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डॉ. गोपानाथ तिवारी (गोरखपुर विश्वविद्यालय)
गोहत्या निषेध से ही गोसंवर्धन न होगा। इसके लिए जनता को जागृत करना होगा। आज गाय पालना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं है। कारण कई हैं। चारे का अभाव सबसे बड़ा कारण है। सरकार को चाहिए कि खली और दाने का निर्यात बन्द कर दे।
आज हमारा उद्घोष होना चाहिए। जो भी व्यक्ति हमारे स्वास्थ्य को बिगाड़ता है वह राष्ट्र का शत्रु है और उसको कठोर दण्ड मिलना चाहिए। भ्रुण हत्या, माता-पिता घात, गुरुहत्या और विश्वासघात से भी अधिक भयंकर और खतरनाक है, राष्ट्र को निर्बल बनाने का प्रयास। जो देशवासियों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करता है, वह हमारे भारत का प्रथम शत्रु है। खाद्यान्नों और दवाइयों, तेल और घी,, दवा और चीनी में जो मिलावट करता है, देश उन रक्तचूसकों को तभी क्षमा करता है जब देश या तो भीरु या अपंग बन गया हो या देश के शरीर में ये विषैले कीटाणु गुप्त रूप से प्रविष्ट हो गए हों।
इस मिलावट से भी अधिक भयंकर अपराध एक और हो रहा है । भारतवर्ष बहुतांश में शाकाहारी देश है। खुले रूप से मांस खाने वाले यहां अधिक संख्या में नहीं हैं। फलत: भारतवासियों को एक ऐसा मोहन अवश्य चाहिए जो उन्हें पुष्टि के उन्हें सबल बनाए और उन्हें सजीवता प्रदान करे।
गोवध बन्द कराके ही रहेंगे
सन्त प्रभुदत्त जी ब्रह्मचारी (अध्यक्ष, अ.मा. गोहत्या विरोध समिति)
विषय तो सबको ज्ञात ही है। गो रक्षा का प्रश्न कोई नया प्रश्न नहीं, न यह कोई राजनीतिक चाल है और न कोई नूतन आन्दोलन ही है। गौ हमारे देश का मानबिन्दु है। गो हमारी संस्कृति का आधारस्तम्भ है, गौ हमारी परम्परा की प्रतीक है। हम सब कुछ मान सकते हैं, किन्तु गौ का प्रश्न ऐसा है कि इस पर हम कभी किसी प्रकार का समझौता नहीं कर सकते। जब इस देश में वर्णाश्रमी राजा का राज्य था तब गौ के वध की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था, गौवध नरवध से भी अधिक अपराध गिना जाता था। अभी-अभी जो 500-600 देशी राज्य भारत में विलीन हुए हैं उन सबमें प्राय: कानून से गोहत्या बन्द थी। जिस कश्मीर में 90 प्रतिशत मुसलमान हैं, उमें भी कानून से गोत्या बन्द थी और गोहत्या करने वाले को दस वर्ष तक की सजा का नियम था और वह कानून अभी तक त्यों का त्यों बना हुआ है।
गोहत्या क्यों शुरु?
गोहत्या तो मुसलमानी दस्युधर्मी लुटेरों ने आरम्भ की थी। वह भी व्यापार के लिए नहीं, चमड़े के लिए नहीं, मांस के लिए नहीं, किन्तु हिन्दुओं को चिढ़ाने के लिए उसने धार्मिक भावनओं पर ठेस पहंुचाने के लिए की। जैसे उन्होंने हमारे मंदिरों को तोड़ा, मूर्तियों को खण्डित किया। वैसे ही उन्होंने गौ की भी हत्या की। जब मुसलमान यहां बस गए, यहीं के वासी हो गए तब उन्होंने अनुभव किया कि हम गौ का वध करके इस देश में शासन नहीं कर सकते। इसीलिए बहुत से मुसलमान बादशाहों ने कानून से गोवध बन्द कर दिया। चार सौ वर्ष के मुगल साम्राज्य में हुमायूं से अन्तिम सम्राट बहादुर शाह तक के समय में कानून से गोवध बन्द था। गोवध करने वाले को गोली से उड़ाने तथा हाथ कटवाने तक की सजा थी।
अंग्रेजों की कूटनीति
अंग्रेजों ने हमें चिढ़ाने के लिए नहीं, धार्मिक भावनाओं पर ठेस पहुचाने के लिए ये नहीं, फौजी लोगों को गौ का मांस खाने को गौ का वध आरम्भ किया। अंग्रेज फौजी लोगों को गौ का मांस प्रिय था, इसलिए उन्होंने गोहत्या जारी रखी। किन्तु हमने इसके सामने कभी सिर नहीं झुकाया, हमने इसे कभी माना नहीं। कभी किसी प्रकार का समझौता नहीं किया। हमारी मांग ज्यों की त्यों बनी रही।
गोरक्षा आन्दोलन चलता रहा
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महामना मालवीय, बाबू हासानन्द जी, स्वामी दयानंद सरस्वती तथा अन्यान्य नेताओं ने गोरक्षा के लिए आन्दोलन किए। लाखों-करोड़ों हस्ताक्षर कराए। कांग्रेस ने भी इस मांग का समर्थन किया। गांधी जी ने स्पष्ट कहा कि मैं मुसलमानों से कहता हूं हम तुम्हारी खिलाफत की रक्षा करेंगे। तुम हमारी गौ की रक्षा करो। उस समय भारतवर्ष के नामी-नामी मुल्ला -मौलवियों ने फतवे दिेए कि इ्स्लामी में गौवध करना आवश्यक नहीं। वे फतवे छपे हुए अब भी मिल सकते हैं, किसी ने उन्हें संग्रह करके शायद छपाया भी था। उस समय कांग्रेसी कहा करते थे कि अंग्रेजों से इसलिए असहयोग करो, क्योंकि वे हमारी गौ की हत्या करते हैं।
उवर्रकों की समस्या
कृषि उपज बढ़ाने और भूमि की उर्वरता को बनाए रखने के लिए उर्वरकों की आवश्यकता होती है। उर्वरक का प्रयोग आवश्यक है, तो भी भूमि का सही परीक्षण कर उत्पादन की प्रणाली, पानी पहुंचाने के साधन आदि बातों का विचार करने के बाद ही उपयुक्त उर्वरकों का योग्य मात्रा में प्रयोग करना चाहिए। हमारे देश में इन दिनों कृत्रिम रासायनिक उर्वरकों की खपत बड़ी मात्रा में होने लगी है। रासायनिक उर्वरकों के कारण कुछ वर्षों के बाद भूमि की उर्वरा शक्ति घट जाती है। अत: ऐसे उर्वरकों को मर्यादित मात्रा में और गोबर खाद जैसे जीवज खादों में मिलाकर प्रयोग में लाना चाहिए। हमारे देश में लगभग 8 लाख टन गोबर होता है। इसमें से लगभग आधा गोबर कण्डे बनाकर जलाने के काम आता है। गोबर को जलाने के काम में लाने की यह प्रथा बंद कर गोबर गैस संयंत्र लगाकर ईंधन और खाद के रूप में करना चाहिए।
-पं. दीनदयाल उपाध्याय, (विचार दर्शन-खण्ड-3 राजनीतिक चिन्तन, पृष्ठ-57)
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