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राजनीति की चौसर पर अक्सर खुद की गलतियां छिपाने के लिए दोष दूसरों पर मढ़ने का दाव चला जाता है और बिहार विधानसभा चुनाव में राज्य के मुख्यमंत्री एवं जनता दल यूनाइटेड के नेता नीतीश कुमार ने भी दालों की कीमतों को लेकर कुछ ऐसा ही दाव चला। बिहार में दालों की कीमतों को लेकर नीतीश कुमार ने केंद्र सरकार की ओर एक उंगली उठाई तो उनकी तीन उंगलियां उनकी ही तरफ थीं और उन्हें कटघरे में खड़ा कर रही थीं। कारण केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने छह महीने में बिहार सरकार को लिखे गए छह पत्र सार्वजनिक किए तो नीतीश कुमार के सुशासन की असलियत बिहार की जनता के सामने आ गई। दरअसल नीतीश कुमार बिहार में खुद की जवाबदेही से बचने के लिए हर समस्या के लिए केंद्र को जिम्मेदार ठहराने की राजनीति कर रहे हैं। जबकि कई दूसरे राज्य केंद्र की मोदी सरकार की महंगाई पर अंकुश लगाने की योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं और अपने राज्य की जनता को राहत प्रदान कर रहे हैं। नीतीश कुमार और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनका महागठबंधन पिछले कई माह से चुनावी गलबहियों में व्यस्त था। इस बीच यदि नीतीश सरकार ने केंद्र सरकार द्वारा लिखे गए पत्रों को गंभीरता से लिया होता तो बिहार की जनता को राहत मिलती।
देश में कम बारिश और दालों के कम उत्पादन के चलते खाद्य वस्तुओं की कमी का अहसास केंद्र सरकार ने पहले ही कर लिया था और इसे ध्यान में रखते हुए उसने अपने स्तर पर दो महत्त्वपूर्ण फैसले लिए। गौरतलब है कि कृषि राज्य का विषय है और राज्यों में होने वाले उत्पादन और मौसम को ध्यान में रख केंद्र सरकार अपनी नीति बनाती है। इस नीति के तहत केंद्र की मोदी सरकार ने समीक्षा शुरू की और कृषि मंत्रालय ने 500 करोड़ की राशि के साथ मूल्य स्थिरीकरण कोष की स्थापना की और दूसरा बाजार में खाद्य वस्तुओं की मांग और आपूर्ति को बनाए रखने के लिए खाद्य वस्तुओं का आयात करने का फैसला किया। कृषि मंत्रालय ने पत्र व्यवहार के जरिए बिहार सहित सभी राज्य सरकारों से भी राज्य स्तर पर मूल्य स्थिरीकरण कोष बनाने को कहा था।
केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि जो राज्य इस प्रकार का कोष बनाएंगे उनके कुल कोष के आधार पर उसमें पचास प्रतिशत सहयोग केंद्र सरकार देगी। इस कोष की स्थापना के संबंध में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने इसी साल मई में एक पत्र मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी लिखा था। नीतीश कुमार को लिखे पत्र में उन्होंने बताया था कि खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार ने मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) की स्थापना की है। बिहार सरकार भी यदि अपने राज्य में इस कोष की स्थापना करना चाहती है तो प्रस्ताव बनाकर कृषि मंत्रालय को भेज दे। 4 सितंबर, 2015 को भी सचिव कृषि सहकारिता एवं किसान कल्याण मंत्रालय की ओर से सभी राज्यों और केंद्र शासित राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखा गया, जिसमें राज्यों से केंद्र द्वारा स्थापित कोष से आर्थिक सहयोग लेने का प्रस्ताव बनाकर भेजने का आग्रह किया गया। पिछले छह माह में कृषि मंत्रालय ने ऐसे छह पत्र बिहार की नीतीश सरकार को लिखे। पर इस योजना को नीतीश सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया और न ही कोई रुचि दिखाई।
ऐसे पत्र सभी राज्यों को लिखे गए और कई राज्यों ने केंद्र के सुझाव को मान अपने-अपने राज्य में ऐसे कोष की स्थापना कर आलू,प्याज और दाल के विशेष 'आउटलेट' खुलवाकर सस्ती दर पर खाद्य वस्तुओं की विशेष बिक्री की व्यवस्था कर दी। मसलन आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, दिल्ली और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने प्रस्ताव बनाकर कृषि मंत्रालय को भेजे। इन चार राज्यों में आंध्र प्रदेश को 50 करोड़ रुपए, तेलंगाना को करीब 9 करोड़ रुपए, दिल्ली को करीब आठ करोड़ और पश्चिम बंगाल को पांच करोड़ की राशि दी गई। पर बिहार में नीतीश सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस पहल क्यों नहीं की? इससे पहले बिहार की जनता यह सवाल पूछती मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी विफलता पर पर्दा डालने के लिए बिहार चुनाव में दाल की कीमतों को मुद्दा बनाने के लिए ट्वीटरबाजी शुरू कर दी। नीतीश ने ट्वीट कर इसे मुद्दा बनाने की कोशिश इसलिए की क्योंकि वह जानते थे कि दाल की कीमतें कम हों इसके लिए उनकी सरकार ने कुछ नहीं किया है। इसलिए ट्वीट कर बिहार की जनता को आधा सच बताओ और दाल की कीमतों के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहरा दो। पर असल में कटघरे में नीतीश सरकार खड़ी नजर आई।
जमीन पर उतरने को बेकरार केन्द्र की योजनाएं
1 केंद्रीय अंत:स्थलीय अनुसंधान संस्थान बैरकपुर, कोलकाता की एक शाखा खोलने हेतु बिहार सरकार से जमीन मांगी गई।
2 केंद्रीय मीठा जल जीवपालन अनुसंधान संस्थान भुवनेश्वर दारा राज्य में शाखा खोलने के लिए जमीन मांगी गई।
3 आईसीएआर की संस्था भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान द्वारा एक बीज उत्पादन केंद्र खोलने के लिए जमीन की मांग राज्य सरकार से की गई। इस केंद्र के खुलने से बिहार के छोटे सब्जी उत्पादक किसानों को काफी लाभ होगा।
4 राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल दारा पूर्वी भारत में डेयरी अनुसंधान की जरूरत को देखते हुए एक केंद्र बिहार में खोलने के लिए जमीन की मांग की गई।
5 राष्ट्रीय बीज निगम दारा राज्य में बीज उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार से 200 एकड़ जमीन की मांग की गई है। इस योजना से बिहार में उच्च पैदावार के बीज मुहैया करवाये जाएंगे।
राज्य सरकार ने अगर उक्त योजनाओं के लिए समय पर जमीन दे दी होती तो कई योजनाएं अब तक शुरू भी हो चुकी होतीं। बिहार में कृषि विकास के लिए मोदी सरकार ने केंद्र में सरकार बनने के साथ ही योजनाओं का खाका बना लिया था और उसकी घोषणा भी कर दी थी। वैशाली जिले के गोरौल में केला अनुसंधान संस्थान की स्थापना, सारण में कृषि महाविद्यालय,मगध के औरंगाबाद में कृषि महाविद्यालय, पूर्वी चम्पारण में उद्यान एवं वानिकी महाविद्यालय, मिथिला के मधुबनी में पशु एवं मात्स्यकी महाविद्यालय,बिहार के छह बडे़ जिले मुजफ्फरपुर,समस्तीपुर,मधुबनी,पूर्वी चम्पारण,पश्चिम चम्पारण एवं गया में अतिरिक्त कृषि विज्ञान केंद्र शामिल हैं। पर असल सवाल यह कि नीतीश सरकार के इस रवैये को देखते हुए बिहार विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस के सहारे बिहार में महागठबंधन की सरकार बनाने की सोच रहे नीतीश की दाल
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दाल की कीमतों को लेकर केंद्र सरकार पर तो उंगली उठा रहे हैं लेकिन बिहार की जनता से यह सच क्यों छिपा रहे हैं कि मोदी सरकार ने कीमतों पर नियंत्रण के लिए जो कोष और योजना बनाई उसका लाभ उठाने में उनकी सरकार नाकारा साबित हुई।
मनोज वर्मा
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