व्यवस्था प्रशासन ने की हुई थी। आस-पास के लोग मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन कर रहे थे। घाट पर पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं। एक रास्ता गांव के अन्दर से घाट पर जाता है। इसके किनारे इमामबाड़ा पड़ता है, दूसरा रास्ता काफी घूमकर घाट पर निकलता है। भैरवां खुर्द गांव के लोग जब घाट पर जल्दी पहुंचने के लिए गांव के अन्दर से प्रतिमा लेकर जाने लगे तो मुसलमानों ने रास्ता रोक दिया। रास्ते की बात कर जब प्रतिमा आगे बढ़ाने का प्रयास किया तो पत्थर मारकर मां दुर्गा की प्रतिमा तोड़ दी गई। पथराव के साथ-साथ अपराधियों ने गोलीबारी भी शुरू कर दी। प्रतिमा विसर्जन जुलूस के आगे-आगे चल रहे जिला पंचायत सदस्य के प्रत्याशी गिरजेश सिंह, उनके चालक जितेन्द्र सहित तमाम लोग घायल हो गए। गांव में कई घरों को आग के हवाले कर दिया गया। मामला तूल पकड़ने पर ही पुलिस अधिकारी घटनास्थल  पर पहंुचे। इसका नतीजा यह हुआ कि साम्प्रदायिक तत्वों के हौसले इस कदर बुलंद हो गए कि मोहर्रम जुलूस के नाम पर साम्प्रदायिक ताकतों ने खूब हुड़दंग किया। प्रशासन के मूकदर्शक बने रहने के कारण कई जगह हिन्दुओं को अपनी रक्षा में आगे            आना पड़ा। कन्नौज और फतेहपुर की तरह कानपुर में भी साम्प्रदायिक उन्माद मचाया गया। गत 23 अक्तूबर को ताजिया जुलूस में शामिल युवकों ने कानपुर को बेवजह दंगों की आग में झोंक दिया। यहां दर्शनपुरवा में चाय पिलाने के लिए लगाए शिविर में लगे हिन्दू देवी-देवताओं के पोस्टरों को ताजिया जुलूस में शामिल शरारती तत्वों ने न केवल फाड़ डाला, बल्कि उन्हें सरेआम पांव से रौंदते रहे। इस घटना का पता चलते ही हिन्दू संगठनों ने पुलिस-प्रशासन से विरोध जताया। प्रशासन के बीच-बचाव पर कुछ बुजुर्गों ने माफी मांग कर प्रकरण समाप्त कर दिया। साथ ही यह तय किया कि अब जुलूस नहीं निकाला जाएगा, लेकिन  जैसे ही यह बाद सपा विधायक इरफान सोलंकी को पता चली तो वह प्रशासन पर बरस पड़े और जुलूस निकलवाने की जिद पर अड़ गए।
सत्ता के दबाव में प्रशासन ने जुलूस निकालने की अनुमति दे दी। इसके शुरू होते ही आक्रामक मुसलमान युवकों ने पूरे जोश से नारे लगाते हुए पथराव शुरू कर दिया। धीरे-धीरे यह आग दूसरे स्थानों पर भी फैल गई। बसों और ट्रेनों में सफर कर रहे लोगों को अराजक तत्वों ने अपना निशाना बनाया। अनेक दुपहिया और चारपहिया वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया। अराजकता इस कदर फैल गयी कि भीड़ पर चलाई गई गोली लगने से निरीक्षक योगेश शर्मा और थानाध्यक्ष डी.के. सिंह घायल हो गये। आखिरकार पुलिस को मोर्चा संभालना पड़ा तब जाकर दो दिन बाद बिगड़ी स्थिति को नियंत्रित किया जा सका। कानपुर के चार थाना क्षेत्रों में लगभग 2500 लोगों के विरुद्ध हिंसा, आगजनी, लूटपाट और राजकीय सम्पत्ति को क्षति पहुंचाने का मुकदमा दर्ज किया गया। वास्तविक अपराधियों को चिह्नित कर पकड़ने के सवाल पर पुलिस लकीर पीटती नजर आ रही है। पुलिस अधिकारी बता रहे हैं कि मीडिया में आयी फोटो तथा वीडियो फुटेज से अपराधियों की तलाश की जाएगी।  गाजीपुर में ताजिया जुलूस में शामिल युवकों ने पुलिस-प्रशासन की उपस्थिति में 'पाकिस्तान जिन्दाबाद' के नारे लगाए। यह सब काफी देर तक चलता रहा लेकिन प्रशासन मूकदर्शक बना रहा। खुलेआम और ताजिया जुलूस में 'पाकिस्तान जिन्दाबाद' का नारा लगाया जाना किसी की समझ में नहीं आया। इस जुलूस में शामिल कुछ युवकों ने 'पाकिस्तान' लिखी टी शर्ट पहनी हुई थी। मुसलमान युवकों की इस देश विरोधी हरकत से नाराज होकर हिन्दुओं को आगे आना पड़ा। इस पर जुलूस में शामिल मुसलमानों ने हिन्दुओं पर ईंट-पत्थर और लाठी-डंडों से हमला बोल दिया। इस घटना में दर्जन भर लोग घायल हो गए। इसके बाद प्रतापगढ़ में कुंडा के निकट  बदई गांव में बीच सड़क पर जैसे ही ताजिया रखा गया तो प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए। सड़क से ताजिया हटवाने गई पुलिस पर असामाजिक तत्वों ने हमला बोल दिया। इसी तरह सिद्धार्थ नगर के शोहस्तगढ़ कस्बे में ताजिया जुलूस जब राम-जानकी मन्दिर के पास पहुंचा तो अचानक शरारती तत्वों ने दंगा शुरू कर दिया। पहले साम्प्रदायिक तत्वों ने आपत्तिजनक नारे लगाए फिर विरोध करने पर मारपीट तथा पथराव शुरू कर दिया। शरारती तत्वों ने आगजनी कर काफी नुकसान पहुंचा दिया। इस दौरान मारपीट और पथराव से घायल एक व्यक्ति की मौत भी हो गयी।

आगरा के बल्केश्वर कस्बे में रात 11 बजे ताजिया जुलूस निकला,जुलूस में शामिल युवक लाठी-डंडों से लैस होकर चल रहे थे। रास्ते में एक घर के सामने रॉबिन नामक युवक खड़ा था। जुलूस में शामिल कुछ युवकों ने रॉबिन की अनावश्यक पिटायी कर दी गई। इस अराजकता के विरुद्ध रॉबिन के तमाम साथी भी आ गए, लेकिन किसी तरह विवाद रुका और लाठी से घायल रॉबिन का उपचार कराया गया।
संत कबीर नगर में ताजियादारों द्वारा अकारण लोगों की पिटायी किए जाने से माहौल बिगड़ गया। बरसरी सुखलालगंज में निकल रहे जुलूस में शामिल युवकों ने प्रद्युम्न नामक युवक की पिटायी कर दी तो खेता सराय में जुलूस देख रहे युवकों पर हमला बोल दिया गया। मुरादाबाद के मैनाठेर क्षेत्र में निकल रहा ताजिया इतना ऊंचा था कि वह हाईटेंशन तार से छू गया और जल गया। जुलूस में शामिल लोग अपनी गलती मानने के बजाय सारा गुस्सा समीप के उपकेन्द्र पर उतारा। वहां मौजूद कर्मचारियों को मारा-पीटा और तोड़-फोड़ की। लेकिन मजबूर प्रशासन कार्रवाई करने की बजाय उपद्रवियों के हाथ-पांव जोड़ता रहा।
प्रदेश के विभिन्न जिलों में हुई इन घटनाओं का विश्लेषण आगामी विधानसभा चुनाव से जोड़कर कर रहे हैं। माना जाता है कि दंगों पर नियंत्रण भी सियासत का लाभ या नुकसान देख कर ही किया जाता है। यदि हालात पर जल्द काबू नहीं पाया गया तो आने वाले    समय में पूरा प्रदेश दंगों की आग में झुलसता नजर आएगा।

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