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यह जम्मू है !जहां जनतंत्र नहीं, घोर तानाशाही कायम है

by
Oct 12, 2015, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Oct 2015 11:16:05

यह जम्मू है !
जहां जनतंत्र नहीं, घोर तानाशाही कायम है
जम्मू-कश्मीर में राज्य विधानसभा के चुनावों में सत्तारूढ़ दल की अप्रजातान्त्रिक धांधलियां किसी को भूली नहीं हैं। एकमेव प्रतिद्वंद्वी दल प्रजा परिषद की लोकप्रियता से घबराकर अनेक प्रकार से उसके कई प्रत्याशियों के नामांकन पत्र खारिज किए जाना, सरकारी मशीन द्वारा आतंक दिखाकर प्रजापरिषद के समर्थकों को मत देने से रोकना, रिटर्निंग एवं पे्रजाइडिंग अधिकारियों द्वारा मत बक्सों को तोड़ना, मतपत्रों की दो-दो प्रतियां देकर एक प्रति के मतपत्र नेशनल कांफ्रेंस के कार्यकर्ताओं द्वारा अपने बक्सों में डलवा लेना और तिस पर भी 2000 मतों से जीतने वाले परिषद के उम्मीदवार को सबकी आंखों के सामने असफल घोषित कर देना आदि ऐसी बाते हैं जो जम्मू के बच्चे-बच्चे की जानकारी में हैं और जिन्हें वह चाहकर भी भुला नहीं सकता।
इन चुनावों की धांधलियों से सम्बन्धित प्रजापरिषद की 27 चुनाव याचिकाओं की भी अभी तक सुनवाई नहीं हुई है। 3 याचिकाएं नेशनल कांफ्रेंस ने भी दायर की थीं। उनमें से दो का फैसला हो गया है। राज्यभर के लिए 2 सदस्यीय चुनाव अदालत इससे अधिक कर भी क्या सकती है और करे भी क्यों? सरकार बार-बार याद दिलाने पर भी चुनाव अदालतों में जजों की संख्या बढ़ाए जाने को तैयार नहीं। बढ़ाए भी क्यों? क्योंकि उसे याचिका दायर करने वालों को खरीदने का प्रयास करने के लिए समय चाहिए। जो बिकने के लिए तैयार नहीं, उन्हें अत्याचार सहने होंगे इसका अनुभव कई याचिका वालों को आ चुका है।
अब टाउन एरिया के चुनावों में
विधानसभा के चुनावों की यह दुर्भाग्यपूर्ण कहानी अभी खत्म भी न होने पाई थी कि राज्य भर में टाउन एरिया के चुनावों में उसका नया दौर नये रूप में शुरू हो गया। उसके भी कुछ नमूने देखिए:
1955 में प्रजापरिषद् ने लगभग सभी टाउन एरिया के चुनावों को अच्छी प्रकार जीत लिया था। परन्तु सरकार ने कोई न कोई बहाना निकालकर एक-एक कर इन विजयी टाउन एरिया कमेटियों को भंग करना प्रारम्भ कर दिया। उसके लिए कोई ठोस कारण बताए भी नहीं गए। शेष  कमेटियों का कार्यकाल समाप्त होने पर सरकार ने मई और जून 1958 में चुनाव करने की घोषणा की परन्तु बाद में उन चुनावों को स्थगित कर दिया गया। वास्तविकता यह थी कि सरकार अन्दर ही अन्दर सरकारी मशीनरी के आधार पर प्रजा परिषद् की विजय को पराजय में परिणत करने की पूरी तैयारी करके ही चुनावों को करना चाहती थी।
सितंबर 1958 को रामबन और अर्निया टाउन एरिया कमेटियों के चुनाव होने थे। दोनों ही स्थानों पर प्रजा परिषद् के प्रत्याशियों के नामांकन-पत्र खारिज कर दिए गए और नेशनल कांफ्रेंस के अपढ़ प्रत्याशियों के स्वीकार कर लिए गए। इतना ही नहीं तो विरोधी प्रत्याशियों के प्रस्तावकों को गायब कर दिया गया, झूठे मत डलवाए गए, आपत्ति करने पर अनुपस्थित मतदाताओं के  स्थान पर गलत व्यक्ति पहचान के लिए उपस्थित किए गए।
-1 और 15 सितंबर को बिसनांह में भी चुनाव का झूठा नाटक खेला गया। नायब तहसीलदार ने जिसे चुनाव का सर्वेसर्वा बनाया गया था, नेशनल कांफ्रेंस के प्रत्याशियों को जिताने के लिए हर प्रकार की बेईमानी की। चुनाव क्षेत्र बदल दिए गए और जाली मतों को पंजीकृत किया गया। डिपुटी कमिश्नर, जिन्हें रिवाइजिंग अधिकारी बनाया गया था, ने खुल्लमखुल्ला नेशनल कांफ्रेंस के पक्ष में प्रचार किया। बेईमानी की पराकाष्ठा तो यहां तक जा पहुंची कि प्रजापरिषद प्रत्याशी के 55 मतों के मुकाबले में 53 मत पाने वाले नेशनल कान्फ्रेंस के प्रत्याशी को विजयी घोषित कर दिया गया।
 प्रगति के मानदंड
जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति के भरण-पोषण की, उसके शिक्षण की जिससे वह समाज के एक जिम्मेदार घटक के नाते अपना योगदान करते हुए अपने विकास में समर्थ हो सके, उसके लिए स्वस्थ एवं क्षमता की अवस्था में जीविकोपार्जन की, और यदि किसी भी कारण वह संभव न हो तो भरण-पोषण की तथा उचित अवकाश की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी समाज की है। प्रत्येक सभ्य समाज इसका किसी न किसी रूप में निर्वाह करता है। प्रगति के यही मुख्य मानदण्ड हैं। अत: न्यूनतम जीवन स्तर की गारंटी, शिक्षा, जीविकोपार्जन के लिए रोजगार, सामाजिक सुरक्षा और कल्याण को हमें मूलभूत अधिकार के रूप में स्वीकार करना होगा।
 
—पंडित दीनदयाल उपाध्याय विचार दर्शन
खंड-7, पृष्ठ संख्या-65)

केरल के हिन्दुओं पर से कम्युनिस्टों का जादू हट गया है
अब यह निस्सन्देह कहा जा सकता है कि केरल की गैर कम्युनिस्ट जनता, जिसने कम्युनिस्टों के शासनारूढ़ होने पर बड़ा हर्ष मनाया था, आशाएं बांधी थीं, अब निराश हो चली है। केरल का असंतुष्ट हिन्दू वैकल्पिक नेतृत्व को खोज रहा है परन्तु दुर्भाग्य यह है कि कोई भी दूसरा दल अभी कम्युनिस्टों का स्थान लेने की स्थिति में नहीं है। आम चुनाव अभी बहुत दूर हैं, अत: यह भविष्यवाणी करना कठिन है कि इस असन्तोष का लाभ स्वतंत्र उम्मीदवार उठायेंगे अथवा कम्युनिस्ट नेतृत्व ही मत प्राप्त करने के चक्कर में अपने सिद्धान्तों के साथ समझौता करेंगे।
अंसतोष का कारण
इस असन्तोष और निराशा का कारण है-(1)सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के प्रकाश में संशोधित 'केरल शिक्षा विधेयक' और (2) 'शासन सुधार समिति' द्वारा सुरक्षित सीटों को समाप्त करने का परामर्श। इन दोनों ही पगों के परिणामस्वरूप उस कृत्रिम संयुक्त मोर्चा, जिसके सहारे कम्युनिस्ट शासनारूढ़ हो चुके थे, के टूटने की आशंका उत्पन्न हो गयी है। 

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