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अंक संदर्भ :23 अगस्त 2015
आवरण कथा 'एक दांव में कांग्रेस पस्त' से स्पष्ट है कि कांग्रेस के पास मुद्दे के नाम पर कुछ नहीं है। बहुत दिनों से कांग्रेस के बेतुके बोलों पर चुप्पी साधे बैठीं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने जब जवाब दिया तो उन्होंने कांग्रेस की बोलती बंद कर दी। उन्होंने न सिर्फ कांग्रेस के प्रथम परिवार का पर्दाफाश किया बल्कि मीडिया की उस वर्ग का भी भंडाफोड़ दिया जो कांग्रेस के इशारों पर नाचने की जल्दबाजी में बिना विचार किए बिना सत्यता जाने सिर्फ बेतुकी बातें करता है। सुषमा के प्रश्नों का कांग्रेस के प्रथम परिवार में से कोई भी उत्तर न दे सका।
—निशांत मुद्गल, सिरसा (हरियाणा)
ङ्म मुद्दाविहीन राजनीति करना कांग्रेस की सदा से आदत रही है। जब भी कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई कांगे्रेस ने ऐसा ही किया। दरअसल सत्ता में रहने के आदी कांग्रेसियों को यह कतई बर्दाश्त नहीं होता कि वे सत्ता से बाहर रहें, इसलिए वे ऐसी ही राजनीति करते हैं। मेरी नजर में बेतुकी बातों पर भाजपा को घेरने की कोशिश करने वाले कांगे्रसियों को पहले मुद्दा खड़ा करने के लिए कक्षाएं लेनी चाहिए। कांग्रेस युवराज तो अधिकांशत: अर्थविहीन बातें करते हैं। सिर्फ गांधी परिवार के ईद-गिर्द घूमती कांग्रेस स्वयं को पुन:स्थापित करने के हरसंभव प्रयास करने में जुटी है। उसकी कोशिश यही रहती है कि जो भी सरकार का प्रस्ताव हो उसके खिलाफ ही बोला जाए, फिर वह चाहे गलत ही क्यों न हो।
—विजय ठाकुर
प्रतापगढ़ (उत्तरप्रदेश)
ङ्म 12अगस्त को ललित मोदी प्रकरण में विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने कांग्रेस पार्टी व गांधी परिवार के काले कारनामों का अतीत याद दिलाया तो कांग्रेस पार्टी की मुखिया व युवराज सन्न रह गए। नहीं तो सदन में विपक्षियों का हंगामा मचा रखा था। यह सुनकर कांग्रेस पार्टी के नेताओं की चीख-पुकार तो जारी थी, पर चेहरे के हाव-भाव गर्म दूध वाली कहावत बयां कर रहे थे, जिसे न निगलते बनता था न थूकते। माना कि लोकतंत्र में बोलने का अधिकार सबको प्राप्त है, पर बोलना तथ्यहीन और सत्य से कोसों दूर हो तो क्या फायदा। आज स्वयं जनता भी सब कुछ समझने में सक्षम है। काले कारनामों का भेद तो देर-सबेर खुल ही जाता है, उसको छुपाने में बस वक्त का फेर है। बाकी अच्छा करेंगे तो अच्छा ही देखेंगे-सुनंेगे वरना बुरा करेंगे तो बुराई का भी फल मिलेगा, जो शायद कांग्रेस पार्टी को मिल भी रहा है। पर कांग्रेस अपनी बुराई को बुराई न मानकर दूसरों की बुराई ढूंढने में लगी है। झूठ को उछाल रही है। यह कहां का न्याय है?
—उमेदु लाल 'उमंग'
ग्राम पटूडी, टिहरी गढ़वाल (उत्तराखण्ड)
ङ्म 'नीली आंच पर सियासत की रोटियां' लेख को पढ़कर तथाकथित बुद्धिजीवियों की मानसिकता सही तरह से पता चलती है। खजुराहो के अनुपम शिल्प की तुलना 'पोर्न ' से करने वाले सेकुलर बुद्धिजीवी किस तरह की मानसिकता के शिकार हैं, यह स्पष्ट होता है। स्वामी चैतन्य कीर्ति का यह कथन बिल्कुल सत्य है कि बुद्धिजीवी इसे केवल अपनी कुंठाओं से जोड़कर देख रहे हैं। 'पोर्न' एक विकृति है यदि इसे बढ़ावा मिलेगा तो समाज में निश्चित ही अपराधों में वृद्धि होगी। जो लोग 'पोर्न' की तुलना खजुराहो की कला से कर रहे हैं शायद उन्हें यह नहीं मालूम कि खजुराहो एक विशेष तरीके से सौन्दर्य के प्रति दृष्टि देता है। उसका एक अलग दर्शन है। यदि 'पोर्न' को इस तरह से महिमामंडित किया जाएगा तो समाज में निश्चित ही अपराध बढ़ेगा। सेकुलर बुद्धिजीवियों की 'पोर्न' को लेकर दी गई दलीलें किसी काम की नहीं हैं।
—सर्वेश कुमार सिंह
छपरा (बिहार)
ङ्म 'महादेव की आस्था का महापर्व' लेख का प्रस्तुतिकरण मनभावन लगा। पृष्ठों पर सभी ज्योतिर्लिंगों के बारे में जिस तरह संक्षेप में बताया गया उसे पढ़कर अत्यंत हर्ष का अनुभव हुआ। कांवड़ यात्रा अपने आप में अनूठी यात्रा होती है। भगवान महादेव की कृपा प्राप्त करने का यह एक अनूठा मार्ग है। राह चलते हर-हर महादेव का उद्घोष करते कांवडि़ए जब निकलते हैं तो एक अलग ही तरह का माहौल देखते बनता है। हजारों कांवडि़यों को देखकर मन को अपार शक्ति मिलती है।
—अनुज कुमार तिवारी
गांव-भाईपुरा, बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश)
ङ्म मदनलाल ढींगरा पर प्रकाशित सामग्री पढ़कर मन आनंदित हो गया। एक धनी परिवार में पैदा हुए मदनलाल ढींगरा ने देश के लिए जो किया वह भुलाया नहीं जा सकता। पाञ्चजन्य ने जिस तरह सधे हुए शब्दों में ढींगरा के बारे में जानकारी पाठकों को मुहैया कराई वह प्रशंसनीय है। इस तरह के लेखों को समय-समय पर स्थान देना चाहिए ताकि लोगों को हमारे महान देशभक्तों के बलिदान के बारे में विस्तृत जानकारी मिल सके।
—डी.सी. शर्मा
छत्ता मोहल्ला, आगरा
ङ्म यह प्रसन्नता की बात है कि दिल्ली में औरंगजेब मार्ग का नाम भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर रखा गया है। आश्चर्य तो इस बात का है कि न जाने किसने इस मार्ग का नाम औरंगजेब मार्ग रखा। स्वतंत्रता के बाद इतने वर्षों तक किसी ने भी इस मार्ग का नाम बदलने की कोशिश तक नहीं की। इसका एकमात्र कारण छद्म धर्म निरपेक्षता और वोट बैंक का लालच नहीं तो और क्या है?
—विश्वास केशव डांगे
लोकमान्य नगर, इन्दौर (म.प्र.)
ङ्म पालम द्वारका क्षेत्र में युवाओं को नशे की लत में डाला जा रहा है। कई बार ऐसा लगता है पुलिस और प्रशासन भी अपने नौनिहालों के भविष्य के बारे में ज्यादा गंभीर नहीं है। शाम होते ही (स्कूल विद्यार्थी और नौजवानों को रिहायशी इलाकों में असामाजिक तत्वों द्वारा) चरस, गांजा व अफीम की सरेआम आपूर्ति की जाती है। स्थानीय नागरिक शिकायत भी करते हैं लेकिन कोई प्रभावी कार्रवाई दिखाई नहीं पड़ती। इस पर गंभीरता से विचार होना चाहिए नहीं तो हमारी भावी पीढ़ी दिशाहीन और रोगग्रस्त हो जाएगी।
—जगदीश तिवारी
कैलाश पुरी, पालम ( दिल्ली)
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