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भारत में हमेशा ही भक्ति और आस्था देखने को मिलती है। हरियाणा के कैथल जिले में एक ऐसा ही भव्य आयोजन महर्षि फलक की भूमि गांव फरल में 12 अक्तूबर को संपन्न हुआ। यहां देश भर के अनेक क्षेत्रों से आए लाखों लोगों ने पावन सरोवर में पितृ शांति हेतु पिंडदान किया। यह तीर्थ स्थल प्रसिद्ध तीर्थ ‘गया जी’ के समान ही माना जाता है।
प्रसिद्ध फल्गु तीर्थ पर सोमवती अमावस्या के अवसर पर 12 अक्तूबर को लाखों लोगों ने स्नान किया तथा अपने पितरों की आत्मिक शांति के लिए पिंडदान किया। यह आयोजन 27 सितंबर से शुरू हुआ था और 12 अक्तूबर 2015 को संपन्न हुआ। 15 दिनों तक चले इस आयोजन में लाखों श्रद्धालुओं ने पवित्र तालाब में स्नान कर पूजा-अर्चना की। अब यह आयोजन 13 वर्ष के बाद 2028 में होगा। इससे पहले यह मेला वर्ष 1964 और उसके बाद वर्ष 1978 में लगा था।
स्वयं मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने फल्गु तीर्थ के घाट पर पूजा-अर्चना की और इस पावन तीर्थ को भी कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के अधीन लेकर विकास करवाने की बात कही। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि 5 करोड़ 30 लाख रुपए की राशि मेले व गांव के विकास पर खर्च की जाएगी। इसके लिए 4 करोड़ 80 लाख रुपए का भुगतान किया गया है और शेष 50 लाख रुपए का भुगतान प्रशासन मेले की व्यवस्था से जुटाएगा। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि पहले यह राशि राजस्व के रूप में सरकार के पास जाती थी, लेकिन राज्य सरकार इस राशि को गांव के विकास पर खर्च करेगी। यदि मेले से 50 लाख रुपए से कम की आय प्राप्त हुई तो शेष राशि सरकारी खजाने से दी जाएगी। मेले में अनेक सांस्कृतिक एवं मनोरंजक कार्यक्रम भी आयोजित किए गए। इस अवसर पर सांसद राजकुमार सैनी, क्षेत्रीय विधायक दिनेश कौशिक, जिला उपायुक्त के. मकरंद. पांडुरंग व पुलिस अधीक्षक कृष्ण मुरारी सहित अनेक गणमान्यजन एवं प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित रहे।
फल्गु तीर्थ का है पौराणिक महत्व
प्राचीन ग्रंथों में फरल गांव का नाम फल्हर लिखा मिलता है। उस फलहर का ही वर्ण फरहल या फरल बन गया। फलकीवन में से बहती हुई दृषद्वती नदी ही इस फलहर गांव के समीप पहुंचने पर फल्गु कहलाती है। फल्गु नदी के तट पर ही यह गांव बसा हुआ है। वामन पुराण में फलकीवन का महात्म्य बताते समय यहां तक कहा गया है कि जो आदमी स्वयं फलकी वन तक जाने में असमर्थ हो, वह मन ही मन फलकी वन का स्मरण कर ले तो उसके भी पितरों के श्राद्ध किए जाने जैसी तृप्ति हो जाती है। पुराणों के अनुसार फलकी वन (ग्राम फरल) में पितृपक्ष की सोमवती अमावस्या को स्नान, तर्पण व श्राद्ध करने से गया जी से भी अधिक फल की प्राप्ति होती है। फलकी वन के स्मरण मात्र से पितरों का कल्याण सुनिश्चित हो जाता है और यहां पर पिंडदान करने से पितर मुक्ति प्राप्त करते हैं। फल्गु तीर्थ में ऐसा माना गया है कि सदैव देवता निवास करते हैं और यहां के पावन सरोवर में स्नान करने से मनुष्य को अक्षय अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।
हरियाणा में गर्भवती महिलाओं की सुरक्षा के लिए घर पर प्रसव पर रोक
हरियाणा सरकार ने गर्भवती महिलाओं के असुरक्षित तरीके से किए जा रहे प्रसव पर रोक लगाने का कदम उठाया है। इसके तहत घरों में अप्रशिक्षित दाइयों द्वारा कराए जा रहे प्रसव पर रोक लगाई है। सरकार का मत है कि सुरक्षित तरीके एवं शिक्षित दाइयों द्वारा कराए जा रहे प्रसव से जच्चा-बच्चा दोनों सुरक्षित रहेंगे।
राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अनुसार करीब 11 फीसद से अधिक गर्भवती महिलाओं का प्रसव घर पर ही होता है। घर पर अप्रशिक्षित दाई से प्रसव कराने पर जच्चा-बच्चा, दोनों के जीवन को खतरा कई गुणा बढ़ जाता है। विभाग की रपट के अनुसार वर्ष 2015 के पहले छह माह में 26,700 महिलाओं ने घर पर ही बच्चे को जन्म दिया है।
इसमें मेवात क्षेÞत्र में तो आधी गर्भवती महिलाएं अस्पताल न जाकर घर पर ही प्रसव करा लेती हैं। पलवल जिले में भी ऐसी 33 फीसद महिलाएं हैं। सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए आशा कर्मचारियों को भी इस कार्य हेतु जिम्मा सौंपा है। ऐसी करीब 6500 कर्मचारी गांवों में गर्भवती महिलाओं का पता लगाकर उनका पंजीकरण करेंगी, टीकाकरण करेंगी और सुरक्षित प्रसव के लिए उन्हें जागरूक कर अस्पताल लेकर जाने के लिए तैयार करेंगी।
हरियाणा के पांच जिले असुरक्षित प्रसव के मामले में आगे हैं। मेवात में 51.2 फीसद, पलवल में 33.1 फीसद, पानीपत में 13.1 फीसद, फरीदाबाद में 12.9 फीसद और यमुनानगर में 10.1 फीसद प्रसव घर पर ही कराने की मानसिकता है। सरकार अपनी नीति के तहत असुरक्षित प्रसव पर रोक और जच्चा-बच्चा का सुरक्षा प्रदान करना चाहती है।
डॉ. गणेश दत्त वत्स
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