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भारत -अफ्रीका शिखर वार्ता को मोटे तौर पर दो वजहों के चलते याद किया जाएगा। पहला, भारत ने अफ्रीका को अब बेहद गंभीरता से लेना शुरु कर दिया है। भारत समूचे अफ्रीका में निवेश करना चाहता है। साथ ही, अफ्रीकी देशों से ऊर्जा की अपनी निरंतर बढ़ रही जरूरतों को पूरा करने के लिए खास सहयोग की अपेक्षा भी रखता है। दूसरा, दुखद बात है कि इतने बड़े सम्मेलन को लेकर भारतीय मीडिया का रुख बेहद ठंडा रहा। उसने फेसबुक प्रमुख मार्क जुकरबर्ग की यात्रा को शायद शिखर वार्ता से अधिक तवज्जो दी। जिस सम्मेलन में 50 से ज्यादा अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हों, जिनमें कई राष्ट्राध्यक्ष शामिल हों, उसको लेकर मीडिया का रवैया कतई सही नहीं माना जा सकता।
बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सभी नेताओं से वार्तालाप किया ताकि आपसी सहयोग के नए मार्ग खुल सकें। मोदी की जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति राबर्ट मुगाबे के साथ मुलाकात में आतंकवाद को किस तरह मात दी जा सकती है, इस विषय पर बात हुई। अफ्रीका के कई देश इस्लामिक आतंकवाद से प्रभावित हो रहे हैं। बोको हराम नाइजीरिया में लगातार कत्लेआम कर रहा है, तो केन्या में अल शबाब। नाइजीरिया और केन्या दोनों भारत के लिहाज से बेहद खास हैं। नाइजीरिया से भारत कच्चे तेल का बड़ी मात्रा में आयात करता है। उधर, पूर्वी अफ्रीकी देश केन्या में लंबे समय से भारतवंशी बसे हुए हैं। इन्होंने केन्या समेत समूचे पूर्वी अफ्रीका में रेल नेटवर्क बिछाया था, बेहद विषम परिस्थितियों में। बीते साल अल शबाब के चरमपंथियों ने केन्या के गरिसा शहर में हमला किया विश्वविद्यालय परिसर में घुसकर। उन्होंने छात्रों को बंधक बना लिया। उन्होंने ईसाई छात्रों को अलग खड़ा कर गोलियों का निशाना बनाया। अल शबाब घोर कट्टरपंथी इस्लामिक संगठन है। उसके बाद उन्होंने केन्या की राजधानी नैरोबी के एक मॉल में भी घुसकर दर्जनों लोगों को मारा। जाहिर है, इस रोशनी में मोदी-मुगाबे वार्ता अहम है।
भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन से पहले भारत ने कहा है कि वह 54 देशों और एक अरब 10 करोड़ लोगों के अफ्रीका के एजेंडा-2063 से खुद के रिश्तों को जोड़ने की कोशिश कर रहा है। बेशक, ये बेहतर संयोग रहा कि भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन तब आयोजित हुआ जब गांधी जी को साऊथ अफ्रीका से स्वदेश वापसी के 100 साल पूरे हुए हैं। गांधी जी के चलते समूचा अफ्रीका और दुनिया के किसी भी भाग में बसे अफ्रीका मूल के लोग भारत को लेकर कृतज्ञता का भाव रखते हैं। गांधी जी ने साऊथ अफ्रीका के अपने करीब दो दशकों के प्रवास के दौरान अश्वेतों के हक के लिए जुझारू प्रतिबद्धता से लड़ाई लड़ी।
और जैसी कि उम्मीद थी, शिखर वार्ता में भारत-अफ्रीका के बीच व्यापारिक संबंधों को और मजबूती देने पर ध्यान रहा। भारत अफ्रीका में बड़ा निवेशक है एवं करीब 30 बिलियन डॉलर के भारतीय निवेश ने अफ्रीका में नौकरियों के लिए महती योगदान दिया है। अफ्रीका में टाटा, महिन्द्रा, भारती एयरटेल, बजाज आटो, ओएनजीसी जैसी प्रमुख भारतीय कंपनियां कारोबार कर रही हैं। भारती एयरटेल ने अफ्रीका के करीब 17 देशों में दूरसंचार क्षेत्र में 13 अरब डॉलर का निवेश किया है।
भारतीय कंपनियों ने अफ्रीका में कोयला, लोहा और मैगनीज खदानों के अधिग्रहण में भी अपनी गहरी रुचि जताई है। इसी तरह भारतीय कंपनियां दक्षिण अफ्रीकी कंपनियों से यूरेनियम और परमाणु प्रौद्योगिकी प्राप्त करने की राह देख रही हैं तो दूसरी ओर अफ्रीकी कंपनियां एग्रो प्रोसेसिंग व कोल्ड चेन, पर्यटन व होटल और रीटेल क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के साथ सहयोग कर रही हैं। इसके अलावा अफ्रीकी बैंकों, बीमा और वित्तीय सेवा कंपनियों ने भारत में अपने आने का रास्ता बनाने और उपस्थिति बढ़ाने के लिए भारत केंद्रित रणनीतियां तैयार की हैं। आप केन्या की राजधानी नैरोबी में जाएं या फिर साउथ अफ्रीका के किसी प्रमुख शहर में, सभी में भारतीय कंपनियों के बड़े विशाल विज्ञापनों को प्रमुख चौराहों पर लगा हुआ देखा जा सकता है। जाहिर है कि अफ्रीका के गांधी जी से जिस प्रकार के भावनात्मक संबंध रहे हैं, उसका भारत को लाभ मिल रहा है। भारत की ख्वाहिश है कि अफ्रीका के बाजार में भारत को और भी जगह मिले। भारत कतई नहीं चाहेगा कि वहां पर चीन, ब्राजील और दूसरे देश ही जमें। इसी रोशनी में भारत की विदेश नीति को तय करने वाले समूचे अफ्रीका पर खास ध्यान देने लगे हैं।
एक बात साफ है कि भारत ने देर से ही सही अफ्रीकी देशों के साथ रिश्तों को मजबूत बनाने की ठोस पहल शुरू कर दी है। अफसोस कि भारत को अफ्रीका की ताकत का अहसास तब हुआ जब चीन ने वहां पर बड़े स्तर पर प्रवेश कर लिया।
बावजूद इसके कि भारत को लेकर समूचे अफ्रीका में सद्भावना रही, फिर भी भारत ने इतने बड़े क्षेत्र को पहले कमोबेश नजरअंदाज ही किया था। हमारा सारा ध्यान व्यापार के स्तर पर अमरीका, खाड़ी और यूरोपीय देशों तक ही सीमित रहा। भारत का अफ्रीकी संघ के देशों के साथ 1990 तक व्यापारिक कारोबार मात्र एक अरब डॉलर ही था। यह भारत के कुल विदेश व्यापार का मात्र दो फीसद था। साल 2005 से लेकर साल 2010 तक दोतरफा व्यापार का आंकड़ा 40 बिलियन डॉलर को पार कर गया है। भारत की चाहत है कि भारत व अफ्रीका के बीच द्विपक्षीय व्यापार को 2020 तक बढ़ाकर 200 अरब डॉलर तक किया जाए।
भारत की ऊर्जा क्षेत्र में तेजी से बढ़ती जरूरतों की रोशनी में भी अफ्रीका अहम है। नाइजीरिया उन देशों में शामिल है, जिनसे भारत सर्वाधिक कच्चे तेल का आयात कर रहा है। पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2012-13 में अफ्रीका से भारत को 3़1 करोड़ टन कच्चे तेल की आपूर्ति हुई जबकि केवल नाइजीरिया से ही 1़ 23 करोड़ टन तेल का आयात किया गया। नाइजीरिया में भारत की मौजूदगी अच्छी-खासी है।
भारतीय नाइजीरिया में उस तरह से निवेश नहीं कर रहे हैं जैसा कि वे दूसरी जगह करते हैं। इसके चलते नाइजीरिया ने निराशा जाहिर की है। नाइजीरिया की इच्छा है कि वहां भारत की मौजूदगी और दिखे।
याद रखना चाहिए कि संबंधों और मैत्री में सिर्फ व्यापार ही सब कुछ नहीं होता। भारत सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि यहां पर रहने वाले हजारों अफ्रीकी नागरिकों के साथ कोई भेदभाव न हो। कुछ समय पहले इस तरह की अनेक खबरें आ रही थीं जब गोवा, पुणे, पंजाब, दिल्ली में अफ्रीकी नागरिकों को दोयम दर्जे का इंसान माना जा रहा था।
इसी तरह कुछ समय पहले केन्या से खबरें आ रही थीं कि वहां पर एशियाई समाज के साथ भेदभाव के मुद्धे को लेकर एशियाई मूल के सांसदों ने कड़ा विरोध जताया था। दरअसल एक केन्या मूल के सीनेटर जॉनस्टोन मुथुम्मा ने एशियाई समाज को लेकर बेहद आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। उसको लेकर भारतवंशी सांसदों ने सरकार के सामने अपना विरोध दर्ज कराया था। दरअसल वहां के एक प्रांत के गवर्नर ने कुमार धर नाम के एक भारतवंशी को उद्योग मंत्री नियुक्त किया था। इस पर मुथुम्मा ने एशियाई समाज पर एक हल्की टिप्पणी की थी। मुथुम्मा ने कहा था कि जब तमाम योग्य लोग हैं, तो भारतवंशी कुमार को इतना अहम पद देने की क्या जरूरत थी।
अगर भारत में अफ्रीकियों के साथ भेदभाव न रहा तो मानकर चलिए कि भारत को व्यापारिक स्तर पर अफ्रीकी देशों में पैर जमाने में मदद मिलेगी। तब इस तरह के सम्मेलनों का और ज्यादा असर होगा। नाइजीरिया में करीब 50,000 भारतीय रहते हैं। कुल मिलाकर माना जा सकता है कि भारत को लेकर अफ्रीका में तमाम संभावनाएं मौजूद हैं अपने कारोबार को तेजी से बढ़ाने के लिहाज से। जो अवरोध हैं, उन्हें दूर किया जा सकता है। अफ्रीका हमारे साथ सहयोग के लिए तैयार है। अब हमें उसे उसका वाजिब हक देना होगा
विवेक शुक्ला
1990
में भारत-अफ्रीका के बीच व्यापारिक कारोबार एक अरब डॉलर का था
2005-2010
में भारत-अफ्रीका के बीच व्यापारिक कारोबार हुआ 40 अरब डॉलर
2020
तक द्विपक्षीय व्यापार 200 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना
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