|
1994 में कवि अशोक वाजपेयी को कविता के लिए दयावती मोदी सम्मान मिला था। दिल्ली के साहित्यिक हलके में ये चुटकी ली जा रही है कि 1994 की जगह सन् 2014 होता तो वे किसी भी मोदी के नाम पर यह पुरस्कार लेने से इंकार कर देते। मोदी पुरस्कार में उन्हें 2़.51 लाख रुपए नकद प्राप्त हुए। वैसे 1994 का साल अशोक वाजपेयी के लिए महत्वपूर्ण साल था। इसी साल उन्हें साहित्य अकादमी का सम्मान भी मिला। 1994 में वाजपेयी संस्कृति विभाग में संयुक्त सचिव पद पर कार्यरत थे। कायदे से उन्हें 1994 में ही इस सम्मान के लिए ना कहना चाहिए लेकिन जिस सम्मान के लिए उन्होंने एड़ी चोटी का जोर लगाया हो, उसके लिए वे ना कैसे कह सकते थे? अकादमी सम्मान देने के लिए जूरी में शामिल श्रीलाल शुक्ल, नरेश मेहता और नामवर सिंह एकमत नहीं थे। अशोक वाजपेयी की सत्ता से नजदीकी किसी से छुपी नहीं थी। फैसला बहुमत के आधार पर हुआ। वैसे नामवर सिंह और अशोक वाजपेयी की मित्रता मंत्रालय तक जानी पहचानी थी।
यह सच है कि अशोक वाजपेयी हिन्दी साहित्यकारों के बीच गैर साहित्यिक गतिविधियों के लिए अधिक चर्चा में रहने वाले एक नाम हैं। साहित्य अकादमी सम्मान लौटाने की घोषणा अशोक वाजपेयी से पहले कर चुके उदय प्रकाश भूले नहीं होंगे कि उन्होंने अशोक वाजपेयी को 'सत्ता के दलाल' का दलाल कहा था। अशोक वाजपेयी द्वारा मध्य प्रदेश सरकार के पैसे से शुरू किए गए 'पूर्वग्रह' के सह संपादक रहे उदय प्रकाश ने यह भी कहा था कि 'हिन्दी साहित्य में अशोक वाजपेयी को कोई गम्भीरता से नहीं लेता।' जब अशोक वाजपेयी को हिन्दी साहित्य वाले ही गम्भीरता से नहीं लेते फिर गैर साहित्यिक लोगों से यह अपेक्षा करना निरर्थक है कि वे वाजपेयी को गम्भीरता से लें।
अशोक वाजपेयी का 19 नवम्बर 2001 का लिखा एक पत्र मिला है। पत्र संस्कृति मंत्री, भारत सरकार, जगमोहन को लिखा गया है। उस समय देश में राजग की सरकार थी और अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे और अशोक वाजपेयी महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति थे। अपने पत्र के पहले अनुच्छेद में अशोक वाजपेयी ने संस्कृति मंत्री जगमोहन की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। दूसरे अनुच्छेद में वे काम की बात पर आते हैं। वे लिखते हैं कि सरकारी सेवा में सबसे अधिक संस्कृति को समझने वाला व्यक्ति हूं। उन्होंने इस पत्र के साथ संस्कृति मंत्रालय के लिए कुछ सुझाव संलग्न किए और यह लिखना नहीं भूले कि इनमें से कई सुझावों को प्रधानमंत्री व्यक्तिगत तौर पर देख चुके हैं और उन्होंने इसमें रुचि दिखाई है। इसके साथ अपना बायोडाटा भी उन्होंने संस्कृति मंत्री जगमोहन के लिए पत्र के साथ संलग्न किया था। फिर आया वर्ष 2014 जिसमें अशोक वाजपेयी की देखरेख में देश के वामपंथी लेखक, कलाकार, संस्कृतिकर्मियों ने भाजपा ने नेतृत्व वाले राजग के खिलाफ वोट डालने की अपील की। इस आशय की अपील पर साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने वाले मंगलेश डबराल और राजेश जोशी के हस्ताक्षर भी मौजूद हैं।
भारत भवन द्वारा प्रकाशित पूर्वग्रह के अंकों में प्रकाशित लेख/कविता/अनुवाद/चित्र आदि के पारिश्रमिक को अशोक वाजपेयी द्वारा स्वीकृत किया गया। प्राप्त हुए दस्तावेज के अनुसार अशोक वाजपेयी ने अपनी रचनाओं के लिए खुद को और कई बार अपने भाई उदयन वाजपेयी को पारिश्रमिक दिया है। भारत भवन की परामर्शदात्री समिति में उन्होंने अपनी पत्नी रश्मि और अपने छोटे भाई का नाम कविता केन्द्र के निदेशक के रूप में नामित किया था। यह शिकायत भी उनसे लोगों की आम रही है। पूर्वग्रह से संबंधित जून 88 का एक दिलचस्प पत्राचार मिलता है। पति अशोक वाजपेयी और पत्नी रश्मि वाजपेयी के बीच। पत्नी रश्मि पूर्वग्रह के अंक 83 में प्रकाशित अपनी रचना के लिए दिए गए 100 रुपए से नाराज हैं। जवाब में अशोक वाजपेयी लिखते हैं- पूर्वग्रह अपनी इसी बुनियादी निष्ठा को वरीयता देता है और सहज ही यह अपेक्षा करता है कि उसकी इस अपेक्षा को बनाए रखने में उसके लेखक उसे सहयोग देते रहें, मानदेय के तौर पर जो भी हम देने में सक्षम हैं, उसे कृपापूर्वक स्वीकार करें।'
जवाब में 30 जून 1988 का रश्मि वाजपेयी का खत है- 'आपने अपनी प्रतिष्ठित पत्रिका में मेरा लेख शामिल करने योग्य समझा इसके लिए आभारी हूं। किन्तु पारिश्रमिक की यह राशि मेरी प्रतिष्ठा के खिलाफ है। उस राशि को आप भारत भवन या पूर्वग्रह के दानखाते में जमा करने को स्वतंत्र हैं। इन पारिवारिक उदाहरणों के संबंध में एक सेवानिवृत भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी नाम ना छापने की शर्त पर कहते हैं, यह मामला 'प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट' के अन्तर्गत आता है। इतने बड़े देश में उन्हें सरकारी पत्रिका में छापने के लिए अपनी पत्नी से योग्य कोई नाम ना मिला।
अशोक वाजपेयी की वास्तव में इस देश में पहचान साहित्यकार की नहीं है। एसएच रजा, अशोक वाजपेयी और अरुण वढेरा ये रिश्ता रजा फाउंडेशन के ट्रस्टी के नाते इन तीन लोगों का बनता है। के चक्रवर्ती जिन दिनों ललित कला अकादमी में थे, अशोक वाजपेयी के कहने पर 11 नवम्बर से 25 नवम्बर तक आर्ट गैलरी अरुण वढ़ेरा को दी गई। सूत्र बताते हैं कि इससे अकादमी को नौ लाख रुपए का नुकसान हुआ। इस तरह के नुक्सान अशोक वाजपेयी अकादमी को करवाते रहे हैं।
2015 का साल अशोक वाजपेयी के लिए इसलिए भी बेहतर नहीं रहा क्योंकि अकादमी उनके हाथ से निकलती जा रही है। वहां उनकी सुनने वाला अब कोई नहीं बचा। इस दुख में अशोक खिसियाकर अकादमी सम्मान नोचने में लगे हैं।
आशीष कुमार 'अंशु'
टिप्पणियाँ