राजग सरकार ने जीता सेना का दिल
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राजग सरकार ने जीता सेना का दिल

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Oct 12, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Oct 2015 10:49:11

अंक संदर्भ- 20 सितम्बर, 2015
आवरण कथा 'समता और सम्मान' से स्पष्ट हो गया कि केन्द्र सरकार ने जो निर्णय लिया है वह एक अभूतपूर्व कदम है। भारत के प्रधानमंत्री ने वर्षों से लंबित चले आ रहे 'वन रैंक वन पेंशन' पर एक सटीक निर्णय लेकर सैनिकों को उनका हक देने का काम किया है। वर्षों से सैनिक इस मांग के लिए संघर्ष करते आ रहे थे। संप्रग सरकार के दौरान भी सैनिकों ने इस प्रकार की मांग की थी और कई सैनिकों ने अपने पदक भी लौटाए थे, लेकिन दस साल तक रही कांग्रेस सरकार ने इन सैनिकों की कोई सुध नहीं ली। लेकिन नरेन्द्र मोदी की सरकार के अभी 15 महीने ही हुए हैं, इतने कम समय में ही इस विषय पर निर्णय ले लिया। इससे काम करने की मंशा का पता चलता है।
—राममोहन चन्द्रवंशी
टिमरनी,हरदा (म.प्र.)
ङ्म केन्द्र सरकार द्वारा पूर्व सैनिकों के लिए पेंशन लागू करने की घोषणा के बाद सैनिकों में उत्साह दिखाई दिया। 1973 से जारी सैनिकों की इस मांग के बाद कितनी सरकारें आईं और कितनी गईं पर किसी ने इस विषय पर सैनिकों की मदद करने की कोशिश नहीं की। पर मौजूदा राजग सरकार ने कम समय में ही इस बड़े विषय को सुलझा लिया। अपने घोषणापत्र में चुनाव से पहले जो भाजपा ने कहा था वह करके दिखा दिया है।
—रामदास गुप्ता
जनतामिल (जम्मू-कश्मीर)
ङ्म प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व सैनिकों के लिए एक रैंक एक पेंशन योजना लागू करके चालीस वर्षों से रुके हुए विवाद को समाप्त कर दिया। 5 सितम्बर को यह घोषणा की गई कि वषोंर् पहले सेवानिवृत्त हुए एक सैन्य अधिकारी को उसी पद पर आज की तारीख से सेवानिवृत्त होने वाले सैन्य अधिकारी व जवानों को बराबर ही पेंशन मिलेगी। सारे देश में सैनिक परिवारों में खुशी की लहर छा गई। निश्चित रूप से इस निर्णय से प्रधानमंत्री ने देश के लोगों का दिल जीत लिया। देश देख रहा है कि अभी सरकार को दो वर्ष भी नहीं हुए हैं लेकिन मोदी सरकार देश को विकास के पथ पर अग्रणी करने के लिए सतत् जुटी हुई है। देश का सौभाग्य है कि उसे प्रथम बार इस प्रकार का गतिशील नेतृत्व मिला है। यह निर्णय एक मील का पत्थर सिद्ध होगा।
—कृष्ण वोहरा
जेल मैदान, सिरसा (हरियाणा)
विष घोलती मजहबी शिक्षा
मदरसों में मजहबी तालीम पढ़ाई जाती है, उस तालीम को पढ़ने से ही मदरसों में पढ़ने वाले लड़कों के अंदर कट्टरता का विष घोल दिया जाता है। जैसे-जैसे उनका शारीरिक विकास होता है उनकी कट्टर सोच में और ज्यादा कट्टरता आने लगती है। यह इस्लाम का बहुत ही निदंनीय कहा जा सकने वाला विषय है। मजहबी शिक्षा देना गलत नहीं है लेकिन मजहब के नाम पर कट्टरता फैलाना और अपने अलावा किसी को कुछ भी न समझना यह बिलकुल समाज हित की भावना के खिलाफ है। अब इसमें बदलाव जरूरी है। साथ ही मदरसों में इस प्रकार की कट्टरता को रोका जाना चाहिए।
—रूपसिंह सूर्यवंशी
 निम्बाखेड़ा, चित्तौड़गढ़ (राज.)
स्वयं हैं पिछड़ने की वजह
लेख 'पिछड़ने की वजह और बेमौसमी राग' अच्छा लगा। मुस्लिम समाज के पिछड़ने का बड़ा और महत्वपूर्ण कारण है प्रगति की रफ्तार से अपने को दूर रखना। मुस्लिम समाज आज भी आधुनिक समाज से कोसों दूर कट्टरवाद और मजहबी उन्माद में आकंठ डूबा है।  यह हालत सिर्फ भारत में ही नहीं वरन् पूरे विश्व में है। विश्व पटल पर भी हम जब उनकी स्थिति देखते हैं तो यही संकीर्ण सोच यहां पर भी दिखाई देती है। यह समुदाय कहीं भी रहे वह कुरान की हदीसों से बाहर ही नहीं आ पा रहा है। जब दुनिया तरक्की कर रही है तो किसी भी मत-पंथ को उसमें शामिल होना चाहिए और अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो इसका दोष भी नहीं मढ़ना चाहिए।
—मनोहर मंजुल
 पिपल्या-बुजुर्ग, निमाड (म.प्र.)

    चपल चाल को समझती जनता
बिहार में मतदान नजदीक है। इस बार के चुनाव में जो विशेष है वह है लालू और नीतीश की राजनीतिक अस्मिता। कुछ समय पूर्व तक धुरविरोधी रहे ये नेता आज एक ही सुर अलाप रहे हैं और अपनी जमीन बचाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। प्रतिदिन केन्द्र की मोदी सरकार को निशाना बनाकर ये ओछी टिप्पणियां करते हैं। वे समझते हैं कि ऐसा करके हम बिहार की जनता को अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब हो रहे हैं, असल में यह उनकी भूल है। बिहार की जनता इनके जंगलराज को भलीभांति अनुभव कर चुकी है। उसने दोनों दलों के राज को देखा है। जनता अब और बिहार को पिछड़ने नहीं देने वाली।
—परमानंद रेड्डी
देवेन्द्रनगर, रायपुर (छ.ग)
                    शिक्षा में होता भेदभाव
रपट 'पढ़ाई का पहाड़ा' पढ़ी। 15 अगस्त,1947 को भारत को राजनीतिक आजादी तो मिल गई लेकिन लॉर्ड मैकाले की शिक्षा नीति से 68 वर्ष बाद भी आजादी नहीं मिल पाई है। लोकतांत्रिक देश में अब तक हम अपनी मातृभाषा में एक समान शिक्षा नीति लागू नहीं कर सके। आज समाज में निजी और कॉन्वेंट शिक्षा का भेदभाव है। अमीर का बच्चा कान्वेंट में और गरीब का बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ता है। लंबे समय से राजनीतिक बेचारगी को देखते हुए न्यायपालिका को आगे आना पड़ा और उसने सरकारी कर्मचारियों को अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने का आदेश दे दिया। वैसे एक समान शिक्षा नीति से ही भारत का भविष्य उज्ज्वल होने        वाला है।
—सुखदर्शन सिंहल
 रामपुर (उ.प्र.)
करारा जवाब
सुषमा स्वराज ने संसद में कांग्रेस को उसकी ही भाषा में समझाया है। पूरे देश के सामने उनके काले कारनामों को उजागर करके रख दिया है। उनके तीखे तेवरों को देखते हुए कांग्रेस के नेताओं में सन्नाटा छा गया। किसी के पास बोलने के लिए शब्द ही नहीं थे।
—बी.एल.सचदेवा
आईएनए बाजार (नई दिल्ली)
सुलझे मामला
रपट 'किसने कहा बंद हो गई गीताप्रेस' ने सच को देश के सामने ला दिया है। मीडिया के एक वर्ग ने गीताप्रेस के बंद होने की खबरों को जोरशोर से दिखाकर अफवाहें फैला दीं। जबकि हकीकत इससे कुछ इतर थी। गीताप्रेस में हड़ताल थी, न कि गीताप्रेस बंद हुई थी। लेकिन कुछ भी हो इस पूरे मामले को प्रबंधन को समझना चाहिए और तत्काल इसे सुलझा लेना चाहिए। क्योंकि इस संस्थान के साथ देश के लाखों-करोड़ों लोगों की भावनाएं जुड़ी हुई हैं।
—देशबंधु
रामबाजार,सोनीपत(हरियाणा)
वास्तविक इतिहास आए सामने
इतिहास राष्ट्र और समाज का दर्पण होता है। इतिहास को पढ़कर ही भावी पीढ़ी स्वाभिमान और राष्ट्रभाव का अनुभव करती है। हमारे देश का इतिहास अति उज्ज्वल रहा है, लेकिन दुर्भाग्य है कि विदेशी आक्रान्ताओं ने हमारी संस्कृति को आघात पहुंचाने के लिए और राष्ट्रीय भावना को दुर्बल करने के लिए हमारी राष्ट्रीय एकता को छिन्न-भिन्न करने का प्रयास किया। हमारे इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा गया। स्वतंत्रता के बाद भी हमारा सही इतिहास सामने नहीं आया। कारण शासक वर्ग में राष्ट्रीयता कम पदलोलुपता ज्यादा थी। लेकिन सरकार को चाहिए कि जो हमारा वास्तविक इतिहास है वह देश के सामने आए।
सेकुलरिज्म घातक
लेख 'लोकतंत्र को बौना बनाता सेकुलरिज्म' पढ़ा। आज हमारे नेताओं में देखने में आता है कि देश या हिन्दू व्यवस्था से जुड़ा मुद्दा उनको नहीं भाता है। जैसे ही कोई प्रकरण आता है। सेकुलर बनने की होड़ लग जाती है। असल में नेता वोट के लिए सब कुछ करते हैं। लोकतंत्र को बौना बनाकर सेकुलरिज्म ने भारत का नुकसान किया है।
—सुहासिनी किरनी
 गोलीगुडा, (हैदराबाद)
लागू हो समान नागरिक संहिता
हाल ही में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी हुए हैं। ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं। आंकड़ों ने साफ कर दिया कि देश के पूर्वोत्तर राज्यों में ईसाइयों और मुसलमानों की जनसंख्या में बढ़ोतरी हुई है। यहां तक कि कई राज्यों में मुसलमानों की संख्या में कई गुना बढ़ोतरी हुई है। ये आकड़े देश के लिए चिंता का विषय हैं। अगर इसी प्रकार दिन-प्रतिदिन मुसलमान और ईसाइयों की संख्या बढ़ती रही तो यह हिन्दुओं के लिए ही नहीं देश के लिए भी घातक सिद्ध होने वाला है। अब भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने में देर नहीं  करनी चाहिए।
—प्रकाश चन्द
 उत्तम नगर (नई दिल्ली)
बने कानून
देश के कई राज्यों में गोहत्याबंदी का कानून कड़ाई से लागू हो चुका है। अब इसे पूरे देश में लागू करने की जरूरत है। देश के लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र गाय है।
—बी.आर.ठाकुर
संगमनगर, इन्दौर (म.प्र.)

 

स्वयं हैं पिछड़ने की वजह
मुस्लिम मानसिकता पर बाबा साहब आंबेडकर ने सही कहा था कि इनकी जितनी भी मांगें मानोगे इनकी मांग बढ़ती जाएंगी। मुसलमानों का काम ही है कि ये अपने दुखड़ों का रोना रोते रहते हैं चाहे वे दुखी हों या न हों। असल में राननीतिक दवाब बनाने के लिए उनके द्वारा ऐसा किया जाता है। दूसरों के अधिकारों का हनन भले ही हो जाए पर खुद के अधिकार सुरक्षित होने चाहिए, यही मुस्लिम मानसिकता है।
तुष्टीकरण की घटिया राजनीति के चलते ये लगभग अपनी हर चाल में सफल हो जाते हैं। मोहम्मद अली जिन्ना ने यह स्पष्ट रूप से कहा था कि मुझे यकीन नहीं था कि अपने जीते जी मैं पाकिस्तान देख सकूंगा। लेकिन महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू जिन्ना की मानसिकता को समझने में असफल रहे और उनके आगे घुटने टेकते चले गए। हिन्दू-मुस्लिम एकता के भ्रम का अंत देश के बंटवारे के साथ हुआ। मुसलमानों के दवाब बनाने की शुरुआत वहीं से हुई और आज तक यह बढ़ती चली आ रही है। बंटवारे के बाद लगभग 60 सालों तक कांग्रेस ने देश पर शासन किया और मुस्लिम तुष्टीकरण में अग्रणी रही इस पार्टी ने उनके वोट पाने के लिए हर वह काम किया, जिनसे मुसलमानों को खुश करके वोट पाए जा सके। हजयात्रा में सरकारी छूट देश के संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला अधिकार बताना, साम्प्रदायिक हिंसा में बहुसंख्यकों को जिम्मेदार ठहराने का प्रयास करना, हिन्दुओं के पूजा स्थलों पर कर लगाना जैसे अनेक ऐसे उदाहरण आज सामने हैं। इसी कड़ी में उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी द्वारा मुसलमानों के पिछड़ेपन का राग छेड़ना उसी घटिया राजनीति का एक हिस्सा है। पिछड़ापन तो एक बहाना है। राजनेता कभी चाहते ही नहीं हैं कि मुसलमानों का विकास हो। वे चाहते हैं कि मुसलमान इसी प्रकार पिछड़े बने रहें और हम इनको स्वयं के विकास की बात याद दिलाकर वोट लेते रहें। हामिद असंारी द्वारा की गई टिप्पणी चुनावों को ध्यान में रखकर एक राजनीतिक टिप्पणी लगती है। असल में मुसलमानों की अशिक्षा और पिछड़ने का कारण आज की आधुनिकता को नकारना, विज्ञान की जगह कुरान-हदीस को मान्यता देना, कट्टरता को बढ़ावा देना यही सब उनके पिछड़ने का मुख्य कारण है।
—अश्वनी जांगड़ा
 महम, रोहतक (हरियाणा)
 बुद्धि केे हिमालय

माता की आलोचना, करते हैं जो लोग
उनकी बुद्धि में घुसा, घोर प्रदूषण रोग।
घोर प्रदूषण रोग, दवाखाने में जाओ
उसकी पूरी ओवरहालिंग वहां कराओ।
कह 'प्रशांत' जब कचरा बाहर हो जाएगा
माता है भगवान, समझ तब ही आएगा॥   
-प्रशांत 

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