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5 जून,1958 को उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जनपद की गमरी पट्टी के वादसी गांव में जन्मे गोपाल का जन्म गोशाला में ही हुआ। अस्वस्थ मां के दुग्ध के अभाव में शिशु गोपाल ने जन्म से ही गोमाता का दुग्धपान किया। 1977 में अध्ययनकाल में पुलिस में भर्ती हुए। अध्यात्म में रुचि होने के कारण डेढ़ वर्ष में नौकरी छोड़ पुन: संस्कृत अध्ययन में संलग्न हुए। 25 वर्ष की आयु में 11 माह का पयोव्रत और तीव्र गंगा की धारा में गायत्री की साधना की। फरवरी 2008 में 6 फीट की बर्फ में संत गोपाल 'मणि' ने गंगोत्री से गो-गंगा व हिमालय रक्षा जन-जागरण यात्रा कर केन्द्र सरकार का ध्यान आकृष्ट किया। उत्तरकाशी में अपनी 200 नाली पैतृक भूमि गोशाला के लिए दान करने के साथ अब तक 60 से अधिक गोशालाएं स्थापित करवा चुके और देश-विदेश में लगभग 51 से अधिक गोकथा एवं कामधेनु यज्ञ करवा चुके गोपाल 'मणि' गोरक्षा एवं गंगारक्षा के लिए संकल्पबद्ध हैं। पाञ्चजन्य के सहयोगी सम्पादक सूर्य प्रकाश सेमवाल ने संत गोपाल 'मणि' से विस्तृत वार्ता की। यहां वार्ता के प्रमुख अंश प्रकाशित किए जा रहे हैं।
गोकथा अथवा गोरक्षा की प्रेरणाकैसे मिली?
मेरे माता-पिता ने मेरा नाम ही गोपाल रखा था। कारण स्वाभाविक है कि हम एक कृषक परिवार में जन्मे-ऐसी दिव्य जगह जहां प्रकृति, अध्यात्म, संस्कृति और परम्परा के साथ संस्कारों का सूत्र एक साथ बंधा रहता है। मैं कहीं न कहीं इसे दैवीय संयोग मानता हंू। अपने पूरे गांव में मेरे माता-पिता के पास सर्वाधिक 15-20 गायें थीं। इन गायों के दुग्ध का प्रताप था कि शारीरिक रूप से तो मैं हृष्ट-पुष्ट था ही, हमेशा लिखाई-पढ़ाई में भी कक्षा में सर्वोत्तम रहा। संस्कृत विद्यालय उत्तरकाशी से अध्ययन हुआ जहां सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ खेल-कूद में भी बराबर भागीदारी रहती थी। सब कुछ होने के साथ प्रकृति, पर्यावरण, गोमाता, नदी आदि के विषय में बाल्यकाल से ही मैं संवेदनशील था। जब मैं 12 वर्ष का था तो उत्तरकाशी के चोपड़धार में मुझे एक अवधूत दिव्यात्मा के दर्शन हुए। तीन दिन तक मुझे उनका सान्निध्य एवं स्नेह प्राप्त हुआ और अंत में 100 मीटर तक साथ-साथ चलते हुए वे मुझे जीवन की हर परीक्षा में सफल होने का आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए।
आपने गोकथा को आध्यात्मिक प्रवचन का माध्यम यकायक चुना अथवा इससे पूर्व अन्य संबंधित क्षेत्रों में प्रवचनादि का कार्य भी किया? आपकी व्यावसायिक पृष्ठभूमि एवं कार्यप्रणाली किस प्रकार की रही?
भगवान ने शायद मुझे गोसेवा के लिए ही बनाया है यह मैं सगर्व स्वीकार करता हूं क्योंकि पुलिस सेवा से लेकर शास्त्री, बी.एड़ और व्याकरण आचार्य उपाधियां प्राप्त कर मैं केन्द्रीय विद्यालय में भाषा शिक्षक तक हो गया था। लेकिन सरकारी सेवाओं में मेरा मन नहीं लगा। सत्संग, स्वाध्याय और स्वतंत्र वृत्ति मुझमें जन्म से थी, इसलिए मैंने भागवत आदि पुराणों का अध्ययन किया। वर्ष 1984 से श्रीमद्भागवत के प्रवचन शुरू कर दिए थे, तबसे यह यात्रा जारी है और लगभग 600 से अधिक भागवत कथा, 450 से अधिक रामकथा, देवी भागवत पुराण, शिवपुराण और गीता के प्रवचनादि हो चुके हैं। समय-समय पर ध्यान और साधना भी की। कई बार गंगाजी के ठंडे पानी में गाय की उपासना की, सालभर तक मात्र गोदुग्ध पर जीवनयापन कर परमात्मा की साधना की। इस सबका पुण्य प्रताप था जो घूम-फिरकर मन में गाय, गंगा और हिमालय के लिए कुछ विशेष करने का संकल्प जगा, जिसका परिणाम वर्ष 2008 की गंगोत्री से दिल्ली तक की 18 दिवसीय जनजागरण यात्रा थी। गाय, गंगा और हिमालय की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट करने वाली इस पैदल यात्रा में 5000 से अधिक लोगों ने भाग लिया। आज देशभर में हम लोगों को गोपालन और गोरक्षा के प्रति सचेत करने में संलग्न हैं। 2008 में 'धेनुमानस' ग्रन्थ की रचना की। 23 फरवरी, 2014 को रामलीला मैदान में भव्य गोकथा के साथ हमने यह अभियान चलाया कि गाय को राष्ट्रमाता घोषित किया जाए। हमारी दूसरी मांग यह थी कि गाय पशु नहीं है, इसे अंग्रेजों ने पशु की श्रेणी में रखा था-'पशवो न गाव:'।
गाय को आप अर्थव्यवस्था से जोड़ते हैं और लोगों को गोपालन के लिए प्रेरित करते हैं। आज के समय में भी गाय कृषि व्यवस्था में किस तरह उपयोगी सिद्ध हो सकती है?
गोमाता कृषि का अभिन्न अंग होने के साथ हमारी अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा वरदान रही है। गाय के गोबर की खाद से रासायनिक खाद से निजात मिलेगी, गोबर गैस से चूल्हे जलाए जा सकते हैं, उसे सीएनजी में बदला जा सकता है। गाय के घी का विकल्प कोई वनस्पति घी नहीं हो सकता। गोमूत्र में आकाश का सोम औषधियों के देवता चन्द्र के रूप में विद्यमान है। गाय का प्रत्येक तत्व मानव जीवन के लिए परम उपयोगी है।
भारतीय परम्परा में गाय को विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त है। पर आज गाय की स्थिति दयनीय है, 'भारतीय गोक्रांति मंच' गोसंवर्द्धन और गोरक्षा के लिए कौन से विशेष अभियान लेने जा रहा है?
भारत एक श्रेष्ठ संस्कृति और परम्परा का देश है। हमारे ऋषि-महर्षि और राजा-प्रजा सभी गोपालन पर जोर देते रहे हैं। कामधेनु और सुरभि यहां गायों के प्रतीक रहे हैं। अब हर घर में वशिष्ठ और जमदग्नि जैसे गुरुओं के साथ राम और कृष्ण जैसे संस्कारी बालकों की आवश्यकता है, जो गाय को सम्मान और संरक्षण प्रदान करें। गोदुग्ध से पालित-पोषित संततियां संस्कारयुक्त और भ्रष्टाचार मुक्त होंगी। हम सरकार से गोचर भूमि को गायों के लिए मुक्त करने की मांग करेंगे। कृत्रिम गर्भाधान बंद होना चाहिए, जर्सी गायों के बजाय स्वदेशी गायों के संवर्द्धन पर जोर होना चाहिए। हम सरकार से गोहत्यारों को मृत्युदंड देने की मांग करेंगे। फरवरी, 2016 में दिल्ली में रामलीला मैदान से लेकर जंतर-मंतर तक हम गोमाता को राष्ट्रमाता बनाने का आंदोलन छेडें़गे। गाय, गंगा और हिमालय हमारे जीवन के पर्याय हैं। भारत को संजीवनी हिमालय ने दी है। यहां से निकलने वाली नदियां कभी सूखती नहीं हैं और समुद्रमंथन में जो गाय निकली थी वह भी हिमालय के ऋषियों ने ही ली थी। ल्ल
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