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गोरखपुर में गत दिनों संस्कृति पब्लिक स्कूल में आयोजित क्षेत्रीय समन्वय बैठक को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत ने कहा कि विभिन्न समवैचारिक संगठनों में समन्वय की आवश्यकता नहीं, वरन् कार्यकर्ताओं में समन्वय ही वास्तव में समन्वय है। समन्वय स्वभाव के आधार पर होता है न कि नीतियों से। सभी संगठनों के कार्यकर्ताओं में व्यवहार, ध्येय और अनुशासन के प्रति प्रतिबद्धता रहती है तो बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सभी एक दिशा में चल पड़ते हैं। उन्होंने कहा कि हम सभी का उद्देश्य व्यक्ति में परिवर्तन के आधार पर व्यवस्था में परिवर्तन और समाज में परिवर्तन लाना है। उन्होंने कहा कि सभी संगठन स्वतंत्र रहते हुए, एक-दूसरे के पूरक रहते हुए, अंतर आश्रित एवं अंतर संबंधित हैं। सभी संगठनों का अपना स्वभाव व महत्व है। इसी समवैचारिक दृष्टिकोण से काम करते हुए समाज में सकारात्मक परिवर्तन के लिए हम सब कृतसंकल्प हों। संपूर्ण हिन्दू समाज अपना है, संपर्क-संवाद बढ़ाएं, सुख-दु:ख में साथ रहें, परिवर्तन होगा।
महाराणा इंटर कॉलेज के प्रांगण में आयोजित कार्यक्रम में सरसंघचालक ने कहा कि अपना कार्य भारत को परम वैभव तक ले जाने के लिए समाज को तैयार करना है। उन्होंने कहा कि समाज की कुछ दुष्ट शक्तियां कार्य से भटकाने का प्रयास करती हैं, परंतु कार्य की पद्धति को ध्यान में रखकर अलग-अलग परिस्थितियों के अनुसार कार्य को अलग-अलग महत्व देने से ताकत, हिम्मत व अनुशासन का विकास होता है, जो ध्येय प्राप्ति में सहायक होता है। उन्होंने कहा कि संघ में सबसे महत्वपूर्ण सामान्य स्वयंसेवक होता है। श्री गुरुजी कहते थे, स्वयंसेवकों को गढ़ने का कार्य शाखा में होता है। स्वयंसेवकों को गढ़ने वाली शक्ति को दुनिया देख नहीं पाती है। शाखा के माध्यम से आत्मीयता का जो भाव उत्पन्न होता है, उससे सारे कार्य मिल-जुलकर करने का भाव उत्पन्न होता है। इस अवसर पर अनेक संगठनों के वरिष्ठ कार्यकर्ता उपस्थित थे। – प्रतिनिधि
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