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* संविधान के अनुच्छेद 49 के अनुसार कोई भी ऐतिहासिक इमारत जो राष्ट्रीय महत्व की हो उसका संरक्षण करना सरकार की जिम्मेदारी है।
* अनुच्छेद 51 ए (एफ) के अनुसार हमारी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का संरक्षण करने जिम्मेदारी भी भारत सरकार की है।
* 'एंशियेंट मोन्यूमेंट प्रिजर्वेशन एक्ट 1904' के तहत सरकार को यह अधिकार है कि वह एक अधिसूचना जारी कर किसी भी ऐतिहासिक स्मारक को संरक्षित इमारत के रूप में घोषित कर सकती है। इस एक्ट की धारा 10 (ए) के अनुसार केंद्र सरकार को यह अधिकार प्राप्त है कि वह संरक्षित इमारत के आसपास किसी तरह के खनन, खुदाई या अन्य किसी भी गतिविधि को तत्काल प्रभाव से रोकने का आदेश दे सकती है।
ल्ल 'ऑर्कियोलॉजीकल साइट्स एंड रिमेन्स एक्ट 1958' के अनुच्छेद 91 के अनुसार सरकार यदि चाहे तो संरक्षित इमारत को बचाने के लिए उसके आसपास के क्षेत्र का अधिग्रहण भी कर सकती है।
(कानून विशेषज्ञों से बातचीत के आधार पर)
हमने खनन के किसी भी नए प्रोजेक्ट के लिए अनुमति नहीं दी है। इसके अलावा हमने पुराने खनन के पट्टों का नवीनीकरण भी नहीं किया है। कई बार खनन के काम में लगे मजदूर भी प्रदर्शन कर चुके हैं कि उनका रोजगार प्रभावित हो रहा है लेकिन हमने अनुमति नहीं दी है। जहां तक सर्वोच्च न्यायालय की बात है तो वहां तो सरकार भी मजबूर है। माननीय न्यायालय का जो आदेश होगा उसी के आधार पर आगे की कार्रवाई होगी।
— राजकुमार रिनवा, 'खनन' मंत्री, राजस्थान सरकार
सीबीआरआई की रपट में कमियां नजर आती हैं। चित्तौड़ के किले के आसपास की जमीन की जांच के लिए 'जियो फिजीकल सर्वे' करने की जरूरत है। इसके लिए 'ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार' नाम का उपकरण आता है। यह एक्सरे की तरह होता है। इस उपकरण से विशेषज्ञों द्वारा भूमि का पूरा एक्सरे किया जाता है। इस दौरान यदि विशेषज्ञों को नजर आता है कि ये जमीन खनन के लिए ठीक नहीं है तो वहां खनन नहीं किया जाता। ऐसी स्थिति में यदि खनन किया जाता है तो निश्चित ही उस जमीन पर बनी इमारत को नुकसान होगा। यदि चित्तौड़ की बात करें तो यहां चूना पत्थर की खदानें हैं। जो कमजोर होता है। ऐसे में यदि यहां खनन के लिए विस्फोट किया जाता है या अन्य किसी भी तरीके से खनन किया जाता है तो उससे होने वाले कंपन से इमारत को नुकसान पहुंचता है।
— मुक्ता शर्मा, भूगर्भ वैज्ञानिक पंजाब इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मोहाली
भेरडा 'लाइम स्टोन माइनिंग' प्रोजेक्ट के लिए बिरला सीमेंट वर्क्स ने हमारे कार्यालय में 30 जुलाई, 2014 को आवेदन किया था। जिसमें यहां पर खनन की अनुमति के लिए आवश्यक कागजात जमा कराए गए थे। उन कागजों में कई खामियां थी। मसलन कंपनी द्वारा दिए गए नक्शे में खनन का क्षेत्र नहीं दर्शाया गया। उस पर अधिकृत अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं थे। यहां तक कि भेरडा लाइम स्टोन माइनिंग प्रोजेक्ट के वास्तविक लीज क्षेत्र को पूरी तरीके से निशान लगाकर नक्शे में नहीं दर्शाया गया था। ऐसी परिस्थिति में कार्यालय स्तर पर उसे प्रमाणित नहीं किया गया। इसका जवाब एक अगस्त, 2014 को कार्यालय की तरफ से लिखित में दे दिया गया। जिसमें कागज पूरे करके आवेदन करने के लिए कहा गया। इसके बाद हमारे कार्यालय में कंपनी की तरफ से कोई आवेदन जमा नहीं कराया गया।
— मुकेश सैनी, उप वन संरक्षक, वन्य जीव चितौड़गढ़
चित्तौड़ किला राजपूतानी आनबान और शान का प्रतीक है। दशकों से यहां पर हो रहे खनन के चलते आज किला खतरे में आ गया है। इसलिए हमने किले को बचाने के लिए याचिका दायर की है, खनन करने वाली कंपनियां तरह तरह के हथकंडे अपनाकर यहां खनन जारी रखना चाहती हैं। सरकार के लोग भी उनसे मिले हुए हैं। हमारी मांग है कि किले के 10 किलोमीटर के दायरे में किसी भी तरह का खनन बंद होना चाहिए। जब ताजमहल और फतेहपुर सीकरी को संरक्षित करने के लिए सरकार इतना कुछ कर सकती है तो फिर चित्तौड़ के लिए क्यों नहीं ?
— भवरसिंह, याचिकाकर्ता
चित्तौड़ का किला हमारे लिए तीर्थ से कम नहीं है। इस किले की रक्षा के लिए हमारे पूर्वजों ने अपने रक्त की नदियां बहाई हैं। किले में हमारी माओं ने जौहर किया। यहां की मिट्टी का तिलक लगाकर हम हर शुभ कार्य की शुरुआत करते हैं। किसी भी परिस्थिति में हम किले को बचाना चाहते हैं। किले के आसपास हुए खनन से पहले ही किले को काफी नुकसान हो चुका है। ऐसे में यहां पर किसी भी तरह के खनन पर रोक लगाया जाना बेहद जरूरी है।
— नरपत सिंह भाटी, कोषाध्यक्ष, जौहर स्मृति संस्थान, चित्तौड़
हम 1982 से लगातार यहां पर खनन का विरोध कर रहे हैं। लगातार खनन किए जाने से पशुओं को चराने के लिए जमीन कम होती जा रही है। यदि ऐसे ही खनन होता रहा तो पशुओं को चराने के लिए चारा कहां से आएगा ? इसके अलावा पूरे चित्तौड़ को सब्जी हमारे ही गांव से जाती है। खनन के लिए होने वाले विस्फोट से सैकड़ों बार हमारी फसलें भी खराब हो चुकी हैं।
— खेमराज, किसान, भोई खेड़ा गांव
पिछले कुछ महीनों से यहां पर खनन के लिए बड़े विस्फोट नहीं हो रहे हैं। जब विस्फोट होते थे तो हमारी छतों तक में दरारें पड़ जाती थीं। विस्फोट से उड़ने वाली धूल से हमारी खेती भी चौपट होती है। ऐसे में हम नहीं चाहते कि यहां पर 'खनन' की अनुमति कंपनियों को मिले। — कालूराम, भोई खेड़ा गांव
लगातार होने वाले विस्फोट से हमारे गांव के बाहर स्थित कई कुंओं का पानी दूषित हो गया है जो पीने लायक नहीं रह गया है। इसके अलावा विस्फोट के कारण जो झीलें बनी हैं उनका पानी भी कंपनियां अपनी लिए प्रयोग करती हैं। किसानों को वह पानी भी नहीं मिलता है। इसलिए यहां पर खनन शुरू नहीं होना चाहिए।
— बेरोलाल, किसान
पिछले कई महीनों से खनन के लिए विस्फोट सिर्फ कागजों में बंद हैं। असलियत में तो जब भी जरूरत होती है यहां विस्फोट कर दिया जाता है। ट्रैक्टर ट्रॉली आती हैं और वे उन पर पत्थर लादकर ले जाते हैं। विस्फोट के कारण कई बार मंदिर की दीवारें भी चटक चुकी हैं। — कालू गिरि, पुजारी, संगम महादेव मंदिर
चित्तौड़ किले का संक्षिप्त इतिहास
चित्तौड़ दुर्ग यो सगलां रोशिर मोड़, हिन्दूपत हिन्दवाणी खातर कटिया कई करोड़, आनबान मुरजादा राखी है वो ही चित्तौड़। शूरवीरों और रणबांकुरों के लिए प्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ के किले का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। चित्तौड़ भूमि के बारे मेें कहा गया है कि इसके कण-कण में वीरता भरी हुई है। चित्तौड़ को अत्यंत प्राचीन बताया गया है।
चित्तौड़ का पुरातन नाम चित्रकूट बताया जाता है। यहां खुदाई में मिले सिक्कों पर भी चित्रकूट ही लिखा हुआ मिला है। हालांकि इतिहास के अनुसार इस दुर्ग का निर्माण चित्रांगद मौर्य ने 7वीं शताब्दी में करवाया था। बाद में 728 ई. में बप्पा रावल ने इस दुर्ग को जीत लिया। चित्तौड़गढ़ सदा से हिन्दू वीरों द्वारा किए गए युद्धों के लिए जाना जाता है। हालांकि इस दुर्ग पर हूणों, मालवा के परमार शासकों द्वारा, गुजरात के सोलंकियों द्वारा अधिकार करने का उल्लेख भी इतिहास में मिलता है लेकिन मेवाड़ के गुहिल शासकों ने इसे पुन: हस्तगत करने के लिए युद्ध जारी रखे। अंतत: मेवाड़ के शासक जैत्रसिंह ने चित्तौड़गढ़ को जीतने के बाद 1213 से 1253 तक इसे मेवाड़ की राजधानी बनाया। इसके बाद 1567 तक चित्तौड़ मेवाड़ की राजधानी रहा।
चित्तौड़ पर सन 1443 में इतिहास प्रसिद्ध महाराणा कुंभा का राज्य प्रारम्भ हुआ। इन्हीं के वंश में आगे चलकर महाराणा प्रताप जन्मे। जिन्होंने अंतिम समय तक अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। चित्तौड़ का जिक्र हो और मीराबाई के बारे में बात न हो ऐसा संभव नहीं है। भक्तिकाल की सुप्रसिद्ध कृष्णभक्त मीराबाई का मंदिर भी चित्तौड़ किले में स्थित है। जहां बैठकर मीराबाई भगवान श्रीकृष्ण की उपासना किया करती थीं। मीराबाई के पद आज भी गांव-गांव और हर घर में गाए जाते हैं।
चित्तौड़ सबसे ज्यादा यहां लड़ी गई लड़ाइयों और चित्तौड़ किले में अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए महिलाओं द्वारा किए गए जौहर और राजपूतों द्वारा मातृभूमि की रक्षा के लिए किए गए साकों के लिए प्रसिद्ध है। (साका का अर्थ अंतिम सांस तक युद्ध लड़ने से है)
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