आध्यात्मिकता का उभार और चीन में उबाल
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आध्यात्मिकता का उभार और चीन में उबाल

by
Oct 12, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Oct 2015 12:47:39

 

पांथिक मोर्चे पर विश्व में दो घटनाएं फिलहाल चर्चा में हैं। एक है चीन की, जिसमें वहां के फलून गोंग नाम के समुदाय, जिसके सदस्यों की संख्या दस करोड़ है, पर अत्याचार हो रहे हैं। हजारों अनुयायियों को जेल में डाला गया है। दुर्भाग्य यह कि उनके अंग निकालकर विदेशियों को बेचे जा रहे हैं। कुछ प्रसार माध्यमों के मत में यह संख्या लाख में जा चुकी है। दूसरी घटना है ब्रिटेन की। वहां के एक मुस्लिम परिवार ने ईसाई मत स्वीकार किया है। इसके बाद वहां के मुसलमानों ने उसका बहिष्कार किया है। इतना ही नहीं, उन्हें मारने, उनकी गाड़ी के कांच तोड़ने की हरकतें हुर्इं। उन्होंने सरकार से संरक्षण मांगा है। लेकिन इन अत्याचारों और कन्वर्जन से अधिक चर्चा में है इस परिवार की पांच संतान होना। इसी तरह इस परिवार के मुखिया के दस भाई-बहन होने की भी चर्चा है। विवाद का विषया यह बना है कि ऐसे लोग चाहे कन्वर्जन करें या न करें, लेकिन हर पीढ़ी में अगर इसी तरह 6 से 11 संतानें हों तो उनका इस पर क्या असर होगा। 

चीन में पांथिक स्वतंत्रता नहीं है। इसलिए जब भी कोई कुछ नया प्रयोग शुरू करता है और वह लोकप्रिय होता है तो वहां की सरकार को हमेशा डर लगा रहता है कि कहीं सरकार की लोकप्रियता कम न हो। वहां का फलून गोंग नामक जो नया पंथ उभरा है वह बौद्ध परंपरा से निकला है। प्राणायाम एवं कुछ योगासनों के आधार पर व्यक्ति पूरी तरह बदल सकता है, यह उस पंथ की सीख है लेकिन वह पतंजली योगसूत्र के अनुसार नहीं है। वह कुछ बौद्ध एवं कुछ ताओ दर्शन के अनुरूप है। फिर भी वह उनकी जीवनशैली है जो काफी कुछ-कुछ भारतीय है। वहां की सरकार ने पहले तो इस आंदोलन को शह दी लेकिन जब उनकी संख्या करोड़ों में पहुंचने लगी तब उस पर पाबंदी लगाई गई। लेकिन जेल में कैद उन लोगों की किडनी वगैरह अंग बाहर वालों को बेचे जाने का मामला विश्व में इससे पूर्व कहीं भी इतने बड़े पैमाने पर नहीं दिखा था।

‘मेडिकल टूरिज्म’ शब्द आज विश्व में अनेक स्थानों पर सुनाई दे रहा है लेकिन उसका ऐसा भी कोई पहलू हो सकता है, यह बात चौंकाने वाली है। चीन हमारा पड़ोसी देश है। उस देश में दस करोड़ लोगों के साथ घटी इस घटना का इस देश के लोगों को पता होना आवश्यक है। पश्चिमी देशों के बहुतांश मीडिया ने इस विषय को उठाया है। मुख्यत: ब्रिटेन के दैनिक डेली मेल ने इस पर अनेक पहलुओं से जानकारी दी है। इसमें इस पंथ का दर्शन क्या है और विरोध किस कारण हुआ, इससे भी अधिक इस समाचार को महत्व मिला कि जेल में बंद लोगों के अंग विदेशी पर्यटकों को बेचे जाते हैं। गूगल पर खोजें तो उस पर आधारित सैकड़ों वृत्त चित्र देखने को मिलते हैं। इसमें पंथ के अनुयायी बताते हैं कि उनके हजारों साथी जेल में मारे गए हैं और उनके अंग निकालकर बेचे गए हैं। पंथ के अनुयायियों की दस करोड़ संख्या होने के कारण पूरी दुनिया में मानवाधिकारी कार्यकर्ता विरोध प्रदर्शन कर रहे है। और मोर्चे निकाल रहे हैं। इस समाचार के कारण इस पंथ का पूरी दुनिया में प्रसार हुआ है। फिलहाल 70 देशों में इस पंथ के लोग सार्वजनिक रूप से योगासन एवं प्राणायाम करते हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि योगासन एवं प्राणायाम उनके बाह्य दर्शन हैं। इनके जरिए हर कोई ‘स्वयं के मन में’ झांक सकता है। दूसरे यह कि इससे सभी रोग दूर होते हैं। तीसरा, हम किसके लिए जिएं, इसका पता चलता है। गूगल पर उपलब्ध इनके वीडियो से यही लगता है कि इनके द्वारा भारतीय योगशास्त्र का ही प्रचार किया जा रहा है। इसमें काफी सारे शब्द संस्कृत के ही हैं। ऐसा लगता है कि उन्होंने सारी सीख बौद्ध धर्म के त्रिपिटक से ली है। उनके पंथ का स्थानीय नाम भी ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ ही है। भारत में जिस तरह स्वस्तिक है उसी तरह उनका भी स्वास्तिक ही मुख्य चिह्न है पर वह हिटलर की नाजी सेना के निशान की तरह ‘उल्टा स्वास्तिक’ है। लेकिन यह पंथ ज्यादा पुराना नहीं है। वे गर्व से कहते हैं कि ‘हमारी परंपरा हजारों वर्ष पूर्व से है। उनकी शिक्षा भगवान गौतम बुद्ध की दी हुई है, यह भी वे जताते हैं। प्राणायाम एवं योगासन जैसे शब्द उनके प्रयोग में नहीं हैं लेकिन उनके अध्ययन की शुरुआत ही पद्मासन से होती है। जैसे सूर्य नमस्कार गतिमान होता है, वैसे ही उनकी बहुतांश क्रियाएं गतिमान होती हैं। कुछ हिस्सा तो सूर्य नमस्कार जैसा ही होता है। किसी शहर में दस-दस हजार लोग एक साथ ऐसे योग करते हुए दिखाई देते हैं। ‘ट्रूथ, कम्पेशन एंड टॉलरेन्स,’ उनके ध्येय वाक्य हर तरफ बड़े अक्षरों में लिखे होते हैं।

इस पंथ की स्थापना सन्1990 में चीन में ही हुई। सन् 1999 तक चीन में इनका हर तरफ प्रसार हुआ। छोटे-छोटे कस्बों तक यह पंथ फैला। डॉ. ली होंगजी इसके संस्थापक थे। लेकिन सन् 1999 में सरकार को यह पंथ अपना विरोधी लगने लगा। संस्थापकों को अमरीका में आश्रय लेना पड़ा। चीन ने उस पर केवल पाबंदी ही नहीं लगाई बल्कि इस पंथ की जड़ें उखाड़ फेंकने के लिए बड़ी मुहिम हाथ में ली। यूरोप के अनेक देशों ने इस पाबंदी के विरोध में मुहिम चलानी शुरू की है। चीन विषयक अध्ययनकर्ता एथन गुटमन, नोबल के लिए नामांकित एक नाम अर्थात् डेविड मातस, कनाडा के विदेश मंत्री डेविड किलगोर का इसमें समावेश है।

चीन में पांथिक स्वतंत्रता का यह विषय पूरी दुनिया में सामने आने का कारण यह है कि पूरी दुनिया में फिलहाल चीन के ईसाइयों का विषय चर्चा में है। चीन में ईसाई जनसंख्या कोई नया विषय नहीं है बल्कि पिछले पांच- दस वर्षों में बहुराष्टÑीय कंपनियों के चलते चीन में जिस तरह से ईसाई कन्वर्जन में वृद्धि हुई है उसके आधार पर वे अब यह दावा करने लगे हैं कि वहां के कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य संख्या से अधिक ईसाइयों की संख्या है और वे घोषित रूप से इस ध्येय के साथ कार्यरत हैं कि शीघ्र ही चीन में अमरीका से अधिक ईसाई होंगे। चीन किसी भी पंथ का निष्ठुरता से विरोध करने वाला देश है, लेकिन वहां ईसाइयों के पीछे अमरीका जैसा देश एवं यूरोपीय देशों के संगठनों को खड़ा देखकर ईसाइयों के मोर्चे पर चीन ने नरमाई का रुख अपना लिया। आज की वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्धा में चीन किसी भी बहुराष्टÑीय कंपनी को नाराज नहीं कर सकता। लेकिन फिर किसी पंथ के पीछे बहुराष्टÑीय कंपनियां हों तो उनसे अलग बर्ताव और दुनिया में अन्य विचार प्रवाहों के लिए अंग बेचने की ऐसी हिमाकत का यह मामला पड़ोसी देशों के लिए गौर करने का विषय तो है ही। भारत की अनेक घटनाओं पर चीन की नजर रहती है। कुछ राजकीय दल तो उस देश के नेताओं के नाम इस देश में खूब लेते हैं। वे दल यहां सक्रिय हैं, इतना ही नहीं बल्कि यहां के लोकतांत्रिक मूल्यों को अमान्य करने तथा उग्रवादी विचारधारा को पोसने से भी नहीं हिचकिचाते। इस पृष्ठभूमि में उनके देश में हमारी जीवनशैली से संबंधित कुछ बातों पर अगर उनकी हिम्मत अंग बेचने तक की हो जाए तो उस पर गंभीर दृष्टि डालनी जरूरी है। 

पांथिक असहिष्णुता की दूसरी घटना है ब्रिटेन की। मूलत: पाकिस्तानी निसार हुसैन ने अपनी पत्नी एवं छह बच्चों सहित ईसाई मत अपनाया जिसके बाद ब्रिटेन में उनकी कैसी दुर्दशा हुई, यही इसका सार है। लेकिन यह चर्चा ब्रिटेन तथा अन्य यूरोपीय-अमरीकी देशों में अलग ही कारणों से चल रही है। हुसैन की आयु आज 49 वर्ष है। पत्नी कुब्रा की आयु 45। लेकिन उनके बच्चे हैं छह। साथ ही निसार हुसैन के सात भाई और चार बहनें हैं। ये सारे लोग ब्रिटेन के ब्रैडफोर्ड इलाके में एक ही मोहल्ले में रहते हैं। 19 वर्ष पूर्व हुसैन परिवार ने ईसाई मत में से निकले एंग्लिकन पंथ को स्वीकार किया था। तब से ब्रिटेन के पूरे मुस्लिम समुदाय ने उनका बहिष्कार किया हुआ था। उनके बच्चों को उस स्कूल बस में जाने से रोक दिया गया था जिससे समुदाय के अन्य बच्चे जाते थे। आज स्थिति यह है कि उन्हें रहने के लिए अन्यत्र जाना पड़ा है।

लेकिन ब्रिटेन में चर्चा जारी है कि एक ही परिवार में 11 भाई-बहन और उनकी अगली पीढ़ी में छह भाई-बहन होना क्या दर्शाता है। पिछले महीने भारत में गत दस वर्ष की जनगणना के परिणाम घोषित हुए तो पाया गया कि मुसलमानों की आबादी में आश्चर्यजनक बढ़ोत्तरी हुई है और कई स्थानों पर वे बहुसंख्यक हो गए हैं। लेकिन यह स्थिति ब्रिटेन एवं अन्य यूरोपीय देशों और अमरीका में इससे भी गंभीर है। यह चर्चा हुसैन परिवार की जानकारी सामने आने के बाद बढ़ी है। दुनिया के अग्रणी सर्वेक्षण संगठन ‘पीयू’ के अध्ययन के अनुसार पूरी दुनिया में आज जनसंख्या वृद्धि का एक भयानक विस्फोट हो रहा है। हर जगह बेआवाज विश्व पर राज जमाने की साजिश के तहत हरकतें चल रही हैं। इस पर गंभीरता से ध्यान न दिया गया तो बहुत नुकसान   उठाना पड़ेगा।  – मोरेश्वर जोशी        

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