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ब्रह्मचारिणी
ब्रह्म अर्थात् ज्ञान, मंत्र तथा परम सत्ता इन सबकी प्राप्ति का यत्न करना दुर्गा के दूसरे रूप में समाविष्ट हुआ है। भक्तजन सदैव ज्ञानार्जन हेतु मंत्र रचना या मंत्र साधना के लिए सन्नद्ध रहकर परंब्रह्म की प्राप्ति की साधना में लीन रहें यही संदेश है। आज शैलपुत्री
शैलपुत्री या पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए इतनी कठोर तपस्या की कि पेड़ों से गिरने वाले पत्तों तक को खाना छोड़ दिया। तभी उनका नाम अपर्णा पड़ा था। देवी के इस रूप से अचल, अडिग संकल्प लेकर जीवन के उद्देश्य को प्राप्त करके ही रहना सीखा जाना चाहिए।के अनैतिकता भरे युग में जब व्यक्ति अमर्यादित व्यवहार के
जाल में फंसे हैं, देवी का यह रूप अत्यंत प्रेरणादायी है।
चंद्रघण्टा
चंद्र कहते हैं शीतलता प्रदान करने वाले चंद्रमा को। यह चंद्रमा जिनके घंटे पर अंकित हो वह कहलाती हैं चंद्रघण्टा देवी। यदि आपके पास शक्ति है तो वह दूसरों को कष्ट देने के लिए न हो, अपितु सबको प्रसन्नता देने के लिए हो। साथ ही अपनी शक्ति, अपने सद्गुणों का घंटा ध्वनि कर प्रचार—प्रसार करना चाहिए।
कूष्माण्डा
कूष्मा शब्द कुत्सित ऊष्मा से बना है जिसका अर्थ है त्रिविधतापयुक्त संसार। यह संसार देवी के उदर में रहता है। अत: देवी का नाम कूष्मांडा पड़ा। देवी का यह सर्वव्यापक रूप बताता है कि देवी की सच्ची पूजा पूरे संसार के प्रति सम्मानभाव रखने में ही है।
स्कंदमाता
स्कंद समस्त देवों के सेनाध्यक्ष थे। उन्होंने ही तारक नामक राक्षस का वध किया। ऐसे स्कंद (कार्तिकेय) की मां हैं देवी। देवी के इस रूप से मातृ जाति को प्रेरणा लेनी चाहिए कि वे अपना व्यक्तित्व ऐसा बनाएं कि संतान शक्तिशाली हो और नैतिक मूल्यों को अपनाकर दुष्प्रवृत्तियों का नाश करने वाली हो।
कात्यायनी
नवरात्र के छठे दिन कात्यायनी देवी की पूजा का विधान है। कात्यायनी का नाम व्याकरण और स्मृति ग्रंथों से जुड़ा है। देवकार्य सिद्धि के लिए देवी कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं तथा कात्यायनी कहलायीं। देवी का यह रूप स्त्री को अपने अधिकार के लिए सचेष्ट करता है तो दूसरी ओर दिव्य कार्य संपादन के लिए प्रेरणा देता है।
कालरात्रि
देवी का सातवां स्वरूप है कालरात्रि। असुरों का वध करने वाली काली का नाम भी प्रसिद्ध है। देवी का यह रूप याद दिलाता है कि मनुष्य को हमेशा काल या मृत्यु को याद रखना चाहिए। संसार में रहते हुए लोग विषय भोगों में तथा धन संचय में इतना आसक्त हो जाते हैं कि दूसरों को सताने लगते हैं, अत्याचार करने लगते हैं। मृत्यु के क्षण को याद रखने से अनुचित मार्ग से बचाव होगा।
महागौरी
देवी का आठवां स्वरूप है महागौरी जिनकी अर्चना अष्टमी को की जाती है। गौर वर्ण शक्ति मां, स्वच्छता व शीतलता की प्रतीक है। देवी यदि कालरात्रि हैं तो महागौरी भी हैं। श्वेत व कृष्ण दो पक्ष ही तो जीवन में हैं। शुभ—अशुभ दोनों को स्वीकार करते चलें तो जीवन में सिद्धि यानी सफलता मिलती है।
सिद्धिदात्री
नवरात्र के अंतिम दिन देवी के सिद्धिदात्री अर्थात् सिद्धि देने वाले रूप की पूजा की जाती है। प्रथम दिन शैलपुत्री की आराधना से आरंभ करते हुए नए—नए रूपों की अर्चना श्रद्धापूर्वक, ज्ञानपूर्वक करते हुए अंतिम रूप से सिद्धि प्राप्ति होती है। सिद्धि सामान्य अथार्ें में किसी भी क्षेत्र में सफलता का नाम है।
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