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इस वर्ष बरसात के मौसम के आरंभ में ही देश के मौसम विभाग ने अनेक स्थानों पर औसत से कम बारिश होने की संभावना व्यक्त की थी। इस पृष्ठभूमि में बार्शी के भारतीय वेद विज्ञान संस्थान एवं गुजरात के आणंद विश्वविद्यालय द्वारा किए गए सोमयज्ञ के प्रयोग गौर करने लायक हैं। पिछले दस वषोंर् से जारी इन प्रयोगों के अच्छे परिणाम आ रहे हैं। इनमें से कुछ प्रयोग मध्यप्रदेश सरकार की निगरानी में हुए हैं। वहां देखने में आया है कि बारिश आमतौर पर 10 प्रतिशत ज्यादा हुई है। बार्शी (महाराष्ट्र) के एक दूर-दराज गांव में 85 वर्ष के श्री नाना काले सोमयाग का अध्ययन करने में जुटे हैं। आम समाज आज भी संदेह करता है कि इस तरह के याग आदि से बारिश नहीं होती है। लेकिन श्री काले के निष्कषोंर् पर विशेषज्ञों की मुहर है। कई विज्ञान पत्रिकाओं में इसका उल्लेख हुआ है। मुख्यत: 'एशियन एग्री हिस्ट्री' के खंड 17, वर्ष 2013 (पृष्ठ 71 से 74) में वह प्रकाशित हुआ है। इसमें संदेह नहीं है कि महाराष्ट्र का सोलापुर जिला पिछले 100 वर्र्ष से सूखे के लिए जाना जाता है। इस वर्ष वहां मौसम विभाग ने अकाल होने की भविष्यवाणी की थी। लेकिन श्री काले के याग से उस इलाके में इस महीने के आरंभ में पर्याप्त वर्षा हुई है, इतनी कि वहां फसल की बुआई हो चुकी है।
पिछले सप्ताह ही विश्व ने 'अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' मनाया। योगशास्त्र के बाद आयुर्वेद का नंबर आता है। फिर भारतीय शास्त्रीय संगीत का स्थान है। आज ऐसा लगता है कि हमारे संगीत की व्यापकता योगाभ्यास जितनी ही है। उसके बाद है ज्योतिष विज्ञान। आमजन ज्योतिष विज्ञान को बहुत सीमित दायरे में देखते हैं। एक बात की ओर आमतौर पर ध्यान नहीं जाता कि सूर्यमंडल के मुख्य तारे सूर्य ने नौ ग्रहों और उनके 8-10 उपग्रहों को अपने ब्रह्मांडीय गुरुत्वाकर्षण से संभाला हुआ है। अरबों टन वजन वाले ये ग्रह अपनी-अपनी कक्षा में लाखों वषोंर् से भ्रमण कर रहे हैं। इनमें आपस का अंतर एवं ब्रह्मांडीय आकर्षण अचूक है। इस ब्रह्मांड के हर कण का जिस तरह स्वतंत्र अस्तित्व है उसी तरह हर एक जीवित अथवा निर्जीव कण समूह का स्वतंत्र अस्तित्व है। बेजान अथवा सजीव पदार्थ में सायकोसोमेटिक परिणाम कितना होता है, इस पर फिलहाल कई स्थानों पर शोधकार्य जारी हैं। जानकारों का कहना है कि उसी परिणाम के सहारे जीवन को गति मिलती है। उस हर एक का काम, समय सारणी एवं गति का शास्त्र ही ज्योतिषशास्त्र है। पिछले एक हजार वर्ष की दासता के दौरान हजारों विद्वानों का संहार हुआ एवं लाखों ग्रंथ जलाए गए। इसलिए विश्व को आकर्षित करने वाले इस विज्ञान की सीमा केवल कुंडली मिलान करने और पैसा-नौकरी मिलने की गणना तक ही सीमित रही।
लेकिन हर एक व्यक्ति को उसके विकास का सच्चा आत्मविश्वास देने वाला योगशास्त्र 21 जून, 2015 को भारत के राजपथ से लेकर देश-दुनिया के हजारों स्थानों पर दिखा था। उसी तरह विश्व के हर एक विज्ञान को गति देने का सामर्थ्य रखने वाले भारतीय ज्योतिषविज्ञान के हर एक विश्वविद्यालय के अध्ययन केन्द्र तक पहुंचने में शायद कुछ साल और लग जाएं। यह भी संभव है कि कुछ हजार वर्ष पूर्व इस ज्ञान के विस्तार के लिए ही भारत से ज्ञानी लोग पूरे विश्व में फैले हों। कारण चाहे जो हो, इन भारतीय ऋषि-मुनियों के ज्ञान में आस्था रखने वालों को एकत्र आकर पूरे प्रयास के साथ काम शुरू करना चाहिए। सौभाग्य से आज कई भारतीय वैज्ञानिक यह काम कर रहे हैं। अग्निहोत्र पर जो प्रयोग हुए हैं, उनसे आज यह सिद्ध हो चुका है कि उसका परिणाम उसमें प्रयुक्त चावल, गाय के घी, उसे ऊर्जित करने वाले मंत्र एवं उसका समय, इन सबके एकत्रित असर से आता है। आयुर्वेद में इस पर स्वतंत्र विवेचन किया गया है। अर्थात् इस विषय में जितने प्रयोग हुए हैं उससे कहीं अधिक पैमाने पर इनके होने की आवश्यकता है।
इस पृष्ठभूमि में वेद विज्ञान आश्रम संस्थान का कार्य देखने की आवश्यकता है। मध्य प्रदेश में शासकीय स्तर पर ऐसे प्रयोग करने से पूर्व आणंद विश्वविद्यालय में वर्ष 2005 में संयुक्त रूप से ये प्रयोग किए गए थे एवं इससे अधिक बारिश भी हुई थी। लेकिन चूंकि ये प्रयोग व्यापक नहीं थे, इसलिए सौरयाग अथवा सोमयाग का असर कैसे हुआ, यह वैज्ञानिक स्तर पर सिद्ध करने की अपनी सीमाएं थीं। इसलिए वर्ष 2006 में देश में 16 स्थानों पर ऐसे प्रयोग किए गए। उसके लिए 12 ज्योतिलिंर्गों के स्थान चुने गए। उनका 'उष्मा केंद्र' के रूप में वर्णन करने के लिए, इसके अलावा चार अन्य स्थान भी चुने गए। वहां भी आस-पास की बारिश की तुलना में अच्छा प्रतिसाद दिखाई दिया। लेकिन ये प्रयोग अभी भी प्रमाणित वातावरण में होने थे जिससे बारिश की स्थिति और आस-पास की स्थिति में तुलना स्पष्ट हो सके। इसलिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की सहमति से ये प्रयोग पहले बुंदेलखंड के दस जिलों में किये गए। बुंदेलखंड में उससे पूर्व तीन वर्ष अकाल जैसी स्थिति रही थी। 2008 में बुंदेलखंड के 10 जिलों में, 2009 में 11 जिलों में और 2010 में 10 जिलों में ये प्रयोग किये गए। इस तरह से मध्य प्रदेश के कुल 31 जिलों के परिणाम इसके अंतर्गत दर्ज कराए गए। इसमें से खरगौन में सतत् तीन वर्ष यह सोमयाग किया गया एवं सात जिलों में यह प्रयोग दो वर्ष किया गया। 19 जिलों में उन तीन वषोंर् में से केवल एक बार सोमयज्ञ किया गया। जिन जिलों में सोमयाग हुए थे वहां बारिश औसत से दो प्रतिशत अधिक हुई। सन् 2009 में राज्य में वर्षा 30 प्रतिशत हुई थी। उस वर्ष 11 जिले सोमयाग हेतु चुने गए जहां स्थिति अन्य अकालग्रस्त इलाकों से अच्छी थी। सन् 2008 से 2010 तक सोमयाग के जो प्रयोग किए गए उस दौरान शेष मध्य प्रदेश में औसत से 21़ 7 प्रतिशत कम वर्षा हुई, लेकिन जहां सोमयाग किए गए थे वहां वर्षा ने 10.1 प्रतिशत की कमी दूर की थी।
विज्ञान की दृष्टि से विचार किया जाए, तो सोमयाग से वर्षा हुई, यह सामान्यत: माना नहीं जाएगा। लेकिन मध्य प्रदेश के प्रयोग से और एक बात सामने आई है। वह यह कि वर्षाकाल के चार महीनों में जिन नक्षत्रों के दौरान बारिश चाहिए होती है वही उसी दौरान हुई। ऐसा नहीं हुआ कि एक बार तो झड़ी लग गई हो पर बाद में दीर्घकाल तक सूखा रहा हो। यह प्रयोग आणंद कृषि विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डॉ. मदन गोपाल वार्ष्णेय की निगरानी में हुआ था। साथ ही दिल्ली तथा अनेक राज्यों के जानकारों ने उन यज्ञों के समय उपस्थिति दर्ज कराई और उसके निष्कर्ष भी देखे।
हवन के ये प्रयोग देश अथवा विश्व के लिए नए नहीं हैं। विश्व में आज कितने ही स्थानों पर अग्निहोत्र किया जाता है। हर स्थान पर उसके अच्छे परिणाम आये हैं। धारवाड़ स्थित विश्वविद्यालय में जैविक रसायन विभाग के प्रमुख डॉ़ पी. डब्ल्यू. बसरकर के मार्गदर्शन में अनेक छात्रों ने उस पर पी़ एचडी़ भी की है। फिर भी विज्ञान की कसौटी पर उसका सर्वमान्य होना कठिन है। इस विषय को मान्य करने के लिए आवश्यक मानसिकता नहीं है, यह एक कारण तो है ही, लेकिन उससे भी अधिक बढ़कर वजह यह है कि ऐसे प्रयोगों के लिए विज्ञान की कसौटी पर स्वीकृत होने के लिए जितने प्रयोग होने चाहिएं उतने अभी नहीं हुए हैं। आज पूरे विश्व में अग्निहोत्र स्वीकृत हुआ है, फिर भी विज्ञान की कसौटी पर सभी जगह वह मान्य नहीं है।
डॉ़ बसरकर की दी हुई जानकारी के अनुसार, 22 वर्ष पूर्व रूस में चेनार्ेबिल में हुए आण्विक ऊर्जा केंद्र में विस्फोट के कारण हजारों हेक्टेयर क्षेत्र बाधित हुआ था। लेकिन जहां अग्निहोत्र चलता था वहां सभी वनस्पति अपनी मूल स्थिति में पाई गई थीं। वास्तव में यह बात विज्ञान विषयक पत्रिकाओं में विस्तृत रूप से प्रकाशित भी हुई है। लेकिन फिर भी उसे सर्वत्र स्वीकार किया गया हो, ऐसा नहीं है, क्योंकि कोई प्रयोग स्वीकृत हो उसके लिए कुछ उदाहरण पर्याप्त नहीं होते।
पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि अगर पर्जन्ययाग परिणामकारी है तो विद्वानों के द्वारा उसका अध्ययन करने में कोई हर्ज नहीं है। तब उस पर प्रतिक्रियाओं का अंबार लग गया था। लेकिन अगर पिछले 10 वषोंर् में इस पर हुए प्रयोग देखे जाएं तो हैरानी होती है। भारतीय वेद विज्ञान संस्थान के याग अथवा यज्ञों में निहित विज्ञान स्पष्ट होने में अभी समय लगेगा लेकिन ज्योतिष विज्ञान की ओर देखें तो भारतीय विज्ञान के क्षितिज स्पष्ट हो जाएंगे। पिछले अनेक वषोंर् से ज्योतिष विज्ञान शनि और गुरु के अनुमान लगाने तक ही सीमित रहा। उसमें व्याप्त सायकोसोमेटिक सामर्थ्य स्पष्ट हो जाए तो शायद यह विज्ञान अगली सदियों में छा जाएगा। पिछले 1000 वर्ष के दौरान इस देश में हर क्षण भय में बीता है।
आज पाकिस्तान, अफगानिस्तान अथवा सीरिया, इराक में जो वातावरण है वही वातावरण 1000 वर्ष से अधिकांशत: भारत में रहा था। यहां पहले 400 वर्र्ष तक उन आतंकवादियों का राज था जो अल कायदा और आईएसआईएस जैसे आतंकवादी गुटों के क्षेत्र से आए थे और बाद में 400 वर्ष मंगोलिया से आए मंगोलों का साम्राज्य था। उससे न केवल आर्थिक हानि हुई बल्कि सभी विज्ञान और विज्ञान की रक्षा करने वाले विद्वानों का संहार हुआ। फिर भी आज जो बचा है वह कुछ कम नहीं है। पिछले 1000 वषोंर् की गुलामी की बेड़ी कटने के बाद जिन्होंने 67 साल में ज्यादातर समय हम पर राज किया,उन्होंने हमारेे ज्ञान-भण्डारों को ढके ही रखा। अब जाकर ऐसा समय आया है जब भारतीय मेधा का परचम लहराया जा सकता है, और वह लहराएगा ही।
मोरेश्वर जोशी
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