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अखलाक पर बवाल मक्का पर चुप्पी !

by
Oct 20, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 20 Oct 2015 10:42:11

 

ईदुल अजहा (बकरी ईद) के अवसर पर इस वर्ष दो बड़ी घटनाएं घटीं। अपने देश में मांस को लेकर अखलाक की हत्या कर दी गई। इसके पश्चात् गोवध पर फिर से सियासत चल पड़ी। भारत में दोनों समुदायों के समझदार लोग बाहर आए और जनता के आक्रोश को ठंडा करने का प्रयास किया। दादरी की घटना को जब राजनीतिक रूप दिया गया तो सम्पूर्ण देश के बुद्धिजीवी, समझदार राजनीतिज्ञ और समाजसेवी बाहर निकल आए और सभी एक सुर में कहने लगे कि जिसने भी पाप किया है उसे दंड मिलना ही चाहिए।
बिहार चुनाव के कारण इस घटना के शोले ऊंचे होते हुए दिखाई दिए। जिसके प्राण गए उसके परिवार को उत्तर प्रदेश सरकार ने बड़ा मुआवजा देकर मामले को ठंडा करने का प्रयास किया। अब सम्पूर्ण घटना पर बोध और शोध जारी है। भारत में लोकतंत्र है इसलिए यहां जनता के चुने हुए प्रतिनिधि इस प्रकार के मामलों की जांच करते हैं। यह प्रयास करते हैं कि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए। भारत ने समय-समय पर इस प्रकार की घटनाओं से सबक लिया है और भविष्य के लिए इस प्रकार के मापदंड तैयार किए हैं जिससे इस प्रकार की घटनाएं न घटंे। लोकतंत्र में इस पर बहस होती है और मीडिया अपना रुख सही दिशा में गतिमान करके दूध का दूध और पानी का पानी कर देता है। सरकार और प्रशासन इस मामले को लेकर चिंतित हैं। इसलिए सचेत होकर इसके स्थायी निराकरण पर सोच विचार कर रहे हैं। भले ही कुछ शरारती तत्व जनता को बरगलाएं, लेकिन भविष्य में सरकार और प्रशासन इसका रास्ता निकालने पर सहमत     हो जाएंगे।
लेकिन एक बड़ा सवाल यह है कि हज यात्रा के समय सऊदी में क्या जन की हानि नहीं होती है? वहां तो शुद्ध रूप से इस्लामी सरकार है। सऊदी सरकार इतनी अमीर और साधन सम्पन्न है कि उनके यहां कोई पैसे की कमी नहीं है। रियाल इतना मजबूत है कि उसके सामने डॉलर भी पानी भरता है। लेकिन फिर भी क्या सऊदी सरकार, वहां जो हर हज यात्रा के अवसर पर दुर्घटनाएं घटित होती हैं उनको रोक पाने में सफल हो जाती है? यदि दादरी में मर जाने वाले की जान वापस नहीं आती तो क्या मक्का मदीना में घटित होने वाली घटनाओं में लोग फिर से जीवित हो जाते हैं? सेकुलर भारत तो हर तरह से घेरे में आ जाता है लेकिन सऊदी की मजहबी सरकार पर कोई बावेला नहीं होता और कोई ऊंगली नहीं उठाई जाती है, लेकिन भारत में कुरबानी के अवसर पर घटी एक घटना से सारा इस्लाम खतरे में पड़ जाता है। भारत में मुसलमानों के लिए सहानुभूति की डींगें मारने वाले नेता सऊदी की कट्टरवादी सरकार के सामने क्यों भीगी बिल्ली बन जाते हैं? इसका अर्थ तो यह हुआ कि मुस्लिम सरकार होने के नाते सऊदी के सौ गुनाह माफ और भारत की सेकुलर सरकार के सामने जिहादी नारे।
भारत में दादरी के अखलाक के साथ जो शर्मसार हरकत हुई हर समझदार इंसान ने उसकी निंदा की है। लेकिन सऊदी में मरने वाले लोगों के लिए कोई अपने मुंह से आह भी निकालने के लिए तैयार नहीं। बल्कि कई मौलाना और सऊदी के पैसों पर पलने वाले यह भी कहने से नहीं चूक रहे हैं कि वे तो शहीद की मौत मरे हैं। यदि मरने वालों की जान इतनी सस्ती है तो फिर सऊदी का समर्थन करने वाले स्वयं शहीद क्यों नहीं हो जाते हैं? सऊदी में पहली घटना इस बार क्रेन के गिरने के कारण हुई। बस भगदड़ में 850 लोग अपनी जान गंवा बैठे। मरने वालों में अनेक देशों के हाजी शामिल थे। सऊदी अरब में मक्का की मस्जिद के पास मीना में शैतान को कंकर मारने के अवसर पर हर साल बड़ी तादाद में लोग मरते हैं। वे बेचारे जो शैतान को मारने के लिए यहां इकट्ठे हुए थे वही लोगों के पैरों तले कुचल गए थे। हर वर्ष ऐसा होता है लेकिन सऊदी सरकार उसके आंकड़े नहीं देती है। 1990 में 1400 लोग कुचल कर मर गए थे। हमारा यह अनुभव है कि जब भीड़ बेकाबू हो जाती है तो फिर भगदड़ में मरने वालों की संख्या का आंकड़ा कितने पर पहुंचता होगा उसका आकलन कठिन नहीं है? भीड़ में पुरुष और स्त्री साथ-साथ होते हैं। कंकर नहीं मिलने पर लोग अपने जूते ही चला देते हैं। उनका काम और लक्ष्य तो शैतान को मारना है। पता नहीं सदियों से चली आने वाली रस्म में कितने शैतान मरे और कुचले गए, इसका आंकड़ा तो नहीं मिलता लेकिन हज करने गए लोगों की मौत का आंकड़ा अवश्य उपलब्ध हो जाता है। लेकिन मजाल है कि कोई हज कमेटी अथवा सरकार अपना मुंह खोल दे! मानव अधिकार की मांग करने वाले और ओवैसी जैसे नेताओं को चाहिए कि वे रियाद अथवा मक्का मदीना जाकर इन बेचारे मर जाने वालों के प्रति अपनी आदरांजलि ही अर्पित करने का पुण्य कमा लें। कहा जाता है कि मरने वाले को सऊदी सरकार मुआवजा भी देती है। तब तो वहां पहुंचकर वे अपना पार्टी फंड अच्छा एकत्रित कर सकते हैं!
भारत सरकार को दादरी के बहाने घेरे में लेने वाले नेता सऊदी सरकार के विरुद्ध यह घेरा तंग क्यों नहीं करते? मानव अधिकार की चीखों पुकार करने वाले सऊदी के मामलों में चुप क्यों हो जाते हैं? किसी ने यह सवाल नहीं किया कि मक्का के निकम्मे प्रशासन ने हाजियों को वहां जाने की आज्ञा किस प्रकार दे दी?
पाठक भली प्रकार जानते हैं कि सऊदी में कट्टर वहाबी पंथ की सरकार है जिसकी एक आवाज पर मुल्ला मौलवियों और मुस्लिम जगत के नेताओं के हलक सूख जाते हैं। जरा आवाज उठाई नहीं कि सरकार कान उमेठ देती है। ऐसे अवसर पर भारतीय मौलाना और मुस्लिम नेता जिहाद और इस्लाम के नाम पर न तो किसी अखबार को इंटरव्यू देते हैं और न ही अपने देशवासियों को जिहाद के लिए ललकारते हैं। उस समय उन्हें कुंभ और अजमेर शरीफ की भीड़ अवश्य याद आती होगी?
भारत में पांथिक स्वतंत्रता और सऊदी में मजहबी परतंत्रता का अंतर साफ दिखाई पड़ता होगा? भीड़ का प्रबंधन किस प्रकार करना है यह अरब के नेताओं, नौकरशाही और ठेकेदारों को नहीं आता। वे सीखना भी नहीं चाहते। भीड़ को हंटर और चाबुक से अपने अधीन करना चाहते हैं। वहां पर्दे जैसी तो कोई वस्तु ही नहीं। नेताओं से पूछें जो हर कदम पर पर्दे की हिमायत करते हैं। सऊदी सरकार ने अब तक ये आंकड़े कभी प्रस्तुत नहीं किए कि हज के समय कितनेलोग मरे।
 भारत सरकार से सवाल करने वालों को याद आता ही होगा कि हम कितने सभ्य देश के  नागरिक हैं जहां की सरकार इंसान ही नहीं पशु पक्षियों पर भी दया के कानून बनाती है। भारत और सऊदी दोनों में घटी घटनाओं की तुलना की जाए तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।   

मुजफ्फर हुसैन

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