चर्चा-बिन्दु - कृषि, गोपालन और सेकुलरवाद
May 13, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

चर्चा-बिन्दु – कृषि, गोपालन और सेकुलरवाद

by
Nov 2, 2015, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 02 Nov 2015 12:03:39

कृषि और गोपालन परस्पर पूरक एवं अन्योन्याश्रित हैं। गोवंश आधारित कृषि इस देश की आर्थिक रीढ़ रही है। तत्सम्बंधी ग्राम-उद्योग अपनी वंशगत विशेषज्ञता के कारण बेरोजगारी को पनपने देने में बहुत बड़े अवरोधक रहे हैं। गोवंश का जितना विनाश मुगल-शासन और ब्रिटिश-शासन में हुआ, उससे सौ गुना अधिक विनाश स्वतन्त्रता के गत 68 वषार्ें में हो गया है। गोवंश के इस महाविनाश के प्रत्यक्ष दुष्परिणाम हम नित्य समाचार पत्रों में पढ़ने के इतने 'आदी' हो गये हैं कि हमारे मन-मस्तिष्क को झकझोरने के बजाय ये समाचार सरसरी दृष्टि में आते रहने पर भी इनकी कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रतिक्रिया कहीं दिखायी नहीं पड़ती। प्रतिवर्ष नकली दूध, नकली मक्खन, नकली घी, नकली मावा के अनेक मामले पकड़ने के 'रिहर्सल' तो होते दिखायी देते हैं, पर वर्ष भर यह पकड़-धकड़ न जाने कहां लुप्त हो जाती हैं? हां, विभागीय कर्मचारियों एवं अधिकारियों की अवैध आय के स्रोतों तथा धनराशि में संवृद्धि अवश्य होती रहती है। हजारों नहीं, लाखों किसानों की आत्महत्या के प्रति भी हम इतने संवेदनहीन हो गये हैं कि जैसे 'हृदय' हृदय ही न रह गया हो। कहीं कोई प्रतिक्रिया परिलक्षित नहीं होती। ऐसी हृदयहीनता पूरे समाज में पनपते-पनपते हम इतने पत्थरदिल हो चुके हैं कि 'उनसे भले विमूढ़, जिनहिं न ब्यापै जगतगति' की उक्ति चरितार्थ हो रही है। कारों तक में गोमांस बरामद हो रहा है, ट्रकों में भूसे जैसे भरे गोवंश के समूह के समूह पकड़े जाते हैं, सेकुलर नेता इतने ढीठ और उद्दण्ड हो गये हैं कि अपराधियों को छुड़ाने के लिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जैसे पदों पर अधिष्ठित अधिकारियों तक को न केवल प्रलोभन देने का प्रयत्न करते हैं, अपितु उनके दबाव में न आने पर उन्हें दण्डित करवाने तक की क्षमता प्रदर्शित करने की डींग मारते मंत्री पद तक पर विराजमान दृष्टिगत होते हैं। कभी केवल मुसलमान ही गोहत्या को अपना 'मजहबी दायित्व' मानते थे, पर अब तो कई अन्य 'धुरन्धर' बेझिझक गोहत्यारों के पक्षकार बनते नहीं लजाते। बलिहारी गांधीवादी-नेहरूवादी सेकुलरवाद की! एक संप्रदाय विशेष के वोटों के लालच में खुलेआम गोहत्यारों की चाटुकारिता करने में भी ऐसे लोगों को रंचमात्र लज्जा नहीं आती।
अब तो स्थिति इतनी भयावह हो गयी है कि अनेक दूरदर्शनी चैनल पूरी हेकड़ी के साथ गोहत्या और गोमांस-भक्षण पर बहस चलाने लगे हैं। इन बहसों में सेकुलरवादियों ने लगातार उसी ढिठाई के साथ यह प्रचारित करना प्रारम्भ कर दिया कि 'बीफ' का अर्थ गोमांस ही नहीं, भैंस का मांस भी होता है और 'बीफ' निर्यात में अधिकतर भैंस का मांस होता है। स्पष्ट है कि गोहत्या-सम्बन्धी सन् 1952 से लेकर 1966 तक चले प्रबल आन्दोलन, जिसे इन्दिरा गांधी ने जनवरी, 1966 में लाखों प्रदर्शनकारियों पर गोली चलवाकर समाप्त करवा दिया था, इस गोली-काण्ड मेंं राजस्थान के एक वरिष्ठ जनसंघ नेता श्री आसोपा सहित 16 लोग बलिदान हुए थे, के बारे में भी इन प्रवक्ताओं को सम्यक् जानकारी नहीं है। इसके पहले पौने दो करोड़ से अधिक हस्ताक्षरों के साथ हिन्दू संगठनों के प्रतिनिधियों ने तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को गोहत्या बन्दी कानून यथाशीघ्र बनाये जाने के लिए ज्ञापन दिया था, पर प्रधानमन्त्री नेहरू ने उस पर कोई कार्रवाई नहीं की थी, क्योंकि इससे उनकी सेकुलर छवि पर आंच आ जाती।
कई प्रकाशनों में प्राय: गांधीजी के 'गोभक्त' होने का बहुत अटपटा उल्लेख रहता है, जो तथ्यों के सर्वथा विपरीत है। गांधी जी ने तो दक्षिणी अफ्रीका में अपनी देवीस्वरूपा पत्नी कस्तूरबा गांधी के बीमार होने पर क्या सलाह दी थी, उसे देखना चाहिए। कस्तूरबा ने आगा खां महल में 1942 के आन्दोलन-स्वरूप जेल में गांधी जी के साथ बन्दी रहते उनकी गोद में अपने प्राण त्यागे। गांधीजी की दृष्टि में तो 'गाय एक शरीफ जानवर है, इसलिए उसे नहीं मारना चाहिए।' क्या यह सत्य नहीं है कि यदि वे सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे दृढ़मति नेता को पीछे करके नेहरू जी को प्रधानमन्त्री न बनवाते, तो न देश का विभाजन करवाने में जिन्ना, माउण्टबेटन, नेहरू दुरभिसन्धि सफल होती और न इस बचे-खुचे भारत में नित्य नयी समस्याएं 'सेक्युलरिज्म' के नाम पर निरन्तर किये जा रहे मुसलमान-तुष्टीकरण के कारण पैदा करने का दु:साहस कोई वर्ग-विशेष, विचारधारा विशेष से प्रतिबद्घ कर पाता। यह बात किसी अन्य ने नहीं, डॉ़ रफीक जकारिया जैसे व्यक्ति ने कही है सरदार पटेल पर दिये अपने एक भाषण में। उनके इन भाषणों का संकलन राजकमल प्रकाशन जैसी प्रकाशन-संस्था ने छापा है। डॉ. जकारिया कोई ऐसे-वैसे व्यक्ति नहीं थे। वे निष्ठावान कांग्रेसी तो थे ही, महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार में महत्वपूर्ण मन्त्री भी रहे थे।
अब जरा देखें। माननीय सवार्ेच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रह चुके मार्कण्डेय काटजू, केन्द्र में कांग्रेस सरकार में मन्त्री रह चुके मणिशंकर अय्यर, दोनों कितनी बेशर्मी से घोषणा करते हैं कि वे गोमांस खाते हैं। इनसे किसी ने अब तक यह क्यों नहीं पूछा कि क्या तुम्हारे माता-पिता, पितामह-पितामही, प्रपितामह-प्रपितामही गोमांस-भक्षी थे? क्या तुम अपने पूर्वजों का श्राद्घ-तर्पण करते हो? यदि हां, तो क्या उनके श्राद्घ में उन्हें वही अर्पित करते हो? एक अंग्रेजी लेखिका हैं शोभा डे। सोशल मीडिया में बड़ी ढिठाई से चुनौती देती हैं- 'मैंने गोमांस खाया है, आओ मारो!' हद हो गयी। ये सस्ती लोकप्रियता पाने के महालालची जब यह सब निर्लज्ज ऊटपटांग बोल सकते हैं, तो कम से कम इनका सामाजिक बहिष्कार क्यों नहीं किया जाता? एक और तथाकथित इतिहासकार हैं डी.एन. झा। पता नहीं किसने 'झूठ का पुलिन्दा इतिहास' लिखने के लिए इनकी योग्यता का सही-सही आकलन करने की 'बुद्घिमत्ता' दिखायी थी। हमारे प्राचीन वाङ्मय में बहुत साफ शब्दों में लिखा है- 'गाव: विश्वस्य मातर:' (गाय विश्व की माता है।) 'मातर: सर्वभूतानां गाव: सर्वसुखप्रदा: (गाय सभी की माता है, सबको सुख देती है) कविवर नरहरिदास की कविता, प्रतापनारायण मिश्र की कविता यदि नहीं पढ़ी हो, तो कम से कम राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की इस कविता पर एक बार दृष्टिपात कर लें-
दांतों तले तृण दाबकर हैं दीन गायें कह रहीं, हम पशु तथा तुम हो मनुज पर योग्य क्या तुमको यही?
हमने तुम्हें मां की तरह दूध पीने को दिया, देकर कसाई को हमें तुमने हमारा वध किया। जारी रहा क्रम यदि यहां यों ही हमारे पाप का तो अस्त समझो सूर्य भारत-भाग्य के आकाश का।
जो तनिक हरियाली रही, वह भी न रहने पाएगी, यह स्वर्ण-भारतभूमि बस मरघट-मही बन जायेगी। ('भारत भारती')
अन्त में एक बात और। यह प्रचलित भ्रम कि सभी मुसलमान गोमांसभोजी हैं, सर्वथा झूठ है। लेखक के पड़ोस में ही एक पढ़ा-लिखा मुसलमान परिवार है। उसने एक बहुत सुन्दर साहीवाल नस्ल की गाय पाली थी। घर भर, सभी उस गाय की रात-दिन बड़ी सेवा करते थे। रास्ता चलते लोग उस स्वस्थ, सुन्दर, दुधारु गाय को देखकर प्रशंसा करते थे। एक दिन हुआ क्या कि गाय ने चारा खाना छोड़ दिया। काफी सेवा करने के बाद भी जब उसे वह परिवार बचा न पाया, तो उसके शव को बड़े सम्मान के साथ दफना आया, पर उस परिवार में तीन दिन चूल्हा नहीं जला। गृहस्वामिनी रोती रही। बाद में पता चला कि जिस से पहले वह परिवार दूध लेता था, गाय पालने के बाद उससे दूध लेना बन्द कर दिया गया। मौका पाकर बाहर धूप में बंधी उस गाय को उसने सुई खिला दी थी।
कहने का तात्पर्य यह है कि हमें ऐसे बहुप्रचारित भ्रमों से दूर रहना होगा। इस देश में ऐसे गोसेवी मुसलमान परिवारों की संख्या आज भी लाखों नहीं, तो हजारों में तो है ही। हां, बहुसंख्य ऐसे मुस्लिम घर भी हैं, जिनके यहां बड़े पशु का मांस नहीं खाया जाता तथा ऐसे भी बहुतेरे मुसलमान परिवार हैं, जिनमें महिलाएं मांस नहीं खातीं, पका भले ही दें।           -आनन्द मिश्र 'अभय'

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

एआई से बनी फोटो (credit- grok)

पाकिस्तान: जहां बचपन से ही भरा जाता है बच्चों के दिमाग में हिंदुओं के प्रति जहर और वह भी किताबों के जरिये

Operation sindoor

भारत और पाकिस्तान के DGMO के बीच हुई वार्ता, जानें क्या रहे मुद्दे

प्रधानमंत्री मोदी का राष्ट्र के नाम संबोधन

“ऑपरेशन सिंदूर न्याय की अखंड प्रतिज्ञा है”, राष्ट्र के नाम PM मोदी के संबोधन की मुख्य बातें

PM मोदी का कड़ा संदेश: आतंक के खिलाफ भारत की नीति ऑपरेशन सिंदूर, पानी और खून साथ नहीं बहेगा, Pak से बात होगी तो POK पर

Operation sindoor

‘I Love India’ राफेल पर फ्रांस की गूंज से थर्राया पाकिस्तान! ऑपरेशन सिंदूर को मिला अंतरराष्ट्रीय समर्थन

बांग्लादेशी मूल की अंबिया बानो ने काशी में सनातन धर्म स्वीकार किया

लंदन में पली-बढ़ी बांग्लादेशी मुस्लिम महिला ने काशी में अपनाया सनातन धर्म, गर्भ में मारी गई बेटी का किया पिंडदान

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

एआई से बनी फोटो (credit- grok)

पाकिस्तान: जहां बचपन से ही भरा जाता है बच्चों के दिमाग में हिंदुओं के प्रति जहर और वह भी किताबों के जरिये

Operation sindoor

भारत और पाकिस्तान के DGMO के बीच हुई वार्ता, जानें क्या रहे मुद्दे

प्रधानमंत्री मोदी का राष्ट्र के नाम संबोधन

“ऑपरेशन सिंदूर न्याय की अखंड प्रतिज्ञा है”, राष्ट्र के नाम PM मोदी के संबोधन की मुख्य बातें

PM मोदी का कड़ा संदेश: आतंक के खिलाफ भारत की नीति ऑपरेशन सिंदूर, पानी और खून साथ नहीं बहेगा, Pak से बात होगी तो POK पर

Operation sindoor

‘I Love India’ राफेल पर फ्रांस की गूंज से थर्राया पाकिस्तान! ऑपरेशन सिंदूर को मिला अंतरराष्ट्रीय समर्थन

बांग्लादेशी मूल की अंबिया बानो ने काशी में सनातन धर्म स्वीकार किया

लंदन में पली-बढ़ी बांग्लादेशी मुस्लिम महिला ने काशी में अपनाया सनातन धर्म, गर्भ में मारी गई बेटी का किया पिंडदान

प्रतीकात्मक तस्वीर

पाकिस्तान की हिरासत में भारतीय महिला पायलट का फर्जी वीडियो वायरल, ये है पूरी सच्चाई

ट्रोलर्स का घृणित कार्य, विदेश सचिव विक्रम मिस्री और उनके परिवार की कर रहे ट्रोलिंग, महिला आयोग ने की निंदा

Indian army press breafing

भारतीय सेना ने पाकिस्तान को दिखाया आईना, कहा- हम अगले मिशन के लिए हैं तैयार

प्रतीकात्मक तस्वीर

पकिस्तान का भारतीय एयरफील्ड तबाह करने का दावा भी निकला फर्जी, वीडियो का 5 सेकंड का एडिट हिस्सा सबूत के तौर पर दिखाया

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies