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गत 5 सितम्बर को जूनापीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज की अध्यक्षता मंे विश्व हिन्दू परिषद् के केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल की बैठक नासिक के कुंभ क्षेत्र में सम्पन्न हुई। इसमंे निरंजनी पीठाधीश्वर पूज्य श्री पुण्यानंद जी महाराज, रामानुजाचार्य श्री कौशलेन्द्र प्रपन्नाचार्य, शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती जी, मलूकपीठाधीश्वर राजेन्द्रदास जी महाराज, अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष स्वामी नरेन्द्रानंद गिरि, महामंत्री हरि गिरि जी, जूना अखाड़े के सचिव महंत नारायण गिरि जी, उदासीन बड़ा अखाड़ा के महंत दुर्गादास जी, महंत संतोष मुनि जी, महंत अग्रदास जी, आवाहन अखाड़ा के महंत सागरानंद जी, महानिर्वाणी अखाड़ा के महंत शिवनारायण पुरी जी, मणिराम छावनी के महंत कमलनयन दास जी, डॉ़ रामेश्वर दास, महंत सुरेशदास जी, महंत भगवान दास जी आदि संतों ने 'मम् दीक्षा हिन्दू रक्षा, मम् मंत्र: समानता' के संदेश के साथ अपने विचार व्यक्त किए। बैठक में तीन विषयों (जनगणना-2011 की रपट, गोरक्षा और सामाजिक समरसता) पर प्रस्ताव भी पारित किए गए।
पहले प्रस्ताव (जनगणना-2011 की रपट) पर चर्चा करते हुए संतों ने कहा कि आज हिन्दू समाज की जनसंख्या 80 प्रतिशत से भी नीचे हो गई है, यह चिंता की बात है। यह केवल हिन्दुओं की घटती जनसंख्या की बात नहीं है, अपितु देश की एकता और अखण्डता के प्रति आगामी संकट की आहट है। यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि इस देश के सभी वर्ग जनसंख्या नियंत्रण मंे सब प्रकार का सहयोग कर रहे हैं, परन्तु मुसलमान समाज इसमें सहयोग करने के बजाए जनसंख्या वृृद्धि को एक अभियान के रूप में ले रहा है जो चिंतनीय है। घुसपैठ, कन्वर्जन, बहुपत्नी विवाह, अधिक प्रजनन और आक्रामक नीति के आधार पर मुसलमान समाज की जनसंख्या में 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि हिन्दू की जनसंख्या वृद्धि 7़ 50 प्रतिशत है। इसलिए सभी राज्य सरकारों को राष्ट्रीय जनसंख्या नीति बनानी चाहिए।
दूसरे प्रस्ताव (गोरक्षा) में गोरक्षा के लिए केन्द्रीय कानून तत्काल बनाने पर बल देते हुए कहा गया है कि जब तक इस देश में गो का रक्त एक भी बूंद गिरेगा तब तक कोई भी अनुष्ठान सफल नहीं होगा तथा सुख-शांति समाज में स्थापित नहीं हो सकती। इसलिए गोवंश की रक्षा इस देश की राष्ट्रीय आवश्यकता है। भारत सरकार को तत्काल गोवंश पर केन्द्रीय कानून बनाकर भारतीय गोवंश आधारित जैविक खेती को प्रोत्साहन देना चाहिए। साथ ही गोवंश तस्करी रोकने की सुदृृढ़ व्यवस्था बनानी चाहिए।
सामाजिक समरसता से जुड़े तीसरे प्रस्ताव में अपने विचार व्यक्त करते हुए संतों ने कहा कि 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' ही हमारा दर्शन है। इस दर्शन को रामानंदाचार्य जी ने 'जाति पाति पूछे नहिं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई' और संत तुलसीदास ने 'सियराम मय सब जग जानी, करहुं प्रणाम जोरि जुग पानि' कहकर पोषित किया है।
इसीलिए संतों ने हिन्दू समाज का आह्वान करते हुए कहा कि सिद्धान्त और व्यवहार में एकरूपता निर्माण करते हुए समाज में व्याप्त थोपी गई सामाजिक छुआछूत, ऊंच-नीच और छोटे-बडे़ के घृणित व्यवहार को अपने मन-मस्तिष्क से निकाल बाहर करें और समवेत स्वर में घोषणा करें कि हिन्दू हम सब एक, कोई हिन्दू अछूत नहीं है। बैठक का संचालन श्री जीवेश्वर मिश्र ने किया। धन्यवाद ज्ञापन श्रीपंच दशनाम जूना अखाड़े के सचिव महंत नारायण गिरि जी ने किया। प्रतिनिधि
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