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सितम्बर के दूसरे सप्ताह में कुछ मित्रों के आग्रह पर मयूरभंज (उड़ीसा) के जनजातीय क्षेत्र काप्तीपादा जाना हुआ। यह स्थान हावड़ा-पुरी रेलमार्ग पर स्थित बालासोर, इसी के निकट चांदीपुर है, से 45 किलोमीटर की दूरी पर है। सुप्रसिद्ध क्रान्तिकारी ज्योतिन्द्रनाथ मुखर्जी की यह साधना स्थली है। बाघ से निहत्थे लड़कर उसे यमलोक पहुंचाने के कारण इन्हें बाघा जतिन नाम मिला और इसी नाम से ये लोकप्रिय भी हुए। 100 वर्ष पहले 9 सितम्बर को यहीं पर बाघा जतिन ने अपने साथियों चिन्तप्रिय रायचौधरी, निरेन दासगुप्त, मनोरंजन गुप्ता और ज्योतिषपाल के साथ ब्रिटिश पुलिस से लोहा लिया था। चिन्तप्रिय इसी दिन शहीद हो गए, जबकि 10 सितम्बर को बालासोर के एक अस्पताल में बाघा जतिन ने देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का होम किया।
इन शहीदों के होतात्म्य के 100 वर्ष पूर्ण होने पर 10 सितम्बर को एक भव्य और विशाल कार्यक्रम का आयोजन था। यह गरिमामय आयोजन स्थानीय श्री अरविन्द सेन्टर ऑफ इन्टीग्रल एजुकेशन, मातृ विहार, काप्तीपादा में रखा गया था। जानकारी हो कि यह विद्यालय एक स्थानीय प्रतिष्ठित सज्जन श्री त्रिलोचन मिश्रा ने 1986 में स्थानीय जनजातीय बालक-बालिकाओं को अच्छी शिक्षा की सुविधा प्रदान करने के लिए स्थापित किया था। अभी यह एक छात्रावासीय सहशिक्षा संस्थान है, जहां 10वीं तक की पढ़ाई होती है। 9 सितम्बर को इस विद्यालय परिसर में झारखंड की राज्यपाल श्रीमती द्रोपदी मुर्मु ने बाघा जतिन की प्रतिमा का अनावरण किया। श्रीमती मुर्मु स्थानीय जनजातीय समाज से संबंध रखती हैं। उनके आगमन से स्थानीय जनता बहुत उत्साहित थी। हजारों की संख्या में उपस्थित स्थानीय समाज क्रान्तिकारी आन्दोलन और बाघा जतिन की कथा अपनी भाषा में सुनकर बहुत गौरवान्वित अनुभव कर रहा था। उसी दिन एक बड़ी साइकिल रैली का आयोजन भी हुआ। 25-30 किलोमीटर से युवक और युवतियां साइकिल चलाकर शोभायात्रा में शामिल हुए और सभा में एक अलग प्रकार का समां बांध दिया। पेशे से कार्यपालक अभियन्ता और लुधियाना से पधारे सरदार जसपाल सिंह ने रैली को सम्बोधित करते हुए क्रान्तिकारी आन्दोलन में पंजाब की भूमिका की भी चर्चा की।
10 सितम्बर को एक महती सभा का आयोजन हुआ। स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त इस सभा को देवास (म.प्र.) से पधारे पूर्व आई.आर.एस. अधिकारी व सनातन विचार मंच के संस्थापक श्री रविन्द्र भारद्वाज एवं विश्व हिन्दू परिषद् के केन्द्रीय मंत्री डॉ. सुरेन्द्र जैन ने भी सम्बोधित किया। डॉ. जैन ने अपने ओजस्वी भाषण में छात्र-छात्राओं से संवाद कायम कर उनमें देशभक्ति का जोश भर दिया। श्रोता उनके भाषण में लगातार ताली बजाते रहे। उल्लेखनीय है कि श्री रविन्द्र भारद्वाज व डॉ. सुरेन्द्र जैन ने कुछ कार्यकर्ताओं को साथ लेकर एक समिति गठित की है। इसका नाम है 'क्रान्तिकारी शहीद शताब्दी वर्ष आयोजन समिति 2015'। इस समिति ने 1915 में शहीद हुए 109 क्रान्तिकारियों को श्रद्धासुमन अर्पण करने का लक्ष्य अपने सामने रखा है। समिति काप्तिपादा कार्यक्रम के पूर्व एक कार्यक्रम अम्बाला (हरियाणा) के केन्द्रीय कारावास में सफलतापूर्वक आयोजित कर चुकी है। 11 मई, 1915 को चार क्रान्तिवीरों को इसी कारावास में फांसी दी गई थी। ये क्रान्तिवीर थे मास्टर अमीरचंद, अवधबिहारी, बालमुकुन्द और बसन्त कुमार विश्वास। 11 मई, 2015 को आयोजित इस कार्यक्रम में हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहरलाल के साथ कुछ अन्य लोगों ने जेल परकोटे के भीतर फांसी स्थल पर जाकर श्रद्धासुमन अर्पित किए। इसी प्रकार एक अन्य कार्यक्रम का आयोजन स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर 14 अगस्त को देवास (म.प्र.) में हषार्ेल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। इस कार्यक्रम में मध्य प्रदेश सरकार के कई मंत्री और स्थानीय विधायक व महापौर भी शामिल हुए। इस समिति की योजना लुधियाना में पंजाब के क्रान्तिवीरों को श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए एक कार्यक्रम 16 नवम्बर को करने की भी है। 16 नवम्बर,1915 को निकटस्थ ग्राम सराबा के ख्यातनाम क्रान्तिकारी करतार सिंह व उनके दो साथियों जगत सिंह एवं विष्णु गणेश पिंगले को लाहौर जेल में फांसी पर लटका दिया गया था।
काप्तिपादा के कार्यक्रम में वहां के जनजातीय समाज के लोग अपने परम्परागत वेष में नृत्य करते हुए भारी संख्या में उपस्थित हुए। कार्यक्रम की विशालता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि 9 व 10 सितम्बर को दोपहर में चार-चार हजार लोगों ने भोजन किया। दोनों दिन प्रात: विशाल सभा, दोपहर भोजन के पश्चात् तीन-तीन घंटे के रंगमंचीय सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। 8 सितम्बर को निकटस्थ महाविद्यालय में 1300 छात्रों के मध्य कार्यक्रम के आयोजक श्री सत्यनारायण मिश्रा और श्री रविन्द्र भारद्वाज का क्रान्तिकारी आन्दोलन, विशेषकर बाघा जतिन के प्रयास पर प्रेरक भाषण हुए।
बाघा जतिन अत्यन्त बलशाली और विचारशील युवक थे। देश की पराधीनता के कारण बहुत विचलित रहते थे। किसी कार्यक्रम में भगिनि निवेदिता की दृष्टि इन पर पड़ी और वे इन्हें स्वामी विवेकानन्द के पास ले गईं। अपने मनमाफिक युवक को पाकर स्वामी जी अत्यन्त प्रसन्न हुए तथा उन्हें योग्य दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। वे महर्षि अरविन्द के भी सतत् सम्पर्क में रहे और उनका मार्गदर्शन प्राप्त करते रहे।
उन्होंने काप्तिपादा के जंगलों को विशेषकर वहां स्थित एक गुफा को केन्द्र बनाकर जनजातीय युवकों को स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए प्रेरित और प्रशिक्षित करना प्रारम्भ किया। उनका कहना था कि समाज जागरण और नवयुवकों को प्रेरणा देने के लिए बलिदान देना एक महत्वपूर्ण कार्य है। अत: युवकों को इसके लिए तैयार रहना चाहिए।
एक आनंददायक समाचार यह भी प्राप्त हुआ है कि बाघा जतिन के जन्म स्थान नादिया जिले में भी एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ है। 100 वर्ष बाद ही सही, ऐसे तेजस्वी क्रान्तिकारियों को उनकी गरिमा के अनुरूप श्रद्धांजलि देना बहुत ही प्रीतिकर व समाधानकारक है। -सुशील कुमार
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