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बंगलादेश से अवैध घुसपैठ जारी है। अगर घुसपैठ का यही हाल रहा तो वर्ष 2047 तक असम में स्थानीय आबादी अल्पसंख्यक हो जायेगी।’ सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एक सदस्यीय आयोग ने पांच अक्तूबर को सौंपी 55 पन्नों की अपनी रपट में ऐसी चिंता जाहिर की है। वरिष्ठ अधिवक्ता उपमन्यु हजारिका ने सर्वोच्च न्यायालय को सौंपी अपनी रपट में सुझाव दिया है कि न्यायालय बंगलादेश से हो रही घुसपैठ की उच्च स्तरीय जांच का आदेश दे। साथ ही यह भी सुझाव दिया है कि एक स्वतंत्र जांच कराई जाए जिसमें यह पता चल सके कि अवैध रूप से आ रहे घुसपैठियों को कहां से बल मिल रहा है और किस तंत्र से इसका संबंध है। दूसरा, मतदाता सूची में अप्राकृतिक वृद्धि और अचानक जो घर-परिवार इस सूची में जुड़े हैं उसकी जांच कराई जाए। तीसरा, कैसे इन अवैध लोगों को नागरिकता व सभी अधिकार प्राप्त हो जाते हैं, इन लोगों के सभी दस्तावेजों व राष्ट्रीय नागरिक पंजिका की निष्पक्ष एजेंसी से जांच कराई जाए। भारत-बंगलादेश सीमा के अपने व्यापक दौरे के बाद हजारिका आयोग ने यह भी सुझाव दिया है कि नदी के तट से जुड़ी अन्तरराष्ट्रीय सीमा (भारत-बंगलादेश) के क्षेत्र में सीमांकन- पहचान के जरिए एक विशेष क्षेत्र को सुरक्षा क्षेत्र बनाया जाए, साथ ही राज्य एवं केन्द्र सरकार इस विषय पर मिलकर एक नीतिगत निर्णय लें। आयोग की रपट के बाद न्यायालय ने केन्द्र एवं असम सरकार को संयुक्त रूप से निर्देश दिया है कि वे पांच नवंबर को इस संबंध में अपनी प्रतिक्रियाएं दें।
ऐसा नहीं है कि इस प्रकार की रपट में यह चिंता पहली बार जाहिर की गई है। दशकों से बंगलादेशी घुसपैठियों पर विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े रहे विशेषज्ञ इस पर चिंता जाहिर करते रहे हैं। तमाम सरकारी खुफिया एजेंसियां बार-बार इस सत्य से सरकारों का सरोकार कराती रही हैं। पर राजनीतिज्ञ वोटबैंक के लालच में इसको नजरअंदाज करते गए हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के ‘डिपार्टमेंट आॅफ इकॉनामी एंड सोशल अफेयर’ ने वर्ष 2013 में अपनी रपट में कहा था कि भारत में लगभग साढ़े तीन करोड़ बंगलादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं। असम में पुलिस प्रमुख रह चुके बलजीत राय ने 1993 में ‘भारत के खिलाफ जनसांख्यिक आक्रमण’ नाम की एक पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक में उन्होंने बताया था कि भारत में करीब 2 करोड़ के लगभग बंगलादेशी अवैध रूप से रहते हैं। साथ ही यह भी चिंता जाहिर की थी यह संख्या इससे भी कई गुना अधिक है। एशिया-2030 नाम की पुस्तक में प्रसिद्ध समाजशास्त्री डॉ. आनंद कुमार ‘इल्लिगल माइग्रेशन इन टू इंडिया: प्रॉब्लम्स एंड प्रोस्पेक्ट’ शीर्षक से रपट थी, जिसमें उन्होंने आश्चर्य प्रकट किया था कि आधिकारिक तौर पर बंगलादेश सरकार इस बात से मना करती है कि भारत में बंगलादेशी अवैध रूप से घुसपैठ कर रहे हैं। लेकिन व्यक्तिगत बातचीत में वहां के नेता इसे स्वीकार करते हैं। वहीं असम के राज्यपाल रहे अजय सिंह ने भी केन्द्रीय गृहमंत्रालय को लिखा था कि असम में हर रोज 6 हजार बंगलादेशी घुसपैठ करते हैं। लेकिन बाद में सरकार के दबाव में उनको कहना पड़ा कि यह संख्या पूरे देश में घुसने वाले बंगलादेशियों की है। इन तमाम झकझोरने वाली सूचनाओं के बाद 1997 में लेफ्टिनेंट जनरल एस.के. सिन्हा को असम का राज्यपाल बनाया गया था। उन्होंने 1998 में 42 पन्नों की एक रपट राष्ट्रपति को सौंपी थी, जिसमें लिखा था, ‘लंबे समय से उत्तरपूर्वी भारत को ‘लघु बंगलादेश’ बनाने का षडयंत्र भयंकर खतरा पैदा कर रहा है। चुपचाप होती घुसपैठ असम के निचले हिस्सों को भारत से काटने का काम कर रही है।’
उपमन्यु हजारिका आयोग की रपट के पहले की ये तमाम रपट और सूचनाएं हैं जो समय-समय पर आती रही हैं और डंके की चोट पर इस बात को उजागर करती रही हैं कि असम बंगलादेशी घुसपैठियों का गढ़ बनता जा रहा है। लेकिन नेताओं ने हर बार अपनी राजनीतिक पिपासा शान्त करते हुए इस बात पर मिट्टी डालकर इसे दफन किया है। लेकिन एक बार फिर उपमन्यु हजारिका आयोग ने असम में होती बंगलादेशी घुसपैठ पर चिंता जाहिर की है। पर सवाल उठता है कि क्या हर बार की तरह इस बार भी इस गंभीर विषय को नजरअंदाज किया जायेगा? 2047 तक असम में स्थानीय निवासियों के वजूद पर मंडराते संकट पर सरकारें चेतेंगी? या फिर हर बार की तरह इस बार भी यह रपट कुछ समाचारों की सुखियां बनने के बाद अपना दम तोड़ देगी?
सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता उपमन्यु हजारिका पाञ्चजन्य से बात करते हुए कहते हैं, ‘असम में अप्राकृतिक वृद्धि हो रही है। यह स्पष्ट है कि जिस प्रकार से स्थिति देखने में आती है उस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वर्ष 2047 तक असम से स्थानीय निवासियों के बजूद पर संकट आ जायेगा या फिर कहें कि अल्पसंख्यक हो जाएंगे।’ वे आगे कहते हैं, ‘बंगलादेश से जो घुसपैठ असम में हो रही है वह अचानक होती है, ऐसा बिल्कुल नहीं है। असल में इसके पीछे एक पूरा ‘रैकेट’ काम कर रहा है,जो इन घुसपैठियों को यहां पर स्थापित करने का काम करता है। नेता पहले इनको संरक्षण देते हैं बाद में यही घुसपैठिये चुनाव में इनका समर्थन करते हैं। असम में होती घुसपैठ का कोई भी नेता या दल इसका विरोध इसलिए नहीं करता है, क्योंकि यह एक बड़ा वोटबैंक जो होता है। अगर विरोध करते भी हैं तो एक बड़ी संख्या में यह विरोध में आ जाते हैं, जिससे चुनाव में हारने का डर पैदा हो जाता है।’असम की स्थिति समझाते हुए वे कहते हैं,‘जब बंगलादेश से अवैध पलायन करते हुए ये असम में दाखिल होते हैं तो वह डरे-सहमे होते हैं। स्थानीय नेता उनको बसाकर उनकी सहानुभूति बटोरते हैं। ऐसा नहीं है कि यह किसी खास दल के नेता ऐसा सब कुछ करते हैं। सभी दलों के नेता इनकी सहानुभूति पाने के चक्कर में रहते हैं क्योंकि वोट सभी को चाहिए। इस वोट के लालच में आज असम बंगलादेशियों से भरा पड़ा है।’ रपट में दिए प्रस्ताव पर कहते हैं ‘अगर बंगलादेशी घुसपैठ को तत्काल रोकना है तो यहां की जमीन को संरक्षित करना होगा। घुसपैठिये जमीन के लालच में यहां भगे चले आते हैं। वर्ष 1951 में ‘एनआरसी’ के अनुसार जो उस समय भारत के नागरिक रहे हैं उनकी ही संतति यहां जमीन खरीद सके। असम में गैर जनजातीय लोगों के लिए जनजातीय क्षेत्रों में भूमि के हस्तांतरण पर जो रोक लगी हुई है वैसी ही रोक गैर जनजातीय क्षेत्रों में भी लगाई जानी चाहिए, जिससे कि घुसपैठियों को जमीन प्राप्त करने से रोका जा सके।’
इन जिलों में हुई घुसपैठियों की भरमार
असम में बंगलादेशी मुसलमानों की घुसपैठ आज किसी से भी छिपी नहीं रह गई है। वोटबैंक के लालच ने असम की भौगोलिक स्थिति को ही बदलकर रख दिया है। अंधाधुंध भागते चले आ रहे बंगलादेशी मुसलमानों के चलते असम के 9 जिले पूरी तरह से मुस्लिम बहुल हो चुके हैं, जबकि 2001 के जनसंख्या सर्वेक्षण में असम के 6 जिले ही मुस्लिम बहुल थे। बरपेटा, धुबरी, करीमगंज, गोलपाड़ा, हैलाकांडी और नौगांव। पर अब इस क्रम में 3 और जिले जुड़ गए हैं। बोंगाईगांव, मोरीगांव और दरंग। इन जिलों में मुसलमानों ने पूरी तरह से कब्जा कर लिया है। असम के कुछ जिलों पर नजर डालें तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं और एक घातक संकेत करते हैं। धुबरी में 15.5 लाख मुस्लिम हैं, जहां हिन्दू कुल 3.88 लाख है। गोलपाड़ा में 5.8 लाख मुस्लिम हैं तो हिन्दू कुल 3.48। बरपेटा में 11.98 लाख मुसलमान हैं तो 4.92 लाख हिन्दू रह गए हैं। नौगांव में 15.6 लाख मुसलमान हैं तो कुल 12.2 लाख हिन्दू। मोरीगांव में 5.03 लाख मुसलमान हैं तो 4.51 लाख हिन्दू। वहीं करीमगंज में 6.9 लाख मुसलमानों के मध्य 5.3 लाख हिन्दू रह रहे हैं। दरंग में 5.97 मुस्लिम हैं तो वहीं 3.27 हिन्दू बचे हैं। हैलाकांडी में 3.97 लाख मुसलमानों के बीच में कुल 2.6 लाख हिन्दू हैं। बोंगाईगांव में 3.71 लाख मुसलमान हैं तो हिन्दू 3.59 लाख हैं। इन सभी जिलों में मुसलमानों की जनसंख्या का प्रतिशत हिन्दुओं की जनसंख्या के प्रतिशत से ज्यादा हो गया है। ऐसा नहीं हैं कि घुसपैठियों की नजर में सिर्फ यही जिले हैं, और भी जिले हैं जैसे-कछार,कामरूप और नलबाड़ी, जो बंगलादेश की सीमा से लगते हैं पर उन पर भी मुस्लिम बहुल होने के काले बादल मंडरा रहे हैं। इस विषय पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री एवं पूर्वोत्तर के क्षेत्रिय संगठनमंत्री श्रीहरि बोरिकर कहते हैं,‘इन घुसपैठियों के आने से रोजगार के सभी अवसर चाहे, वह मजदूरी, खेती, सब्जी से लेकर दूध बेचना हो या फिर अन्य छोटे-बड़े साधन, सभी पर ये कब्जा करते जा रहे हैं। इसके चलते स्थानीय निवासी रोजगार के लिए दर-दर भटकने पर मजबूर हो रहे हंै। घुसपैठिये यहां आकर हर प्रकार का अवैध काम करते हैं। मादक पदार्थों की तस्करी से लेकर चोरी, हत्या या फिर नकली मुद्रा या गोतस्करी।’ वे आगे कहते हैं,‘संगठन 1979 से घुसपैठियों के खिलाफ आन्दोलन चला रहा है जो आज तक जारी है।’
सामाजिक संगठनों में बढ़ता आक्रोश
भारत-बंगलादेश सीमा के रास्ते होती घुसपैठ पर राज्य के कुछ सामाजिक संगठन दशकों से इसका विरोध करते आ रहे हैं। उनके अंदर घुसपैठियों के प्रति भयंकर आक्रोश है तो वहीं मन में एक क्षोभ भी है कि सरकारें सब जानती हैं फिर भी असमियों की चिंता से किनारा करते हुए घुसपैठियों को गोद में बिठाती हैं और उन्हें पालती-पोसती हैं। असम जातिवादी युवाछात्र परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष ब्रज तालुकादार कहते हैं,‘बंगलादेश से बेरोकटोक मुस्लिम असम में रहने के लिए आ रहा है। यह घुसपैठ इतनी अधिक संख्या में होती रही तो हमारा यानी असमियों का लगभग बजूद ही खत्म हो जायेगा। सरकारें बदलती रहती हैं पर असम की हालत में कोई परिवर्तन नहीं आता है। हमारे लिए आज असम में होती बंगलादेशियों की घुसपैठ सबसे बड़े संकटों में से एक है।’ वह आगे कहते हैं, ‘स्थानीय निवासियों और अवैध बंगलादेशियों के बीच समय-समय पर हिंसक संघर्ष भी होते रहते हैं। पिछले कुछ वर्षों में इसके कई उदाहरण भी देखने को मिले हैं। अगर इसी प्रकार इनका आना जारी रहा तो आने वाले दिनों में यहां ‘सिविल वॉर’ की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।’ इसी संबंध में आॅल असम स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष दीपांकर नाथ जो वर्षों से अवैध बंगलादेशियों के असम आने पर विरोध और आन्दोलन करते रहे हंै वे बताते हैं, ‘बंगलादेश से हिन्दू-मुसलमान दोनों का पलायन हो रहा है। इसमें मुसलमानों का संख्या प्रतिशत बहुत ज्यादा है तो हिन्दुओं का बहुत ही कम। 25 मार्च,1971 को एक असम समझौता हुआ था कि 1971 से जो असम में प्रवेश करेगा उसे निकाल दिया जाये। उसके बाद 1979 से 1985 तक एक बड़ा आन्दोलन असम में चला था। इस हिंसा में हमारे 855 लोग शहीद भी हुए थे। 1985 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार और असम आन्दोलनकारियों के मध्य हुए असम समझौते के कई बिन्दुओं पर अमल न होने के चलते कई ज्वलंत मुद्दे अभी भी बने हुए हैं।’
कहां से मिलता है इनको संरक्षण
असल में असम में बढ़ती अवैध बंगलादेशी मुसलमानों की घुसपैठ में राज्य की राजनीतिक दल बड़ी अहम भूमिका अदा करते हैं। राजनीतिक दलों का इनको पूरा संरक्षण प्राप्त रहता है और यह सब होता वोट बैंक के चक्कर में। जहां कांग्रेस की गोगोई सरकार इनको मनाने के हर वह उपाय करती हुई दिखती है तो वहीं असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रन्ट (एयूडीएफ) जैसे दल जो एक तरीके से अवैध बंगलादेशियों का खुलकर पक्ष लेते हैं। यह दल एक तरीके से इन घुसपैठियों की ही देन है। कोई भी अपने हाथ से इस बड़े वोट बैंक को जाने नहीं देना चाहता है। इस बात के परिणाम भी असम विधानसभा चुनाव में मिले हैं। कैसे एयूडीएफ ने अपना दबदबा बढ़ाया और विधानसभा की 18 सीटों पर कब्जा किया। कुछ आंकड़े हैं, जो अवैध मुसलमानों के आने को पुष्ट करते हैं। पूरे देश में 1996 में मतदाताओं की संख्या 592572288 थी जो 2009 में बढ़कर 713776525 हो गयी यानी इसमें 20.45 प्रतिशत की वृद्धि हुई। असम में 1996 में कुल मतदाता 12589067 थे जो 2009 में बढ़कर 17443617 हुए यानी असम की मतदाता सूची में 38.56 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इस 13 वर्ष के अन्तराल में असम में 4854557 मतदाता बढ़ते हैं पर इस वृद्धि दर में समानता नहीं है क्योंकि 2004 में असम में मतदाताओं की संख्या 15014874 थी जो 2006 में बढ़कर 17434019 हो गयी यानी मात्र दो वर्ष में ही 2419145 मतदाता बढ़ गए। असल में जिन लोगों के नाम मतदाता सूची में दर्ज कराये गए हैं वे सभी कथित बंगलादेशी घुसपैठिये ही हैं। 2006 में ही असम की राजनीति में एयूडीएफ का जन्म हुआ था। इस अप्रत्याशित वृद्धि का श्रेय उसी को बताया जाता है। लेकिन किसी ने भी इस अप्रत्याशित वृद्धि की छानबीन नहीं की। इसी का परिणाम है कि एयूडीएफ आज भी इस कार्य में लगा हुआ है। असम की वास्तविक स्थिति यह है कि विधानसभा चुनाव के कुल 126 क्षेत्रों में से 56 ऐसे क्षेत्र बन गए हैं जहां पर चुनाव में वही प्रत्याशी जीत सकता है जिसको बंगलादेशी मुसलमानों का समर्थन प्राप्त होता है। बंगलादेशी मुसलमानों की राजनीति करने वाली एयूडीएफ ने 18 सीटें जीतकर विधानसभा चुनाव में अपनी ताकत का अहसास भी कराया है। इस पूरे मामले पर अरुणाचल प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक आर.के.ओहरी कहते हैं, ‘बंगलादेश से जो भी घुसपैठ हो रही है वह सरकारों की विफलता के कारण ही हो रही है। ऐसा नहीं है कि बंगलादेश से होने वाली घुसपैठ को रोका नहीं जा सकता। लेकिन इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति होनी आवश्यक है। हमें इस्रायल की नीति अपनानी होगी और सेवानिवृत्त लोगों को वहां सशस्त्र तैनात करना होगा। जो उस क्षेत्र की पूरी भौगोलिक स्थिति से वाकिफ हों।’ वे आगेकहते हैं कि मौजूदा स्थिति बड़ी खराब है। इसलिए बहुत जल्दी ही इस पर कदम उठाना होगा।
18 हजार बंगलादेशी घुसपैठिये 2012-14 के दौरान पूरे देश में गिरफ्तार किए गए
986घुसपैठियों को सीमा सुरक्षा बल ने 2012-14 में भारत-बंगलादेश सीमा पर गिरफ्तार किया
9 जिले मुस्लिम बहुल हो गए हैं असम के। इनमें मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर पिछले एक दशक में 20 से 24 प्रतिशत तक रही।
126 विधानसभा सीटों में 40 सीटें ऐसी हैं, जिसमें मुस्लिम 40 से 80 प्रतिशत तक हो चुके हैं।
50लाख से ज्यादा हैं असम में बंगलादेशी घुसपैठिये
असम में मुसलमानों का प्रतिशत
2001- 30.9%
2011- 34.2%
अश्वनी मिश्र
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