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अंक संदर्भ- 11 अक्तूबर, 2015
आवरण कथा 'दुनिया को भाया भारत' से स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमरीका सहित अन्य देशों की यात्राओं से भारत की एक विशिष्ट छवि विश्व में पहुंची है। आज विश्व के अधिकतर देश भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं, भारत की संस्कृति को जानने के लिए उत्सुक नजर आ रहे हैं। नरेन्द्र मोदी के सहज-सरल व्यवहार ने विदेशों में बसे भारतवंशियों का दिल तो जीता ही, साथ ही उन विदेशियों की धारणा बदल दी जो भारत को 'सपेरों और जादूगरों के देश' के रूप में जानते थे। आज विश्व पटल पर भारत की जो प्रतिष्ठा बढ़ी है उसका परिणाम आने वाले वक्त में अवश्य सामने आयेगा।
—मनोहर मंजुल
पिपल्या-बुजुर्ग, प.निमाड (म.प्र.)
जब से नरेन्द्र मोदी ने देश की बागडोर संभाली, तब से विश्व मंच पर भारत ही भारत दिखता है। सवा सौ करोड़ देशवासियों के प्रतिनिधि के रूप में मोदी जहां भी जाते हैं वहां जनता और सरकार पलक-पांवड़े बिछाकर उनका स्वागत करती है। इसे देखकर हर देशवासी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। विकास के साथ-साथ भारत की संस्कृति और अध्यात्म का डंका भी आज पूरे संसार में बज रहा है।
—उदय कमल मिश्र
सीधी (म.प्र.)
ङ्म भारत की आध्यात्मिक चेतना को समझने के लिए दुनिया लालायित है। कुंभ इसका उदाहरण है। कुंभ में इसके साक्षात दर्शन होते हैं। विदेशों से लोग यहां खिंचे चले आते हैं और सनातन धर्म में अपनी आस्था प्रकट करते हैं। शायद ही उनके द्वारा अन्य किसी मत-पंथ के प्रति ऐसा सद्भाव देखने को मिलता हो। भारत में आज अध्यात्म और विज्ञान आपस में मिलकर इस देश को आगे बढ़ा रहे हैं। दुनिया इसे देखकर अचंभित हो रही है। आज मोदी के रूप में हमारे राष्ट्र का नेतृत्व पूरे विश्व में चर्चित हो रहा है, क्योंकि हमारे प्रधानमंत्री ने अपने राष्ट्र की सुप्त ताकत को जगाने का बीड़ा जो उठाया है। विकास और विश्वास की ऊंची उड़ान से भारत अपना खोया गौरव पुन: पाने को तैयार दिखता है। हमारे प्रधानमंत्री ने विदेशों में जो भारत की छवि प्रस्तुत की है वह 'मेक इन इंडिया' व 'डिजिटल इंडिया' की राह आसान करने में मील का पत्थर साबित होने वाली है। इसी का परिणाम है कि भारत में विदेशी निवेश बढ़ रहा है और विदेशी कारोबारी भारत में कारोबार करने के लिए आ रहे हैं।
—हरिहर सिंह चौहान
जंबरीबाग नसिया, इंद्रौर (म.प्र.)
आज विदेशों से जो लोग भारत की ओर खिंचे चले आ रहे हैं उसके कई कारण हैं। भारत धर्म और अध्यात्म का पुंज है, जहां हर कोई आकर यहां के सुरम्य वातावरण को महसूस करना चाहता है। गंगा जैसी पवित्र नदी यहां है। शायद ही ऐसा आध्यात्कि वातावरण किसी अन्य देश में महसूस हो।
—रामदास गुप्ता
जनता मिल (जम्मू-कश्मीर)
मिशनरी षड्यंत्र
पूर्वोत्तर में ईसाई मिशनरियां कन्वर्जन के लिए सतत् लगी हुई हैं। वनांचल में वनवासियों का हमदर्द बनकर शिक्षा के नाम पर उनके बच्चों को वे मिशनरी विद्यालयों में छोटी उम्र में ही ईसाइयत का पाठ पढ़ाना शुरू कर देते हैं। धीरे-धीरे फिर इन्हीं को अपने झांसे में लेकर कन्वर्ट कर देते हैं और आगे चलकर यही भारत और भारतीयता का विरोध करने लगते हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों में बढ़ती ईसाइयों की संख्या आने वाले समय में देश के लिए घातक सिद्ध होने वाली है। हाल ही में आए जनसंख्या के आंकड़े उनकी तेजी से बढ़ती संख्या पर मुहर लगाते हैं। सरकार को इस पर विचार करना होगा और मिशनरियों के खेल को रोकना होगा।
—रामकुमार वर्मा, देवास (म.प्र.)
मीडिया पर प्रश्न चिन्ह
मीडिया का कार्य सही समाचार देना है। जनता की बात को सरकार के सामने रखना है। समस्या पर बहस करनी है और अगर किसी के साथ गलत हो रहा है तो उसकी आवाज बनकर सरकारों को जगाना है। पर आज का मीडिया यह सब नहीं कर रहा। स्वयं के हित को देखते हुए वह समाचार करता है। देश मे व्याप्त विभिन्न सामाजिक समस्याओं को दिखाने के बजाय वह चुनावों में नेताओं द्वारा बोले जाने जहरीले बयानों को दिनभर सुर्खियां बनाता है। वहीं झूठे समाचारों को भी दिखाने का चलन आज के मीडिया में खूब चल रहा है। इसी कारण शायद मीडिया की विश्वसनीयता और निष्पक्षता की छवि धूमिल हो रही है।
—राममोहन चन्द्रवंशी
टिमरनी, हरदा (म.प्र.)
दोधारी तलवार
इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट के अत्याचारों से प्रताडि़त होकर लाखों शरणार्थी यूरोप की ओर भाग रहे हैं। इराक और सीरिया के आस-पास के मुस्लिम देश इन शरणार्थियों को अपने यहां शरण देने में लगातार टालमटोल कर रहे हैं, जबकि ये धनी अरबी देश खुद को सारी दुनिया में इस्लाम और मुसलमानों का झण्डाबरदार दिखाते हैं। लगभग 40 लाख शरणार्थी अपनी भूमि छोड़कर यूरोपीय राष्ट्रों की ओर जा चुके हैं। इस्लाम के नाम पर यह दोहरा अत्याचार अरब की भूमि पर चल रहा है। इस घटनाक्रम का एक और पहलू है। एक तरफ आज शरणार्थी बनकर यूरोपीय देशों में प्रवेश करने वाले विभिन्न फिरकों के मुसलमान शरण मांग रहे हैं। दूसरी तरफ, जब यही मुसलमान भविष्य में इन यूरोपीय देशों में अपने आपको स्थापित कर लेंगे तो अपनी मजहबी मांगे नहीं रखेंगे, इस पर यकीन कैसे आ सकता है।
—डॉ. सुशील गुप्ता
शालीमार गार्डन कॉलोनी, सहारनपुर (उ.प्र.)
समझने की जरूरत
आरक्षण शब्द सुनते ही इसके पक्ष एवं विपक्ष में तर्कों की बाढ़ आ जाती है। पर इसके कुछ तथ्य गौर करने योग्य हैं। संविधान प्रदत्त इस अधिकार के पीछे उद्देश्य यह है कि विशेष सामाजिक पृष्ठभूमि के कारण समाज के वंचित एवं शोषित समूह को मुख्यधारा में लाने के लिए विशेष अवसर प्रदान किए जाएं ताकि इस वर्ग का उत्थान भारत के समग्र उत्थान का हिस्सा बने। अत: आरक्षण के पीछे संविधान का उद्देश्य समाज का सामूहिक उत्थान है, न कि व्यक्तिगत विकास।
—राकेश कुमार
शान्ति नगर, कानपुर (उ.प्र.)
वर्तमान राजनीति का स्वरूप
आज भारत की राजनीति को वोटों के सौदागर केवल जातियों-मजहबों में तौलकर अपनी जीत सुनिश्चित करते आ रहे हैं। पहले न तो ऐसे राजनेता थे और न ही इस प्रकार की घिनौनी राजनीति होती थी। उस समय की राजनीति एक उद्देश्य के साथ होती थी। लेकिन आज के नेताओं का तो एक ही उद्देश्य दिखता है कि किसी भी तरीके से अपने को स्थापित करो और उसके बाद राजनीतिक सुख भोगो। इस राजनीति को बदलने के लिए जनता को ही जागना होगा और अच्छे नेताओं को चुनना होगा। तभी देश को अच्छे नेता मिलेंगे और देश का कल्याण होगा।
—ओमहरित
फागी, जयपुर (राज.)
ङ्म कलम की ताकत तलवार से ज्यादा होती है, परन्तु जब कलम चाटुकारिता पर उतर आए तो केवल नाश ही करती है। नई सरकार आने के बाद इन सेकुलर लेखकों की दाल नहीं गल रही है। विदेशों से आते धन पर रोक जो लगी है, इसीलिए पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर देश के ये तथाकथित नामी साहित्यकार अपने पुरस्कार लौटा रहे हैं। इसके पीछे वे तर्क दे रहे हैं कि 'कुछ दिनों से देश में हिंसा बढ़ गई है। पूरा देश साम्प्रदायिकता की आग में जल रहा है।' पर वे पहले हुईं घटनाओं पर चुप्पी ओढ़े रहे, क्यों? क्या पिछले साठ सालों में देश में शान्ति और सद्भाव की गंगा बह रही थी? कोई दंगे या विस्फोट नहीं हुए?
—कृतिका मिश्रा
गांधी नगर, कानपुर (उ.प्र.)
ङ्म बिसहड़ा गांव की घटना निश्चित रूप से निन्दनीय है, लेकिन इस घटना ने देश के सामने एक प्रश्न खड़ा कर दिया है कि कब तक हम अपनी आस्था और मान्यताओं को खंडित होते देखते रहेंगे? इतिहास साक्षी है कि विदेशी आक्रान्ताओं ने हमारे निरपराध समाज एवं परम्पराओं पर अमानवीय अत्याचार किए। जन, धन, मन और यहां तक कि अस्तित्व को ही समाप्त करने का षडयंत्र रचा। ऐसे ही षड्यंत्र की शुरुआत अब फिर से हो रही है। इस षडयंत्र में सेकुलर नेता बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। पर हिन्दू कब तक इस राजनीति मंे पिसते रहेंगे? कब तक अपने पर होने वाले अत्याचारों को वे सहन करेंगे?
—चन्द्रमोहन चौहान
तलवंडी, कोटा(राज.)
उन्नति में बाधक तत्व
देश के सामने कई समस्या मुंहबाए खड़ी हैं। चाहे आन्तरिक सुरक्षा की बात हो या फिर बाह्य। भारत में रहकर भारत के खिलाफ विष घोलने का काम करने वालों की कमी नहीं है। ऐसा कोई भी दिन नहीं होता है जब ये लोग सरकार के समक्ष कोई न कोई समस्या खड़ी न करते हों। ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जैसे भारत में कोई बड़ा संकट उत्पन्न हो गया हो। दूसरी ओर बाह्य संकट तो भारत को घेरे ही रहता है। पाकिस्तान और चीन द्वारा आएदिन भारत के खिलाफ षड्यंत्र रचा जाता है। यहां तक कि पाकिस्तान तो प्रतिदिन नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी करता है। अगर देश में शान्ति और खुशहाली चाहिए तो इन देशविरोधी तत्वों को समाप्त करना होगा, क्योंकि ये सभी तत्व देश की उन्नति में बाधक हैं।
—चन्द्रमौलि शर्मा
जमुई (बिहार)
भ्रष्टाचारियों के साथी
सोलवीं लोकसभा चुनाव की तैयारी से लेकर परिणाम आने तक तमाम वर्तमान विरोधी दलों की राजनीति केवल एक ही बिन्दु पर केन्द्रित रही कि जैसे भी हो भाजपा और नरेन्द्र मोदी को हर हाल में केन्द्र में सत्तारूढ़ होने से रोकना है। इसके लिए उनके द्वारा सभी हथकंडे अपनाए गए। अफवाहें और भ्रान्तियां फैलायी गईं। इसके बाद भी उनके मंसूबे पूरे नहीं हुए। देश की जनता ने इनके द्वारा भाजपा के खिलाफ खड़े किए गए साम्प्रदायिकता के हौव्वे का खौफ मानने से इंकार कर दिया तथा भारतीय जनता पार्टी के स्वदेशी, समरसता और राष्ट्रवादी चिंतन पर मुहर लगा दी।
बिहार चुनाव में भी कांग्रेस समेत सभी सेकुलर दलों द्वारा ऐसा किया जा रहा है। एक स्वर में वे सभी भाजपा के खिलाफ मैदान में उतरे हुए हैं। लेकिन राज्य की जनता को जानना होगा, क्योंकि इस बार के बिहार चुनाव कई मायनों में महत्वपूर्ण हैं। राज्य की जनता भी भाजपा के पक्ष में दिखती है और उसे अवसर देना चाहती है। उसके काम-काज को परखना चाहती है। केन्द्र की मोदी सरकार को शक्ति संपन्न बनाकर उसको मौका देना चाहती है। बिहार की जनता नीतीश सरकार के कामकाज के तरीकों से नाराज है। अपने को ईमानदार बताने वाले नीतीश लालू यादव जैसे भ्रष्टाचारियों का साथ लेते हैं। लेकिन फिर भी अपने को स्वच्छ छवि का नेता बताते नहीं थकते हैं। अब जनता को तय करना है कि जब नीतीश चुनाव के पहले ही भ्रष्टाचारियों का साथ ले सकते हैं तब सरकार बनने के बाद कितने भ्रष्टाचारियों के कंधों पर सवार होंगे। बिहार की जनता इस बार माझी के अपमान का हिसाब चुकाना चाहती है। लालू जैसे भ्रष्टाचारियों के जंगलराज से अपने को बचाना चाहती है। वह कांग्रेस की बांटो-खाओ नीति को नेस्तोनाबूद करना चाहती है। इसलिए वह राज्य में भाजपा की सरकार लाना चाहती है।
—डॉ. कैलाश नारायण प्रजापति
बार्ड-6, बरुनपुरा, लहार, भिण्ड (म.प्र.)
बातों ने तूफान उठाया
छोटी सी है जीभ पर, कैसे टेढ़े काम
उल्टा-सीधा बोलकर, कर देती बदनाम।
कर देती बदनाम, चुनावी मौसम आया
छोटी-छोटी बातों ने तूफान उठाया।
कह 'प्रशांत' ये जीभ बहुत सम्मान दिलाती
लेकिन कभी-कभी ये भद भी पिटवाती॥
-प्रशांत
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