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विश्व हिन्दू परिषद् के संरक्षक श्री अशोक सिंहल एवं विराट हिन्दुस्थान संगम के अध्यक्ष व पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ़ सुब्रह्मण्यम स्वामी ने 30 सितम्बर को नई दिल्ली में एक संवाददाता सम्मेलन को सम्बोधित किया। इस अवसर पर अयोध्या में श्रीराम मन्दिर के पक्ष में तर्क देते हुए कहा गया कि आज के आधुनिक भारत में एक नैतिक समाज के निर्माण हेतु धर्म की प्रभावी भूमिका को नहीं स्वीकार किया गया है। इस नकारात्मक विचार को ही पंथनिरपेक्षता का नाम दिया गया है, परन्तु यह एक गलत सोच है। श्रीराम भारत के आध्यात्मिक गुरु हैं। श्रीराम उत्तर से दक्षिण भारत तक भारतीय एकता के प्रतीक हैं। भारत के विशाल जनसमूह की दृष्टि में अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर मन्दिर का पुनर्निर्माण देश का राष्ट्रीय लक्ष्य है, किन्तु यह लक्ष्य न्यायिक तरीके से पूर्ण किया जाना चाहिए। साथ ही इसके पक्ष में विशाल बहुमत का समर्थन भी होना चाहिए। श्रीराम मन्दिर का पुनर्निर्माण हमारे पुनर्जागरण का एक अंग है।
श्रीराम मन्दिर के पक्ष में न्यायिक तर्क
प्रसिद्ध लेखक मार्क ट्वेन की एक उक्ति है 'लोगों को मूर्ख बनाना आसान है, बजाय उन्हें यह समझाने के कि वे मूर्ख बन रहे हैं।' अयोध्या में श्रीराम मन्दिर की यही वास्तविकता है। भारत के लोगों के मन में यह गलत बात बैठा दी गई है कि मन्दिर व मस्जिद दोनों समान रूप से आस्था के केन्द्र हैं। भारतीय लोगों की इस गलत धारणा का ही परिणाम है कि हम अभी तक अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर श्रीराम मन्दिर, मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर श्रीकृष्ण मन्दिर और वाराणसी में काशी विश्वनाथ मन्दिर का पुनर्निर्माण या स्वतंत्र स्थापना कर पाने में असफल रहे हैं।
सम्मेलन में यह भी कहा गया कि सऊदी अरब में प्रशासन सड़क, पार्क आदि बनाने या बहुमंजिली इमारतें बनाने के लिए आवश्यकता होने पर मस्जिद को तोड़ भी देता है। यहां तक कि मक्का में भी नई इमारत बनाने तथा रास्ता बनाने के लिए उस मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया था, जहां पैगम्बर मोहम्मद नमाज पढ़ा करते थे।
अत: भारत सरकार द्वारा व्यापक जनहित में भवन एवं भूमि के अधिग्रहण हेतु बाबरी ढांचे के मुतवल्ली (परम्परागत व्यवस्थापक) को एक नोटिस भेजा जा सकता है तथा सरयू नदी के पार किसी अन्य स्थान पर मस्जिद बनाने का प्रस्ताव किया जा सकता है। मन्दिर के पक्ष में तर्क यह है कि जिस मन्दिर का निर्माण शास्त्र सम्मत विधि से हुआ है तथा गर्भगृह की स्थापना प्राण प्रतिष्ठा के उपरान्त हुई है तो मन्दिर गिरने पर अथवा प्रयोग न होने पर भी मन्दिर ही रहता है। इस मन्दिर के स्वामी मन्दिर में प्रतिष्ठित देवता ही होंगे। इस स्थिति को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने श्रीराम मन्दिर-बाबरी ढांचे के विवाद में स्वीकार किया है। जिसके कारण ही मुख्य भाग के स्वामी श्रीरामलला को घोषित किया है, किन्तु पीठ ने कहा कि मस्जिद को उसके बगल में बनाया जा सकता है, जो व्यावहारिक नहीं है। दोनों ही पक्षों ने भिन्न-भिन्न कारणों से असंतुष्ट होते हुए उच्चतम न्यायालय में विशेष अपील दायर की है। जहां अभी मामला विचाराधीन है। उपरोक्त मुद्दे के कानूनी समाधान के लिए 9-10 जनवरी, 2016 को 'अरुन्धती वशिष्ठ अनुसंधान पीठ' के तत्वावधान में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जाएगा। -प्रतिनिधि
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