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भारत कृषि प्रधान देश है। अभी भी लगभग 70 प्रतिशत लोगों की आजीविका खेती से चल रही है। लेकिन सरकारों ने कृषि की अनदेखी इस तरह की है कि अब लोग खेती और किसानी छोड़ रहे हैं। कृषि की दशा और दिशा पर केन्द्रीय कृषि मंत्री
राधामोहन सिंह से अरुण कुमार सिंह ने बातचीत की, जिसके मुख्य अंश यहां प्रस्तुत हैं-
* आज कृषि घाटे का सौदा रह गई है। किसान खेती छोड़कर शहरों मेंे मजदूरी कर रहे हैं। उनके लिए आपने कोई कदम उठाया है?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की स्पष्ट सोच है कि कृषि और किसान को सम्पन्न बनाकर ही देश को सम्पन्न बनाया जा सकता है। इसलिए प्रधानमंत्री ने कहा कि हिन्दुस्थान की धरती सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं, हमारी माता है। इस माता के स्वास्थ्य की चिन्ता किए बिना भूमिपुत्रों का भला नहीं हो सकता है। इसलिए भारत सरकार की ओर से पहली बार 'मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना' बनाई गई। इसके तहत किसानों को 'हेल्थ कार्ड' दिए जा रहे हैं। नई मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं एवं मोबाइल मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना के साथ-साथ खेतों से मिट्टी के नमूने भी एकत्र किए जा रहे हैं। अगले तीन वर्ष में 14 करोड़ भू-धारकों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराने के लिए 56,8़54 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है। इससे खेती की दशा सुधारने में मदद मिलेगी।
* खेत, किसान खत्म होते जा रहे हैं, धान का कटोरा खाली हो गया है। महंगी कीमतों पर अन्न खरीदना पड़ रहा है। अन्न के मामले में हम अपने पैरों पर कब खड़े होंगे?
अन्न के मामले में भारत आत्मनिर्भर है। धान का उत्पादन हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त है। भारत प्रत्येक वर्ष करीब 100 लाख टन चावल तथा 40 लाख टन गेहूं निर्यात करता है। हां, 40-50 लाख टन दलहन हमें आयात करना पड़ता है।
* आयातित दालों से कब तक काम चलेगा? दालों की अधिक पैदावार के लिए सरकार ने क्या कदम उठाया है?
दालों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए वर्ष 2014-15 में कई कदम उठाए गए हैं। जैसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एन. एफ. एस. एम.) के लिए जितने पैसे का आवंटन किया जाता है उसका 50 प्रतिशत दलहन के लिए दिया गया है। दलहन क्षेत्र को 468 जिलों से बढ़ाकर 27 राज्यों के 622 जिलों तक विस्तारित किया गया है। दलहन क्षेत्र को बढ़ाने और ग्रीष्मकालीन दलहन उत्पादन के लिए राज्यों को अतिरिक्त सहायता दी जा रही है। दालों के समर्थन मूल्य को 75 रुपए बढ़ाकर एवं 200 रुपए बोनस राशि देकर दलहन की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। छोटी दाल मिलें स्थापित करके भी दलहन को बढ़ावा दिया जा रहा है। कृषि विश्वविद्यालयों, आई.सी.ए.आर., सी. जी. आई. ए. आर. जैसे संस्थानों को भी इसमें अनुसंधान के लिए शामिल किया गया है। कृ़षि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से नई प्रौद्योगिकी एवं नए बीज के प्रसार हेतु वर्ष 2015-16 के लिए 12 करोड़ रुपए का निर्धारण किया गया है।
* जिन खेतों को आज भी सिंचाई के लिए बारिश का आसरा देखना पड़ता है उन खेतों को पानी कब मिलेगा?
देश में 1410 लाख हेक्टेयर जमीन पर खेती की जाती है। आज की तिथि में लगभग 650 लाख हेक्टेयर जमीन में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। भारत सरकार जल सुरक्षा को उच्चतम प्राथमिकता देने के लिए प्रतिबद्ध है। हर खेत को पानी मिले इस उद्देश्य से प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पी.एम.के.एस.वाई.) शुरू की गई है। इसके अन्तर्गत वर्षा जल का संरक्षण किया जाएगा और भूजल स्तर बढ़ाया जाएगा। 'प्रति बूंद अधिक फसल' सुनिश्चित करने के लिए सूक्ष्म सिंचाई को बढ़ावा दिया जाएगा। इस योजना को राज्य स्तर पर लागू करने के लिए राज्य तथा जिला स्तर पर समितियां बनाई जाएंगी। इस योजना के लिए पांच वर्ष (2015-16 से 2019-20) हेतु 50,000 करोड़ की राशि केन्द्रांश के रूप में निर्धारित की गई है। कार्यक्रम के क्रियान्वयन हेतु 2015-16 के केंद्रीय बजट में 5300 करोड़ रु. का प्रावधान रखा गया है।
* रासायनिक खादों के इस्तेमाल से भूमि की उर्वरा शक्ति कम होती जा रही है। रासायनिक उर्वरक के संतुलित उपयोग के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
वर्ष 2015-16 में यूरिया के सभी स्वदेशी उत्पादन हेतु नीम की परत वाली यूरिया का उत्पादन करना अनिवार्य कर दिया गया है। उर्वरकों का संतुलित उपयोग करने के लिए किसानों को प्रशिक्षण देने का इंतजाम किया गया है। मिट्टी की सेहत को अच्छा बनाने और अधिक फसल उत्पादकता को बनाए रखने के लिए पौध पोषक तत्व प्रबंधन के अजैविक और जैविक दोनों तरह के स्रोतों के संयुक्त प्रयोग के माध्यम से काम किया जा रहा है। राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (एन.एम.एस.ए.) के तहत राज्यों को मिट्टी जांच प्रयोगशलाओं की स्थापना हेतु वित्तीय सहायता मुहैया कराई जा रही है।
* ़किसान रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद का प्रयोग करें, इसके लिए सरकार की ओर से किस तरह की मदद देने की योजना है?
सरकार विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से जैव उर्वरकों तथा जैव कीटनाशकों के उपयोग को बढ़ावा दे रही है। जैव उर्वरक इकाइयों की स्थापना के लिए राज्य सरकारों / सरकारी एजेंसियों को अधिकतम 80 लाख रुपए प्रति इकाई तक 50 प्रतिशत सहायता मुहैया कराई जाती है। जैव उर्वरकों पर किसानों को शिक्षित करने के लिए प्रदर्शनियां, रेडियो वार्ताएं, दूरदर्शन कार्यक्रम तथा साहित्य के वितरण जैसे प्रचार कार्य चल रहे हैं। पहले केन्द्र सरकार की ओर से जैविक खेती के लिए अलग से कोई योजना नहीं थी। मोदी सरकार ने जैविक खेती के लिए परम्परागत कृषि विकास योजना प्रारम्भ की है। इसके अन्तर्गत किसानों को समूहों में गठित कर जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसमें 50 या उससे कुछ अधिक किसानों को संगठित करके उनकी 50 एकड़ जमीन को जैविक खेती के अन्तर्गत लाया जा रहा है। जैविक खेती के लिए प्रत्येक किसान को प्रति एकड़ तीन वर्ष में लगभग 20,000 रुपए दिए जाएंगे। किसानों को बीजों से लेकर फसल काटने और बाजार तक पहुंचाने के लिए वित्तीय मदद दी जाएगी। परम्परागत कृषि विकास योजना को लागू करने के लिए वर्ष 2015-16 हेतु 300 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की गई है।
* कृषि क्षेत्र में शिक्षा व अनुसंधान के लिए सरकार क्या कर रही है?
कृषि मंत्रालय में कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आई.सी.ए.आर.)कार्यरत है। परिषद् राष्ट्रीय महत्व का एक संगठन है, जिसका प्राथमिक उद्देश्य है बागवानी, मत्स्यपालन तथा पशु विज्ञान को शामिल कर कृषि के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान की योजना तैयार करना, उसका समन्वय करना तथा मार्गदर्शन देना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनुसंधान भागीदारी विकसित करना। देशभर में आई.सी.ए.आर. के कुल 102 अनुसंधान संस्थान, 642 कृषि विज्ञान केन्द्र तथा 70 कृषि विश्वविद्यालय कार्यरत हैं। इन संस्थानों में किए गए अनुसंधान कायार्ें एवं मानव संसाधन विकास के परिणामस्वरूप आज हमारा राष्ट्र खाद्यान्न के मामले में न केवल आत्मनिर्भर है, बल्कि वह आयातक की श्रेणी से निकलकर एक निर्यातक राष्ट्र की भूमिका निभा रहा है। परिषद् द्वारा किए गए प्रौद्योगिकी विकास और उन्हें किसानों द्वारा अपनाए जाने के परिणामस्वरूप आज भारत फल, दूध, अण्डा तथा मत्स्य उत्पादन में विश्व के अग्रणी उत्पादक राष्ट्रों में शामिल है। नई-नई तकनीकों को किसानों तक पहुंचाना उतना ही जरूरी है जितना कि तकनीकों का विकास करना। परिषद् द्वारा प्रत्येक ग्रामीण जिले में कम से कम एक कृषि विज्ञान केन्द्र की स्थापना की गई है। अभी तक कुल 642 कृषि विज्ञान केन्द्र स्थापित किए गए हैं, जिनका मुख्य कार्य किसानों के बीच तकनीक का प्रसार करना है।
* आजकल मूल्य स्थिरीकरण कोष की चर्चा होती है, यह क्या है?
कम आवक वाली अवधि के दिनों में, विशेषकर जल्दी खराब होने वाली कृषि वस्तुओं के मूल्यों में होने वाले उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए एक नई पहल है मूल्य स्थिरीकरण कोष। इस योजना को 500 करोड़ रुपए से शुरू किया गया है। इसके तहत फसल कटाई के बाद जब किसी कृषि वस्तु की कीमत कम होती है तब उसकी खरीद और भण्डारण किया जाता है और कम आपूर्ति वाले समय में जब दाम अधिक हो जाता है तब उसे बाजार में उतारा जाता है। इसका उद्देश्य है उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना। *
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