|
विवेक शुक्ला
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 8 सितंबर को देश के कारोबारी संसार की शिखर हस्तियों से लम्बी बातचीत की। बातचीत हिन्दी में हुई। कुछ वर्ष पहले तक 'कॉरपोरेट' जगत के बारे में माना जाता था कि वहां पर हिन्दी के लिए कोई जगह नहीं है। हालांकि पहले भी मारवाड़ी और उत्तर भारत से जुड़ीं 'कॉरपोरेट' जगत की हस्तियां (आऱ पी़ गोयनका, के़ के. बिड़ला, केदारनाथ मोदी वगैरह) तो हिन्दी में ही अपने पेशेवरों से लेकर अपनी कंपनियों की खास बैठकों में बातचीत करते थे। दरअसल, हाल के दौर में कारोबारी दुनिया में हिन्दी ने तगड़ी दस्तक दे दी है। किसी कम्पनी के बोर्ड की बैठक से लेकर शेयरधारकों की आम सभाओं में भी हिन्दी सुनाई दे रही है। अंग्रेजी के वर्चस्व को हिन्दी तोड़ तो नहीं रही है, पर वह अपने लिए नई जमीन अवश्य तैयार कर रही है। आनंद महिन्द्रा (महिन्द्रा एंड महिन्द्रा) ओंकार सिंह कंवर ( अपोलो टायर्स), सुनील भारती मित्तल (भारती एयरेटेल), सज्जन जिंदल (जिंदल साउथ वेस्ट) जैसे हिन्दी पट्टी से संबंध रखने वाले उद्यमियों के अलावा जिन कंपनियों का प्रबंधन मारवाडि़यों के हाथों में है वहां पर हिन्दी पूरी ठसक के साथ है। भारती एयरटेल के प्रबंधन की बैठकों में बीच-बीच में हिन्दी में संवाद शुरू होना मामूली बात हो गई है। अपोलो टायर्स के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक ओंकार सिंह कंवर अपने बोर्ड की बैठकों में अंग्रेजी के साथ हिन्दी मजे से बोलते हैं। अगर उन्हें कहीं कोई भाषण देना होता है तो वे आमतौर पर लिखा हुआ भाषण ही पढ़ते हैं। भाषण में जटिल अंग्रेजी शब्द हिन्दी या गुरुमुखी में लिखे होते हैं। 'बोर्ड रूम' में गुजराती, सिंधी और अन्य भारतीय भाषाएं भी सुनाई देती हैं। कहते हैं धीरूभाई अंबानी तो हिन्दी और गुजराती में ही बात करना पसंद करते थे। उनके दोनों पुत्र मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी भी हिन्दी-गुजराती में ही अपने बोर्ड की बैठकों में बोलते हैं। कुछ कम्पनियों के बोर्ड की बैठकों में अंग्रेजी इसलिए चलती है क्योंकि कई निदेशक विदेशी भी होने लगेहैं और कुछ दक्षिण भारत से भी रहते हैं।
मजेदार बात तो यह है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पेशेवर तो बड़े पैमाने पर हिन्दी का ज्ञान हासिल कर रहे हैं, ताकि उनका यहां का समय ज्यादा सार्थक हो सके। अपनी कंपनी के उत्पादों पर राय आम भारतीय से उसकी जुबान में बात करके ले सकें। चूंकि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पेशेवर हिन्दी सीखने लगे हैं तो उन्हें हिन्दी का गुजारे-लायक ज्ञान देने वाले संस्थान भी खुल गए हैं।
शाओ तुकामी जापानी पेशेवर हैं। गुड़गांव में मारुति उद्योग लिमिटेड में इंजीनियर हैं। दो महीने पहले भारत में नियुक्ति हुई तुकामी की। चूंकि तीन साल तो कम से कम भारत में रहना ही है तो उनकी इच्छा है कि गुजारे-लायक तो हिन्दी सीख ही ली जाए। इसलिए गुड़गांव के एक संस्थान में हिन्दी सीखने हफ्ते में तीन दिन जाते हैं। दरअसल, तुकामी की तरह के पेशेवरों का संबंध आईटी, टेलीकॉम, ऑटो वगैरह क्षेत्रों की कंपनियों से है। ये दो तरह से हिन्दी का कामकाजी ज्ञान ले रहे हैं। किसी हिन्दी के शिक्षक से या फिर उन संस्थानों में जाकर जहां पर विदेशियों या राजनयिकों को हिन्दी पढ़ाई जा रही है। इस तरह के संस्थान दिल्ली,गुड़गांव और मुंबई में हैं।
तेतसु तनाशा उस दिन 'लगना' शब्द का विभिन्न कोणों से प्रयोग समझ रहे थे। उदाहरण के रूप में भूख लगना, फिल्म अच्छी लगना, बोर्ड लगना वगैरह। वे भारत में मित्शुबिशी कंपनी से जुड़े हैं। वे हिन्दी की कक्षा में लगना के महत्व को समझने के बाद एक खबरिया हिन्दी चैनल में आ रही खबरों को बड़े ही चाव से देख रहे हैं। कुछ नोट कर रहे हैं। तनाशा मानते हैं कि जब उन्हें भारत में कुछ वर्ष रहना है तो बेहतर रहेगा कि उन्हें हिन्दी बोलने-पढ़ने की जानकारी लेनी ही चाहिए।
मुंबई में मुख्य रूप से 'कॉरपोरेट' संसार के पेशेवरों को बीते दशकों से हिन्दी सिखाने का काम कर रही है 'हिन्दुस्तानी प्रचार सभा'। इसे गांधी जी ने 1942 में स्थापित किया था। इसमें आमतौर पर 'कॉरपोरेट' की दुनिया के पेशेवर ही हिन्दी का ज्ञान लेने के लिए दाखिला लेते हैं। हां, इधर बीच-बीच में मुंबई स्थित विदेशी दूतावासों से जुड़े हुए राजनयिक भी दाखिला लेते रहते हैं। इनका इरादा हिन्दी का कामकाजी ज्ञान लेना रहता है। इस बीच फ्रांस की खुदरा कंपनी करफोर के मुंबई स्थित कार्यालय में काम करने वाले मैरिस ट्रेसर ने टेलीफोन पर बताया कि चार महीने पहले भारत आते ही उन्होंने हिन्दी सीखने के लिए दाखिला ले लिया। उन्होंने 'शुक्रिया' ,' नमस्ते','अच्छा', 'ठीक है' और 'चलो' जैसे शब्दों को सही जगहों पर प्रयोग करना सीख लिया है। करफोर, गुडईयर, मिचलिन टायर्स, जीई वगैरह में भी बहुत सारे विदेशी पेशेवर काम रहे हैं। ये अलग-अलग देशों से हैं। इन सबको कामकाज की हिन्दी सिखाने के लिए इनके प्रबंधन ने व्यवस्था की है। इन्हें हिन्दी सिखाने की एक मोटी वजह यह भी रहती है कि ये भारत में अपने ड्राइवर, घर में काम करने वाले कर्मियों और इस तरह के अन्य लोगों से बतिया सकें। मालूम चला कि रूसी और स्पेनिश छात्र काम-चलाऊ हिन्दी लिखने-बोलने में आगे रहते हैं। पर जापानी अपने अध्यापक का सम्मान करने में अव्वल रहते हैं। आई सोरेन्सन (49) मूलत: डेनमार्क से हैं। मुंबई के एक पांचसितारा होटल में काम करती हैं। यहां पर शादी हो गई। वह गुजारे लायक हिन्दी सीख गई हैं।
दरअसल, राजधानी के 'हिन्दी गुरु' से लेकर मुंबई की हिन्दी प्रचार समिति में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पेशेवर दो-तीन स्तर की हिन्दी का ज्ञान लेते हैं। कुछ बहुत ही बुनियादी किस्म की हिन्दी सीखते हैं। जैसे किसी दुकान में जाकर तोल-मोल कैसे किया जाए, किसी अनजान इंसान से रास्ता कैसे पूछा जाए आदि। इन्हें छोटे-मोटे जरूरी शब्दों की भी जानकारी दे दी जाती है। दूसरे, वे जो भारत में तीन-चार वर्ष के लिए कामकाज हेतु आते हैं। ये गुजारे लायक से एक कदम आगे की हिन्दी सीखते हैं। इनके लिए छह महीने का पाठ्यक्रम होता है। इन्हें हर हफ्ते 20 घंटे पढ़ाया जाता है। इनके अलावा, किसी गैर-सरकारी संगठन के माध्यम से भारत में किसी विषय पर गंभीर अध्ययन करने वाले लोग भी हिन्दी सीखने की चाहत रखते हैं,जिससे कि उनका अध्ययन का काम बेहतर तरीके से हो सके।
ब्रिटानिया बिस्कुट कंपनी की कुछ समय पहले तक प्रबंध निदेशक रहीं विनीता बाली ने एक साक्षात्कार में कहा था 'कॉरपोरेट इंडिया' को हिन्दी की ताकत मालूम है। उसे मालूम है कि कितना बड़ा है हिन्दी का बाजार। इसी तथ्य की रोशनी में हिन्दी पट्टी के लिए विज्ञापन का बजट सर्वाधिक होता है। विनीता बाली खुद हिन्दी पट्टी के तमाम राज्यों के बाजार के मन को जानने के लिए छोटे-बड़े शहरों की खाक छानती थीं।
टिप्पणियाँ