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मनुष्य इतिहास से यह सीखता है कि मनुष्य इतिहास से कुछ नहीं सीखता-अंग्रेजी के जाने-माने लेखक जार्ज बर्नाड शॉ का यह बयान कम से कम हिन्दुओं के बारे में तो सोलह आने सही है। अड़सठ साल पहले आजादी मिलने से पूर्व ही यह देश एक विभाजन झेल चुका है। जब मुसलमान देश के पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में बहुसंख्यक हो गए तो वे हिस्से देश से अलग हो गए। मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान बना। अब देश में फिर तेजी से मुस्लिम आबादी बढ़ रही है और उसके साथ ही सवाल उठने लगे हैं कि क्या फिर वही इतिहास अपने को दोहराएगा?
2001 से 2011 की जनगणना के पिछले दिनों जारी आंकड़े हिन्दुओं को चौंकाने वाले हैं। हिन्दुओं की जनसंख्या के प्रतिशत में इतनी भारी गिरावट आई है कि हिन्दू जनसंख्या अस्सी प्रतिशत से भी नीचे मात्र 79़ 8 प्रतिशत रह गई है। दूसरी तरफ इन 10 वर्षों में मुस्लिम जनसंख्या में 24़ 6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। वह 13़ 8 करोड़ से 17़18 करोड़ हो गई। यह चलन कोई नया नहीं है। उल्लेखनीय है कि 1951 से 2001 तक मुसलमानों का प्रतिशत 9़ 8 से बढ़कर 13़ 4 हो गया। 2011 में देश की कुल जनसंख्या में14़ 2 फीसदी लोग मुस्लिम हैं, जबकि 2001 में मुस्लिमों की जनसंख्या 13़4 फीसदी थी। 1991-2001 में मुस्लिमों की जनसंख्या की विकास दर 24़ 6 फीसदी थी। मौजूदा दशक में मुस्लिमों की जनसंख्या की बढ़ोतरी दर में गिरावट आई है, लेकिन वह देश की औसत वृद्धि दर 17़ 7 फीसदी से ज्यादा हैं। दरअसल इस्लाम के अलावा बाकी सभी मत-पंथों की इस दशक के दौरान औसत वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत वृद्धि दर से कम रही है।
यहां बता दें कि पंथ के आधार पर की गई जनगणना के आंकड़े 2011 तक के हैं और यूपीए सरकार के कार्यकाल में एकत्र किए गए थे, लेकिन इन्हें अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया था। विभाजन के बाद के पचास वषार्ें में हिन्दू जनसंख्या में 3़ 65 प्रतिशत की कमी आई थी। हिन्दुओं का प्रतिशत 84़ 1 से घटकर 80़ 45 रह गया था। 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि बाद के पचास साल में हिन्दुओं की आबादी में 5़ 6 प्रतिशत की गिरावट आई तो मुस्लिमों का प्रतिशत 4 से ज्यादा बढ़ा। 1951 की जनगणना में हिन्दुओं का प्रतिशत 84़ 1 था जो अब 79़ 8 रह गया। आजादी से पहले हिन्दुओं की आबादी 66 प्रतिशत थी, लेकिन विभाजन के बाद पाकिस्तान से हिन्दू यहां आए और मुसलमान पाकिस्तान गए।
लंबे वक्त से बंगलादेशी घुसपैठियों की समस्या का सामना करते आ रहे असम में मुस्लिम आबादी सबसे तेजी से बढ़ी। 2001-2011 के बीच उसमें 29़ 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि हिन्दुओं की आबादी में केवल 11 प्रतिशत की। इस दशक में मुस्लिम आबादी में 21 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई तो हिन्दू आबादी में मात्र 11 प्रतिशत की। पश्चिम बंगाल में भी मुस्लिमों की जनसंख्या में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। 2001 में राज्य की कुल आबादी के 25़ 2 फीसदी की तुलना में 2011 में यह 27 प्रतिशत तक पहुंच गई। इसके अलावा उत्तराखंड में भी मुसलमानों की आबादी में बढ़ोतरी देखने को मिली है। उत्तराखंड में 11़ 9 प्रतिशत से बढ़कर 13़ 9, जम्मू-कश्मीर में 67 प्रतिशत से बढ़कर 68़ 3, हरियाणा में 5़ 8 प्रतिशत से बढ़ कर 7 और दिल्ली की आबादी में मुसलमानों का हिस्सा11़ 7 प्रतिशत से बढ़कर 12़ 9 प्रतिशत हो गया।जनगणना के आंकड़ों से स्पष्ट है कि इस्लाम भारत में सबसे तेजी से बढ़ने वाला मजहब रहा है। इंडोनेशिया और पाकिस्तान के बाद यहां सबसे ज्यादा मुसलमान हैं। बाकी दो मतों, ईसाई और सिखों की आबादी का प्रतिशत स्थिर है। वैसे हर जनगणना के बाद यह सवाल उठता रहा है कि मुसलमानों की आबादी बाकी मतों के अनुयायियों के मुकाबले ज्यादा तेजी से क्यों बढ़ रही है?
1901 में जब अविभाजित भारत में आबादी के आंकड़े आये और पता चला कि 1881 में 75़1 प्रतिशत हिन्दुओं के मुकाबले 1901 में उनका हिस्सा घटकर 72़ 9 प्रतिशत रह गया था, तब बड़ा बखेड़ा खड़ा हुआ। उसके बाद से लगातार यह बात उठती रही है कि मुसलमान तेजी से अपनी आबादी बढ़ाने में जुटे हैं, वे चार शादियां करते हैं, अनगिनत बच्चे पैदा करते हैं, परिवार नियोजन को गैर-इस्लामी मानते हैं। अगर उन पर अंकुश नहीं लगाया गया तो एक और विभाजन होगा। पाकिस्तान के निर्माण, कश्मीर में अलगाववाद और दुनियाभर में मुसलमानों में बढ़ती कट्टरतावाद और उग्रवाद को देखते हुए आज इस आशंका को निर्मूल नहीं कहा जा सकता। एक बार विभाजन की पीड़ा झेल चुके देश के हिन्दू समाज का इससे चिंतित होना स्वाभाविक है। आजादी के समय हमारे सेकुलर नेताओं ने जो गलतियां की हैं उनका नुकसान तो देश और हिन्दू समाज को उठाना ही पड़ेगा। स्वतंत्र भारत में कन्वर्जन पर रोक लगनी चाहिए थी। डॉ़ आंबेडकर ने अपनी पुस्तक 'आन पाकिस्तान' में हिन्दू-मुस्लिम आबादी की अदला-बदली पर गहराई से विचार किया था। लेकिन हमारे सेकुलर नेताओं ने ऐसा न करके मुस्लिम समस्या को जस का तस बनाए रखा। पाकिस्तान के मुसलमानों ने अपने देश के हिन्दू और सिख अल्पसंख्यकों पर इतने अत्याचार किए कि उन्हें कन्वर्ट होना पड़ा या भागकर भारत में शरण लेनी पड़ी। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अब पाकिस्तान में हिन्दू नाममात्र को ही रह गए हैं।
दूसरी तरफ भारत के मुसलमानों को आजादी ही नहीं हर तरह के अधिकार मिलने के बावजूद वे अन्याय होने का रोना रोते रहे और आबादी भी बढ़ाते रहे। देश में लगातार दंगे भी होते रहे। हिन्दू इस्लामी जिहाद का शिकार भी होते रहे। भारत में मुस्लिम कन्वर्ट करके हिन्दुओं को मुसलमान बनाने अभियान चलाते रहे हैं। इस तरह विभाजित भारत में सेकुलर राजनीति का बोलबाला होने से केवल हिन्दू ही भारी नुक्सान में रहे। जनसंख्याविद् विनोद कुमार ने अपने लेख 'इंडियन सेन्सस एंड मुस्लिम पापुलेशन ग्रोथ' में लिखा है-'मैंने 1961 से 1991 के दौरान जनगणना आंकड़ों का विश्लेषण किया था। दोनों की आबादी में बढ़ोत्तरी के बीच फर्क वैसा ही था जैसा 1991 से 2001 के बीच था।1961 से 1991 के दौरान मुस्लिम आबादी 133 प्रतिशत बढ़ी जबकि हिन्दू आबादी 89 प्रतिशत। इस तरह मुस्लिम आबादी की वृद्धि हिन्दू आबादी की तुलना में 150 सौ प्रतिशत थी। यदि कुल मिलाकर देखा जाए तो 1961 से 2001 के बीच हिन्दू आबादी 66़ 6 करोड़ से बढ़कर 82़ 7 करोड़ हो गई यानी यह 126 प्रतिशत बढ़ी,जबकि मुस्लिम आबादी 4़ 7 करोड़ से बढ़कर 13़ 8 करोड़ हो गई यानी यह 193 प्रतिशत बढ़ी, अर्थात मुस्लिम आबादी की वृद्धि दर हिन्दुओं से 50 प्रतिशत ज्यादा थी।
बढ़ती मुस्लिम आबादी को लेकर केवल भारत ही नहीं दुनिया के कई सारे देश चिंतित हैं। यूरोप में तो कहा जा रहा है यदि वहां मुस्लिम आबादी इसी तरह बढ़ती रही तो यूरोप यूरेबिया (यूरोप+अरेबिया) बन जाएगा। इसकी वजह यह है कि एक तरफ मुस्लिम देशों से आकर आव्राजक वहां बस रहे हैं, दूसरे, मूल लोगों की जन्मदर बहुत कम है, जबकि आव्राजक मुसलमानों की जन्मदर बहुत ज्यादा है। नतीजतन वह दिन दूर नहीं जब मुसलमानों की आबादी कई देशों में यूरोपियों से ज्यादा हो जाएगी।
मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ने की यूं तो कई वजहें हैं, लेकिन सबसे बड़ी वजह यह है कि मुस्लिम आबादी की प्रजनन दर गैर मुस्लिमों की प्रजनन दर से ज्यादा है। कुछ जानकारों का कहना है कि यह कट्टर मुसलमानों के-जनसंख्या जिहाद-का हिस्सा है। कभी इस्लाम तलवार के बूते फैलाया गया था अब जनसंख्या के जरिये उसे फैलाया जा रहा है। 'जनसंख्या जिहाद' यानी किसी गैर मुस्लिम समाज में ज्यादा बीवियां रखकर ज्यादा बच्चे पैदा करना ताकि मसलमानों की आबादी गैर मुस्लिमों के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़े और मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाएं। कोई मुस्लिम महिला गैर मुस्लिम से शादी न करे ताकि मुस्लिम महिला और बच्चे गैर मुस्लिम न बनें। उधर मुसलमानों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाता है कि वे गैर मुस्लिम महिला से शादी करें ताकि उसे मुस्लिम बनाया जा सके और उसके बच्चे भी मुस्लिम बनें।
भारत में मुस्लिम आबादी बढ़ने की वजह है मुसलमानों की जन्मदर गैर मुस्लिमों की जन्मदर के मुकाबले ज्यादा होना। एक शोध के मुताबिक 1998-99 में दूसरे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के समय जनन दर (एक महिला अपने जीवनकाल में जितने बच्चे पैदा करती है) हिन्दुओं में 2़ 8 और मुसलमानों में 3़ 6 बच्चे प्रति महिला थी। तीसरे राष्ट्रीय परिवार सर्वेक्षण के अनुसार यह घटकर हिन्दुओं में 2़ 59 और मुसलमानों में 3़ 4 रह गयी थी। भारत में मुसलमान क्यों ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं? गरीबी और अशिक्षा इसका सबसे बड़ा कारण है। भगत और प्रहराज के अध्ययन के मुताबिक, 1992-93 के एक अध्ययन के अनुसार, तब हाईस्कूल या उससे ऊपर शिक्षित मुस्लिम परिवारों में जनन दर सिर्फ तीन बच्चे प्रति महिला रही, जबकि अनपढ़ परिवारों में यह पांच बच्चे प्रति महिला रही। यही बात हिन्दू परिवारों पर भी लागू हुई। हाईस्कूल व उससे ऊपर शिक्षित हिन्दू परिवार में जनन दर दो बच्चे प्रति महिला रही, जबकि अनपढ़ हिन्दू परिवार में यह चार बच्चे प्रति महिला रही। इसके अलावा एक प्रमुख कारण यह है कि मुस्लिम परिवार नियोजन में विश्वास नहीं करते। जबकि गैर मुस्लिम परिवार नियोजन अपनाते हैं।
कई लोग यह तर्क देते हैं कि मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं, वे खतरा महसूस करते हैं इसलिए अपनी संख्या बढ़ाने की कोशिश करते हैं। इस बात में कोई दम नहीं है, क्योंकि भारतीय मुसलमानों की आबादी की वृद्धि दर पाकिस्तान से थोड़ी ही कम है, जबकि पाकिस्तान में तो मुसलमानों को कोई खतरा नहीं। वहां 1961 से 1998 के बीच पाकिस्तान की मुस्लिम आबादी 3़ 09 प्रतिशत की दर से बढ़ी तो भारत में 2़ 7 प्रतिशत की दर से। दरअसल आबादी बढ़ाकर इस्लाम को दुनिया का सबसे बड़ा मजहब बनाना मुसलमानों की वैश्विक योजना का हिस्सा है। मुस्लिम नेता इसके बारे में खुलकर बात करने को तैयार हैं कि वे क्यों आबादी बढ़ाना चाहते हैं। कई मुस्लिम नेता कहते हैं कि वे मुसलमानों की जीवन की गुणवत्ता को लेकर चिंतित नहीं हैं हम तो मुसलमानों की संख्या को बढ़ाना चाहते हैं। देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में बंगलादेश से होने वाली घुसपैठ भी मुस्लिमों की आबादी बढ़ने का प्रमुख कारण है। यह 2011 की जनगणना के आंकड़ों से स्पष्ट है। बंगलादेश से सटे राज्य इस घुसपैठ से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। वैसे घुसपैठिए आगे बाकी राज्यों में भी जाकर बसते हैं। हमारे देश की सेकुलर राजनीति और वोट बैंक राजनीति के चलते इन घुसपैठियों की शिनाख्त कर उन्हें वापस भेजना आसान नहीं है। ऐसी कोशिश होने मात्र पर सभी सेकुलर पार्टियां झूठा शोर मचाने लगती हैं कि मुसलमानों को परेशान किया जा रहा है।
बढ़ती मुस्लिम आबादी पर लगाम लगाने के लिए कुछ कदम तुरंत उठाने की जरूरत है। 1़ भारत के सभी मत-पंथों पर तुरंत प्रभाव से समान नागरिक संहिता लागू की जाए। 2़ परिवार नियोजन को सभी पंथों के लोगों पर लागू किया जाए। 3़ बंगलादेश से मुसलमानों की अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए भारत-बंगलादेश सीमा पर बाड़ लगाने का काम तेजी से पूरा हो और चौकसी तेज हो।
आजकल दुनियाभर में मुसलमानों में 'रेडिकलाइजेशन' बढ़ता जा रहा है। भारत में तेजी से बढ़ती मुस्लिम आबादी के साथ इस चलन से खतरा और बढ़ जाएगा। बढ़ती मुस्लिम आबादी पंथनिरपेक्षता के लिए बहुत बड़ा खतरा है। इस्लाम एक पंथनिरपेक्षता विरोधी मजहब है, जो यह मानता है कि इस्लाम ही एकमात्र सच्चा मजहब है बाकी पंथ मानव निर्मित और झूठे हैं। इस्लाम को मानने वाले मोमिन हैं और न मानने वाले काफिर। 'कुरान में अल्लाह ने इन काफिरों के खिलाफ युद्ध या जिहाद करने का निर्देश दिया है।' इस्लाम को मानने वालों का एक ही मकसद होता है जो है इस दुनिया को दारुल हर्ब से दारुल इस्लाम बनाया जाए यानी दुनिया पर इस्लाम का वर्चस्व हो। यानी ईश्वर का भेजा इस्लामी कानून और व्यवस्था शरियत लागू हो। मुसलमान कई सेकुलर पश्चिमी देशों में, जहां जहां उनकी सघन बस्ती है, वहां शरीयत लागू क्षेत्र घोषित कर देते हैं। नाइजीरिया में एक क्षेत्र में सामान्य कानून लागू है तो एक में शरीयत लागू है। पंथनिरपेक्ष भारत में ही देखिए, कश्मीर घाटी में हिन्दू रह नहीं सकते, उन्हें वहां से भागना पड़ा। अभी कुछ समय पहले अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा आए और भारत को सेकुलरिज्म पर भाषण दे गए, लेकिन उनके ही देश के लूसियाना राज्य के गवर्नर बाबी जिंदल ने कहा, 'यदि अमरीका ने रेडिकल इस्लाम की चुनौती को गंभीरता से नहीं लिया तो निकट भविष्य में यहां भी नो गो जोन बन जाएंगे।'
उल्लेखनीय है कि अमरीका में तो एक प्रतिशत ही मुसलमान हैं। हाल ही में ब्रिटेन के बारे में विवाद हुआ था कि वहां कई इलाके ऐसे हैं जहां बहुत सघन मुस्लिम बस्ती है, वहां शरिया कानून लागू होता है और मुसलमानों के अलावा बाकी लोग वहां नहीं जा सकते। मुसलमानों के साथ यह समस्या है कि वे देश के कानून के मुताबिक नहीं अपने मजहब के कानून के मुताबिक रहना चाहते हैं। इस कारण बढ़ती मुस्लिम आबादी हर देश के लिए चिंता का विषय बन गई है। भारत इसका अपवाद नहीं है।
ईसाई मिशनरियों को लेकर भी हमेशा हिन्दू समाज को यह शिकायत रही है कि कन्वर्जन ही उनका मत है। हाल में जनगणना के आंकड़ों के कुछ जानकार लोगों द्वारा किए गए विश्लेषण से यह तथ्य उभर कर आता है। अभी सुप्रसिद्घ अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला ने इंडियन एक्सप्रेस में जनगणना में ईसाइयों के बारे में दिए गए आंकड़ों का विश्लेषण करके कई महत्वपूर्ण तथ्य उजागर किए हैं। इससे जनगणना के आंकड़ों में कई और दिलचस्प तथ्य उभर कर आए हैं। उधर सिख जनसंख्या में काफी कमी आई है। वह 1991 में 2 प्रतिशत थी जो घटकर 2011 में 1.7 रह गई। यह प्रत्याशित था। सिख महिलाओं में शिक्षा प्राप्ति का स्तर सबसे ज्यादा (ईसाइयों के बाद) है और प्रजनन क्षमता तो बहुत हद तक मां की शिक्षा से तय होती है। यहां आंकड़े एक चौंकाने वाली बात उजागर करते हैं कि ईसाई जनसंख्या की भागीदारी उतनी ही है यानी 2़ 3 प्रतिशत। लेकिन यह जल्दबाजी में निकाला गया गलत निष्कर्ष है। यह आश्चर्यजनक है कि ईसाई जनसंख्या का प्रतिशत स्थिर रहा। दरअसल इसमें काफी गिरावट आनी चाहिए थी। क्यों? सिखों की तरह ईसाई भारत के सबसे समृद्ध समुदायों में से हैं। नौवें दशक के प्रारंभ में ईसाइयों की प्रति व्यक्ति क्रय शक्ति 404 रुपये प्रतिमाह थी और प्रजनन दर 3.6 थी। तब सिखों के लिए ये आंकड़े 473 और 3.9 थे। लगभग बराबर। यदि ऐसा था तो ईसाइयों की जनसंख्या वृद्धिदर सिखों जितनी होनी चाहिए थी। असल में उससे कुछ कम होनी चाहिए थी क्योंकि उनका शैक्षणिक स्तर ज्यादा और प्रजनन दर थोड़ी कम थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 1991 से 2011 के बीच सिख आबादी प्रति वर्ष 1.2 प्रतिशत की औसत दर से बढ़ी। जबकि ईसाइयों की जनसंख्या वृद्धि दर 1.9 प्रतिशत प्रति वर्ष रही। यह वृद्धि दर हिन्दुओं (1़ 8) से ज्यादा थी। और सभी पंथों की औसत वृद्धि दर के बराबर थी। इसलिए सबसे ज्यादा प्रति व्यक्ति क्रय शक्ति, सबसे ज्यादा महिला शिक्षा का प्रतिशत और सबसे कम प्रजनन क्षमता होने के बावजूद ईसाई जनसंख्या की वृद्धिदर देश की औसत जनसंख्या वृद्धिदर के बराबर रही। ऐसा क्यों हो रहा है? कन्वर्जन के कारण।
ईसाइयत के प्रसारक आधुनिक युग में भी कन्वर्जन करते हैं। यह विश्लेषण हमें बताता है कि ईसाई मिशनरियां कितना कन्वर्जन करती हैं। 2011 में ईसाइयों की जो आबादी होनी चाहिए और वास्तव में जो आबादी है यानी 2.78 करोड़ के बीच के अंतर से पता चलता है। यदि ईसाइयों की जनसंख्या वृद्धिदर सिखों की तरह ही होती (यानी 1.2 प्रतिवर्ष न कि वास्तविक1.9 प्रतिशत प्रति वर्ष) तो ईसाइयों की कुल आबादी 2.41 करोड़ होती। दरअसल ईसाइयों की जो अतिरिक्त 37 लाख आबादी है वह कन्वर्जन के कारण है। इस तरह 1991और 2011 के बीच औसत कन्वर्जन दर 1.7 लाख प्रतिवर्ष रही।
लेकिन ईसाई मिशनरियों के हथकंडों की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि मामला इतना आसान नहीं हैं, न ही मिशनरियां इतनी मासूम हैं। असल में ईसाइयों की आबादी जनगणना में प्रतिबिंबित नहीं होती, उसे जान-बूझकर छुपाया जाता है। दूसरी तरफ ईसाई मिशनरियों में बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो इस आंकड़े से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि जनगणना के आंकड़ों से ईसाई जनसंख्या का आंकड़ा कहीं ज्यादा है। कभी पत्रकार रहे और इन दिनों कैथोलिक ईसाइयों की तरफ से बयानबाजियां करने वाले जान दयाल अपने लेख 'फ्रॉम थॉमस, द एपोस्टल ऑफ क्रिप्टो क्रिश्चियन्स' में कहते हैं-सांख्यिकी विशेषज्ञ टेड जानसन और केनेख रास का अनुमान है कि भारत में ईसाई 4़ 8 प्रतिशत या 5 करोड़ 50 लाख हैं। इस आंकड़े को अमरीका की सोसायटी फॉर हिन्दू क्रिश्चियन स्टडीज के उपाध्यक्ष चाड बोमैंन जैसे अकादमिक भी स्वीकार करते हैं। जैसोन मैनट्रेक तो यह आंकड़ा 7करोड़ 10 लाख या 5़ 84 प्रतिशत मानते हैं। वे कहते हैं कि अन्य अनुमान तो काफी ज्यादा यानी 9 प्रतिशत हैं। इस तरह ईसाई और मुस्लिम दोनों ही इस देश में अपनी आबादी ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने में लगे हैं। और इस सब बदलाव का इसका शिकार हिन्दू समाज हो रहा है। -सतीश पेडणेकर
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