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दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को जबरदस्त जीत मिली है, अभाविप लगातार दूसरी बार चारों पदों पर विजयी हुई है। वहीं अध्यक्ष पद पर जीत की 'हैट्रिक' लगी है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी हम सह सचिव के पद पर जीत हासिल करने में कामयाब रहे। वामपंथियों के गढ़ कहे जाने वाले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में परिषद ने 14 वषार्ें के बाद 'सेंट्रल पैनल' में अपनी जगह बनाई है। देश के दो शीर्ष विश्वविद्यालयो में मिली शानदार जीत ने यह सिद्ध कर दिया है कि देश भर के युवाओं ने झूठी पृष्ठभूमि पर धनबल-बाहुबल की राजनीति करने वालों को नकार दिया है। इन दोनों विश्वविद्यालयों में मिली शानदार जीत यही साबित करती है कि देश के युवाओं ने जहां राष्ट्रवादी शक्तियों से जुड़ने की इच्छा जताई है, उसे समर्थन दिया, वहीं देशविरोधी संगठनों को उसने नकारने का काम किया।
परिषद कार्यकर्ता के नाते देश के युवाओं को राष्ट्रवादी विचारों से जोड़ना हमारा मुख्य उद्देश्य होता है। छात्र हितों के लिए संघर्ष करते कार्यकर्ता कश्मीर से कन्याकुमारी तक, दिन-रात इसी लक्ष्य के साथ अनवरत और बिना थके काम करते रहते है। एक छात्र संगठन के नाते हर साल एक नई पीढ़ी अभाविप जुड़ती है, पहले वाली पीढ़ी समाज के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर परिषद के विचारों व सिद्धातों के अनुरूप कार्य करती है। ज्यादा से ज्यादा युवा इस विचार से जुड़ंे, परिषद से जुड़े कार्यकर्ता जीवन में आदर्श पेश करें, यही हमारे लिए खुशी की बात होती है। छात्र संघ चुनाव व उसके परिणाम हमारे कार्य का पैमाना नहीं हो सकता, लेकिन इन चुनावों के माध्यम से समाज हमारी शक्ति व कार्य का अंदाजा लगाता है। जाहिर सी बात है कि छात्र संघ चुनावों में मिले अच्छे परिणाम कार्यकर्ताओं का उत्साहवर्द्धन करते हैं, साथ ही हमारे कार्य को तेज गति से आगे बढाने के लिए अनुकूलता भी प्रदान करते हंै। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में पहले जहां परिषद का मुकाबला भ्रष्टाचार में डूबी कांग्रेस समर्थित संगठन एनएसयूआई से हुआ करता था, तो दूसरी ओर नक्सल विचारों के समर्थक संगठन आईसा से, वहीं इस बार आआपा के छात्र संगठन छात्र ईकाई युवा संघर्ष समिति (सीवाईएसएस) भी मैदान में थी। झूठ की राजनीति करने वाली पार्टी के लोग मैदान में हांे तो स्वाभाविक था, उन्होंने हर ऐसी चाल चली जिससे कि छात्रों में भ्रम फैलाया जा सके । करोड़ों रुपए खर्च कर दिल्ली की सड़कों को पोस्टर से पाट दिया गया। यहां तक की आआपा के सभी विधायकों ने इस चुनावी मैदान में अपने संगठन को जीत दिलाने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन छात्र किसी भ्रम में नहीं फंसे और नई राजनीति के नाम पर तानाशाही के सूत्रधारों को सिरे से नकार दिया। धनबल और सरकारी तंत्र का दुरुपयोग करने के बाद भी केजरीवाल सरकार की झूठी राजनीति को युवाओं ने नकार दिया और इनके उम्मीदवार दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर रहे। वहीं दूसरी ओर विद्यार्थी परिषद को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में न केवल सह सचिव का पद मिला बल्कि, बाकी सीटों पर विजयी प्रत्याशियों के जीत से मामूली अंतर से पीछे रहे। यह बताने के लिए काफी है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर सिर्फ बयानबाजी करने वाले व राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में संलिप्त संगठनों के हितैषियों को प्रबुद्ध विद्यार्थी नकारने लगा है। मेरा विश्वास है कि अगले वर्ष विद्यार्थी परिषद सभी सीटों पर विजयी होगी। परिषद को मिली जीत में न केवल छात्र संघ की वर्ष भर की सक्रियता ने अहम भूमिका निभाई, बल्कि विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं द्वारा छात्र हितों से जुड़े छोटे-बड़े सभी मुद्दों को लेकर निर्णायक संघषोंर् ने भी आम विद्यार्थियों को परिषद के पक्ष में मतदान करने हेतु प्रेरित किया। पिछले वर्ष छात्र विरोधी विश्वविद्यालय के चार वर्षीय पाठ्यक्रम को हटवाने में परिषद ने जो संघर्ष किया था, वह हर छात्र के दिलो-दिमाग में मौजूद था। इस वर्ष पुनर्मूल्यांकन और पूरक परीक्षा को लेकर परिषद ने आवाज उठाई, जिसके परिणामस्वरूप हजारों छात्रों के साथ न्याय करने पर विश्वविद्यालय को मजबूर होना पड़ा। स्वच्छ भारत अभियान की मुहिम में भी परिषद के कार्यकर्ता वर्ष भर सक्रिय रहे। सी-सैट के विरुद्ध जब देशभर के विद्यार्थी सड़कों पर उतर कर आंदोलनरत थे, उस समय परिषद ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया और अंतत: केंद्र सरकार को लाखों विद्यार्थियों की मांग मानने पर बाध्य होना पड़ा। संघ परिवार के सभी संगठनों का सहयोग तो मिला ही, पूर्व राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री सुनील बंसल, पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री उमेश दत्त, राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री श्रीनिवास, सहित अनेकों वर्तमान व पूर्व कार्यकर्ताओं ने जीत दिलाने में सक्रिय भूमिका निभाई। भविष्य में भी विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता कैंपस को बेहतर व रोजगारमूलक बनाने के लिए सक्रिय रहेंगे। (लेखक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य हैं)
बंगलादेशियों ने किया पथराव
दिल्ली में अवैध रूप से रहने वाले बंगलादेशी यहां के मूल निवासियों के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं। आठ सितंबर को मंगलवार के दिन भलस्वा डेयरी इलाके में सैकड़ों की संख्या में बंगलादेशी मुसलमानों ने एकत्रित होकर मंदिर पर पथराव किया और तोड़फोड़ की। उस दौरान मंदिर में भजन-कीर्तन कर रही कई महिलाएं भी पथराव में घायल हो गईं।
भलस्वा डेयरी इलाके में रहने वाले विहिप के जिला मंत्री जगत ने बताया कि प्रत्येक मंगलवार के दिन बजरंग दल के कार्यकर्ता भलस्वा जेजे कॉलोनी डी-1 ब्लॉक के मंदिर में हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं। गत आठ सितंबर की शाम को भी श्रद्धालु यहां पर हनुमान चालीसा का सामूहिक पाठ कर रहे थे। तभी हाथों में लाठी, डंडे और तलवारें लिए सैकड़ों मुसलमानों ने मंदिर को घेर लिया। मंदिर में उस समय करीब 200 की संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे। बाहर खड़ी भीड़ ने मंदिर पर पथराव करना शुरू कर दिया।
इस दौरान पूजा में शामिल दर्जनभर श्रद्धालु घायल हो गए। सूचना मिलने पर मौके पर पहुंची पुलिस के आने से पहले ही मंदिर पर पथराव करने वाले मुसलमान वहां से फरार हो गए। घटना के बाद इलाके में हिन्दू एकत्रित होकर थाने पहंुच गए। उनका आरोप है कि पुलिस ने मामला तो दर्ज कर लिया, लेकिन किसी को गिरफ्तार नहीं किया। स्थानीय निवासी आकाश ने बताया कि इलाके में बड़ी संख्या में अवैध रूप से बंगलादेशी रह रहे हैं। वे आपराधिक वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। गत आठ सितंबर को पथराव करने में सबसे आगे बंगलादेशी ही थे। उल्लेखनीय है कि दिल्ली में बंगलादेशी घुसपैठियों की ऐसी बस्तियां मुस्लिम बहुल ओखला, शास्त्री पार्क, सीलमपुर, ताहिरपुर, नन्दनगरी, सीमापुरी, मदनपुर खादर, कालिंदी कुंज, जहांगीरपुरी, शाह आलम बांध क्षेत्र में हैं। भलस्वा डेयरी इलाके में भी अवैध रूप से सैकड़ों की संख्या में बंगलादेशी रह रहे हैं। दिल्ली पुलिस द्वारा सभी जिलों मंे बंगलादेशी प्रकोष्ठ भी बनाया गया है, जो कि समय-समय पर अवैध रूप से यहां रहने वाले बंगलादेशियों को पकड़कर बंगलादेश भेजता है।
फिर भी चोरी-छिपे रहने वाले बंगलादेशियों की राजधानी में कमी नहीं है। करीब तीन वर्ष पहले हिन्दू महासभा के सर्वेक्षण में दिल्ली में ही करीब 15 लाख से अधिक बंगलादेशियों के होने का दावा किया गया था। सर्वेक्षण के बाद जो आंकड़े निकलकर आये, वह चौंकाने वाले थे कि बंंगलादेशी घुसपैठियों के कारण दिल्ली के करीब 37 फीसद विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में पहुंच चुके हैं। कुछ क्षेत्रों में मुसलमानों की आबादी करीब 30 फीसद पहंुच चुकी है। पाञ्चजन्य ने पूर्व में 'बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठियों के कारण असम की राह पर दिल्ली' व 'बंगलादेशियों की दिल्ली तक घुसपैठ' शीर्षक से लेख भी प्रकाशित किए थे। जिनमें दिल्ली में बंगलादेशियों की बढ़ती हुई आबादी और दिल्ली में बढ़ते अपराधों में उनकी संलिप्तता के बारे में विस्तार से बताया गया था। * -रोहित चहल
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